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झारखंड: भैंस का छाल लेकर नगाड़ा बनाने जा रहा था, सीआरपीएफ ने उग्रवादी समझ आदिवासी को मारी गोली
यह घटना शुक्रवार की सुबह लगभग पांच बजे झारखंड के खूंटी जिले के मुरहू थानांतर्गत कोयंसार उत्क्रमित मध्य विद्यालय के समीप हुई। मृतक 36 वर्षीय रोशन होरो मुरहू थानांतर्गत कुम्हारडीह निवासी नवीन जोसेफ होरो का पुत्र था।
आनंद दत्त
22 Mar 2020
झारखंड

खूंटी: झारखंड में एक और निर्दोष आदिवासी को उग्रवादी समझ सीआरपीएफ ने गोली मार दी है। घटना 20 मार्च के सुबह की है। तीन बेटियों के बाप खूंटी के रोशन होरो (36) इस ज्यादती के शिकार हुए हैं। घटना मुरहू थाना के एदेलबेड़ा उत्क्रमित मध्य विद्यालय के पास हुई है। डीजीपी एमवी राव ने पुलिस की गलती मानी है। साथ ही गोली चलानेवाले पर एफआईआर की बात कही है।

पेशे से किसान रोशन होरो दो साल पहले सीएनआई चर्च के धर्म प्रचारक भी रहे थे। उनका भाई सेना में है। घटनास्थल पर पहुंचे स्थानीय पत्रकार अजय शर्मा के मुताबिक घटना की रात इसी इलाके में झारखंड पुलिस और सीआरपीएफ का उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) के साथ मुठभेड़ भी हुई थी। इसी को लेकर पुलिस दल ज्वाइंट सर्च ऑपरेशन को निकली थी।

इस दौरान रोशन होरो अपने गांव कुम्हारडीह से बाइक पर भैंस का छाल लेकर बगल के गांव सांडी नगाड़ा बनवाने जा रहे थे। पुलिस को देख वह डर गए। पुलिस ने रुकने को कहा, लेकिन वह भागने लगे। इस दौरान पुलिस ने गोली चला दी। हालांकि पुलिस को तुरंत समझ आया कि उसकी गोली का शिकार एक निर्दोष हो चुका है। उसे तत्काल अस्पताल ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।

वहीं दर्ज एफआईआर के मुताबिक सीआरपीएफ के जवान जितेंद्र कुमार प्रधान ने आत्मरक्षा में गोली चलाई है। गोली पैर पर मारी, लेकिन भागने की वजह से रौशन होरो के सर में लगी है। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। इसे लेकर परिजन और ग्रामीण गुस्से में हैं। खबर लिखे जाने तक वह शव लेकर नहीं गए हैं। शव पोस्टमार्टम हाउस में ही रखा हुआ है।

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रोशन होरो की मां रानीमय होरो और पत्नी जोसफिना के मुताबिक वह आपराधिक छवि का व्यक्ति नहीं था। उसका छोटा भाई जुनास होरो फौज में है और सबसे छोटा भाई पढ़ाई कर रहा है। उसे तीन छोटी-छोटी बेटियां है, एलिना (12), आकांक्षा (8) और अर्पित (3)।

डीजीपी एमवी राव ने मानी पुलिस की गलती

इस घटना पर खूंटी एसपी आशुतोष शेखर का कहना है, ‘मृतक रोशन होरो का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। झारखंड पुलिस मृतक के परिजनों के साथ है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देश के आलोक में हरसंभव सहयोग करेंगे। घटना की मजिस्ट्रेट जांच करायी जाएगी।’

झारखंड पुलिस के आईजी अभियान साकेत कुमार सिंह का कहना है, ‘पहली नजर में मामला मानवीय भूल का लगता है। गुरुवार रात उग्रवादी दस्ते की मौजूदगी की सूचना पर अभियान शुरू हुआ था। शुक्रवार को दूसरी टुकड़ी अभियान में शामिल हुई, इसी दौरान घटना हुई। पुलिस मामले की जांच स्वतंत्र एजेंसी से करायेगी।’

वहीं, इस घटना पर झारखंड के नवनियुक्त डीजीपी एमवी राव ने कहा, ‘पुलिस ने गलतफहमी में गोली चलायी है। किसी की हत्या का इरादा नहीं था। किसी दोषी को भी नहीं बख्शा जाएगा।' उन्होंने कहा कि 'पुलिस पूरे मामले में किसी तरह की लीपापोती नहीं कर रही है। मामले की जांच भी करायी जाएगी और सरकार के नियमानुसार पीड़ित के परिवारवालों को हर संभव सहायता की जाएगी।’

