NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्या पंजाब में बसपा और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन मजबूरी है?
एनडीए से अलग होने के बाद बीजेपी का ठोस वोट बैंक भी शिरोमणि अकाली दल से अलग हो गया है, अब दलित वोट को साधकर एक नया वोट बैंक तैयार करना अकाली की मज़बूरी है। तो वहीं पंजाब में अपनी राजनीतिक ज़मीन खो चुकी बसपा के लिए ये गठजोड़ अपना अस्तित्व बचाने का एक मौका है।
सोनिया यादव
14 Jun 2021
क्या पंजाब में बसपा और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन मजबूरी है?
Image courtesy : Deccan Herald

पंजाब में अगले साल यानी 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में राजनीतिक सरगर्मियां अभी से तेज़ हो गई हैं। शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने बीते शनिवार, 12 जून को गठबंधन का आधिकारिक ऐलान कर सीटों का गणित भी लोगों के सामने रख दिया। सुखबीर सिंह बादल के मुताबिक आगामी विधानसभा चुनावों में 117 सीटों में से बसपा 20, जबकि अकाली दल 97 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। हालांकि ये चुनावी गठबंधन दोनों पार्टियों की मर्जी कम और मजबूरी ज्यादा लग रही है।

दरअसल, पंजाब में दलितों की संख्या देश में सबसे अधिक है। यहां करीब 33 प्रतिशत दलित वोट है। जिस पर अकाली दल और बसपा दोनों की नज़र है। बसपा संस्थापक कांशीराम ने पंजाब से ही अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। एक समय राज्य में इसका जनाधार था और दोआबा में दबदबा भी, लेकिन अब नहीं है। 1992 में बसपा ने नौ विधानसभा सीटों पर अपने दम पर जीत हासिल की थी। उस चुनाव का शिरोमणि अकाली दल ने विरोध किया था। लेकिन उसके बाद धीरे धीरे पंजाब की राजनीति से बसपा का सफ़ाया हो गया।

पंजाब में बसपा अपने वोट बैंक को बरकरार नहीं रख पाई

कांशीराम के नेतृत्व के बाद पंजाब में पार्टी अपने वोट बैंक को बरकरार नहीं रख पाई और यहां की राजनीति में उसका अस्तित्व ही ख़त्म हो गया। बहुजन समाज पार्टी पंजाब में पिछले 25 सालों से विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव लड़ती रही है, लेकिन पार्टी को राज्य में कभी बड़ी जीत हासिल नहीं हुई। बसपा को उम्मीद है कि अकाली दल के साथ आने से उसका प्रदर्शन सुधरेगा।

उधर, बीजेपी से अलग होने के बाद अकाली दल को एक नए साथी और नए वोट बैंक की तलाश थी, बसपा से गठबंधन के अलावा उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

एक वक्त था जब पंजाब में 1985 में अकाली दल ने बगैर गठबंधन के अपने दम पर सरकार का गठन किया था। लेकिन आज पार्टी की स्थिति खस्ता है। ऐसे में अकाली कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं कर सकते क्योंकि दोनों पूरी तरह से अलग पार्टियां हैं। वहीं आम आदमी पार्टी पंजाब में स्वतंत्र रूप से अपना राजनीतिक आधार तलाशने में लगी है। इसलिए वो अकाली दल के साथ गठबंधन करना उचित नहीं समझेगी तो अकाली दल भी उनसे गठबंधन नहीं करना चाहेगा। ऐसे में शिरोमणि अकाली दल के लिए यह गठबंधन एक मजबूरी से पैदा हुआ है, जिसका सीधा कारण दलित राजनीति है।

इस साल फरवरी में हुए नगर निगम चुनाव को देखें तो अकाली दल का बेहद ख़राब प्रदर्शन रहा, जिसके चलते पार्टी अब कोई चांस नहीं लेना चाहती। नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने प्रदर्शन तो अच्छा किया, 8 में से 7 नगर निगमों में जीत ली थी लेकिन सिद्धू के कैप्टन के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने के कारण कांग्रेस की राह मुश्किल हो गई है।

पंजाब में तब और अब की राजनीतिक परिस्थितियां अलग हैं!

