NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील नज़रिया देता पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी
लैटिन अमेरिका को बाहर रखने और उसके ख़िलाफ़ आक्रामकता की अमेरिकी नीति को जारी रखने के बाइडेन की ज़िद ने उनके शिखर सम्मेलन को शुरू होने से पहले ही नाकाम कर दिया है।
शीला जिओ, मनोलो डी लॉस सैंटॉस
28 May 2022
biden

हाल ही में एक साक्षात्कार में पश्चिमी गोलार्ध मामलों के अमेरिकी सहायक राज्य सचिव, ब्रायन निकोल्स से वह सवाल पूछा गया, जो अमेरिका में कैलिफोर्निया के लॉस एंजिल्स में जून,2022 में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन से पहले हर किसी के मन में है। यह सवाल है: क्या लैटिन अमेरिका के तीन ख़ास देशों (क्यूबा, वेनेजुएला और निकारागुआ) को आमंत्रित किया जायेगा ? निकोल्स ने इस सवाल का जवाब देते हुए न तो झिझक दिखायी और न ही किसी तरह हिचक दिखायी। उनका सीधा जवाब था- नहीं।

राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से बोलते हुए निकोल्स ने आगे कहा कि जिन देशों की "कार्रवाइयां लोकतंत्र का सम्मान नहीं करती हैं" - जैसा कि अमेरिकी सरकार इन तीन देशों और उनके जैसे अन्य देशों के बारे में सोचती है, तो ऐसे देशों को इस सम्मेलन के लिए "दावत नहीं दी जायेगी।" निकोल्स की बेतकल्लुफ़ी से की गयी यह अपमानजनक टिप्पणी में अमेरिकी अधिकारियों के आम अहंकार की झलक थी और उन्होंने इन तीन देशों को "ऐसी शासन व्यवस्था वाला देश कहा, जो लोकतंत्र का सम्मान नहीं करते", इस बयान से इस क्षेत्र को ऐसा धक्का लगा है, जिसकी उम्मीद अमेरिका को भी नहीं थी।

पूरे लैटिन अमेरिका में इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई। मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर, बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस एर्स और होंडुरास के राष्ट्रपति शियोमारा कास्त्रो के साथ-साथ एंटीगुआ और बारबुडा के प्रधानमंत्री गैस्टन ब्राउन और त्रिनिदाद और टोबैगो के प्रधानमंत्री कीथ राउली सहित कैरिबियन समुदाय (CARICOM) के कई राष्ट्राध्यक्षों ने कहा कि अगर क्यूबा, वेनेज़ुएला और निकारागुआ के बहिष्कार को जारी रखा जाता है, तो वे इस शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे। कैरिकॉम ने एक ऐसे शिखर सम्मेलन का आह्वान किया है, जो "इस गोलार्द्ध के सभी देशों की भागीदारी को सुनिश्चित करता हो।”

लैटिन अमेरिका के ख़िलाफ़ बहिष्कार और आक्रामकता की अमेरिकी नीति को जारी रखने के बाइडेन की इस ज़िद ने उनके शिखर सम्मेलन को शुरू होने से पहले ही नाकाम कर दिया है। विवादों और आलोचनाओं में घिरे बाइडेन प्रशासन दोहरे मानकों के कारण किसी भी आम एजेंडे पर आम सहमति नहीं बना पाया है।

हालांकि, अमेरिका पहले ही आगे बढ़ चुका है, लेकिन इस क्षेत्र में अमेरिकी सरकार के ज़रिये हाल के तख़्तापलट और हस्तक्षेप की साज़िशों की यादें अब भी ताज़ा बनी हुई हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और अमेरिकी देशों के संगठन (OAS), दोनों ने 2019 में बोलीविया में उस तख़्तापलट को अंजाम देने में मदद की थी, जिसने लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका था।

क्यूबा के बिना कोई अमेरिका नहीं

दावत, एजेंडे और विज़न के सिलसिले में अमेरिका और ओएएस की निभायी गयी कहीं ज़्यादा या ज़्यादा सटीक तौर पर कहा जाये, तो दबंग भूमिका के चलते अपनी स्थापना के बाद से इस शिखर सम्मेलन को लैटिन अमेरिका के प्रगतिवादियों ने संदेह की नज़रों से देखा है। हालांकि, इस साल ऐसा लगता है कि अमेरिका ने इस क्षेत्र में हुए अहम राजनीतिक बदलाव और अमेरिका की राजनीतिक वैधता पर उनके प्रभाव को कम करके आंका है।

