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मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ आज देशव्यापी विरोध दिवस
लोग आय समर्थन, भोजन, नौकरी की मांग कर रहे हैं और साथ ही महामारी के दौरान भयावह आर्थिक नीतियों को निरस्त करने की भी मांग कर रहे हैं।
सुबोध वर्मा
16 Jun 2020
Translated by महेश कुमार
मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध दिवस आज

याद है, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की घोषणा नरेंद्र मोदी सरकार ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद बड़े ही भव्य अंदाज़ में की थी? घोषणा के दौरान कहा गया था कि इन तीन महीनों में सभी राशन कार्ड धारकों को उनकी कमाई और नौकरियों के अचानक छीन जाने की वजह से हुए नुकसान की भरपाई के ;लिए मुफ्त खाद्यान्न वितरित किया जाएगा। यह एक अच्छे विचार की तरह लगता है, हालांकि इसे पहले लागू किया जा सकता था। लेकिन इस योजना से संबंधित वेब पोर्टल पर उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार अपनी इस खास ड्यूटि को पूरा करने में भी बुरी तरह से विफल रही है।

इस योजना में वितरण के लिए कुल 12.1 मिलियन टन खाद्यान्न का आवंटन किया गया था। आज तक के डाटा के अनुसार, लगभग 9.3 मिलियन टन अनाज को भारतीय खाद्य निगम के परिसर से बांटने के लिए उठाया गया है, और इसका भी लगभग 7.5 मिलियन टन ही भूखे लोगों तक पहुंच पाया है।

लॉकडाउन की घोषणा को करीब ढाई महीने बीत चुके हैं-और आज तक यह सरकार, जो गरीबों की "देखभाल" और अपनी "कुशलता" का बखान करती है वह सिर्फ इतना ही कर पाई है, यानि कुछ दाने कुछ परिवारों तक ही पहुंचा पाई है। गोदामों में कुछ 4.7 मिलियन टन अजाज को गोदामों में ही सड़ने के लिए छोड़ दिया गया और जनता को कुल 62 प्रतिशत खाद्यान्न का वितरण किया गया है। यह तब है जब हजारों-लाखों लोग भुखमरी के कगार पर हैं, जो काफी कम भोजन से काम चला रहे हैं, जो बेरोजगार और भूखे भी हैं, जबकि कोविड़-19 महामारी उग्र रूप लेती जा रही है।

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इतने आवश्यक कार्यक्रम में मोदी सरकार की भयानक विफलता और कोविड़-19 महामारी को ठीक से न संभाल पाने के खिलाफ आम जनता में व्यापक क्रोध और आक्रोश व्याप्त हो गया है। उनकी बिना सोचे समझे लॉकड़ाउन लागू करने की "रणनीति" और उसके बाद स्थिति को संभालने बचाने के लिए बेलगाम प्रयास किए और स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने के लिए एक खराब और गलत दृष्टिकोण अपनाया।

देश में एकमात्र वामपंथी ताकतें ही हैं जिन्होने इन विनाशकारी नीतियों का एकजुट विरोध किया हैं। 16 जून को, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के आह्वान पर एक देशव्यापी विरोध दिवस मनाया जा रहा है, जिसमें मांग की गई है कि प्रत्येक व्यक्ति को हर महीने कम से कम 10 किलोग्राम खाद्यान्न अगले छह महीने तक मुफ्त में दिया जाए। वर्तमान सरकारी कार्यक्रम तीन महीने, अप्रैल, मई और जून तक 5 किलो खाद्य अनाज (चावल या गेहूं) के वितरण का प्रावधान करता है। 

वाम दलों ने एक अन्य प्रमुख मांग भी उठाई है कि देश में सभी परिवारों को प्रति माह 7,500 रुपये देने का प्रावधान किया जाए, उन परिवारों को जो आयकर का भुगतान सदस्य नहीं करते है। वर्तमान में, मोदी सरकार ने प्रत्येक जन धन खाता धारक को महज 500 रुपये की शर्मनाक राशि प्रदान की है। लगभग 39 करोड़ खाताधारक हैं, जिनमें से कम से कम 20 प्रतिशत खाते दोषपूर्ण हैं या तो उनके अप्रयुक्त होने का अनुमान है (संभवतः दबाव में खोले गए दोहरे खाते)। इसलिए देश के कुछ ही परिवारों ने इन रुपयों को हासिल किया होगा।

बढ़ती बेरोज़गारी पर रोक लगाओ
लेकिन आर्थिक संकट कहीं अधिक गंभीर और निष्ठुर रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी या सीएमआईई के अनुमान के अनुसार, अचानक लॉकडाउन के तुरंत बाद, लगभग 12 करोड़ लोग अपना आय वाला रोजगार खो चुके हैं। तब से, ज़िंदा रहने का संघर्ष चालू है, और अब लॉकडाउन में ढील देने से कार्यबल के रूप में लाखों लोगों की वापसी देखी जा रही है, लेकिन बहुत ही भयानक और नाजुक परिस्थितियों में यह सब हो रहा है।

