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क्या अफ़गानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता देना भारत के हित में है? 
इस बात की संभावना जताई जा रही है कि तालिबान के नेतृत्व में बनने वाली सरकार एक समावेशी गठबंधन की सरकार होगी। अब तक की मिली रिपोर्टों के अनुसार इस संबंध में शुक्रवार को काबुल में घोषणा होने की उम्मीद है।
एम. के. भद्रकुमार
04 Sep 2021
Translated by महेश कुमार
क्या अफ़गानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता देना भारत के हित में है? 

मॉस्को में गुरुवार को हुई साप्ताहिक ब्रीफिंग में, इसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मारिया ज़खारोव ने कहा कि देश में एक समावेशी सरकार बनने के बाद रूस, अफ़गानिस्तान के नए अधिकारियों/प्रशासन को मान्यता देने पर विचार करेगा।

ज़खारोव ने कहा "हम अफ़गानिस्तान में एक समावेशी गठबंधन सरकार की स्थापना का आह्वान करते हैं जिसमें जातीय अल्पसंख्यकों सहित देश की सभी जातीय और राजनीतिक ताकतें शामिल हों, इसलिए जब यह प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी तब देश की नई सरकार और उसके अधिकारियों को मान्यता देने का सवाल सामने आएगा।" (टीएएसएस)

इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि तालिबान के नेतृत्व में बनने वाली सरकार वास्तव में एक समावेशी गठबंधन की सरकार होगी। अब तक की कुछ मिली रिपोर्टों के अनुसार इस संबंध में घोषणा शुक्रवार की शुरुआत में काबुल में होने की उम्मीद है।

ज़खारोव की टिप्पणी रूस की नई सोच को दर्शाती है। हाल ही में, रूस के राष्ट्रपति के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव ने अफ़गानिस्तान पर टिप्पणी की थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्णय के बिना तालिबान को आतंकवादियों की सूची से हटाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा, "जहां तक ​​मान्यता का सवाल है, हमें इस बात के लिए कोई जल्दी नहीं है। हम देखेंगे कि सरकार/शासन कैसे काम करता है”।

दरअसल, नई अफ़गान सरकार को मान्यता देने के सवाल पर मास्को का रुख उसकी स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। अब तक यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो गई है कि अमेरिका इस बात को सुनिश्चित करने का पूरा प्रयास करेगा ताकि नई सरकार को अधिक भाव न मिले। क्योंकि युद्ध में पेंटागन की अपमानजनक हार के लिए अमेरिका तालिबान से बदला लेने के लिए कमर कस रहा है। क्या आईएसआईएस-के के खिलाफ लड़ाई में तालिबान के साथ अमेरिका के कोई समन्वय बनाने की संभावना है, रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन इस मामले में टाल-मटोल कर रहे थे, जबकि सामान्य ज्ञान यह कहता है कि तालिबान के आस्तित्व को देखें तो आईएसआईएस-के उसका दुश्मन है।

इसका साफ और स्पष्ट मतलब यह है कि अमेरिका पहले अफ़गान सरकार को आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए कमजोर करेगा, संपत्तियों को फ्रीज करेगा, अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग की पहुंच से वंचित करेगा, और इस सब के जरिए वह तालिबान सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करेगा, और फिर इसे दरकिनार कर वह बहुत कुछ करने के लिए आगे बढ़ना चाहता है क्योंकि वह अफगानिस्तान की संप्रुभता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान नहीं करता है। मंगलवार को ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के विश्लेषण का एक शीर्षक था, "क्या तालिबान शासन जीवित रह पाएगा?"

विश्लेषण में कहा गया है कि चूंकि अब तालिबान सत्ता में है इसलिए "समूह के भीतर मौजूद विभिन्न वैचारिक गुटों और भौतिक हितों के कई अलग-अलग गुटों में एकजुटता बनाए रखने की चुनौती अब काफी कठिन हो जाएगी। "गुटों के इस बारे में अलग-अलग विचार हैं कि नई सरकार को शासन के सभी आयामों को लेकर कैसे शासन करना चाहिए, जिसमें समावेशिता, विदेशी सेनानियों से निपटना, अर्थव्यवस्था और बाहरी संबंध शामिल हैं। कई मध्य-स्तरीय युद्धक्षेत्र कमांडर हैं जो युवा हैं वे वैश्विक जिहादी नेटवर्क के साथ अधिक जुड़े हुए हैं, और चूंकि उन्हे तालिबान के कुप्रबंधित 1990 के शासन का कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है – इसलिए वे पुराने राष्ट्रीय और प्रांतीय नेताओं की तुलना में अधिक कट्टर हैं।"

