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राजनीति
जामिया गोलीबारी: 'पुलिस, प्रशासन और मीडिया ने हमें निराश किया है'
राजधानी दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास गुरुवार को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे एक समूह पर एक व्यक्ति द्वारा पिस्तौल से गोली चलाए जाने के बाद हजारों लोग और पुलिसकर्मी आमने सामने आ गए।
अजय कुमार
31 Jan 2020
Jamia

30 जनवरी 2020 यानी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ सामाजिक संगठनों, कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने देश भर में मानव श्रृंखला बनाकर अपना विरोध दर्ज कराने का फैसला किया था।

दिल्ली में लोग शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज कर रहे थे। तभी दोपहर को जामिया से राजघाट जाने वाले मार्च पर जामिया नगर के होली फैमिली अस्पताल के सामने मौजूदा समय की सबसे अधिक नफरती घटनाओं में से एक घटना घटी है।    

सड़क पर मौजूद लोगों के मुताबिक नफरत में डूबा हुआ सत्रह साल का लड़का पिस्टल लहराता हुआ आता है। 'ले लो आजादी कहता है' और छात्रों पर गोली चला देता है। जबकि उसे पता है कि उसके ठीक पीछे पुलिस खड़ी है। गोली जामिया के एक कश्मीरी छात्र फारुख के हाथ में लगती है। अभी की खबर यह है कि उसे एम्स अस्पताल से डिस्चार्ज किया जा चुका है। वहां मौजूद लोगों के मुताबिक पुलिस ने जिस अंदाज़ में लड़के को पकड़ा उससे यह नहीं लगा कि पुलिस को इसका हल्का भी अफ़सोस हुआ कि उनकी मौजूदगी में किसी की हिम्मत इतनी कैसी बढ़ गयी कि उसने गोली चला दी। पुलिस के रवैये से ऐसा लगा कि पुलिस को इस पर कोई अफ़सोस नहीं है। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।  

गोली चलने के बाद मार्च कर रहे लोगों का गुस्सा बढ़ गया। बड़ी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। जामिया मेट्रो को बंद करना पड़ा। कुछ लोग गुरुवार की रात से दिल्ली पुलिस हेडक्वार्टर पर इस घटना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। खबर यह है कि शुक्रवार सुबह तकरीबन 34 प्रदर्शकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

इससे पहले गुरुवार को गोली चलने के बाद पुलिस ने होली फैमिली अस्पताल के सामने ही बैरिकेटिंग कर दी थी। मार्च को रोक दिया गया। बैरिकेटिंग के पीछे तकरीबन 500 मीटर तक लोगों के जमावड़े की लम्बी लाइन लग गयी। लोग दिल्ली पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे। 'वी वांट जस्टिस' कहने लगे। 'जब तक हमारा डर रहेगा, तब उनका असर रहेगा',  हम लड़ेंगे साथी'। 'वो तोड़ेंगे हम जोड़ेंगे।' इन नारों के साथ लोगों का गुस्सा बढ़ रहा था। बैरिकेटिंग के सामने खड़े लोग बैरिकेटिंग को हटा रहे थे। तो पुलिस भी सामने पड़ रहे लोगों को पीट रही थी। यह सब बैरिकेटिंग के सामने हो रहा था। पीछे खड़े लोगों के बीच हर 20-30 मिनट में अफवाहें फ़ैल रही थी कि पुलिस ने हमला कर दिया है। लाठीचार्ज कर दिया है। अचानक भगदड़ मच जा रही थी। लेकिन इसमें सबसे अच्छी बात यह थी कि लोग रुककर हाथ उठाकर कह रहे थे कि रुक जाइये। शांत हो जाइये। कुछ नहीं हुआ। दौड़िये मत। तभी मैंने हाथ उठाकर भीड़ को शांत करा रहे लोग फुरकान अली से पूछा कि यह क्या है?
jamia wall.JPG
फुरकान अली ने जवाब दिया है कि पिछले 40 से अधिक दिनों से आंदोलन करते हुए हमने यही कमाया है। एक तरह की आपसी जिम्मेदारी का भाव। काश यह भाव बहुत पहले आया होता, केवल इस आंदोलन तक सीमित न रहे, इससे आगे भी जाता। तो यह गोली नहीं चलती। गोली उस लड़के ने नहीं चलाई है। न ही अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा के गोली मारों सालों के बयान ने चलाई है। गोली हम सबके बीच पनप रहे नफरत ने हमारे ऊपर चलाई है। इस नफरत पर जीत हासिल करने की शुरुआत तभी होगी जब अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा जैसे लोगों को पालने वाली भाजपा जैसी पार्टियों की तरफ हम अपनी आपसी जिम्मेदारी का एहसास करते हुए ताकेंगेभी नहीं।  