गठबंधन के संबंध में बसपा के महासचिव और राज्यसभा सांसद सतीश मिश्रा ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन किया गया है, जो पंजाब की सबसे बड़ी पार्टी है। 1996 में बसपा और अकाली दल दोनों ने संयुक्त रूप से लोकसभा चुनाव लड़ा और 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार यह गठबंधन फिर बना है और अब यह नहीं टूटेगा। हालांकि पंजाब में तब और अब की राजनीति को देखें तो परिस्थितियां बहुत अलग हैं। तब पंजाब उग्रवाद से बाहर आ रहा था, यहां कांग्रेस विरोधी जनभावनाएं थीं। लेकिन अब स्थिति अलग है, कांग्रेस सत्ता में है और राज्य में किसान आंदोलन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है, जो कहीं न कहीं अकाली दल के लिए भी मुसीबत खड़ी कर सकता है क्योंकि एनडीए से अलग होने से पहले बादल परिवार ने शुरुआती दौर में खुले तौर पर कृषि क़ानूनों का समर्थन किया था। जिसकी नाराज़गी ग्रामीण इलाकों में जमकर देखने को मिली थी।

तब और अब की तुलना इसलिए भी नहीं की जा सकती क्योंकि तब प्रकाश सिंह बादल के साथ मिलकर बसपा पंजाब में अपना राजनीतिक आधार बनाने में जुटी थी, लेकिन उसके बाद से बसपा ने पंजाब में अपनी राजनीतिक ज़मीन खो दी है, गठबंधन टूट गया और अब आम आदमी पार्टी जैसी ताक़त भी चुनाव में मौजूद है जो कभी भी कोई भी पासा पलट कर किंगमेकर की भूमिका में आ सकती है।

दलित राजनीति और पद

आगामी चुनावों को देखते हुए पंजाब में इस बार दलित मुख्यमंत्री और दलित उप मुख्यमंत्री का मुद्दा भी छाया हुआ है। बीजेपी की ओर से यह ऐलान किए जाने के बाद कि वह अगर पंजाब की सत्ता में आई तो दलित समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी, बाक़ी दलों ने भी इस समुदाय को रिझाने की कोशिश शुरू कर दी हैं। अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने भी इस साल अप्रैल में वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो डिप्टी सीएम का पद दलित समुदाय के खाते में जाएगा। बादल ने यह भी कहा था कि दलित समुदाय की अधिकता वाले दोआबा इलाक़े में एक विश्वविद्यालय भी बनाया जाएगा। दोआबा में जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला के इलाक़े आते हैं। इस इलाके में विधानसभा की 23 सीटें पड़ती हैं।

पंजाब कांग्रेस के भीतर भी एक दलित डिप्टी सीएम बनाने की चर्चा जोरों पर है। दलित वोटों को लेकर चल रही सियासत को देखते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी ऐलान किया है कि उनकी सरकार सभी योजनाओं का 30 फ़ीसदी पैसा दलित समुदाय की बेहतरी के लिए ख़र्च करेगी।

पंजाब की दिलचस्प राजनीति

गौरतलब है कि पंजाब के विधानसभा चुनाव इस बार दिलचस्प होने की उम्मीद है। राज्य में फिलहाल बीजेपी की स्थिति मजबूत नहीं है, किसानों के अंदर पार्टी के लिए गुस्सा है तो वहीं उसके नेताओं का जगह-जगह विरोध भी हो रहा है। कांग्रेस भी अभी गुटबाजी और सत्ता विरोधी लहर के कारण कमज़ोर ही नज़र आती है। रही बात दलित वोट बैंक की तो यह कभी एकतरफा वोट बैंक नहीं रहा। विशेषज्ञों के मुताबिक दलितों का वोट बैंक यहां बंटा हुआ है, वो सभी राजनीतिक दलों के पास है और इस बार भी किसी एक पार्टी के पक्ष में जाने की इसकी संभावना नहीं है। अक्सर यहां सभी राजनीतिक दलों में एक दलित नेतृत्व होता है और जो अपने स्तर पर इस वोट बैंक को अपनी तरफ करने की कोशिश करता है। इसलिए कहा जा सकता है कि आने वाले चुनावों में कौन सा वर्ग किस पार्टी की तरफ झुकता है, राजनीतिक समीकरण और चुनावी परिणाम उसी पर निर्भर होगा।

punjab
Punjab Elections
Shiromani Akali Dal
BSP
MAYAWATI
Parkash Singh Badal

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

त्रासदी और पाखंड के बीच फंसी पटियाला टकराव और बाद की घटनाएं

मोहाली में पुलिस मुख्यालय पर ग्रेनेड हमला

पटियाला में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहीं, तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला

ख़बरों के आगे-पीछे: पंजाब पुलिस का दिल्ली में इस्तेमाल करते केजरीवाल

मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा पर अखिलेश व मायावती क्यों चुप हैं?

अखिलेश भाजपा से क्यों नहीं लड़ सकते और उप-चुनाव के नतीजे

दिल्ली और पंजाब के बाद, क्या हिमाचल विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बनाएगी AAP?

विभाजनकारी चंडीगढ़ मुद्दे का सच और केंद्र की विनाशकारी मंशा


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License