स्पष्ट रूप से, अमेरिकी खुफिया ने तालिबान में गहरी पैठ बना ली है और संकट आने के समय वह इसे विभाजित कर सकता है, क्योंकि उसने इसे कमजोर कर अपने वश में करने की क्षमता हासिल कर ली है। यह कहना काफी होगा, कि तालिबान के लिए आगे का समय आसान नहीं होगा। वाशिंगटन की रुचि देश में एक "राज्यविहीन" स्थिति बनाने की है, जिसमें कोई कार्यशील केंद्र सरकार न हो, ताकि वह अपनी इच्छा से हस्तक्षेप कर सके और क्षेत्रीय देशों के मद्देनज़र वह अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ा सके।

यहां अनकहा एजेंडा है जिसके जरिए अमरीका हाइब्रिड युद्ध लड़ना चाहता है, इसके लिए अमेरिका आईएसआईएस लड़ाको को सीरिया से एयरलिफ्ट करेगा और अफ़गानिस्तान भेजेगा, ये वे लड़ाके हैं जो मध्य एशिया, शिनजियांग, उत्तरी काकेशस, आदि के कठोर युद्ध लड़ने वाले दिग्गजों के साथ अफ़गानिस्तान के आसपास के क्षेत्रों में काम कर रहे थे।

ऐसा लगता है कि रूस सामने आ रही अमेरिकी रणनीति के गंभीर अर्थों को महसूस कर रहा है। राजदूत वसीली नेबेंजिया ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफ़गानिस्तान पर पेश प्रस्ताव संख्या 2593 (2021) पर बोलते हुए अमेरिका और उसके सहयोगियों की दुर्भावनापूर्ण इरादों पर सवाल उठाए। दुविधा का समय बीत गया है। तालिबान के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का अस्तित्व गंभीर रूप से अंतरराष्ट्रीय समर्थन पर निर्भर करेगा। इसलिए क्षेत्रीय राष्ट्रों की नीति का मुख्य आधार यह होना चाहिए कि काबुल में एक स्थिर सरकार उनके महत्वपूर्ण हितों में है या नहीं।

अफ़गानिस्तान आज राजनीतिक रूप से काफी निराशाजनक रूप से खंडित है और अमेरिका ने काबुल में अपनी कठपुतली सरकार के लिए रास्ता साफ करने के लिए उत्तरी गठबंधन को व्यवस्थित रूप से कमजोर कर दिया है ताकि तालिबान सरकार सचमुच में स्टेशन छोड़ने वाली आखिरी ट्रेन बन जाए। अगर यह ढाँचा ढह जाता है, तो अफ़गानिस्तान की एकता खतरे में है। यह भी सोमालिया या यमन की तरह सरदारों और जागीरदारों का युद्ध बन जाएगा, और क्षेत्रीय स्थिरता को कमजोर करेगा और आतंकवाद का स्थायी स्रोत बन जाएगा। क्या भारत जैसे जिम्मेदार क्षेत्रीय राष्ट्र अपने पड़ोस में यही चाहते हैं?

उत्तर बहुत स्पष्ट है। अगर अफ़ग़ानिस्तान पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो जाता है तो अमेरिका की "मातृभूमि की सुरक्षा" प्रभावित नहीं होगी। लेकिन क्षेत्रीय राष्ट्र किसी न किसी तरह से हितधारक हैं और इस बात में कोई अपवाद नहीं है मध्य एशियाई राज्य, चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान और भारत सभी एक ही नाव में सवार हैं।

क्षेत्रीय राष्ट्रों में से प्रत्येक के स्वार्थ नई अफ़गान सरकार को मजबूत करने और आईएसआईएस-के और अन्य आतंकवादी समूहों को हराने में मदद करने में निहित होंगे जो अमेरिकी कब्जे की अवधि के दौरान पनपे हैं। इसलिए, क्षेत्रीय राष्ट्रों को काबुल में नई सरकार को मान्यता देना एक महत्वपूर्ण जरूरत है।

यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि तालिबान अफ़गान धरती पर सक्रिय आतंकवादी समूहों पर नकेल कसने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करे। क्षेत्रीय राष्ट्र वाशिंगटन को अपने कार्य को आउटसोर्स नहीं कर सकते हैं और न ही करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के नाम पर, अमेरिका वास्तव में गृह सचिव ब्लिंकन की पालतू अभिव्यक्ति को मानकर अफ़गानिस्तान को "ख़ारिज राष्ट्र" के रूप में अलग-थलग कर रहा है।

यदि अमेरिकी चाल सफल हो जाती है, तो क्षेत्रीय राष्ट्रों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, क्योंकि इसका तार्किक परिणाम अफ़गानिस्तान में इस्लामिक स्टेट का प्रभुत्व होगा। और पूर्ण सुरक्षा जैसा कुछ नहीं रहेगा। अफ़गानिस्तान की सुरक्षा और स्थिरता क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि तालिबान सरकार के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ा जाए और इसे मजबूत बनाने के लिए कोशिश की जाए ताकि उसकी नीतियाँ सबके लिए लाभकारी हों जिसके माध्यम से उसे सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Reflections on Events in Afghanistan- XII

Afghanistan
TALIBAN
Taliban Crisis
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