NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
झरोखा: कलकत्ता में अलग-अलग रंग हैं, श्रीराम की एकरसता नहीं!
“मैं क़रीब पौने तीन साल कलकत्ता में रहा, लेकिन इसका हर क्षण मैंने जिया। इसीलिए मैं कहता हूँ, कि अगर आपने कलकत्ता को नहीं जिया तो आप ज़िंदा रहते हुए भी मृत हो।” वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल का संस्मरण
शंभूनाथ शुक्ल
27 Jun 2021
झरोखा: कलकत्ता में अलग-अलग रंग हैं, श्रीराम की एकरसता नहीं!
कोलकाता की व्यस्त सड़कें (फाइल फोटो)। साभार: india.com

मुझे वे स्थान सबसे अच्छे और प्यारे लगते हैं, जहां तमाम कम्युनिटी, अलग-अलग धार्मिक तथा पांथिक विश्वास,  विभिन्न जातियों तथा सभी विचारधारा के लोग रहते हों। लड़ते भले हों, पर उनमें परस्पर प्रेम और सद्भावना हो। कलकत्ता (कोलकाता) इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। शहर बंगाल में है, लेकिन बंग-भाषियों की आबादी 40 से 45 परसेंट के बीच होगी।

यह देश का अकेला शहर है, जिसमें अंग्रेजों से पहले अल्बानिया से प्रवासी आए, और अब वे हुगली नदी के बीच में बसे टापूनुमा गाँवों में रहते हैं। ये लोग पीतल के बर्तनों पर कलई करने का काम करते थे, कुछ लोग पुराने कपड़े लेकर फेरी लगाते थे। मैं जब कलकत्ता में था, इनसे खूब मिलता था। अब ये लोग दरियाँ बेचते हैं। इनके अपने धार्मिक विश्वास क्या हैं, ख़ुद इन्हें नहीं पता। किंतु अब कुछ लोग इनके अतीत से इनको जोड़ने के प्रयास में हैं। जब तक कलकत्ता में कम्युनिस्टों का राज रहा, ऐसी हरकतें नहीं होती थीं। भले कलकत्ता को एक अंग्रेज जहाज़ी जॉब चार्नाक ने बसाया हो, लेकिन यहाँ पोर्चगीज, डच, फ़्रेंच, जर्मन आदि सब मिल जाएँगे। सबके चर्च भी और सबके लोगों के मोहल्ले भी। कलकत्ता में सौ गज लंबी सड़क का भी कोई नाम होगा, और उसके आसपास उस पहचान के लोग भी बसे होंगे।

मारवाड़ी, खत्री, गुजराती, राजस्थानी, पुरबिये, देशवाड़ी, बिहारी, बलियाटिक, हरियाणवी, पंजाबी, मलयाली, तेलुगु, कर्नाटकी, तमिल भाषी आदि सभी। ये सब लोग अपनी-अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त बंगाली और हिंदी भी फ़र्राटे से बोल लेते हैं। यहाँ जब कम्युनिस्ट शासन था, तब भी आरएसएस के लोग खूब थे और उनकी शाखाएँ भी लगती थीं। आज भी लगती हैं। कांग्रेसी, समाजवादी भी कम नहीं हैं। मारवाड़ी व्यापारी सभी को चंदा देते हैं। और हर राज में मारवाड़ियों और पुरबियों में से कोई न कोई सांसद या विधायक होता ही है।

यहाँ पुरबियों से तात्पर्य पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग हैं। बलिया को छोड़ कर। बलिया वाले बलियाटिक कहलाते हैं और उनकी संख्या यहाँ बहुत है। देशवाड़ी मध्य उत्तर प्रदेश के लोगों को बोलते हैं, जिनका यहाँ ट्रांसपोर्ट और केमिकल पर राज चलता है।

बिहारी का मतलब छपरा, बक्सर के सिवाय शेष बिहार, झारखंड समेत। मारवाड़ी यानी राजस्थान के शेखावटी अंचल के लोग। जबकि राजस्थान का अर्थ है, सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र। इसमें राजस्थान का भरतपुर और कोटा, बूंदी भी है। हरियाणा में उत्तर प्रदेश का मेरठ मंडल भी है। पंजाबी में आज के पंजाब समेत पाकिस्तान से आए रिफ़्यूजी पंजाबी भी गिने जाते हैं। लेकिन कलकत्ता की पंजाब सभा में पूर्व के खत्री व्यवसायी और पंजाब के सारस्वत ब्राह्मण हैं। 

