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भारत
राजनीति
क्या "महामारी एक्ट" के बहाने विपक्षियों और जनसंगठनों को निशाना बना रही है योगी सरकार
लखनऊ में 5 अक्टूबर को होने वाले प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की तैयारियां ज़ोरों पर हैं लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि इधर लगातार विपक्षी दलों या आंदोलनकारियों के ख़िलाफ़ कार्यक्रम आयोजित करने के चलते 'महामारी एक्ट' के तहत आए दिन मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं।
सरोजिनी बिष्ट
04 Oct 2021
Protest

क्या महामारी एक्ट के बहाने उत्तर प्रदेश की सरकार चुन चुन कर अपने विरोधियों को निशाना बना रही है, लगता तो कुछ ऐसा ही है। जिस प्रकार विपक्षी दलों के नेताओं पर भीड़ एकत्रित कर धरना, प्रदर्शन या सभा कर कॉविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन का आरोप मढ यूपी पुलिस महामारी एक्ट के तहत एक के बाद एक मुकदमा दर्ज कर रही है, तो आख़िर यह क्या दर्शाता है। हद तो तब हो जाती है जब किसी कार्यक्रम में कोविड नियमों का पालन करते हुए मात्र  तीस से चालीस लोग ही जुटते हैं, जबकि इजाज़त सौ लोगों तक की है, कोई अथाह भीड़ भी नहीं फिर भी प्रयागराज पुलिस सात लोगों पर महामारी एक्ट के तहत नामजद एफआईआर दर्ज कर देती है। अब जरा यह भी जान लें कि आख़िर वे लोग कौन हैं जिनके खिलाफ़ नामजद एफ आई आर दर्ज है , इसमें  भाकपा- माले नेता डॉ. कमल उसरी,  आईसा छात्र नेता शैलेश पासवान,  फ़्रेटर्निटी संगठन की कार्यकर्ता सारा अहमद सिद्दीक़ी, सामाजिक कार्यकर्ता सबीना मुहानी और शाहीन फ़ातिमा, दिशा संगठन कार्यकर्ता अमित पाठक और पी यू सी एल के अविनाश मिश्रा ये से तमाम लोग हैं जिन्होंने CAA, NRC आंदोलन में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। तो ज़ाहिर सी बात है सरकार की नज़रों में ऐसे तमाम लोग किसी असामाजिक तत्व से कम नहीं तो इनपर केस होना तो तय था।
 
आख़िर क्या है पूरा मामला?

