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पंजाब चुनाव: नशीले पदार्थों की चपेट में नौजवान, कैसे पाई जाए मुक्ति?
पंजाब में नशे के हालात समझने के सिलसिले में न्यूज़क्लिक ने कपूरथला ज़िले के डॉ संदीप भोला से बात की है..
तृप्ता नारंग
13 Feb 2022
Punjab poll

साल 2016 में रिलीज़ हुई बॉलीवुड की फ़िल्म “उड़ता पंजाब” में पंजाब में नशीले ड्रग्स की गंभीर समस्या के मुद्दे पर रौशनी डाली गयी थी। इस फ़िल्म ने इस सूबे के कई लोगों के लिए आंखें खोलने का काम किया था। पांच साल बाद चूंकि राज्य एक और विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है, ऐसे में इस फ़िल्म ने प्रमुख समाचार पत्रों का ध्यान फिर से अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है।

हाल ही में शिरोमणि अकाली दल (SAD) के नेता- बिक्रम सिंह मजीठिया पर नार्कॉटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम की धारा 25, 27 (A) और 29 क़ायम की गयी थी। लेकिन, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चुनाव ख़त्म होने तक गिरफ़्तारी से राहत दे दी है।

चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सुखबीर सिंह बादल ने एक अंग्रेज़ी अख़बार को दिये अपने साक्षात्कार में कहा है कि पंजाब, दिल्ली, हरियाणा या गोवा में चिट्टे (हेरोइन का एक मिश्रित रूप) की कोई समस्या ही नहीं है।

उन्होंने सवाल करते हुए कहा, "उड़ता पंजाब, सब मीडिया की ओर से बनाया गया है। क्या आपने यहां सड़कों पर किसी नशा करने वाले को देखा है? पंजाब में कोई चिट्टा नहीं है। क्या कोई बॉलीवुड में फैले चिट्टों को लेकर बात करता है? क्या कोई उड़ता बॉलीवुड के बारे में बात करता है?" 

बादल चाहें इसे खारिज कर दें, मगर इस सूबे में नशीले पदार्थों की समस्या इसलिए नहीं छिप सकती, क्योंकि इसने राज्य के सामाजिक ताने-बाने में अपनी जगह बना ली है। 2011 की जनगणना के मुताबिक़ राज्य की 1.2% वयस्क आबादी नशे की आदी है। 2019 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से प्रकाशित द मैग्निट्यूड ऑफ़ सब्सटेंस यूज़ इन इंडिया रिपोर्ट में पाया गया था कि सभी प्रमुख राज्यों में मादक द्रव्यों के सेवन की दर के मुक़ाबले पंजाब में यह दर सबसे ज़्यादा है और यह देश के औसत से काफ़ी ऊपर है। (नीचे दी गयी तालिका देखें। पंजाब में इंजेक्शन वाले ड्रग्स का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 88,165 है, और भारत के लिए यह संख्या 8,54,296 है।

इस मुसीबत से पार पाना राजनीतिक दलों के एजेंडे में रहा है, और इसके लिए कई कार्यक्रमों को अमल में भी लाया गया है। दुर्भाग्य से फिर भी सिस्टम इस ख़तरे को फ़ैलने से रोकने में नाकाम रहा है, और ऐसा लग रहा था कि राजनीतिक दल महज़ जुमलेबाज़ी कर रहे हैं, क्योंकि चुनाव में तो इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है, लेकिन बाद में अगले पांच सालों के लिए इसे पीछे छोड़ दिया जाता रहा है।