ऐसा लगता है कि अमेरिका ने शिखर सम्मेलन के अपने नेतृत्व के सामने पेश आयी किसी भी तरह की चुनौती का अनुमान नहीं लगाया है, लेकिन अमेरिकी आधिपत्य के ख़िलाफ़ इस तरह की धक्का-मुक्की ज़्यादातर लैटिन अमेरिकियों और दुनिया भर के उन लोगों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है, जो इस क्षेत्र की राजनीति पर नज़र रखते रहे हैं। वर्ष 2018 में हुए पिछले शिखर सम्मेलन के बाद से राजनीतिक मानचित्र में आमूल-चूल परिवर्तन हो चुके हैं। प्रगतिशील सरकारें न सिर्फ़ इस पूरे क्षेत्र में प्रतिक्रियावादी सरकारों से कहीं आगे निकल रही हैं, बल्कि उनमें से कई सरकारें तो अमेरिकी समर्थित सरकारों और नीतियों और लोगों के लिए बनायी गयी स्थितियों की गहरी अस्वीकृति के चलते ही उभरी हैं।

इस पूरे क्षेत्र में जिन देशों के सार्वजनिक क्षेत्रों को अमेरिका और आईएमएफ की ओर से लागू नवउदारवादी नीतियों से दशकों तक कमजोर किया गया है, उनके समाज और अर्थव्यवस्थाएं कोविड-19 महामारी के दौरान तबाह हो गये हैं। लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों के संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (ECLAC) के मुताबिक़, कोविड-19 महामारी के चलते इस क्षेत्र में मौजूद बेहद ग़रीबी दर 2020 में 13.1% से बढ़कर 2021 में 13.8% हो गयी है, जो कि पिछले 27 सालों के किसी झटके की तरह है। दुनिया की आबादी का 12% होने के बावजूद कोविड-19 से हुई 2.7 मिलियन से ज़्यादा की मौतों के साथ अमेरिका वैश्विक कोविड-19 मौतों की 43.6% की नुमाइंदगी करता है।

आर्थिक संकट और मानवीय आपातकाल की इस आम प्रवृत्ति से बाहर अगर कोई देश था, तो वे देश क्यूबा, वेनेजुएला और निकारागुआ थे। इन देशों ने अपनी व्यापक रणनीतियों की वजह से इस क्षेत्र और दुनिया में कोविड-19 से होने वाली मौतों की सबसे कम दर का सामना किया, ऊपर से इन्होंने अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और हितों को मुनाफे से कहीं आगे रखा।

उनकी इस नीति का विस्तार उनकी राष्ट्रीय सीमाओं से परे भी हुआ। मार्च, 2020 की शुरुआत से ही क्यूबा पहले से ही कोविड-19 को लेकर अपनी प्रतिक्रिया का समर्थन करने के लिए इस क्षेत्र और दुनिया भर के देशों में मेडिकल ब्रिगेड भेजता रहा था। क्यूबा की ओर से कोविड-19 के ख़िलाफ़ पांच टीके बनाये जाने के साथ-साथ इस देश ने स्थानीय उत्पादन और वितरण को बढ़ावा देने के लिए वैक्सीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी को वितरित करने के लिए दुनिया के पिछड़े देशों के साथ मिलकर काम किया है; जबकि इस बीच फ़ाइजर और मॉडर्ना जैसी अमेरिकी दवा और जैव प्रौद्योगिकी कंपनियां रिकॉर्ड मुनाफ़ा कमा रही थीं। ब्राजील में महामारी के चरम पर वेनेजुएला ने मनौस शहर में ऑक्सीजन भेजी थी, जो कि राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो की हुक़ूमत वाली ब्राजील सरकार से संघीय सहायता की गुहार लगाने के बावजूद अहम आपूर्ति से वंचित था।

यह एकदम शीशे की तरह साफ़ हो गया है कि इस क्षेत्र के देशों के पास उन देशों के साथ सहयोग और साझेदारी बनाये रखने से हासिल करने के लिए सब कुछ है, जिन्हें अमेरिका अपना दुश्मन घोषित करता है।

किसके लिए लोकतंत्र ?