मुसलमानों में यहाँ बंगाल के मुस्लिम हैं, जो संस्कृतनिष्ठ बांग्ला बोलते हैं और वाज़िद अली शाह के साथ आए उर्दू भाषी मुस्लिम भी। मूल बंगाली मुसलमान धोती पहनता है और धोती के ऊपर उघारे बदन। माछ और भात खाता है। उर्दू भाषी चिकेन और मटन को पसंद करते हैं। पार्क सर्कस बांग्ला बोलने वाले अभिजात्य मुस्लिमों का क्षेत्र है। मटियाबुर्ज़ उर्दू भाषियों का और खिदिरपुर अपेक्षाकृत प्रवासी गरीब मुसलमानों का। यहाँ दाउदी वोहरा मुसलमान हैं और खूब सम्पन्न हैं। उनकी कोठियाँ पार्क स्ट्रीट में हैं। चौरंगी के मशहूर वस्त्र व्यापारी अकबर अली एंड संस दाउदी वोहरा हैं। जिनके शो रूम में जाने का मतलब क्लास है।

मलयाली मुसलमान भी हैं और अहमदिया भी। सबकी मस्जिदें अलग। चौरंगी में यहूदी भी खूब हैं। उनके मकानों के अंदर लकड़ी की नक़्क़ाशी की सजावट खूब मिलती है। न्यू मार्केट में यहूदियों की 18वीं सदी के शुरू में खुली बेकरी शॉप के बेकरी आइटम आज भी बेजोड़ हैं। इतने अधिक सामुदायिक संगठनों के बाद भी कलकत्ता में सामुदायिक हिंसा यहाँ कभी नहीं होती।

मैं क़रीब पौने तीन साल कलकत्ता में रहा, लेकिन इसका हर क्षण मैंने जिया। इसीलिए मैं कहता हूँ, कि अगर आपने कलकत्ता को नहीं जिया तो आप ज़िंदा रहते हुए भी मृत हो।

वर्ष 2000 की एक मार्च को सुबह दस बजे मैं कलकत्ता पहुँचा था। तब तक इसका नाम कलकत्ता ही था। मुझे वहाँ इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी अख़बार “जनसत्ता” के कलकत्ता संस्करण का संपादक बना कर भेजा गया था।

एक मार्च को तड़के पाँच बजे जब मैं दिल्ली के अपने घर से पालम हवाई अड्डे के लिए निकला, तब कड़ाके की ठंड थी। मैं सूट के नीचे फुल बाजू स्वेटर, इनर वग़ैरह सब पहने था। सात बजे फ़्लाइट उड़ी और साढ़े नौ बजे मैं कलकत्ता के नेता जी सुभाषचंद्र बोस हवाई अड्डे पर उतरा, तो गर्मी से बेहाल था। कोट, स्वेटर वग़ैरह सब उतारा। बाहर हमारे न्यूज़ एडिटर अमित प्रकाश सिंह मुझे लेने आए थे। देखते ही बोले- “एक बड़े कानपुर में आपका स्वागत है!” अंबेसडर कार में बैठने पर राहत मिली। राजरहाट, लेक टाउन, सॉल्ट लेक होते हुए मैं ईस्टर्न बाईपास आ गया। और काफ़ी दूर तक उजाड़ और जंगली रास्ते से चलते हुए क़रीब 50 मिनट में अलीपुर पहुँचा। बड़े-बड़े और विशालकाय बंगलों का इलाक़ा शुरू हो गया था। सिंघानिया, जालान, जैपुरिया और खेतान की नेमप्लेट लगी कोठियाँ। यह कलकत्ता के मारवाड़ी सेठों का इलाक़ा था। खेतान के सामने एक विशाल कोठी का गेट खुला और कार उसके अंदर प्रवेश कर गई। क़रीब 80 मीटर लंबे और इतने ही चौड़े हरे-भरे लॉन के बाद एक दुमंज़िला इमारत के सहन में कार रुकी। कई नौकर भाग कर आए और सामान ले जाकर एक विशाल कमरे में रखा। यह इंडियन एक्सप्रेस के मालिक श्री रामनाथ गोयनका की कोठी थी, जो उनके न रहने और संपत्ति के बँटवारे के बाद समूह के अतिथियों के लिए सुरक्षित कर ली गई थी।

हम दोपहर एक बजे वहाँ से निकले। अलीपुर, रेसकोर्स, विक्टोरिया मेमोरियल, चौरंगी, जवाहरलाल नेहरू मार्ग, मेट्रो चौराहा, चितरंजन पार्क, बहू बाज़ार होते हुए हम शोभा बाज़ार से बाएँ मुड़ कर बीके पाल एवेन्यू में दाखिल हो गए। क़रीब आधा किमी बाद कुम्हार टोली और हुगली नदी के बीच में एक पुरानी इमारत थी, जिसमें पीतल के अक्षरों से अंग्रेज़ी में इंडियन एक्सप्रेस लिखा था।

