NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
एलएसआर के छात्रों द्वारा भाजपा प्रवक्ता का बहिष्कार लोकतंत्र की जीत है
पासवान ने एक दलित नेता को दूसरे दलित नेता के जन्म-उत्सव पर बोलने की अनुमति नहीं देने के लिए छात्रों की निंदा की। छात्रों ने भी पलटवार किया कि उनकी पहचान एक दलित नेता के रूप में महत्त्वपूर्ण नहीं है, लेकिन एक ऐसे राजनीतिक दल से उनकी संबद्धता खास है, जो (दल) आम्बेडकर की विरासत के खिलाफ रहा है।
अनाघा पवित्रन
23 Apr 2022
LSR
चित्र सौजन्य: दि क्विंट

दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम (एलएसआर) कॉलेज के एससी-एसटी सेल ने 8 अप्रैल, 2022 को, एक पोस्टर जारी किया था, जिसमें 'आम्बेडकर जयंती' स्मारक व्याख्यान की घोषणा की गई थी। इसी कार्यक्रम में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान को आम्बेडकर बियांड कंस्टिट्यूशन विषय पर भाषण देना था।

इस पर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) से जुड़े दलित और आदिवासी समुदाय के छात्रों और अन्य छात्रों ने आयोजकों से अपनी असहमति जताई। जब इसको लेकर छात्रों में आक्रोश बढ़ने लगा तो कार्यक्रम के एक दिन पहले समारोह को अचानक रद्द कर दिया गया। इसके बाद गुरु प्रकाश पासवान ने राजनीतिक प्रतिबद्धता (भाजपा से संलग्नता) की वजह से मंच देने से इनकार किए जाने पर सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा और निराशा जाहिर करते हुए दावा किया कि वे 'कैन्सल कल्चर”' के शिकार बन गए हैं। उन्होंने औपनिवेशिक सिद्धांतकार गायत्री स्पिवाक के प्रसिद्ध निबंध का शीर्षक उठाकर कहा “क्या सबाल्टर्न बोल सकते हैं (Can The Subaltern Speak)?'

पासवान द्वारा साझा किए गए एक स्क्रीनशॉट में, "छात्र संगठन की तरफ से किए गए भारी हंगामे" को अपने कार्यक्रम को अचानक रद्द किए जाने का कारण बताया गया था।

एससी-एसटी सेल की प्रतिनिधि ने भाजपा प्रवक्ता को हुई इस असुविधा के लिए खेद जताते हुए कहा कि यह कर्नाटक और जेएनयू में हाल के घटनाक्रमों की प्रतिक्रिया है और वह एलएसआर को एक राजनीतिक स्थान बनने से रोकना चाहती हैं। हालांकि यह अनिश्चित है कि यह तर्क वास्तव में छात्र समुदाय का कितना प्रतिनिधि है, क्योंकि एलएसआर में छात्र राजनीति की एक जीवंत संस्कृति हमेशा से रही है, यह बिल्कुल स्पष्ट था कि इस निर्णय के पीछ खुद छात्रों का ही दबाव है।

यद्यपि यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है परंतु पासवान प्रकरण "जेएनयू और कर्नाटक में हुए हाल के घटनाक्रमों" क्रमशः मांस न खाने देने का विवाद और हिजाब कांड की ओर इशारा करते हैं। पहले वाले मामले में, जेएनयू के कावेरी हॉस्टल में रामनवमी की रात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा हॉस्टल में मांस परोसने को लेकर छात्रों और मेस वर्करों पर कथित तौर पर बर्बरतापूर्वक बल प्रयोग किया गया था। जबकि बाद वाली घटना इस्लामोफोबिया की अभिव्यक्ति थी, जो महिलाओं की अपनी मर्जी से वेशभूषा पहनने की स्वायत्तता का उल्लंघन करता है, जिसमें मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने के कारण उन्हें शिक्षा संस्थानों से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।