तभी फिर हल्ला हुआ और फुरकान अली ने भागते हुए कहा कि हमारे बीच की नफरत एक या दो आंदोलनों से नहीं जाने वाली। न ही एक या दो पार्टियों के पीछे उम्मीद लगाने से जाने वाली है। यह तभी जायेगी जब हम अपने भीतर ऐसी जिम्मेदारी हर वक्त दिखाने के लिए तैयार रहेंगे।

बात हो रही थी कि जामिया प्रसाशन के लोगों की तरफ यह घोषणा की जाने लगी कि जामिया के रास्ते को छोड़कर गेट नंबर सात की तरफ चले। वहां चले, जहां पर जामिया का प्रदर्शन होते आ रहा है। लेकिन वहां मौजूद छात्र इस बात को मानने को तैयार नहीं हो रहे थे। इस और ध्यान ही नहीं दे रहे थे। तभी अचनाक से सड़क के किनारे वाली दीवार पर से एक पत्थर भीड़ में गिरा और भीड़ में फिर भगदढ़ मची। तभी जामिया प्रशासन से जुड़े एक टीचर ने कहा कि इस बात का डर हैं। जैसे ही अँधेरा बढ़ेगा वैसे ही परेशनियां भी बढ़ेगी। एक भी पत्थर पूरे माहौल को बेकाबू कर देगा। पुलिस स्ट्रीट लाइट बंद करेगी। और वह सब चालू  हो जाएगा, जिसे हमने जेएनयू में देखा था।  इसलिए भी जरूरी है कि छात्र यहां से निकले। लेकिन यह सारी बातें भी कारगर साबित नहीं हो रही थी।  

उसके बाद स्थानीय लोग, कुछ छात्र और जामिया के टीचर ने हाथ पकड़कर बैरिकेटिंग के सामने घेरा बनाना शुरू कर दिया। इस घेरे की वजह से छात्र बैरेकेटिंग से दूर होते चले गए। फिर भी कुछ छात्र और लोग लौटकर बैरीकेंटिंग के सामने खड़े हो जा रहे थे। जमावड़ा बिखर भी रहा था और लग रहा था। बैरिकेटिंग के सामने से इन्हें हटाने के लिए स्थानीय बुजुर्ग और महिलाएं आ रही थी। हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट कर रही थी। और लोग धीरे-धीरे वहां से लौटकर चले जा रहे थे। फिर भी कुछ रात दस बजे तक दिल्ली पुलिस के बरिकेटिंग के सामने खड़े रहे। इंसाफ की गुहार लगाते रहे।  

इस जिम्मेदारी से भरे लोगों के आक्रोश के इस पूरी लड़ाई के बीच में मैं लोगों से उनकी राय भी पूछ रहा था। दिल्ली पुलिस पर बात करते हुए एक नौजवान मोहम्मद साजिद ने कहा कि जब हाथ में बंदूक और शरीर पर वर्दी होती है। तो मन में एक रौबदारी तो भर ही जाती है।  आपने भी अपने सड़कों के किनारे रेहड़ी पटरी वालों के साथ पुलिस की ज्यादतियां तो देखी ही होंगी। आपने भी अपने जीवन में पुलिस का कभी- कभार डर महसूस जरूर किया होगा। यह डर बहुत गलत है लेकिन इस डर की वजह से हमारा समाज खुलेआम हिंसा करने से डरता है। लेकिन पिछले एक- दो महीने देखिये। पुलिस वाले आम प्रदर्शनकारियों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं।

