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भारत
राजनीति
अरविंद केजरीवाल देशभक्ति का नया पाठ्यक्रम लेकर क्यों आ रहे हैं?
देशभक्ति के लिए नया पाठ्यक्रम बनाने की ज़रूरत नहीं बल्कि केजरीवाल जैसे नेताओं को नागरिक शास्त्र पढ़कर एक सजग नागरिक के तौर पर आलोचनात्मक चिंतन करते हुए ज़िंदगी जीने की ज़रूरत है।
अजय कुमार
01 Oct 2021
Kejriwal
Image courtesy : TOI

जो बिना बेईमानी के अपनी राजनीति का एक कदम नहीं चलते वह देश को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने निकल पड़ते है। कुछ ऐसा ही राग देश के कई नेताओं का है, जो अपनी सरकार की विफलताओं को छिपाने के लिए देशभक्ति के शब्द को अर्थहीन कर रहे हैं।

सोशल मीडिया के जमाने में जब पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और जागरूक लोगों ने मुखर होकर भारतीय जनता पार्टी के कामकाज की छानबीन करनी शुरू की तो उन्होंने राष्ट्रवाद का जुमला उछाल दिया। इस पार्टी ने स्वयं संविधान की धज्जियां उड़ाने में कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन2014 से यह देश के लोगों को देशभक्ति और देशद्रोह का तमगा देने में लिप्त है। मीडिया भारतीय जनता पार्टी के पैसे से चल रहा था तो उसने देशभक्ति और देशद्रोही के डिबेट को नशे की तरह भारतीय जनता के बीच घोल दिया। आम आदमी पार्टी जिसे लोगों ने भाजपा के खिलाफ चुन कर भेजा था उसे इस नशे का तगड़ा मुकाबला करना चाहिए था। लोगों के बीच घोले जा रहे इस जहर के खिलाफ अपनी देशभक्ति दिखानी चाहिए थी। लेकिन यह सब तो तब होता जब कुर्सी की परवाह किए बिना संविधान के आधार पर बेईमानी के बजाय नैतिकता वाली राजनीति की जाती। यह करने की बजाय आम आदमी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी की देश में फूंट डालने वाली चाल को ही अपना लिया। आम आदमी पार्टी को समझ आ गया कि अगर उसे अपनी विफलताओं को छुपाना है तो उसे इसका सहारा लेना होगा और इसी राह पर चलते हुए उसने देशभक्ति का पाठ्यक्रम लाने की पहलकदमी की।

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देशभक्ति पर बोलते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जब हम भगत सिंह की फिल्म देखते हैं तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं यही देशभक्ति है। जब हम तिरंगा देखते हैं तो हमारे भीतर कुछ होने लगता है, यही देशभक्ति है। लेकिन यह देशभक्ति कभी-कभी जगती है। 24 घंटे नहीं जगती। हमें ऐसा माहौल बनाना है कि यह देशभक्ति 24 घंटे जगती रहे। हर आदमी गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाष चंद्र बोस की तरह बने। केवल डॉक्टर इंजीनियर वकील न बने बल्कि देशभक्त डॉक्टर, इंजीनियर और वकील बने।

लेकिन अरविंद केजरीवाल ने यह नहीं कहा कि जो नेता जनता से किए गए अपने वादे से मुकर जाता है, वह देशभक्त नेता नहीं होता है। जो नेता संविधान की धज्जियां उड़ा कर काम करता है, वह देशभक्त नहीं होता। जो नेता भारत में भयंकर गरीबी से मर रहे बड़ी आबादी से मुंह मोड़ कर कुछ अमीरों के लिए काम करता है वह देश भक्त नहीं होता। जो भ्रष्टाचार मुक्त आंदोलन करके नेता बने और खुद अपनी पार्टी का चुनावी चंदा जग जाहिर न करें राज्यसभा की टिकट पैसा वसूल कर बेच दे, वह देश भक्त नहीं होता। ऐसी बातें भी अरविंद केजरीवाल के जुबान से नहीं निकली। प्रशासन करने की बजाय जिसका राजकोष का पैसा प्रचार और विज्ञापन पर खर्च होता हो क्या वैसे सरकार को भी देशभक्त कहा जाएगा? हर दिन अखबारों में उठने वाले बेईमानी के ऐसे उदाहरणों को अरविंद केजरीवाल ने देशभक्ति का बखान करते हुए नहीं बताया।

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अरविंद केजरीवाल सहित उन तमाम लोगों की देशभक्ति की परिभाषा में यही सबसे बड़ी कमी है कि वह अपने वर्तमान को ध्यान से देखने की बजाय अतीत के किन्हीं उदाहरणों में जाकर खुद को देशभक्त बताने की कोशिश करते हैं। गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाष की बातें तो बताते हैं लेकिन खुद वैसा जीवन नहीं जीते। नेताओं के मुंह से देशभक्ति का शब्द ऐसे लगता है जैसे देशभक्ति एक माल हो और जिसका इस्तेमाल नेता अपने चुनावी धंधे में कर रहे हों।

अरविंद केजरीवाल से पूछना चाहिए कि भारत सरकार के जरिए जिन किताबों और पाठ्यक्रमों को स्कूलों में पढ़ाया जाता है क्या उससे देशभक्ति पैदा नहीं होती? एनसीईआरटी की किताबें और स्कूलों में होने वाली पढ़ाई देशभक्ति पैदा नहीं करती? इन सारी किताबों का क्या मकसद है? क्या इन सारी किताबों और पढ़ाई से गुजरने के बाद लोग देशभक्त नहीं बनते हैं?