पुलिस के अनुसार रोशन होरो के शव का मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में डॉक्टरों की एक टीम द्वारा पोस्टमार्टम भी कर दिया गया है और इसकी वीडियोग्राफी भी करायी गयी है।

ऑपरेशन के दौरान ओएसपी का पालन क्यों नहीं किया पुलिस ने

नक्सल ऑपरेशन के दौरान ऑपरेटिंग स्टैंडर्ड प्रोसिजर (ओएसपी) कहता है कि बिना हथियार देखे किसी पर गोली नहीं चलानी है, तो फिर इस ओएसपी का पालन वहाँ पर क्यों नहीं किया गया? इस अभियान का नेतृत्व सीआरपीएफ की 94वीं बटालियन के टूओसी और खूंटी के एएसपी अनुराग राज कर रहे थे।

एक बार फिर डीजीपी एमवी राव कहते हैं, ‘मुझे ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि पुलिस की गलती से ही गोली चली है। हम कोई बहाना नहीं बनाएंगे। मामले में दो एफआईआर दर्ज की गई है। एक सीआरपीएफ की ओर से दूसरा परिजनों की ओर से। गोली शरीर के ऊपरी हिस्से में लगी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही इसके बारे में विस्तार से बात कर पाएंगे। जहां तक मुआवजे की बात है, यह राज्य सरकार तय करेगी। उम्मीद है परिजनों को जल्द इसका लाभ मिलेगा।’

फर्जी एनकाउंटर के 17 साल में दर्ज हैं 67 मामले

यह कोई पहला मामला नहीं है जब नक्सली अभियान के नाम पर झारखंड में पुलिस ने किसी निर्दोष को मारा है। साल 2015 में नौ जून को लातेहार जिले को बकोरिया नामक जगह पर एक नक्सली समेत 12 निर्दोषों को पुलिस और सीआरपीएफ की टीम ने मार दिया था। वहीं पिछले साल बकोरिया में ही एक सर्च अभियान के दौरान पुलिस और सीआरपीएफ की टीम ने एक व्यक्ति के घर में घुसकर उसकी बच्ची को मार डाला था।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2017 तक झारखंड में फर्जी एनकाउंटर के कुल 67 मामले दर्ज किए गए हैं। आयोग के निर्देश पर साल 2013-17 तक राज्य में कुल 320.3 लाख रुपए बांटे गए हैं। वहीं, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के मुताबिक मुआवजा देने का प्रावधान है।

इधर झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग का कहना है, ‘यह आदिवासियों की संगठित हत्या है। पुलिस के माफी मांगने से क्या उस निर्दोष की जान वापस आ जाएगी। वह ऐसे किसी को भी कैसे माओवादी मान लेगी। इस मामले में उच्च स्तरीय जांच और गोली चलाने और आदेश देनेवाले पुलिसकर्मियों पर एक्शन होना चाहिए। इसके अलावा मृतक के परिजनों को 25 लाख रुपये मुआवजा के तौर पर सरकार दे।’

वहीं, ऑल चर्चेज कमेटी के सदस्य राजकुमार नागवंशी ने कहा, ‘यह मामला बाहर आ गया इसलिए पता चल गया, वरना पूरे राज्य में ऐसे कितने आदिवासियों की हत्या कर दी गई है, कौन जानता है। मृतक की पत्नी को उसके लायक नौकरी दे सरकार, ताकि वह तीनों बेटी का भविष्य बचा सके।’  

रांची के वरिष्ठ पत्रकार और 20 साल से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे सुरजीत सिंह कहते हैं, ‘उनकी याद में संभवतः यह तीसरा मामला है जब झारखंड पुलिस ने स्वीकार किया है कि उसकी गलती से गोली चली है। पहली बार यही एमवी राव जब रांची में एसपी हुआ करते थे तब बुंडू में एक निर्दोष को गोली लगी थी और पुलिस ने स्वीकार किया था। वहीं एक बार पतरातू में नक्सली के परिजन को गोली लगी थी, जिसमें आईपीएस अधिकारी प्रवीण सिंह ने स्वीकार किया था।’

सवाल अब उन तीन बच्चियों का है जिनके पिता इस गोली के शिकार हुए हैं। देखना यह होगा कि राज्य सरकार उनके भविष्य के लिए क्या कुछ करती है।

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