लोग कोई भी काम किसी भी मजदूरी पर करने को तैयार हैं, वह भी बस कुछ नकद हासिल कर ज़िंदा रहने के लिए। इसके बावजूद, नवीनतम सीएमआईई के अनुमान बताते हैं कि लगभग 3.3 करोड़ लोग अभी भी अपनी कमाई वाली नौकरियों में वापस नहीं आ पाए हैं-14 जून को समाप्त हुए सप्ताह में नियोजित संख्या 37.1 करोड़ थी, जबकि दो दिन पहले 22 मार्च को यानि लॉकडाउन से पहले 40.4 करोड़ थी।

कोई भी रोजगार करने की यह मजबूरी पीड़ित परिवारों की सीधी आय के समर्थन की सख्त जरूरत को दर्शाता है, कम से कम तब तक जब तक कि सभी आर्थिक अवसर बहाल नहीं हो जाते हैं। यह वामपंथियों पार्टियों द्वारा उठाई जा रही एक अन्य मांग पर भी प्रकाश डालता है: जिसमें ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत सब को प्रति वर्ष न्यूनतम 200 दिन का काम देने की मांग की गई है। 

ग्रामीण नौकरी की गारंटी योजना लाखों लोगों के लिए जीवन रक्षक (हालांकि न्यूनतम) मजदूरी प्रदान करती है, लेकिन यह लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में थम गई थी क्योंकि मोदी सरकार ने इसके बारे में सोचा ही नहीं था कि इसका क्या होगा। माना जाता है कि लगभग एक महीने बाद, इस योजना को फिर से शुरू किया गया है। मजदूरी में वृद्धि की घोषणा की गई और केवल मई में योजना को बढ़ावा देने के लिए मात्र 40,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आवंटन किया गया है।

निजीकरण और मज़दूर विरोधी नीतियों को वापस लो
इस विरोध दिवस के मौके पर, महामारी के दौरान देश में तस्करी की गई और लागू की गई सभी जन-विरोधी नीतियों की वापसी की मांग भी एक प्रमुख मांग है। कृषि उपज व्यापार का निजीकरण, मूल्यवान सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को बेचना, प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए विदेशी शिकारी कंपनियों को निमंत्रण देना, रक्षा उत्पादन और अंतरिक्ष अन्वेषण का निजीकरण, आदि कुछ मोदी सरकार के कुछ घोषित देश विरोधी नीतिगत उपाय हैं और हाल ही में यह सब अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के नाम पर किया गया है।

इन व्यापार हितैषी और जन विरोधी नीतियों से साथ हाथ मिलाते हुए, और भारत के 1 प्रतिशत को और भी अमीर/समृद्ध बनाने के लिए, मोदी सरकार ने मजदूरों की सुरक्षा वाले श्रम कानूनों को भी ध्वस्त कर दिया है, जो यह सुनिश्चित करता हैं कि श्रमिकों और कर्मचारियों का कठोर शोषण किया जाए और कम मजदूरी दी जाए।

मोदी सरकार के इशारे पर, कई राज्य सरकारों ने इन श्रम कानूनों के प्रमुख प्रावधानों को निलंबित कर दिया है, यह दावा करते हुए कि उत्पादक गतिविधि को शुरू करने के लिए यह एक आवश्यक कदम है। वास्तव में, मजदूरों द्वारा इन परिवर्तनों का कड़ा विरोध किया जा रहा है, जिसके तहत पिछले कुछ वर्षों में मजदूरों की कई शक्तिशाली हड़तालों को देखा गया है।

मोदी सरकार ने वर्तमान स्वास्थ्य आपातकाल के अवसर का इसतमाल करते हुए खुद के लंबे समय के एजेंडे को आगे बढ़ाने की छलांग लगा दी है, और उनके इस कदम की सराहना बड़े व्यापारिक घराने कर रहे है।

इस देशव्यापी विरोध दिवस का आह्वान भारतीय जनता पार्टी के जनविरोधी निज़ाम के खिलाफ भारतीय जनता के चल रहे संघर्ष में एक महत्वपूर्ण कड़ी होगी, वह निज़ाम जिसका नेतृत्व नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। यह एक ऐसा निज़ाम साबित हुआ है जो भारत के धर्मनिरपेक्ष, संघीय और लोकतांत्रिक संवैधानिक ढांचे को नष्ट कर रहा है, काम कर रहे लोगों को गुलामी की तरफ धकेल रहा है और देश के संसाधनों को निजी पूंजी को बेच रहा है, जबकि खरीदार घरेलू और विदेशी दोनों हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

June 16 – Country-Wide Protest Day Against Modi’s Ruinous Policies

June 16 Protest
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Labour Laws
Lockdown Impact
Pandemic

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