न्यूज़क्लिक ने मालवा इलाक़े के सीमावर्ती ज़िले श्री मुक्तसर साहिब से महिला उम्मीदवार अनुरूप कौर संधू से इस बारे में बात की, जो अपने चुनावी अभियान के दौरान इस मुद्दे को उठा रही हैं। संधू के मुताबिक़, यह सीमावर्ती ज़िला ड्रग्स के लिए एक आसान व्यापार मार्ग है। उन्होंने कहा कि सत्ता में बैठे लोगों को इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील होने और राज्य में नशीले ड्रग्स के आने पर रोक लगाने की ज़रूरत है। लोगों को पता है कि ये ड्रग्स आ कहां से रहे हैं और वे उनके परिवारों को किस तरह प्रभावित करते हैं, लेकिन इन्हें रोकने के लिए बहुत कुछ नहीं कर सकते।

हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे आनंदपुर साहिब ज़िले के एक किसान हरजाप सिंह ने नशे की इस समस्या पर बात करते हुए कहा कि इस ज़िले में नशे की कोई समस्या नहीं है। सिंह ने आगे कहा कि अगर यह समस्या मौजूद है भी, तो यह सिर्फ़ उन ड्राइवरों तक ही सीमित है, जो एक जगह से दूसरी जगह पर जाते हैं और फुक्की (खसखस की भूसी) और अफ़ीम का सेवन करते हैं। उनके विचार में ये हल्के-फुल्के ड्रग्स हैं और चिंता की कोई वजह नहीं हैं। हालांकि, उनका मानना है कि बेहतर होगा कि इस मुद्दे पर राज्य में खुलकर चर्चा हो।

हमारी यात्रा के दौरान कई लोगों की ओर से बार-बार कहा गया कि राज्य में ड्रग्स पहुंचने की स्थिति महामारी के चलते लगने वाले लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुई थी। ऐसा सीमित आपूर्ति और बढ़ी हुई लागत के कारण हुआ था। फिर भी कुल मिलाकर समस्या में कमी नहीं आयी है।

न्यूज़क्लिक ने चंडीगढ़ के मानव से बात की। मानव हालो माजरा कॉलोनी में प्रवासी श्रमिकों और स्थानीय मज़दूरों के एक बड़े समुदाय के साथ काम करते हैं। वह इस इलाक़े के बच्चों को नि:शुल्क ट्यूशन दे रहे हैं। मानव के मुताबिक़, लॉकडाउन के दौरान तो यह समस्या और भी बढ़ गयी थी, क्योंकि कई लोगों की नौकरी चली गयी थी। इस कॉलोनी में कई बच्चों को अपने स्थानीय अभिभावकों के साथ रहना पड़ा था, क्योंकि उनके परिवार अपने-अपने गांवों में लौट आये थे। स्कूलों में भौतिक कक्षाओं का संचालन बंद हो गया था और ये बच्चे शराब और नशीले ड्रग्स के लिए एक ख़तरनाक़ और आसान निशाना बन गये थे।

इस हालात को समझने और सूबे में ड्रग्स के मुद्दे के सिलसिले में ज़्यादा जानने के लिए न्यूज़क्लिक ने इस माझा क्षेत्र के कपूरथला ज़िले के डॉ संदीप भोला से बात की। डॉ. भोला की पहचान ऐसे व्यक्ति के रूप में है, जो ख़ुद के दम पर लोगों की सोच और ड्रग्स के मुद्दे को लेकर सरकार के नज़रिये को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। पेश हैं इस बातचीत के अंश:

आपके विचार से राज्य में मादक पदार्थों की समस्या कितनी गंभीर है? क्या यह बात इस सूबे को देश के बाक़ी हिस्सों से अलग बनाती है? क्या-क्या ख़ास चुनौतियां हैं ?