अमेरिका इन देशों के उन कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन और तथाकथित ख़तरों का हवाला देते हुए क्यूबा, वेनेज़ुएला और निकारागुआ के ख़िलाफ़ अपनी आक्रामक नीति का बहाना बनाता है, जो कि इन देशों में लोकतंत्र के सामने पेश आते हैं।

हालांकि, कई लोगों ने सवाल करना शुरू कर दिया है कि जिस देश में कोविड-19 से 1 मिलियन लोग मारे गये हों, जहां 2.2 मिलियन लोग जेल में हों (दुनिया भर की जेलों की आबादी का 20% से भी ज्यादा), जहां पुलिस एक दिन में औसतन तीन लोगों को मार देती हों (गोरे लोगों के मुक़ाबले काले लोगों के पुलिस से मारे जाने की संभावना 2.9 गुना अधिक होती है), और जहां सेना पर 801 बिलियन डॉलर ख़र्च किया जाता हो (अमेरिका का सेना पर ख़र्च वैश्विक सैन्य खर्च का 38% है), वहां किस तरह का लोकतंत्र है।

अमेरिका में ज़्यादतर लोगों ने इस पाखंडी नैतिक उच्च आधार और इस आधार को भी खारिज कर दिया है कि अमेरिका को यह तय करने का अधिकार है कि कौन किस मंच पर और किसके साथ भाग लेता है। यही वजह है कि इस पूरे क्षेत्र के 100 से ज़्यादा संगठनों का एक गठबंधन पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी का आयोजन करने के लिए एक साथ आ गये हैं, ताकि ग़ैर मुनासिब तरीक़े से रखे गये "अमेरिका के शिखर सम्मेलन" नाम का मुक़ाबला किया जा सके।

यह पीपल्स समिट नवउदारवादी पूंजीवाद और अमेरिकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ उन आंदोलनों की विरासत को आगे बढ़ाता है, जिन्होंने हर बार अमेरिका के अपने शिखर सम्मेलन का आयोजन करने के विरोध में सामानांतर शिखर सम्मेलन का आयोजन किया है। पीपल्स समिट 8-10 जून को कैलिफ़ोर्निया के लॉस एंजिल्स में आयोजित किया जायेगा, और उन लोगों की आवाज़ को एक साथ लाने की कोशिश करेगा, जिन्हें अमेरिका चुप कराना और बाहर रखना पसंद करता है। लॉस एंजिल्स में अप्रवासी आयोजक सभी के लिए लोकतंत्र के अपने दृष्टिकोण पर चर्चा करने के लिए ब्राजील के भूमिहीन ग्रामीण श्रमिकों के साथ मंच पर आयेंगे। अर्जेंटीना से लेकर न्यूयॉर्क तक के नारीवादी आयोजक गर्भपात की सुगमता के लिए लड़ने और महिलाओं और एलजीबीटीक्यू लोगों पर प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी हमलों का मुक़ाबला करने की रणनीतियों को साझा करेंगे।

ये अभूतपूर्व समय ज़्यादा से ज़्यादा सहयोग और कम से कम बहिष्कार का आह्वान करता है। हालांकि, दुर्भाग्य से अमेरिकी सरकार ने क्यूबा के नागरिक समाज के 23 लोगों वाले एक प्रतिनिधिमंडल को इस पीपल्स समिट के लिए वीजा देने से इनकार कर दिया है, लेकिन क्यूबा के लोगों और अमेरिका के लोगों के बीच के बंधन अटूट हैं, और उनके तमाम कोशिशों के बावजूद अमेरिका लोगों की इन आकांक्षाओं को दबा नहीं सकता।

अमेरिका के लोग बदलाव के समय के कगार पर है, ऐसे में उनके लिए मुनरो सिद्धांत का युग ख़त्म हो चुका है।

शीला जिओ एक शोधकर्ता और सामुदायिक आयोजक हैं। वह ANSWER गठबंधन के लॉस एंजिल्स चैप्टर की अध्यक्ष हैं और शांतिवादी संगठन, ‘पिवोट टू पीस’ की सह-संस्थापक हैं। वह पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी की सह-समन्वयक हैं।

मनोलो डी लॉस सैंटोस पीपल्स फ़ोरम के सह-कार्यकारी निदेशक हैं और ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल रिसर्च में एक शोधकर्ता हैं।

उन्होंने हाल ही में, विविरेमोस: वेनेजुएला वर्सेस हाइब्रिड वॉर (लेफ़्टवर्ड बुक्स/1804 बुक्स, 2020) और कॉमरेड ऑफ़ द रेवोल्यूशन: सेलेक्टेड स्पीचेज ऑफ़ फिदेल कास्त्रो (लेफ़्टवर्ड बुक्स/1804 बुक्स, 2021) का सह-संपादन किया है। वह पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी के सह-समन्वयक हैं।

यह लेख ग्लोबट्रॉटर की प्रस्तुति था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

People’s Summit for Democracy Offers Progressive Vision to Counter US Dominance

Biden
USA
Peace Summit

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

यूक्रेन युद्ध में पूंजीवाद की भूमिका

पश्चिम बनाम रूस मसले पर भारत की दुविधा

पड़ताल दुनिया भर कीः पाक में सत्ता पलट, श्रीलंका में भीषण संकट, अमेरिका और IMF का खेल?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License