असम के दरांग में पुलिस की गोली का शिकार हुए दो स्थानीय लोगों की मौत और एक शव के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार के  बाद देश के विभिन्न हिस्सों में असम सरकार और असम पुलिस के ख़िलाफ़ जनाक्रोश देखने को मिला।विभिन्न प्रगतिशील, अमनपसंद , मानवाधिकार संगठनों द्वारा होने वाले विरोध प्रदर्शनों की कड़ी में बीते 26 सितंबर को इलाहाबाद के अटाला चौराहे पर विभिन्न संगठनों के लोग अपना विरोध जताने के लिए एकत्रित हुए, जिसमें फ़्रेटर्निटी संगठन, भाकपा माले, छात्र संगठन आईसा, सीटू, दिशा, पी यू सी एल आदि संगठनों के एक्टिविस्ट शामिल थे। सारा अहमद सिद्दीक़ी के मुताबिक उनके संगठन द्वारा राष्ट्रीय आह्वान के तहत शहर के अटाला चौक पर यह कार्यक्रम रखा गया था जिसमें अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी अपनी एकजुटता दिखाते हुए कार्यक्रम में शामिल हुए। इस बात का खासा ख्याल रखा गया कि ज्यादा भीड़ इकट्ठा नहीं करनी लेकिन फिर भी महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया जबकि उनके कार्यक्रम के ठीक दो दिन बाद एक कॉन्सर्ट का हिस्सा बनने अपनी टीम के साथ रैपर हनी सिंह इलाहाबाद आए थे, जिनका स्वागत खुद कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी और मेयर अभिलाषा गुप्ता नंदी ने किया था, तो क्या तब कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन नहीं हो रहा। वे कहती हैं मसला यही है, दरअसल हम जान रहे थे हम जैसे मुद्दे को लेकर सवाल उठा रहे हैं, विरोध जता रहे हैं , प्रशासन हमारे ख़िलाफ़ सख्त होगा ही और हमारे ख़िलाफ़ केस होगा ही और वही हुआ। जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो महामारी एक्ट के तहत एफ अाई आर दर्ज कर ली। तो वहीं अाईसा के नेता शैलेश पासवान कहते हैं , आप किस मुद्दे पर लड़ रहे हैं, यह मायने रखता है। उनके मुताबिक क्योंंकि हम लोग मुस्लिम समाज के लोगों के साथ की गई बर्बर और कायराना व्यवहार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे, जो मौजूदा हालात में सत्ता को नगवार है। माले नेता कमल उसरी जी कहते हैं दरअसल केस थोपे जाते हैं हम जैसे संघर्षशील ताकतों को डराने के लिए, क्योंकि यह शासन प्रशासन सब जानते हैं कि हम इतने गलत नहीं जितना ठहराया जाता है केवल और केवल हमारे भीतर भय पैदा करने के लिए जब तब हमारे ख़िलाफ़ एफ आई आर लिख दी जाती है लेकिन यह बात उन्हें भी समझनी चाहिए कि हम सड़क पर उतर कर आंदोलन करने वाले लोग हैं न डरे हैं न डरेंगे। 

क्या "महामारी एक्ट" यूपी सरकार का  हथियार बन गया है?

राज्य में विधानसभा चुनाव का माहौल है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं यह घोषणा कर चुके हैं कि वे नवंबर तक पूरे यूपी को मथ देंगे। तो आख़िर किससे मथ देंगे। ज़ाहिर सी बात है विधानसभा चुनाव हैं तो चुनावी कार्यक्रमों से मथ देंगे। अब जरा कुछ महीने पीछे चलते हैं, जब कोरोना महामारी के ही दौरान राज्य सरकार ने माघ और कुंभ मेलों का आयोजन करवाया जिसमें लाखों श्रृद्धालू शामिल हुए। हालांकि सरकार के इस कदम की आलोचना भी हुई थी। इसी महामारी के बीच राज्य में पंचायत चुनाव कराया गया था जबकि हालात की भयानकता को देखते हुए चुनाव स्थगित करने की मांग बार-बार उठ रही थी। चुनावी ड्यूटी के चलते कई शिक्षकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। प्रधानमंत्री के पांच अक्टूबर को लखनऊ कार्यक्रम के लिए तैयारियां जोरों पर हैं लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि इधर लगातार विपक्षी दलों या आंदोलनकारियों के ख़िलाफ़ कार्यक्रम आयोजित करने के चलते 'महामारी एक्ट' के तहत मुकदमे पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। बीते अगस्त माह में बसपा का आगरा में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित था। इस कार्यक्रम के बाद बसपा के पन्द्रह नेताओं पर नामजद और 120 अज्ञात पर महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। बसपा के जिलाध्यक्ष विमल कुमार वर्मा का कहना है कि यह पुलिस और प्रशासन की द्वेषपूर्ण कार्रवाई है , बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आए थे तब किसी को भीड़ दिखाई नहीं दी जबकि सम्मेलन में मात्र 100 से 150 कार्यकर्ता ही जुटे थे। सपा के अखिलेश यादव समेत पार्टी के 28 लोगों के ख़िलाफ़ काफी पहले ही महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज है तो वहीं कांग्रेस के नेता भी इससे अछूते नहीं। कुछ दिन पहले आॅल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एअाईएमअाईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का प्रयागराज और बाराबंकी     शहर में एक सभा का कार्यक्रम था। इन्हीं कार्यक्रमों के बाद ओवैसी और उनके पार्टी नेताओं पर महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, हालांकि कि ओवैसी पर अन्य धाराओं के तहत भी मुकदमें दर्ज किए गए ।

क्या है यह महामारी एक्ट?

