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झारखंडः खेतों में सब्ज़ी बर्बाद, परेशान किसानों ने दी आत्महत्या की चेतावनी  
लॉकडाउन का दर्द : रांची के दस गावों के किसानों ने पत्र लिखकर सरकार से कहा है कि अगर उन्हें इस बर्बादी से नहीं बचाया गया तो वह आत्महत्या कर लेंगे। इस वक्त धनिया, पालक, शिमला मिर्च, बंदगोभी, टमाटर को सबसे अधिक नुकसान हो रहा।
आनंद दत्त
05 Apr 2020
झारखंडः खेतों में सब्ज़ी बर्बाद

रांची: पहले ओला और बारिश को बर्दाश्त किया। इसमें आधी फसल बर्बाद हो गई। बस इतनी भर उम्मीद रह गई कि जो फसल बची है, उसे बेचकर कर्ज का पैसा चुक जाएगा। जीवन तो किसी तरह पहले भी जी रहे थे, आगे भी जी लेंगे। लेकिन झारखंड के किसानों का दर्द यहीं खत्म नहीं हुआ।

अब उनका सामना लॉकडाउन से हुआ है। फसल खेतों में ही सड़ रही है। एक तरफ बर्बाद होती फसल, दूसरी तरफ किसान क्रेडिट कार्ड का लोन। परेशान किसानों ने आत्महत्या करने की तैयारी कर ली है।

राज्य के दस गावों के किसानों ने पत्र लिखकर सरकार से कहा है कि अगर उन्हें इस बर्बादी से नहीं बचाया गया तो वह आत्महत्या कर लेंगे। रांची जिले के बुंडू, तमार, नगड़ी, बेड़ो, इटकी, चान्हों, मांडर, ठाकुरगांव, बिजूपाड़ा गांव के किसान इसमें शामिल हैं।

इस वक्त धनिया, पालक, शिमला मिर्च, बंदगोभी, टमाटर को सबसे अधिक नुकसान हो रहा। झारखंड में बीते पांच सालों से बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती भी होने लगी है। एक एकड़ लगाने में 1.50 लाख की लागत आती है। बाजार बंद होने से पूरे राज्य में लगभग 50 करोड़ रुपये का नुकसान होने जा रहा है।

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ठाकुरगांव के किसान राजू साव ने बताया, 'फसल तैयार थी। जैसे ही बाजार जाने का समय आया, लॉकडाउन हो गया। अभी जो स्थिति है उसमें सरकार से मदद मांगने में भी ठीक नहीं लगता है। बस इतना निवेदन है कि केसीसी लोन माफ कर दें। नहीं तो हमारे पास सुसाइड के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता। उन्होंने बताया कि झारखंड के कई हिस्सों के अलावा बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और बिहार में सप्लाई होती थी।’  

बिजुपाड़ा के किसान मोहन महतो ने बताया, ‘एक किलो मटर की लागत 15 रुपये के आसपास होती है। वह अभी पांच से दस रुपये किलो बिक रहा।'

वहीं, कांके प्रखंड के जीतनाथ बेदिया ने बताया कि गोभी दो रुपये किलो बिक रहा, वह भी लेनेवाला नहीं है। काटने में पूंजी लगाने से बेहतर है उसे खेत में ही छोड़ दें।

खूंटी के किसान प्रफुल्ल तीडू ने बताया कि उनके खेत में लगे तरबूज में लाही लग चुका है। लेकिन दवाई नहीं मिल रही है। सही समय पर दवा का छिड़काव नहीं देंगे तो लगभग एक लाख का फसल बर्बाद हो जाएगी। बरसात में लगाने के लिए टमाटर और खीरा का बीज नहीं मिल रहा है। पता नहीं हम लोगों का क्या होगा?

रांची के अलावा खूंटी, रामगढ़, लोहरदगा, हजारीबाग, पलामू सहित कई अन्य जिलों के यही हाल हैं।

किसानों की स्थिति को लेकर झारखंड एग्रो चैंबर के अध्यक्ष आनंद कोठारी ने बताया, ‘बहुत विकराल स्थिति है। हर दिन लगभग 500 टन सब्ज़ी पूरे झारखंड से बाहर के राज्यों में जाती है। सरकार को चाहिए कि दरें निर्धारित कर अपनी संस्थाओं से सब्जियों का उठाव करे। इसमें झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस), सेल्फ हेल्प ग्रुप, वेजफेड को फंड देकर शहर में लाकर सब्ज़ी बेची जा सकती है। एक एकड़ सब्ज़ी की खेती में 60-70 हजार का खर्चा है। इस स्थिति में 25 हजार से 1 लाख तक का नुकसान हो रहा है।’

