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राजनीति
झारखंड: एनजीटी के आदेश ने बढ़ायी फिर राज्य व केंद्र में तकरार!
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण नियमों और स्थापित मानदंडों का उल्लंघन कर राज्य विधानसभा और हाईकोर्ट के नए भवन के निर्माण करने का आरोप लगाते हुए जुर्माना लगाया है, लेकिन सत्तारूढ़ झामुमो का कहना है कि यह सब बीजेपी की पूर्व सरकार का किया धरा है इसलिए उससे या उसकी केंद्र सरकार से जुर्माना वसूला जाए।
अनिल अंशुमन
12 Sep 2020
झारखंड
झारखंड विधानसभा का नया भवन। फोटो साभार : दैनिक भास्कर

लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली वाले हमारे देश में केंद्र व राज्य की सरकारों में विवाद का होना कोई नयी बात नहीं है। प्रायः हर दौर की ही केंद्र में काबिज़ सत्ताधारी दल का राज्यों की दूसरे दलों कि सरकारों से तनातनी भरा छत्तीस का आंकड़ा रहा है। लेकिन वर्तमान की केंद्र में काबिज़ सत्ताधारी दल के तौर तरीकों से देश की व्यापक लोकतंत्र पसंद शक्तियों में गहरी चिंता हो रही है। क्योंकि हाल के दिनों में जिस तरह से आये दिन गैर भाजपा प्रदेशों की सरकारें केंद्र पर भेदभाव – उपेक्षा करने के साथ साथ उनके शासन को अस्थिर करने का आरोप लगा रहीं हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण काल में भी मध्य प्रदेश में बहुमत की गैर भाजपा सरकार को गिराकर वहाँ अपनी सरकार बना लेने का सारा प्रकरण सबके सामने है। फिलहाल झारखंड प्रदेश की हेमंत सोरेन सरकार और झामुमो का आरोप है कि केंद्र आये दिन किसी न किसी मुद्दे के बहाने राज्य की सरकार को अस्थिर करने का काम कर रही।

इसी शुक्रवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के ताज़ा आदेश आने के बाद से प्रदेश में फिर से केंद्र– राज्य सम्बंदों को लेकर नया विवाद सरगर्म हो चला है। ख़बरों के अनुसार 11 सितम्बर को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने झारखंड सरकार पर पर्यावरण नियमों और स्थापित मानदंडों का उल्लंघन कर राज्य विधानसभा और हाईकोर्ट के नए भवन निर्माण में पर्यावरण को क्षति पहुंचाने का आरोप लगाया है। एनजीटी द्वारा राज्य सरकार को भेजे गए लिखित आदेश में कहा गया है कि झारखंड की सरकार ने पर्यावरण मानकों की अनदेखी कर विधानसभा और हाईकोर्ट का जो नया भवन बनाया है उससे हुई पर्यावरण क्षति के लिए राज्य सरकार को जुर्माना भरना होगा । जुर्माने की राशि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आकलन के अनुसार तीन महीने के अन्दर ही चुकानी होगी।

सत्ताधारी दल झामुमो ने इस पर कड़ी प्रतिक्रया देते हुए कहा है कि विधानसभा और हाईकोर्ट के नए भवन का निर्माण कार्य पूर्व की भाजपा सरकार के ही शासनकाल में हुआ है। जिसके लिए सीधे तौर पर पूर्व की रघुवर दास सरकार और सम्बंधित विभागीय अधिकारी जिम्मेवार हैं। इसलिए जुर्माना राशि उनसे और उनके निर्माणकर्ता ठेकेदार से ही वसूली जाई। अन्यथा केंद्र की सरकार भले ही हमें राज्य का बकाया जीएसटी न दे लेकिन चूँकि इसके उद्घाटन की सारी प्रशासनिक स्वीकृति खुद प्रधानमंत्री कार्यालय ने दी थी इसलिए जुर्माने की राशि उन्हें ही चुकानी होगी।

झामुमो का यह भी आरोप है कि प्रदेश के सारे विपक्षी दल शुरू से ही विधानसभा व हाईकोर्ट भवन निर्माण में हो रही नियमों की अवहेलना और अनियमितताओं का सवाल उठाते रहे लेकिन रघुवर दास सरकार ने उसे सिरे से ख़ारिज कर दिया। तात्कालिक चुनावी लाभ के लिए बिना किसी पर्यावरण स्वीकृति के आधे अधूरे निर्मित भवन का आनन फानन प्रधानमंत्री से उद्घाटन करवा लिया गया।

झारखंड आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता पूर्व सांसद अजय कुमार ने भी कहा है कि ये गलती पिछली रघुवर दास सरकार की है जिसकी गलत नीतियों और प्रबंधन से ही ऐसा हुआ है, इसलिए जुर्माना राशि का भुगतान भाजपा और तत्कालीन सरकार के संबंधित विभागीय अधिकारीयों से ही वसूला जाए।