पंजाब में नशीले ड्रग्स की समस्या गंभीर है, क्योंकि यह समस्या यहां लंबे समय से है और जड़ पकड़ चुकी है। इस राज्य में किये गये अलग-अलग सर्वेक्षणों में सबसे हालिया सर्वेक्षण मैग्नीट्यूड ऑफ़ सब्सटांस यूज़ इन इंडिया-2019 है। इस सर्वेक्षण में भी कुछ ऐसा ही अनुमान लगाया गया है। इस बात की पुष्टि ये सर्वे ही नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत भी करती है। ज़्यादा गंभीर चिंता तो 14-15 साल से कम्र उम्र के आयु समूहों के बच्चो में इसकी संलिप्तता है। सिविल सोसाइटी इस बात को लेकर गंभीर नहीं है, यही रवैया इस समस्या को और गंभीर बना देती है।

जो चीज़ें इसे ख़ास बना देती हैं, वे मुख्य रूप से दिशाहीन नौजवान हैं, जिनमें शिक्षित होने, कुशल होने, कुछ तकनीकी कोर्स को सीखने, काम करने या उद्यमी बनने की इच्छा ही नहीं है। सबमें विदेश जाने की होड़ लगी हुई है, वे तब तक कथित तौर पर छोटे-मोटे उद्यम और कम वेतन पर काम करने के लिए भी तैयार नहीं होते। दरअसल, इसके लिए हम सभी इसलिए ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि हम नौजवानों का मार्गदर्शन नहीं कर पाये और उन्हें सही दिशा नहीं दिखा सके। यह कई कारणों में से एक कारण रहा है, जिससे नौजवान ड्रग्स में लिप्त हैं। किसी पत्रिका में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक़ पंजाब की उत्पादकता वाली आबादी 2030 तक ख़त्म हो जायेगी, जो कि काफ़ी डरावनी बात है। मैं इस लेख से व्याख्या इस तरह कर सकता हूं कि पंजाब बिना किसी उत्पादक जीवन के रह जायेगा, यानी कि नौजवान या तो नशे के शिकार होंगे या फिर राज्य छोड़कर कहीं और चले जाएँगे। 

जो ख़ास चुनौतियां हैं, वे हैं:

1. समाज और समुदाय की भागीदारी किसी भी कार्यक्रम में नहीं हो रही है।

2. महिलाओं, बच्चों, ट्रांसजेंडरों आदि जैसे हाशिये के समुदायों की समस्याओं पर न तो ध्यान दिया जा रहा है और न ही उनके लिए कोई सेवा ही शुरू की गयी है या फिर सोचा ही नहीं गया है।

3. शुरू किये गये कार्यक्रमों को समय-समय पर ज़रूरत के हिसाब से उसमें न तो सुधार किया जा रहा है या फिर न ही संशोधित किया जा रहा है।

4. इन कार्यक्रमों के सिलसिले में कर्मचारियों को या तो प्रशिक्षित नहीं किया जाता है या फिर उनमें समय के हिसाब से जानकारियों से सुसज्जित नहीं किया जाता है।

नशीले ड्रग्स का इस्तेमाल करने वालों की सामाजिक-आर्थिक प्रोफ़ाइल, इस्तेमाल किये जाने वाले ड्रग्स की प्रकृति, संख्या और नशीले ड्रग्स इस्तेमाल करने वाले बच्चों की औसत आयु के लिहाज़ से क्षेत्रीय भिन्नतायें किस तरह की हैं?

इस समय नशीले ड्रग्स के इस्तेमाल करने वालों के सामाजिक-आर्थिक प्रोफ़ाइल में बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं देखा जा रहा है। तीनों क्षेत्र, यानी माझा, मालवा, दोआबा, समान रूप से प्रभावित हैं। नशीले ड्रग्स के इस्तेमाल पर किये गये विभिन्न अध्ययनों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है। इस ख़तरे ने किसी भी जाति, पंथ, तबके आदि को नहीं बख़्शा है। इसमें संलिप्त जो आयु समूह पहले 25-35 वर्ष हुआ करता था, अब यह 18-25 या उससे भी कम हो गया है।