यह इमारत पुराने कलकत्ता की कहानी बता रही थी। नीचे गोदाम था, जिसमें अखबारी काग़ज़ भरे थे, और प्रेस मशीनें लगी थीं। एक घुमावदार लोहे की सकरी सीढ़ी थी। इस पर चढ़ हम फ़र्स्ट फ़्लोर पहुँचे। पल्ले वाले दरवाज़े, सकरा गलियारा, और फिर एक हाल, जिसमें पूरा संपादकीय विभाग बैठता। इस गलियारे के दाईं तरफ़ एक कमरा था, जिसमें भी एक दुपल्ला दरवाज़ा फ़िट था। यही संपादक का कमरा था। मेरे कमरे के बाहर ज़मीन पर संगमरमर की एक प्लेट लगी थी, जिसमें बांग्ला में लिखा था, कामिनी दासी। अब इस कामिनी दासी का इतिहास जाने की मेरी इच्छा प्रबल हुई। तारीख़ के हिसाब से यह मकान डेढ़ सौ साल पुराना था।

दरअसल कलकत्ता बहुत छोटा सा शहर है। उसका एक छोर हुगली नदी है, तो दूसरा छोर उलटा डाँगा। एक तरफ़ दक्षिणेश्वर तो दूसरी तरफ़ टालीगंज। बाक़ी कोलकाता मेट्रो में हावड़ा, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना है। लेकिन असल कलकत्ता वही है, जहां पुलिस सफ़ेद ड्रेस पहनती है। वर्ष 1690 में अंग्रेज जहाज़ी और ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी जॉब चार्नाक ने डायमंड हार्बर में आकर अपना पाल डाला। उस समय यह पूरा क्षेत्र दलदली था। बंगाल का नवाब मुर्शिदाबाद में रहता था और इस पूरे इलाक़े के लिए उनका एक कोतवाल नियुक्त था। जॉब चार्नाक ने 1698 में हुगली किनारे के तीन गाँव- कोलिकता, गोबिंद पुर और सूतापट्टी स्थानीय ज़मींदार रायचौधरी परिवार से ख़रीद लिए। दलदली ज़मीन को भरा और कैलकटा नाम से यहाँ व्यापार के मक़सद से एक शहर बसाया। अंग्रेजों की भाप से चलने वाली बड़ी-बड़ी नावें यहाँ तक चली आती थीं।

कैलकटा अंग्रेज व्यापारियों और ईस्ट इंडिया कंपनी की बस्ती हो गई। 1717 में कंपनी ने मुग़ल बादशाह फ़र्रुखशियर से 38 गाँव के पट्टे ख़रीदे। इसमें पाँच हुगली पार हावड़ा के थे और 33 चौबीस परगना के। 1727 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहाँ म्यूनिस्पैलिटी बनाई और एक मेयर भी, जो अंग्रेज होता था। 1756 में मुर्शिदाबाद के नवाब सिराजुद्दौला ने यह इलाक़ा अंग्रेजों से छीन लिया। और शहर का नाम अलीपुर रखा। पर अगले ही वर्ष प्लासी के युद्ध में मीर जाफ़र की मदद से कंपनी ने सिराजुद्दौला को पराजित कर पूरे बंगाल की दीवानी अपने हाथों में ले ली। 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने कैलकटा को कंपनी शासित इलाक़ों की राजधानी बना दी।

इसके बाद तो कलकत्ता ऐश्वर्य, वैभव और चमक-दमक का शहर बन गया। लेकिन इस कैलकटा उर्फ़ कलकत्ता उर्फ़ कोलिकता में यहाँ की लोक देवी काली की प्रतिष्ठा बनी रही। ऐसा कहा जाता है, कि एक बार अंग्रेजों का जहाज़ बंगाल की खाड़ी में फँस गया, तो उनके हिंदुस्तानी नाविकों ने कहा, कि हुज़ूर आपने कोलिकता में शहर तो बसा दिया, लेकिन वहाँ की कुलदेवी को भेंट नहीं भेजी, इसलिए वे नाराज़ हैं। कंपनी ने 5000 रुपये काली को समर्पित किए। जहाज़ सकुशल कलकत्ता आ गया। उसके बाद से इंग्लैंड के राज परिवार से 5000 रुपये हर वर्ष देवी के लिए आते रहे।

एक ऐसे मस्त शहर में एकरस समाज, एक दर्शन और एक भाषा की बात करने वाले श्रीराम के समर्थक ख़ारिज कर दिए गए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

kolkata
Calcutta
Culture of Kolkata
British Raj Calcutta

Related Stories

दांव पर लगा रविंद्रनाथ का बंगाल


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License