NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
शिक्षा
समाज
भारत
राजनीति
मुफ़्त या सस्ती शिक्षा मांग नहीं, ज़रूरत है!
जेएनयू के छात्र आंदोलन की तस्वीरें देखिये। सड़कों पर पिट रहे ये छात्र देशद्रोही नहीं हैं। ये अपनी 'अय्याशी' के लिए लाठी नहीं खा रहे हैं। ये लाठी खा रहे हैं इसलिए, कि आने वाली पीढ़ी के हर वर्ग को, शिक्षा मिल सके।
सत्यम् तिवारी
13 Nov 2019
जेएनयू छात्र आंदोलन
तस्वीर सौजन्य : फ़ेसबुक

हाल ही में जेएनयू में हुई फ़ीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ चल रहे छात्र आंदोलन ने देश में फिर से "जेएनयू विरोधी" बहस को शुरू कर दिया है। तर्क दिये जा रहे हैं कि जेएनयू आतंकवादियों का अड्डा है और वहाँ करदाताओं के पैसे से पढ़ कर बच्चे "अय्याशी" करते हैं, देश-विरोधी बातें करते हैं, और मुफ्त की ज़िंदगी जीते हैं। सवाल ये है, कि क्या ये सिर्फ़ एक जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय की बात है? नहीं! ये सवाल पूरी शिक्षा व्यवस्था का है, और उन सभी का है जो शिक्षा पा रहे हैं, इस उम्मीद में कि वो ख़ुद के लिए, समाज के लिए, और देश के लिए कुछ कर सकें।

जेएनयू में उच्च शिक्षा पाने के लिए पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ इस देश की युवा आबादी का छोटा सा हिस्सा भर हैं। यहाँ उस आबादी की बात करने की ज़रूरत है, जो जेएनयू से बाहर पढ़ रही है और जिस आबादी ने उच्च शिक्षा के लिए ना जान कहाँ से पैसे जुटा कर अपनी फ़ीस भरी है।

भारत एक विकासशील, लेकिन ग़रीब देश है। आज भी देश की 99% आबादी के बराबर धन 1% आबादी के पास है। इस विकासशील और ग़रीब देश में आधी से ज़्यादा आबादी युवाओं की है, यानी वो आयु वर्ग जिसके लोग शिक्षा पाने वाली उम्र के हैं। यहाँ उनकी बात करने की ज़रूरत है।

इस जेएनयू विरोधी नरेटिव को पकाते हुए हम ये भूल गए हैं कि यहाँ बड़ा सवाल जेएनयू या वहाँ होने वाली राजनीति का नहीं है, यहाँ सवाल शिक्षा का है। जेएनयू के छात्र अगर आंदोलन कर रहे हैं तो वो अपनी राजनीति के हित के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा के अधिकार के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

भारत में स्कूली शिक्षा पाने वाला युवा अपने स्कूल के दिनों से ही माँ-बाप के प्रेशर से जूझने लगता है, और उस वर्ग पर ये दायित्व होता है कि वो उच्च शिक्षा के लिए किसी अच्छे संस्थान में जाए। अगर उत्तरी भारत की बात की जाए, तो उच्च शिक्षा के लिए सबसे नज़दीकी शहर दिल्ली है। जहाँ दिल्ली विश्वविद्यालय में दाख़िला पाने के लिए 12वीं में अच्छे नंबर लाने पड़ते हैं, और अगर वो नहीं आये तो जेएनयू जैसे संस्थान में एंट्रैन्स टेस्ट देना होता है। अगर दोनों में से कुछ भी नहीं हुआ, तो ये वर्ग प्राइवेट कॉलेज में जाने के लिए मजबूर होता है। प्राइवेट कॉलेज में जाने वाले युवा वर्ग की संख्या काफ़ी ज़्यादा जिसकी वजह साफ़ है- कि प्राइवेट कॉलेज में एंट्रैन्स टेस्ट नहीं होता है। लेकिन प्राइवेट कॉलेजों की फ़ीस बहुत ज़्यादा होती है। शिक्षा के निजीकरण ने युवाओं को और उनके माँ-बाप को ग़ैर-ज़रूरी तौर पर उत्साही बना दिया है, उन्हें लागने लगा है कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों वाला प्राइवेट कॉलेज ही सबसे अच्छा है। ऐसे में एक प्राइवेट कॉलेज में 100% प्लेसमेंट का वादा सुन कर उसमें एक युवा दाख़िला तो ले लेता है, लेकिन उसकी फ़ीस देने के लिए उसके माँ-बाप क़र्ज़ लेते हैं। अगर सिर्फ़ इंजीनियरिंग की बात करें, तो एक प्राइवेट कॉलेज में 4 साल की इंजीनियरिंग का ख़र्चा 8-10 लाख होता है, रहना-खाना जोड़ दिया जाए तो ये ख़र्च 15 लाख तक का हो जाता है। देश में इतने सारे engineering कॉलेज हैं, कि किसी का भी 100% प्लेसमेंट का दावा कभी पूरा नहीं हो सकता। नौकरियों में कमी की वजह से जो नौकरी मिलती है, उसमें तनख्वाह इतनी कम होती है कि 15 लाख का क़र्ज़ चुकाना बेहद मुश्किल होता है।
ऐसे में जेएनयू जैसे संस्थान ज़रूरी हो जाते हैं, जहाँ हर वर्ग के लोग दाख़िला ले सकें और उच्च शिक्षा पा सकें।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक संघ ने बढ़ी फ़ीस का विरोध करते हुए एक रिपोर्ट साझा की है जिसमें बताया गया है कि जेएनयू में 44% आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग से आते हैं, यानी उनकी सालाना आय 1,44,000 से भी कम है, यानी उनका परिवार एक महीने में 12,000 रुपये कमाता है। 12,000 वो रकम है जो दिल्ली जैसे शहर में एक महीने के लिए रोज़ सफ़र करने के लिए ख़र्च हो जाते हैं। लेकिन ये छात्र जेएनयू तक इसलिए पहुँच पाते हैं क्योंकि यहाँ फ़ीस कम है, और वे ये फ़ीस दे सकते हैं। जेएनयू की फ़ीस वो है जो देश के 99% कॉलेजों-विश्वविद्यालयों की नहीं है।