बहरहाल, एसएफआई-एलएसआर ने गुरु प्रकाश पासवान के कार्यक्रम रद्द करने के लिए छात्र संगठन को बधाई दी। उन्होंने एससी-एसटी प्रकोष्ठ के एक प्रतिनिधि को जाति विरोधी नायक की याद में भाजपा प्रवक्ता को आमंत्रित करने के फैसले पर पुनर्विचार करने की अपनी अपील में दिए गए ब्योरे का भी खुलासा किया। उनका कहना था कि पासवान के प्रस्तावित संबोधन को इसलिए चुनौती दी गई क्योंकि भाजपा का इतिहास ही हाशिए पर रह रहे समुदायों पर अत्याचार करने का रहा है और वह आरक्षण विरोधी रुख और जातिगत पोषण के अपने आधार पर टिकी है। एसएफआई की तरफ से यह भी जोर देकर कहा गया कि हिंदुत्व के विचार को अकादमिक क्षेत्र में एकमुश्त लागू करने और हिंदुत्व के शलाका पुरुष के रूप में आम्बेडकर की वापसी और इसके साथ ही, भगत सिंह जैसे रैडिकल को उसके द्वारा अपनाना खतरनाक है और इसका हर पल विरोध किया जाना चाहिए। एसएफआई ने चेताया कि यह संघ परिवार की राजनीति का एकतरफा प्रचार होता, जिसमें भिन्न राजनीतिक विचारधाराओं एवं स्थितियों को स्वीकार करने या उन पर विचार करने की कोई गुंजाइश नहीं थी। लिहाजा, कार्यक्रम को टलवा कर प्रोपैगैंडा की किसी गुंजाइश को ही खत्म कर दिया गया। एसएफआई ने भाजपा की  धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के संवैधानिक मूल्यों के प्रति किए गए विश्वासघात की ओर ध्यान दिलाया।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता पासवान के कार्यक्रम के अचानक रद्द किए जाने के बाद तो राष्ट्रीय मीडिया वामपंथी छात्र संगठनों की 'असहिष्णुता' पर आगबबूला हो गया और उसने लोगों के 'बोलने के अधिकार' पर अंकुश लगाने की एक स्वर से निंदा की। पासवान ने तर्क दिया कि छात्रों को उनकी आवाज दबाने की बजाय संवाद के माध्यम से अपनी आलोचना व्यक्त करनी चाहिए थी। पासवान ने एक दलित नेता को दूसरे दलित नेता के जन्म-उत्सव पर बोलने की अनुमति नहीं देने के लिए छात्रों की निंदा की। छात्रों ने भी पलटवार किया कि उनकी पहचान एक दलित नेता के रूप में महत्त्वपूर्ण नहीं है, लेकिन एक राजनीतिक दल से उनकी संबद्धता खास है, और जो (दल) आम्बेडकर की विरासत के खिलाफ है। यहां एक आदमी है, जिसने अपना सारा जीवन जाति के विनाश के लिए समर्पित कर दिया और उनके मुकाबले एक ऐसी पार्टी है, जो स्पष्ट रूप से जाति व्यवस्था का बचाव करती है। हिंदुत्व के मूल पाठ 'बंच ऑफ थॉट्स' में एमएस गोलवलकर ने वर्ण व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए इसे "सामंजस्यपूर्ण सामाजिक व्यवस्था" का आधार बताया है। इस स्थिति को भाजपा के पूर्व महासचिव राम माधव ने दोहराया कि जाति हमारे देश की "धुरी" है और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी समझाया कि समाज का व्यवस्थित तरीके से प्रबंधन के लिए जाति किस तरह से आवश्यक है।

"विडंबना यह है कि एक ओर जहां मीडिया पासवान के साथ हो रहे अन्याय को लेकर आक्रोशित है, वहीं दूसरी ओर ओडिशा और उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की भीड़ ने आम्बेडकर जयंती मनाने वाले दलितों को जमकर पीटा है। एसएफआई के खंडन में कहा गया है कि एक दलित विरोधी पार्टी के प्रवक्ता के रूप में पासवान आम्बेडकर के लिए साझा मंच के लायक नहीं हैं, जो हिंदुत्व के कट्टर विरोधी थे और दृढ़ता से कहा था कि "अनुसूचित जाति महासंघ का हिंदू महासभा या आरएसएस जैसी किसी भी प्रतिक्रियावादी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा।" कई अन्य घटनाओं की तरह मीडिया ने ऐसी वारदातों की रिपोर्टिंग नहीं की है। फिर भी, मीडिया ने भाजपा नेता के पक्ष में लेखों और समाचार रिपोर्टों की झड़ी लगा दी है, इनमें कहा गया है कि उनकी आवाज को दबा दी गई है। एक ही दिन में हुई दो घटनाओं पर मीडिया की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि चुप्पी बचाव का एक उचित उपाय है, जब अपराधी खुद उनका मालिक होता है।