प्रदेश भाजपा प्रवक्ता ने इस पर अपनी प्रतिक्रया में झामुमो पर ही पलटवार करते हुए कहा है कि एनजीटी का मुद्दा बिना सही तथ्य के उछाला जा रहा है। राज्य की वर्तमान सरकार ने दमदार तरीके से इस मुद्दे को नहीं रखा जिसके कारण ऐसा आदेश आया है। साथ ही यह भी कहा है कि यह आरोप बे बुनियाद है कि पीएम मोदी जी से विधानसभा के जिस नए भवन का उद्घाटन कराया गया, उसकी पर्यावरण स्वीकृति नहीं ली गयी थी। केंद्र द्वारा अधिकृत स्टेट लेवल एनवायरमेंट इमपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी ने 4 सितम्बर 2019 को अपने पत्र के माध्यम से विधानसभा को मंजूरी दी थी। वैसे एनजीटी जजमेंट में कहीं भी जुर्माने की राशि का ज़िक्र नहीं है सिर्फ सीपीसीबी द्वारा किये गए आकलन के आधार पर जुर्माना लेने की बात है गयी है। वैसे एनजीटी का यह आदेश अंतिम नहीं है राज्य सरकार इस पर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर ही सकती है।

सनद हो कि 465 करोड़ की लगत से बने झारखंड विधानसभा तथा हाईकोर्ट के नए भवन निर्माण के समय ही उसमें हो रही अनियमितता और पर्यावरण मानक नियमों इत्यादि की अनदेखी जैसे सवालों को लेकर काफी विवादों हुआ था। जिसका परिणाम भी सामने आ गया था कि जिस भवन के फायर-मुक्त होने का काफी दावा किया गया, प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन किये जाने के महज कुछ दिन पूर्व ही उसके एक तल्ले में भयानक आग लग गई। जिसे बुझाने में 10 से भी अधिक दमकल गाड़ियों को तीन घंटे से भी अधिक समय तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

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इस अग्निकांड में सभापति कक्ष और विपक्ष के बैठने का स्थान पूरी तरह जल गया। मामले पर पर्दा डालने के लिए गोदी मीडिया द्वारा इस काण्ड में माओवादी हाथ होने से लेकर बाहरी साज़िश होने तक की बात खूब प्रचारित की गयी।

इसी वर्ष 7 अगस्त को विधानसभा के इस नए भवन की लाइब्रेरी की छत की सीलिंग टूटकर गिर गयी और उस समय वहां किसी के न होने के कारण एक बड़ा हादसा टल गया। जिसकी जांच के लिए हेमंत सरकार द्वारा गठित विधानसभा प्राक्कलन समिति ने भी कई गड़बड़ियाँ होने की रिपोर्ट दी है।

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एआईपीएफ से जुड़े राजधानी के युवा राजनीतिक–सामाजिक कार्यकर्ता नदीम खान ने उक्त प्रकरण पर चल रही चर्चाओं का हवाला देते हुए कहा है कि झारखंड की पिछली भाजपा की रघुवर दास सरकार ने पर्यावरण स्वीकृति के बिना धड़ल्ले से कई आलिशान भवनों का निर्माण कराया है। जिससे होनेवाले पर्यावरण नुकसान व सामाजिक रूप से होनेवाली क्षति का आकलन होना चाहिए। लोग जानना चाहते हैं कि भाजपा यह भी बताये कि ‘ करे उनकी सरकार और भरे दूसरे की सरकार ’ मामले पर क्या स्टैंड है।

बहरहाल, झारखंड प्रदेश भाजपा प्रवक्ता के सुझाव अनुसार हेमंत सरकार एनजीटी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी या नहीं ये एक मामला है, सवाल यह उठता है ये किस संवैधानिक – कानूनी प्रक्रिया से तय होगा कि पिछली सरकार के कारनामों के जुर्माने का भुगतान आनेवाली नयी व दूसरे दल की सरकार को करना पड़े?

वैसे झारखंडी राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना कि –पहले, डीवीसी द्वारा अचानक से हेमंत सरकार से राज्य गठन से लेकर अबतक के सभी बकाया का तकाज़ा करके बिजली लोडशेडिंग– राशनिंग और बिजली काटने की धमकी देना और अब एनजीटी का फैसला आना, भले ही सामान्य प्रक्रिया लगे, लेकिन इन सभी कवायद के पीछे की असली सच्चाई यह भी हो सकती है कि केंद्र के सत्ताधारी दल को झारखंड की गैर–भाजपा सरकार पसंद नहीं।

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