जब जेएनयू का निर्माण किया गया था, तब उसके शुरुआती शिक्षकों में से एक रहीं रोमिला थापर कहती हैं, “जेएनयू का निर्माण इस सोच के साथ हुआ था कि यहाँ देश के हर वर्ग के लोग बग़ैर किसी दिक़्क़त के दाख़िला ले सकें और उन्हें उच्च शिक्षा मिलने में आर्थिक फैक्टर बाधक न बने। इस संस्थान का निर्माण इसलिए हुआ था कि यहाँ हर विचारधारा के लिए एक लोकतांत्रिक माहौल हो, और छात्रों में किसी तरह का संकोच ना रहे।"

जेएनयू की कम फ़ीस के बारे में उसके विरोधियों का तर्क है कि ये करदाताओं का पैसा है और वहाँ पढ़ने वाले इस पैसे का इस्तेमाल पढ़ाई के लिए नहीं बल्कि अपनी अय्याशी के लिए करते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए ज़रा उन लोगों के नामों पर नज़र डालनी चाहिए जो इस संस्थान से पढ़े हैं। इन लोगों में सबसे नया नाम सामने आया है अभिजीत बनर्जी का है, जो जेएनयू से पढ़े थे और उन्हें हाल ही में नोबल प्राइज़ से नवाज़ा गया है। इसके अलावा निर्मला सीतारमण, पी साइनाथ, मंजरी जोशी जैसे बड़े नाम जेएनयू से पढ़े हैं।

आज, जबकि जेएनयू का ये आंदोलन चल रहा है, तब कई प्राइवेट कॉलेज में पढ़ चुके छात्र इस बात का तर्क दे रहे हैं कि वो भी एक ऐसे कॉलेज में पढे जहाँ फ़ीस बहुत ज़्यादा थी, लेकिन उन्होंने कभी विरोध नहीं किया। इसकी वजह ये है, कि ऐसा इसलिए हुआ, कि वो ये फ़ीस देने के क़ाबिल थे। लेकिन कितने लोग इस फ़ीस को भरने के क़ाबिल हैं। छात्रों की बात छोड़ कर अगर अभिभावकों की बात की जाए, तो कौन अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं देना चाहता? लेकिन किस क़ीमत पर?
छात्रों ने अभिभावकों ने इन वजहों पर आत्महत्या की है, कि वो पढ़/पढ़ा नहीं सकते, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं हैं।

जेएनयू में आंदोलन कर रहे छात्रों में से कई छात्र ऐसे हैं, जिनका कहना है कि अगर जेएनयू न होता तो वे पढ़ाई ही ना कर पाते। जेएनयू से पीएचडी कर रहे छात्र लोकेन्द्र का कहना है कि वो अपने पूरे गाँव से ऐसे पहले छात्र हैं, जो जेएनयू आ पाये हैं और जिन्हें इस दर्जे की उच्च शिक्षा मिल सकी है। संस्कृति शर्मा ने कहा है, कि अगर जेएनयू नहीं होता तो वो पढ़ाई ही नहीं कर पातीं क्योंकि उनके पिता किसान हैं, और वे किसी और कॉलेज की फ़ीस देने में अक्षम हैं।

इस पूरे मामले का राजनीतिक से ज़्यादा आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक पहलू है, जिस पर ग़ौर करने की ज़रूरत है। उन किसान, दलित परिवार से आने वाले 44% छात्रों के बारे में सोचने की ज़रूरत है जो करदाताओं के पैसों पर जेएनयू में पढ़ पा रहे हैं और पढ़ने के बाद अभिजीत बनर्जी, पी साइनाथ की तरह देश की सेवा कर रहे हैं। जेएनयू में देश के पैसे पर पढ़ रहे हैं, तो जेएनयू से निकालने के बाद देश को ही पैसा वापस कर रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा मुहैया करा पाने में योगदान दे रहे हैं।
उन अभिभावकों के बारे में सोचने की ज़रूरत है, जो अगर जेएनयू न होता, तो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा मुहैया करा पाने में कभी समर्थ नहीं हो पाते।