हमने 12-13 साल की उम्र में कुछ बच्चों को नशीले पदार्थों के आदी होते देखा है। चूंकि उनके माता-पिता के पास जाने को लेकर उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है और कोई विशेष सेवायें उपलब्ध भी नहीं करायी गयी हैं, इसलिए 4-5 साल का क़ीमती समय पहले ही बीत चुका होता है। अन्य मुद्दे भी हैं- इन बच्चों पर जीवन भर के लिए ड्रग की लत वाले इंसान होने का कलंक और ठप्पा लग जाने की आशंका, और इस आशंका से बचने के लिए माता-पिता उन्हें छिपाए रखते हैं।

आप नशा करने वालों और दूसरे पीड़ित लोगों के साथ उन्हें दिशा दिखाने का कार्य कर रहे हैं। महिलाओं में यह समस्या कितनी गंभीर है? क्या वे पुरुषों की तरह ही ड्रग्स का सेवन कर रही हैं ?

महिलाओं की यह समस्या पुरुषों की तरह ही है; सच कहें, तो ज़्यादा गंभीर है। वे उन्हीं नशीले पदार्थों का सेवन करती हैं, लेकिन वे कम समय में ही इसका आदी हो जाती हैं; कम मात्रा उन्हें ज़्यादा प्रभावित करती है, और उनमें इसका दोबारा शिकार होने और ज़्यादा मात्रा में लेने की संभावना अधिक होती है। वे व्यसन के साथ-साथ नशामुक्ति के लिए भी अपने पुरुष साथियों पर निर्भर होती हैं। वे ज़्यादा बदनाम हैं।

हमने उस महिला नशा मुक्ति केंद्र के बारे में भी सुना है, जो कि 2019 में एक महिला के साथ शुरू हुआ था और अब इनकी संख्या 235 तक पहुंच गयी है। इसकी शुरुआत को लेकर थोड़ा और बतायें? महिलाओं को इस केंद्र में ला पाना और फिर यहां उन्हें टिकाये रख पाना कितना मुश्किल है? एक बार नशे से बाहर आ जाने के बाद नशामुक्ति और उनकी स्वीकार्यता को लेकर परिवार और समुदाय के समर्थन की स्थिति क्या है?

महिलाओं के लिए इनडोर नशामुक्ति केंद्र को 2017 में शुरू किया गया था, और यह केंद्र ड्रग इस्तेमाल करने वाली कई महिलाओं या नीति निर्माताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र नहीं बन सका। पंजाब सरकार और अलायंस इंडिया की ओर से 2019 में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। उनकी ओर से से जो सुविधायें दी गयी हैं, उनके लिए इन सभी 240 से ऊपर की संख्याओं में महिलाओं को नशामुक्ति सेवाओं में नामांकित किया और उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी सेवायें, सामाजिक सुरक्षा योजनायें आदि दी गयी। इनमें से कुछ महिलाओं ने इपनी इच्छा से ख़ुद को भर्ती कराना पसंद किया। राज्य सरकार ने उनके लिए रोज़गार और व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू किया है, जो कि उन्हें मुख्य धारा में लाने और परिवार और समुदाय में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिहाज़ से एक बड़ी पहल है।

यह पायलट प्रोजेक्ट कामयाब रहा है, और यह दो साल तक चला और दुनिया के सामने इस लिहाज़ से एक मिसाल है कि इस हाशिए के समूह के लिए इन सेवाओं के साथ कैसे आगे बढ़ना है। दुर्भाग्य से यह प्रोजेक्ट अपने शुरुआती चरण से आगे नहीं बढ़ सका, हालांकि हम अब भी इसे पूरे राज्य में लागू करने की कोशिश कर रहे हैं।

लॉकडाउन के दौरान आपने अपने इन केंद्रों का प्रबंधन किस तरह से किया था? महामारी ने इन ज़िम्मेदारियों/सेवाओं को किस तरह से प्रभावित किया था?