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क्या अरविंद केजरीवाल को यह लगता है कि एनसीआरटी की किताबों के जरिए पढ़ाई जाने वाली इतिहास भूगोल नागरिक शास्त्र राजनीतिक सिद्धांत संविधान से मिलने वाली शिक्षा देशभक्ति पैदा नहीं करती? इसलिए देश भक्ति का नया पाठ्यक्रम बनना चाहिए।

उदाहरण के तौर पर कक्षा 11 के राजनीतिक सिद्धांत की किताब में स्वतंत्रता, समानता, न्याय, अधिकार, शांति, बंधुत्व जैसे सनातन मूल्यों के बारे में पढ़ाया जाता है। यह वह मूल्य हैं जिनके आधार पर भारत का संविधान खड़ा हुआ है। कक्षा 12 के एनसीईआरटी में भारत के संविधान के बारे में पढ़ाया जाता है। क्या इन सारे विषयों को पढ़ने के बाद विद्यार्थी देशभक्त नहीं बनते? या यह सारे विषय देशभक्ति पैदा नहीं करते? अगर इन सारे विषयों को भारत की शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत पढ़ रहे हर विद्यार्थी को पढ़ना पड़ता है, अरविंद केजरीवाल देशभक्ति का नया पाठ्यक्रम लेकर क्यों आ रहे है?

इन सभी सवालों का जवाब ढूंढने पर आप इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रह चुके दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ठीक उसी तरह से सोच रहे हैं, जिस तरह से वे लोग सोचते हैं जो एनसीईआरटी की किताबों को नहीं पढ़ते। समाज में फैलाए गए अफवाह सच मानकर देशभक्ति और देशद्रोह का तमगा देने लगते है। वह सारे इंजीनियर, डॉक्टर, मैनेजर जो भाजपा द्वारा फैलाए गए गांधी नेहरू जैसे लोगों के प्रति नफरत को सच मान कर चलते हैं, वह सब वहीं है जिन्होंने इंजीनियरिंग और डॉक्टरी की तैयारी करने के नाम पर अपनी स्कूल की किताबों की पढ़ाई नहीं की। उसके बाद जब अफवाहों में फंसे तो देशद्रोही और देशभक्त का तमगा बांटने लगे।

कक्षा 11 की राजनीतिक सिद्धांत की किताब को पढ़कर कोई जिम्मेदार नागरिक ही बनता है। स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गहरी जानकारी और समझदारी रख कर और इसे अपने जीवन में अपनाकर कोई डॉक्टर अपनी फीस इतनी नहीं कर सकता कि गरीब लोगों का शोषण होने लगे। कक्षा 12 की संविधान की किताब पढ़ कर कोई इंजीनियर पलट कर चुनावी राजनीति करने वाले नेताओं से जरूर पूछेगा कि वह लोगों की परेशानियां दूर करने की बजाय उन्हें हिंदू-मुस्लिम नफरत फैलाने का काम क्यों करते हैं? राजनीति करने वाले पार्टियों से पलट कर जरूर पूछेगा कि उनके चुनावी चंदा का स्रोत क्या है?

कोई विद्यार्थी जब ढंग से अपने मास्टर से इतिहास की किताबें पढ़ेगा तो वह नेताओं से पलटकर जरूर कहेगा कि केवल गांधी, भगत सिंह, अंबेडकर का नाम लेने से देशभक्त नहीं बना जाता है बल्कि उनके मूल्यों को भी जीवन में उतारना पड़ता है। इतिहास का मतलब नेताओं का गुणगान करना नहीं होता है बल्कि अपने अतीत की प्रवृत्तियों को समझ कर अपने वर्तमान की समझदारी बढ़ाना होता है। नागरिक शास्त्र पढ़कर सरकार की अंधभक्ति करना देशभक्ति नहीं है। बल्कि नागरिक शास्त्र पढ़कर एक सजग नागरिक के तौर पर आलोचनात्मक चिंतन करते हुए जिंदगी जीना असल देशभक्ति है।

इस आधार पर नरेंद्र मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक कोई भी देशभक्त नहीं है। सब के सब देशभक्ति से दूर जाकर वोट भक्ति, सत्ता भक्ति और लालच भक्ति की जिंदगी जीते हैं।

हमारे देश की असली परेशानी देशभक्ति नहीं है कि देशभक्ति का पाठ्यक्रम बनाकर लोगों में देशभक्ति भर दी जाए। हमारे देश की परेशानी यह है कि वह नैतिक तौर पर गिरता चला जा रहा है। किताबों में जो जीवन मूल्य और नागरिक मूल्य पढ़ाए और समझाए जाते है, वैसा जीवन मूल्य व्यवहारिक जीवन में नहीं दिखता।

हम ईमानदारी से जिंदगी जीने के बारे में पढ़ते हैं लेकिन सफलता उन्हें मिलती है जो बेईमानी से अपनी जिंदगी जी रहे होते हैं। हम गांधी, नेहरू, पटेल, अंबेडकर के बारे में पढ़ते हैं लेकिन नेता उसे चुनते हैं जिनका गांधी नेहरू पटेल अंबेडकर के जीवन चिंतन से कोई लेना देना नहीं होता है।

भारत की स्कूल की किताबों में देशभक्त और सजग नागरिक बनने के सारे मूल्य भरे पड़े हैं। उसके लिए किसी नए पाठ्यक्रम बनाने की जरूरत नहीं है। बल्कि मौजूदा समय में ऐसे उदाहरणों की जरूरत है, जो किताबों में बताए गए मूल्यों को जीते हो। अफसोस नरेंद्र मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक इन मूल्यों को जीते नहीं बल्कि इन मूल्यों को हर दिन बर्बाद करते रहते हैं। इसलिए सबसे पहले देशभक्ति का पाठ इन नेताओं को भारत की स्कूल की किताबों से पढ़ कर अपनी जिंदगी में उतारना चाहिए।

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