NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
सद्भभावना दिवस: ...क्योंकि किसानों के दिल में बस गए हैं गांधी
किसानों के धरना स्थल पर गांधी की चाक्षुष उपस्थिति न के बराबर है या बहुत कम है। क्योंकि उन्हें ज़रूरत नहीं गांधी के नाम पर दिखावा करने की।
अरुण कुमार त्रिपाठी
30 Jan 2021
किसान आंदोलन
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर धरना स्थल की तस्वीर। फोटो साभार : the week

दिल्ली की सीमा पर शांतिपूर्वक धरने पर बैठे किसानों ने 30 जनवरी यानी महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर एक दिन का उपवास रखा। उधर भारत सरकार यानी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राजघाट पर रामधुन के साथ महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। राजघाट के कार्यक्रम का दृश्य देश के सभी टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित किया गया और उसकी भव्यता देखते ही बनती थी। दूसरी ओर किसानों ने गांधी का स्मरण करते हुए जो अनशन किया और सद्भावना दिवस मनाया उसका प्रसारण शायद ही कहीं हुआ हो। वह दिखावे से दूर सादगी लिए हुए जो था।

किसानों के धरना स्थल पर गांधी की चाक्षुष उपस्थिति न के बराबर है या बहुत कम है। आंदोलन को सांप्रदायिक और हिंसक साजिश में फंसाने की कोशिशों के बाद किसान नेताओं ने 30 जनवरी के मौके पर गांधी की तस्वीरें मंगवाई हैं। वे उनके माध्यम से अपने आंदोलन के अहिंसक रूप को प्रचारित करना चाहते हैं और यह भी संदेश देना चाहते हैं कि उनकी राजनीति नफरत के विरुद्ध सद्भाव और सौहार्द की है। फर्जी मुद्दों के विरुद्ध असली मुद्दों को उठाने की है। लेकिन यह सवाल किसी को भी परेशान कर सकता है कि पैंसठ दिन तक शांतिपूर्वक चले देश के इतिहास के महत्वपूर्ण किसानों के धरने में गांधी की कोई तस्वीर नहीं है। गाजीपुर के किसान एकता मोर्चा मंच पर भी भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद के चित्र हैं। लेकिन गांधी गैर हाजिर हैं।

इसलिए यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों?  इस सवाल का जवाब ढूंढते समय राजकुमार हिरानी की फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई याद आती है। उस फिल्म के एक संवाद में फर्जी प्रोफेसर बना मुन्ना भाई कहता है कि एक पत्थर उठाओ और गांधी की मूर्तियां, उनके नाम पर बनी इमारतें तोड़ डालो, दफ्तरों में लगी उनकी तस्वीरें हटा डालो, उनके नाम पर बनी सड़कों का बोर्ड हटा डालो। अगर उन्हें कहीं रखना है तो दिल में रखो। इस आंदोलन और वहां जुटे जन-जन को देखकर यही लगता है कि उसने भले ही फोटो भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद की लगा रखी है। लेकिन महात्मा गांधी को दिल में बसा लिया है। आखिर बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का रास्ता और क्या था ? उन्होंने जितने भी आंदोलन और धरने के कार्यक्रम किए वे शांतिपूर्ण ही थे। अगर उनके आंदोलन में कहीं हिंसा हुई तो उतनी हिंसा गांधी के आंदोलन में भी होती थी।

इसी तरह के गांधीवादियों के लिए डॉ. लोहिया कुजात गांधीवादी विशेषण का प्रयोग करते थे। यह गांधीवादी न तो राजघाट पर रामधुन का सीधा प्रसारण करने वाले सरकारी गांधीवादी हैं और न ही गांधीवादी संस्थाओं में बैठकर गांधी के नाम पर खादी और चरखा बेचने वाले और जमीनों के लिए झगड़ा करने वाले हैं। वे अपना कर्तव्य निभाते हैं और जब अत्याचार बढ़ जाता है तो गांधी के तरीके के साथ उसका प्रतिरोध करते हैं। भले ही नांदेड़ के जत्थेदार मोहन सिंह गांधी का नाम न लें लेकिन वे जिस तरह से दो महीने से गाजीपुर बार्डर पर लंगर चला रहे हैं उससे बड़ा कोई सेवा भाव कोई हो नहीं सकता। वे रोजाना 15,000 गिलास चाय पिलाते हैं और 15,000 थाल खाना खिलाते हैं। जब उनसे पूछा गया कि इतना राशन कहां से आता है तो उनका कहना था कि यह तो भगवान भेजते हैं। यह पूछे जाने पर कि कब तक चलाओगे तो बोले साढ़े पांच सौ साल से तो लंगर चल ही रहा है और जब तक इनसान रहेगा तब तक चलता रहेगा।