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उन्होंने आगे कहा, ‘लोकल हाट बाजार बंद है। गाड़ियों का मूवमेंट नहीं है। गांवों में लोगों ने बैरिकेड लगा दिया है। पुलिस रोक रही है, ऐसे में किसान हिम्मत नहीं कर पा रहा कि वह खुद सब्ज़ी लेकर निकले। ऐसे में सब्जियां निकलेंगी कैसे। इधर बिचौलिए औने-पौने दाम में खरीद रहे हैं। शहर में 50 रुपये किलो बेच रहे हैं।’

किसानों के उत्पाद को सही दाम दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) के तहत झारखंड को भी जोड़ा था। लेकिन राज्य के मात्र एक हजार किसान इससे जुड़े हैं। आनंद कोठारी के मुताबिक यहां ये सब बस दिखावा है।

क्या चैंबर या सरकार के पास बिचौलियों की लिस्ट नहीं है? वह कहते हैं, ‘बाजार में हर दिन बिचौलिए आ रहे हैं। किसको पकड़ेंगे? अगर वह भी नहीं लेंगे तो किसान लागत का 10 प्रतिशत भी नहीं निकाल पाएगा। सभी होलसेल बाजार बंद हैं।’
 
राज्य के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख कहते हैं ‘मुझे ये स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि लॉकडाउन में किसानों की स्थिति खराब है। जब तक लॉकडाउन है, इसमें बहुत सुधार की गुंजाइश नहीं है लेकिन सीएम से इस मसले पर बात हुई है। कई राज्यों के मंत्रियों से भी सलाह ली है मैंने। किसानों को भरोसा देता हूं कि बहुत जल्द उनके खेतों से फसल उठाने की व्यवस्था हम करने जा रहे हैं। इसमें एक से दो दिन का वक्त और लगेगा।’  

वहीं, अखिल भारतीय किसान संघ के वीजू कृष्णन कहते हैं, ‘झारखंड सरकार को इस मामले में केरल सरकार के तौर-तरीकों को अपनाना चाहिए। कृषि उत्पाद को जरूरी सर्विस में रखना चाहिए और किसानों को मदद करना चाहिए। सरकार खुद उनके खेतों तक पहुंच उनके उत्पाद को बाजार तक लाए।’  

उन्होंने कहा, ‘अभी केंन्द्रीय वित्त मंत्री ने जो पैसा दिया है, वह बहुत ही कम है। इस लॉकडाउन में फल, फूल, सब्ज़ी, मछली-मुर्गा को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। ऐसे में सरकार को लोगों को बताना होगा कि सब्ज़ी खरीदना-बेचना जरूरी है।’  

झारखंड में किसान क्रेडिट कार्ड के आंकड़ों को देखें तो राज्य में कुल 17.84 लाख किसानों ने 7,061 करोड़ रुपये का कर्ज ले रखा है। इस लिहाज से देखें तो हरेक किसान औसतन 39,580 रुपये का कर्जदार है।

सरकार ने कर्जमाफी के लिए 2000 करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया है लेकिन इसके तहत पहले उन्हीं किसानों का कर्ज माफ होगा जिसने 50 हजार या इससे कम कर्ज लिया है। इस लिहाज से फिलहाल कर्जमाफी का लाभ 3.50-4.00 लाख किसानों को ही मिल पाएगा।

कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं, ‘केंद्र सरकार को राज्यों को और मदद देनी चाहिए। केसीसी लोन पूरी तरह माफ होना चाहिए। तेलंगाना सरकार ने अपने सरकारी कर्मचारियों की सैलरी आधी कर दी है। विधायकों, मंत्रियों और आईएएस अधिकारियों की 60 प्रतिशत सैलरी काटी है। उससे जो पैसे बचे हैं, उससे किसानों के लिए 30 हजार करोड़ का इंतजाम किया है। देशभर के किसानों का बुरा हाल है। इस वक्त उन्हें सबसे अधिक मदद की जरूरत है।’

झारखंड के राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 39 लाख किसान हैं। इसमें 18 लाख को केंद्र सरकार प्रायोजित किसान क्रेडिट कार्ड मिल चुका है। राज्य सरकार की ओर से और 3.17 लाख किसानों को देने का अनुरोध किया गया है।

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