शिक्षा, रोजगार, ये देना सरकार का काम है। शिक्षा मुहैया करना सरकार का दायित्व है। शिक्षा कोई मांग नहीं है, एक देश की ज़रूरत है। पिछले 6 साल की मौजूदा सरकार के दौर में, शिक्षा को लेकर इतनी उदासीनता पहली बार देखी गई है। जेएनयू विरोधी इस नरेटिव की शुरुआत 2016 से हुई थी, जहाँ शिक्षा पर सवाल उठाए गए, और आज ये माहौल है कि जेएनयू में नियमित समय में पीएचडी करने वाले हर छात्र पर इल्ज़ाम लगाए जाते हैं कि 'पता नहीं कब तक पढ़ेंगे!’

बीजेपी सरकार का 2014 से ही शैक्षणिक संस्थानों को नियंत्रित करना, उनका निजीकरण करने का एजेंडा रहा है। ये फ़ीस में बढ़ोतरी उसी प्रक्रिया का हिस्सा है। ये सिर्फ़ जेएनयू की बात नहीं है, बाक़ी विश्वविद्यालयों और अन्य कॉलेजों में भी यही हो रहा है या होने जा रहा है।

सड़कों पर लाठी खा रहे लोग अपनी 'अय्याशी' की मांग करने के लिए लाठी नहीं खा रहे हैं। वो लाठी खा रहे हैं शिक्षा के लिए। वो पिट रहे हैं इसलिए, कि आने वाली पीढ़ी उच्च शिक्षा पाने में नाकाम न रह जाए।

इन छात्रों का नारा भी है- लड़ो पढ़ाई करने को

                                 पढ़ो समाज बदलने को

JNU Students Protest
JNU protest against fee hike
fees hike in colleges
fee hike rate
fee hike in private universities
engineering college fees
students protest
protests for future

Related Stories

बीएचयू: लाइब्रेरी के लिए छात्राओं का संघर्ष तेज़, ‘कर्फ्यू टाइमिंग’ हटाने की मांग

बीएचयू: 21 घंटे खुलेगी साइबर लाइब्रेरी, छात्र आंदोलन की बड़ी लेकिन अधूरी जीत

सुपवा: फीस को लेकर छात्रों का विरोध, कहा- प्रोजेक्ट्स-प्रैक्टिकल्स के बिना नहीं होती सिनेमा की पढ़ाई

घायल छात्रों के बयान दर्ज करने के लिए एनएचआरसी टीम ने जामिया का दौरा किया  

2020 : नए साल में तेज़ होगा साझा संघर्ष

सीएए विरोध प्रदर्शन :"कौन बड़ा झूठा मोदी या शाह"  

प्रदर्शनकारियों पर दमन सरकार की बढ़ती घबराहट का नतीजा है

नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ सड़कों पर उतरा छात्रों का हुज़ूम, कहीं प्रदर्शन तो कहीं निकाला मशाल जुलूस

मनमानी : पतंजलि समेत निजी आयुष कॉलेज बढ़ी फीस लौटाने को तैयार नहीं!

जेएनयू : पुलिस के अमानवीय रवैये के ख़िलाफ़ दृष्टिबाधित छात्र फ़ोरम का विरोध प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • समीना खान
    ज़ैन अब्बास की मौत के साथ थम गया सवालों का एक सिलसिला भी
    16 May 2022
    14 मई 2022 डाक्टर ऑफ़ क्लीनिकल न्यूट्रीशन की पढ़ाई कर रहे डॉक्टर ज़ैन अब्बास ने ख़ुदकुशी कर ली। अपनी मौत से पहले ज़ैन कमरे की दीवार पर बस इतना लिख जाते हैं- ''आज की रात राक़िम की आख़िरी रात है। " (राक़िम-…
  • लाल बहादुर सिंह
    शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा
    16 May 2022
    इस दिशा में 27 मई को सभी वाम-लोकतांत्रिक छात्र-युवा-शिक्षक संगठनों के संयुक्त मंच AIFRTE की ओर से दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित कन्वेंशन स्वागत योग्य पहल है।
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: किसानों की दुर्दशा बताने को क्या अब भी फ़िल्म की ज़रूरत है!
    16 May 2022
    फ़िल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी का कहना है कि ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि किसान का बेटा भी एक फिल्म बना सके।
  • वर्षा सिंह
    उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!
    16 May 2022
    “किसी स्थान की वहनीय क्षमता (carrying capacity) को समझना अनिवार्य है। चाहे चार धाम हो या मसूरी-नैनीताल जैसे पर्यटन स्थल। हमें इन जगहों की वहनीय क्षमता के लिहाज से ही पर्यटन करना चाहिए”।
  • बादल सरोज
    कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी
    16 May 2022
    2 और 3 मई की दरमियानी रात मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले के गाँव सिमरिया में जो हुआ वह भयानक था। बाहर से गाड़ियों में लदकर पहुंचे बजरंग दल और राम सेना के गुंडा गिरोह ने पहले घर में सोते हुए आदिवासी धनसा…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License