लॉकडाउन एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण अवधि थी। मरीज़ न तो सेवाओं तक पहुंच पा रहे थे और न ही उन्हें अपनी इन परेशानियों से निकल पाने की राहत के लिहाज़ से दवायें मिल पा रही थीं। महामारी के दौरान इनडोर सेवाओं को बंद करना पड़ा था, लेकिन ओपीडी सेवाये वैसे ही जारी रहीं।

नशामुक्ति में काम आने वाली दवाओं को घर-घर में उपलब्ध कराने के लिए मोबाइल OOAT (mOOAT) क्लिनिक नाम से एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। इस समुदाय ने इसे व्यापक रूप से स्वीकार किया था। इसके पीछे का विचार तो यही था कि अगर किराने का सामान, दूध और सब्ज़ियां घर के दरवाज़े पर उपलब्ध करायी जा सकती हैं, तो नशामुक्ति की दवाओं को लेकर ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता है? बेशक, यह सब उचित दिशा-निर्देशों का पालन करने और सख़्त निगरानी के साथ होना था।

कई लोगों का मानना है कि नशीले ड्रग्स की हालत इतनी ख़राब होती जा रही है कि माता-पिता इससे इतने डरे हुए हैं कि उनके बच्चे कहीं नशे में न पड़ जायें, इस वजह से वे अपने बच्चों को देश छोड़ने को लेकर मजबूर कर रहे हैं? आप इसे कैसे देखते हैं? बची हुई/नयी चुनौतियाँ क्या हैं? आपकी नज़र में लोग क्या सोच रहे हैं? वह कौन सी पार्टी है, जो इस समस्या से निपटने के लिए सबसे ज़्यादा प्रतिबद्ध है?

हां, माता-पिता तो डरे हुए हैं। लेकिन, उन्हें विदेश भेजना किसी भी लिहाज़ से भी सही विचार नहीं हो सकता। मेरी जानकारी के मुताबिक़, ये ड्रग्स और कई दूसरे ड्रग्स दुनिया के बाक़ी हिस्सों में भी तो उपलब्ध हैं। हालात बिगड़ने का मतलब है कि ड्रग्स का रूप या ड्रग्स का प्रकार बदल दिया जाता है या उनकी जगह कहीं ज़्यादा मज़बूत और ज़्यादा नशीले पदार्थ ले ले लेते हैं।

मेरे लिए जो अधूरी चुनौतियाँ रही हैं, वे हैं:

1. मैंने नीति निर्माताओं को इस समस्या से निजात को लेकर कई सारे विकल्प उपलब्ध कराने और उसके अनुरूप व्यक्तिगत प्रबंधन को लेकर विश्वास नहीं दिला पाया है।

2. हाशिए के समुदायों को लेकर विशेष प्रबंधन रणनीतियां स्थापित करना।

3. नशामुक्ति कार्यक्रमों में शामिल कर्मचारियों को उन्नत प्रशिक्षण दिया जाना और उन्हें बदलते हालात पर नयी जानकारियों से सुसज्जित करना।

मैंने सभी सरकारों के साथ मिलकर काम किया है। मैंने देखा है कि इस क्षेत्र में वे सभी गंभीर चिंताओं और जुनून के साथ काम करते हैं। चूंकि यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, इसलिए इसे समय-समय पर संशोधित और संचालित करना पड़ता है। मेरा अनुरोध तो यही रहता है कि किसी भी सेवा को नहीं रोका जाये। इलाज का हर तरीक़ा सही है; इसे संशोधित करना पड़ सकता है, लेकिन इसे जारी तो रखना ही होगा। 

"सत्ता में चाहे जो लोग आयें, उनसे मेरा अनुरोध यही है कि वे एक तकनीकी टीम का गठन करें और इस ख़तरे को दूर करने और रोकने के लिए सभी संभावित विकल्पों का पता लगायें और उन पर काम करें।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें:-

Punjab Polls: Substance Abuse Continues to Affect Youth in the State, Multiple Treatment Options Needed

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