जबकि प्राइम टाइम होने वाली बहस ने संविधान के अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन पर एक आयामी चर्चा की, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जबकि एक और मौलिक अधिकार पर इरादतन कोई चर्चा ही नहीं की,जिसमें किसी नागरिक को बोलने की आजादी का अधिकार देते हुए संविधान के तहत विरोध व्यक्त करने का अधिकार दिया गया है। 'लोकतंत्र' के लिए कोलाहल के बीच, असहमति जताने का अधिकार को महत्त्व ही नहीं दिया गया। मुक्त संभाषण के पक्षकारों को यह बात याद ही नहीं रही कि छात्रों को भी विरोध करने का लोकतांत्रिक अधिकार था। भाजपा नेताओं का बहिष्कार भी उसी संवैधानिक रूप से मिले संरक्षण की कवायद है। इसके अलावा, हमें पूछना चाहिए: अगर कोई भाषण अपनी प्रभुता का ही निरा आख्यान है तो फिर भाषण के अधिकार का क्या मतलब है?

वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में, सत्तारूढ़ सरकार और उसकी विचारधारा का विरोध करना देशद्रोह के समान माना जाता है; 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राज्य की सख्त जांच के तहत आती है, और सरकार पर कोई सवाल उठाने के किसी भी प्रयास को हिंसक तरीके से दबा दिया जाता है।

भारतीय मीडिया का घटनाओं एवं मुद्दा भूलने का चुनिंदा रवैया पासवान की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बचाव करने के लिए आगे ला दिया जबकि वह इस बात को आसानी से भुला दिया कि वे एक राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने असहमति को एक आपराधिक कृत्य बनाने का काम किया है, जो एक ऐसे मीडिया का लक्षण है, जो स्वतंत्र होने से बहुत दूर है।

हिंदुत्व विरोधी बुद्धिजीवियों, दलित और आदिवासी कार्यकर्ताओं और छात्रों को भाजपा ने कैद कर रखा है, जो अपने आप में लोकतंत्र को निलंबित करने के एक निर्लज्ज कृत्य है। सुधा भारद्वाज, वरवर राव, सागर गोरखा, रमेश गायचोर, ज्योति जगताप, मीरन हैदर, शिफा उर रहमान, उमर खालिद, नताशा नरवाल, देवांगना कलिता, शरजील इमाम, सिद्दीक कप्पा, आसिफ सुल्तान, पेट्रीसिया मुखीम, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबड़े, स्टेन स्वामी, इशरत जहां, ताहिर हुसैन, गुलफिशा फातिमा, खालिद सैफी, अखिल गोगोई, सफूरा जरगर जैसे नाम लोकतांत्रिक अधिकार जारी रहने देने की मांग के लिए सताए गए लोगों में शुमार हैं।

आरएसएस एवं भाजपा के घृणा फैलाने वाले प्रचारकों, जिन्होंने खुले तौर पर नरसंहार का आह्वान किया था, उनको क्षमादान देना और संदिग्ध व्यक्तियों की खोज करने और असहमत लोगों में भय पैदा करने का प्रयास करना दोनों ही काम एक दूसरे सर्वथा विपरीत है। कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, स्वामी दयानंद सरस्वती, प्रज्ञा ठाकुर, आदित्यनाथ और संघ परिवार के अन्य सहयोगियों ने भड़काऊ बयान दिए हैं, जिससे कथित तौर पर दंगे भड़के और अल्पसंख्यकों पर व्यापक हमले हुए।

हाशिए पर रहने वाले समुदायों के विरुद्ध सक्रिय रूप से हिंसा को उकसाने वाली एक सरकार के दौरान, उनकी सुरक्षा की संवैधानिक गारंटी लगभग नपुंसक हो जाती है। ऐसे में लोकतंत्र या संविधान के प्रति उनके तिरस्कार पर कोई ताज्जुब नहीं होता है। अगर कोई इतिहास से परिचित है तो उसे मालूम होगा कि आरएसएस ने भारतीय संविधान को औपचारिक रूप से अस्वीकार कर दिया था, 'मनुस्मृति' को हिंदू कानून घोषित किया था, और हिंदू कोड विधेयक पेश होने के बाद अम्बेडकर के पुतले जलाए थे। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए जेएनयू के छात्र शरजील इमाम जेल में हैं। इसके विपरीत, अनुराग ठाकुर, जिन्होंने एक चुनावी रैली में "देश के गद्दारों को,गोली मारो सालों को" जैसे नारे लगाए, जिसने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर गोलीबारी के लिए पुश किया, वे आजाद हैं। इन सांप्रदायिक एजेंटों द्वारा क्षमादान का लिया जा रहा आनंद यह अनिवार्यतः घोषणा करता है कि हिंदुत्व शासन के तहत, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' नफरत का प्रचार करने और सांप्रदायिक विभाजन बोने की आजादी का ही अनुवाद है। अब यह अनुमान लगाना कठिन है कि एलएसआर कॉलेज के छात्रों द्वारा पासवान के कार्यक्रम का विरोध पर राष्ट्रीय मीडिया की प्रतिक्रिया में आत्म-विस्मृति है,पूरी कायरता है या सरकार से मिलीभगत है।