यूपी में हुए पुलिसिया जुल्म के वीडियों से सोशल मीडिया पटा पड़ा है। उसे देखिएगा  उसके बाद पुलिस के सामने जेनएयू में हमले को देखिये  क्या अब तक पुलिस पर कोई कार्रवाई हुई? क्या आपने कुछ सुना कि पुलिस को सजा दी गयी। यहाँ पर पुलिस का रोल नहीं है। वह बस हमें रोकने और मारने के लिए आती है। सबकों एक साथ पढ़ने के बाद आप समझेंगे सरकार से लेकर प्रशासन सब सड़े हैं और अपनी सड़ी हुई बदबू से हमें बर्बाद करने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं।  

तभी मैंने पूछा कि अगर ऐसा होता तो पुलिस कब का आंदोलन तोड़ चुकी होती। उलट कर मोहम्मद साजिद ने कहा कि आप बड़े ध्यान से देखिये, आपको दिखेगा कि हमें आंदोलन तोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। दिल्ली में चुनाव है। कपिल मिश्रा, प्रवेश शर्मा, अनुराग ठाकुर से लेकर बहुत सारे लोग गोली मारो सालों को कह रहे हैं। पुलिस इन्हें गिरफ्तार नहीं करती है। प्रशासन कुछ नहीं करता है। हमें दूर से समर्थन देने वाले लोग इनके खिलाफ है लेकिन इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं रखते। पलटकर हमसे कहते हैं कि हम अपना आंदोलन वापस ले ले। इससे नुकसान हो रहा है। आप ही बताइये अगर मुस्लिम समुदाय को हमेशा हिसाब- किताब की भाषा में पढ़ा जाएगा तो शरजील इमाम जैसे लोग क्यों न पैदा हो?

उसके बाद शरजील इमाम पर ही एक बातचीत नौजवान के एक ग्रुप के साथ हुई। सबका कहना था कि शरजील इमाम के राय से हम बिलकुल सहमत नहीं है। लेकिन देशद्रोही बताकर गिरफ्तार करना तब तो बिलकुल ही ठीक नहीं है जब कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी हो। ऐसी व्यवस्था में सरकारें लोगों को साम्प्रदायिक बनने पर मजबूर करती है।  

तभी अचानक एक बुजर्ग को देखा। उनसे बात करने की कोशिश की। उन्होंने यह कहते हुए बात करने से मना कर दिया कि तुम लोग मीडिया वाले हो न, बहुत कम पढ़ी लिखी हूं, तुम लोगों से बात नहीं कर सकती। तुम लोगों ने सबसे अधिक जहर फैलाया है। अल्लाह तुम्हें माफ़ नहीं करेगा।  

नजर झुकाये चुपचाप वहां से निकलकर बैरिकेटिंग के पास आ गया। वहां अब भी कुछ लोग नारे लगा रहे थे।  कह रहे थे कि हम कब तक इनसे डरकर जिएंगें, इन्हें इंसाफ करना होगा। हम मर जाएंगे लेकिन यहाँ से नहीं जायेंगे। जाना तो उन्हें था ही, वे चले भी गए।  लेकिन ऐसा लगा जैसे उनका गुस्सा जायज था। उनका गुस्सा नफरत के खिलाफ था। उस नफरत के खिलाफ जिससे अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा जैसे लोग गोपाल जैसी सतरह साल के लड़के में जहर भर देते हैं।  

इस बातचीत के दौरान एक एक व्यक्ति की बात दिल में चुभ गई कि आप मीडिया वाले तो हमें गद्दार समझते हैं। हमसे क्या बात करेंगे। हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिये। मेरी दुआ है कि आप जो भी काम करते हैं उसे इमानदारी से कीजिए। तभी हम कुछ बोलने के लायक रह पाएंगे। तभी आपका हिन्दुस्तान बचा रह पाएगा। वह हिंदुस्तान जो हमारे बिना पूरा नहीं हो सकता।  

Jamia Milia Islamia
Firing In Jamia
Protest against CAA
Protest against NRC
NRC-CAA-NPR
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Narendra modi

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