यह कानून आज से 123 साल पहले साल 1897 में बनाया गया था, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। तब बॉम्बे में ब्यूबॉनिक प्लेग नामक महामारी फैली थी। जिस पर काबू पाने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने ये कानून बनाया। महामारी वाली खतरनाक बीमारियों को फैलने से रोकने और इसकी बेहतर रोकथाम के लिए ये कानून बनाया गया था। इसके तहत तत्कालीन गवर्नर जनरल ने स्थानीय अधिकारियों को कुछ विशेष अधिकार दिए । इसमें सिर्फ चार सेक्शन बनाए गए हैं।

पहले सेक्शन में कानून के शीर्षक और अन्य पहलुओं व शब्दावली को समझाया गया है। दूसरे सेक्शन में सभी विशेष अधिकारों का जिक्र किया गया है जो महामारी के समय में केंद्र व राज्य सरकारों को मिल जाते हैं।तीसरा सेक्शन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहित की धारा 188 के तहत मिलने वाले दंड/जुर्माने का जिक्र करता है।

इसके अनुसार, कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने / न मानने पर दोषी को 6 महीने तक की कैद या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है। चौथा सेक्शन कानून के प्रावधानों का क्रियान्वयन करने वाले अधिकारियों को कानूनी संरक्षण देता है।

उठने लगीं विरोध की आवाज़ें

आज जब माहौल ऐसा बन चुका है कि हालात सामान्य होने का हवाला देकर स्कूल, बाजार, मॉल, सिनेमाघर, होटल, रेंस्त्रा आदि सब खुल चुके हैं,साप्ताहिक बंदिया भी समाप्त कर दी गई है,  हर जगह भीड़ चरम पर है चाहे हम रेलवे स्टेशनों की बात करें या बस अड्डों या अन्य स्थलों की, तब सवाल यह उठता है कि ऐसे हालात में फिर महामारी एक्ट का क्या औचित्य रह जाता है इसलिए यह माना जा रहा है कि अब इस एक्ट का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। आलोचकों का मानना है कि इस एक्ट का इस्तेमाल सरकार मात्र अपनी मंशा पूर्ति के लिए कर रही है। वे कहते हैं जब ब्रिटिश काल में इस एक्ट को बनाया गया था तब भी यह देखा गया था कि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार करने और सार्वजनिक सभाओं को रोकने के लिये इस अधिनियम का दुरुपयोग किया जाता रहा। 

सवाल यह है कि क्या यह महामारी एक्ट की जरूरत आज की तारीख़ में सचमुच है या उत्तर प्रदेश सरकार इसे अपने फायदे के लिए ही इस्तेमाल करना चाहती है। यदि सचमुच आज भी इसकी आवश्यकता है तो फिर इसके तहत मुकदमें दर्ज करने के लिए "pick and choose" की नीति क्यों अपना ही जा रही है। पूरा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगा ज़ाहिर है इसमें सत्तारूढ़ दल भाजपा के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक भी शामिल हैं। पांच अक्टूबर को प्रधानमत्री का दौरा भी है, तैयारियां जोरों शोरों की हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद लगातार जिला, ब्लॉक स्तर के कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। कभी बड़े पैमाने पर रोजगार मेले तो कभी जनकल्याण मेलों का आयोजन किए जा रहे हैं, तब ऐसे में यदि केवल और केवल विपक्षी दलों या अन्य जनवादी संगठनों के लोगों को ही निशाना बनाया जाता है तो क्या इसे सरकार की पक्षपात और द्वेषपूर्ण रवैया माना जाना गलत है?

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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