यह धारणा कि हाशिए और अल्पसंख्यक पृष्ठभूमि से संबंधित छात्रों को बौद्धिक संवादों में लोकतांत्रिक वातावरण को बढ़ावा देने के लिए दलित और अल्पसंख्यक विरोधी पार्टी के प्रतिनिधि को शामिल करना चाहिए, जो हास्यास्पद है। यह बाँझ कक्षाओं के भीतर घेरकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखने पर जोर देता है, जबकि इन शैक्षणिक प्लेटफार्मों के बाहर हिंदुत्व की उनकी बहस के परिणामस्वरूप क्रूर उत्पीड़न होता है। सामाजिक-राजनीतिक विमर्शों को सामाजिक वास्तविकता से अलग कुछ विकृत शैक्षणिक अभ्यास के रूप में मानना शैक्षणिक क्षेत्र के सिकुड़ते जाने का एक खतरनाक संकेतक है।

पासवान ने गुस्सैल टकराव के साथ इस सवाल का जवाब मांगा है कि 'क्या सबाल्टर्न बात कर सकता है?' इसका जवाब उनकी पार्टी ने 'नहीं' दिया है-यानी दलित बात नहीं कर सकता है। दलित लेखक बामा और सुकिर्थरिनी द्वारा पाठों को हटाना और इसके स्थान पर डीयू के अंग्रेजी विभाग में उच्च जाति के लेखक रमाबाई की रचनाओं को शामिल करना यह दर्शाता है कि अगर भाषण विध्वंसक है, तो सबाल्टर्न बोल नहीं सकता। सबाल्टर्न के बोलने के अधिकार की रक्षा के लिए अपने सभी उत्साह के लिए, पासवान अपने समुदाय और उनके अधिकारों पर किए जाने वाले हमलों पर मूकदर्शक रहे हैं। उनकी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ स्पष्ट रूप से हिंदुत्व की रक्षा के लिए आरक्षित है।

शायद हिंदुत्व के साथ मीडिया के सहयोग का सबसे स्पष्ट प्रदर्शन टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में उसी अवसर पर आम्बेडकर के पोते सुजात आम्बेडकर के प्रवेश पर रोक लगाने की निंदा करने से इनकार में देखा जा सकता है। यह स्पष्ट है कि "असहिष्णुता" के खिलाफ यह रोना सत्तारूढ़ दल तक नहीं पहुंचता है, वह केवल इसके विरोधियों तक ही रह जाता है। डॉ भीमराव आंबेडकर द्वारा विरोध में एक किताब (मनुस्मृति) जलाने और बाद में इसको उनके द्वारा पूरी तरह खारिज किए जाने को एलएसआर के छात्रों द्वारा उनके अनुमोदन के समान माना जा सकता है। उन छात्रों ने भाजपा नेताओं का बहिष्कार करके एक ऐसा राजनीतिक बयान दिया जिसकी आज बहुत जरूरत है। छात्रों के लोकतांत्रिक फैसले का सम्मान करना भी लोकतंत्र ही है। फिर भी, यह पासवान को परेशान करता प्रतीत होता है। उन्होंने छात्रों के कार्यों को सही ठहराने के लिए अपने अधिकारों की रक्षा करने का आह्वान किया है। लोकतंत्र के रक्षकों को आज याद दिलाया जाना चाहिए कि प्रगतिशील छात्र समुदाय सत्तारूढ़ सरकार को उसके अपने अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं और अपने प्रतिनिधियों को ऐसे गुनाह करने से रोकना लोकतंत्र का उच्चतम रूप है।

(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ कॉलेज फॉर वीमेन से मनोविज्ञान में स्नातक हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

LSR Students' Boycott of BJP Spokesperson is a Victory For Democracy

Hindutva
Paswan
LSR
SFI
SFI-LSR
Dissent
democracy
Subaltern
Ambedkar
Ambedkar Jayanti

Related Stories

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन

ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

बीमार लालू फिर निशाने पर क्यों, दो दलित प्रोफेसरों पर हिन्दुत्व का कोप


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License