आंदोलन स्थल पर सेवा करने वालों का भगवान और अपने सेवाभाव में यह विश्वास ही गांधीवाद है। भले वे गांधी की तस्वीर न लगाएं लेकिन उनके हृदय से गांधी ही बोलते जब वे कहते हैं कि हमारे पास भगवान है, सत्य है। उनके पास शैतान है। आखिर में जीत सत्य की ही होती है। इसी विश्वास पर वे 28-29 तारीख की रात को तब डटे थे जब लग गया था कि पुलिस प्रशासन कभी भी कार्रवाई करके उन्हें हटा सकता है। उससे पहले उन्हें सांप्रदायिक धमकियां मिली थीं। राकेश टिकैत के आंसू भी अपने लोगों के समक्ष उनके हृदय के सच्चे भाव ही थे। उसी भाव ने एक खत्म होते आंदोलन को फिर से जिंदा कर दिया। हजारों नौजवान उमड़ आए और सत्ता की अथाह शक्ति और नफरत फैलाने वालों को शांति से जवाब देने के लिए डट गए। गांधी यही तो करते थे कि सत्य पर विश्वास रखते हुए अपने सच्चे भावों को सबके समक्ष प्रकट करते हुए डटे रहते थे।

गांधी और भगत सिंह में अंतर करने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि दोनों एक ही मिट्टी के बने थे। वे सत्य और न्याय के मार्ग पर निर्भीकता से बढ़ने वाले थे। उन्हें अपनी मृत्यु से जरा भी डर नहीं था। अगर भगत सिंह ने फांसी के फंदे को हंसते हंसते चूमा तो महात्मा गांधी ने भी अपने हत्यारे की गोली का बहादुरी से ही सामना किया। भगत सिंह की तरह ही गांधी को भी अपनी मृत्यु का एहसास था और वे निरंतर साहस के साथ ही उसकी ओर बढ़ रहे थे। तभी गांधी ने कहा था, `` यह तो ईश्वर ही जानता है कि जब मुझ पर गोली चलाई जाएगी या चाकुओं से हमला किया जाएगा तो मैं भाग जाऊंगा या हमलावर के प्रति मन में क्रोध लाऊंगा। अगर ऐसा होता है तो इसमें कोई नुकसान नहीं है और लोग जान जाएंगे कि जिसे वे महात्मा कहते थे वह सच्चा महात्मा नहीं था। मैं भी जान जाऊंगा कि मेरी हैसियत क्या है? यह भी संभव है कि गोली चलाए जाने के बाद भी मैं राम बोलूं। देखिए दोनों में से क्या होता है? आखिरकार जो भी होगा अच्छा ही होगा।’ इसी तरह भगत सिंह ने भी अपनी मौत के लिए साथियों से कहा था– हवा में रहेगी मेरे ख़्याल की बिजली, ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे, रहे न रहे।

गांधी और भगत सिंह अपने जीवन से बड़ा संदेश अपनी मृत्यु से देकर गए हैं। हमें उस संदेश को समझना चाहिए। चाहे साम्राज्यवादी ताकतें हों या सांप्रदायिक ताकतें हों वे सत्य, न्याय और भाई चारे का गला घोंटने की कोशिश करती ही हैं। लेकिन इस तरह के सर्वोच्च बलिदान से सत्य की लड़ाई छोटी होने की बजाय और बड़ी हो जाती है। इसीलिए गांधी और भगत सिंह दोनों अपने हर शहादत दिवस पर और भी बड़े हो जाते हैं। यही कारण है कि गांधी की शहादत पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए सरोजिनी नायडू ने कहा था, ` मैं चाहती हूं मेरे गुरु, मेरे नेता और मेरे पिता शांति से विश्राम न करें, उनकी आत्मा को शांति न मिले। बल्कि उनकी अस्थियां, उनकी चिता की जली हुई लकड़ियां और उनकी हड्डियों का चूरा जीवन और प्रेरणा से भरपूर रहे। उनकी मृत्यु के बाद सारा भारत स्वाधीनता के यथार्थ से पुनर्जीवित हो उठे। मेरे पिता विश्राम मत करना और न ही हमें विश्राम करने देना।’

गांधी विश्राम नहीं कर रहे हैं और न ही उनकी आत्मा शांत बैठी है। जहां जहां अन्याय और अत्याचार होता है वहां वहां उनकी आत्मा भटकती रहती है। इसलिए उनकी आत्मा को राजघाट की समाधि में ढूंढने की बजाय दिल्ली के चारों ओर धरने पर बैठे किसानों में ढूंढने की कोशिश करें वह वहां टहलती हुई मिल जाएगी। भले उनका चित्र न मिले। 

farmers protest
Farm bills 2020
Mahatma Gandhi
Narendra modi
BJP
Gandhian ideology

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License