NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
लॉकडाउन: हैरत नहीं कि भूख मिटाने के लिए लोग आपस में लड़ने लगें!
अगर यह समय पूरे देश में बंदी लागू कर देने का है तो राशन कार्ड और आधार कार्ड के बिना सब तक भोजन पहुँचाने का भी है।
अजय कुमार
29 Mar 2020
lockdown

रोटी बनाता हूँ। कारीगर हूँ। रोटी पकाते और देखते ही मेरा दिन बीतता है। जब से सबकुछ बंद हुआ है, तब से रोटी का मुँह नहीं देखा। इस रैन बसेरे पर जब खाना आता है, तब लोग टूट पड़ते हैं। बहुतों को खाना नहीं मिल पाता हैं। जिन्हें मिलता है, उन्हें पेट भर खाना नहीं मिलता। पता है कि हवा खराब हो चुकी है। एक दिन हमारी जान जा सकती है। लेकिन उससे पहले हम भूख से मर जायेंगे। सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और एक मजदूर की बातचीत का यह हिस्सा है। इस बातचीत में कोरोना वायरस से भी बड़ी लड़ाई जिंदगी बचाये रखने के भाव आप महसूस कर सकते हैं।  

लॉकडाउन में सबसे अधिक हमला हर दिन की कमाई पर जिंदगी गुजारने वाले लोगों पर हुआ है। सीएसडीएस का सर्वे कहता है कि भारत में हर दिन मजदूरी लेकर काम करने वाले मजदूरों की कुल मजदूरों में संख्या में तकरीबन 40 फीसदी है। हफ्ते भर मजदूरी की लेकर काम करने वाले मजदूरों की कुल मजदूरों में संख्या तकरीबन 6 फीसदी है। यानी 46 फीसदी मजदूरों पर भूखमरी से मरने की तलवार हर वक्त लटक रही है। यह मज़दूर दिल्ली से लेकर केरल के मल्लापुरम तक फैले हुए हैं। जहां इंडस्ट्रियल हब है, वहाँ मजदूरों का भी हब है। ये नो वर्क नो पेमेंट आधार पर जिंदगी काटते हैं। इतनी लंबी बंदी ये लोग रैन बसेरे में नहीं गुजार सकते। पेट और मन दोनों की भूख इन्हें अपने वतन लौटने को मजबूर कर रही है। हर जगह की सरहदें बंद कर दी गयी हैं। हो सकता है कि जब यह अपने गाँव पहुंचेंगे तो संक्रमण के डर से लोग इन्हें घुसने से भी रोकें।

प्रधानमंत्री मोदी का भाषण केवल मध्यवर्ग के हिंदुस्तान की चिंताओं के लिए था। उसमें गरीबों का कहीं जिक्र नहीं था। इसके बाद निर्मला सीतारमण सरकारी मदद  का एलान करने आयी। इनमें भी डेली वेज वर्करों के लिए कोई सहूलियत नहीं थी। उनके लिए कोई बात नहीं थी, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। जो माइग्रेंट हैं। जिनका राशन कार्ड अपने राज्य में हैं। और राज्य में जाने की मनाही है।  

भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी ने जिस दिन सरकार ने कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन का फैसला किया था, उस दिन एक ट्वीट किया था। जिसकी मोटी बात यह थी कि हम मानते हैं कि कोरोना वायरस एक बड़ी परेशानी है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपनी क्रिटिकल थिंकिंग छोड़ दे। प्रधानमंत्री टीवी पर आये और 21 दिनों का लॉकडाउन करके चले गए। सरकारें इतना बड़ा फैसला अचानक नहीं लेती हैं। अगर लेती भी हैं पब्लिक को वह आधार बताती है जिसकी वजह से इतना बड़ा फैसला ले रही हैं। ऐसा किसी भी तरह का डाटा पब्लिक के सामने नहीं रखा गया।  

इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि लॉकडाउन को योजनाबद्ध तरीके से लागू किया जा सकता था। ऐसा तो है नहीं कि संक्रमण होते ही लोग मर जा रहे हैं। असलियत यह है कि तकरीबन 20 फीसदी मामले ही गंभीर है। और संक्रमित लोगों में मरने की दर तकरीबन 2 से 3 फीसदी ही है। बहुत सारे जानकारों का कहना है कि पूरे देश में एकसाथ हुए लॉकडाउन की मार गरीबों पर बहुत गहरी पड़ने वाली है। पहले कुछ बड़े शहरों को लॉकडाउन कर दिया जाता। बड़े स्तर पर टेस्टिंग की जाती और जहाँ देखा जाता कि मामले अधिक है, वहां पूरी तरह लॉकडाउन किया जाता।

लॉकडाउन की मार इतनी गहरी है कि वायरस से पहले लोग भूख से मरेंगे। भूख की वजह से लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होगा। इन्हे वायरस का संक्रमण हुआ तो इनकी लड़ने की क्षमता कम और इनका मरना तय। सरकारों को सोचना चाहिए कि एक बार जब लॉकडाउन खुलेगा तब इस वायरस का संक्रमण कैसे रोका जाएगा। ऐसी तो कोई रिपोर्ट नहीं आई है जो यह बताये कि लॉकडाउन के बाद वायरस का संक्रमण नहीं होगा।  

इस मुद्दे पर न्यूज़क्लिक के एडिटर इन चीफ प्रबीर पुरकायस्थ कहते हैं कि इस समय हमारे पास व्यापक परीक्षण या सम्पर्क के स्तर (contact tracing ) पता लगाने की क्षमता नहीं है। हमारे पास एक ही तरीक़ा है कि हम अपने अस्पतालों पर महामारी का भारी बोझ डालने से बचें और हमारा नागरिक बुनियादी ढांचा यही लॉकडाउन है। लॉकडाउन संक्रमण के ज़्यादातर जुड़ाव को कुछ समय के लिए काट देगा।

कोई शक नहीं कि इससे अगले 3-4 महीनों के लिए संक्रमण और मौतों की संख्या में कमी आयेगी। लेकिन यह मॉडल इस बात को भी दर्शाता है कि व्यापक परीक्षण और संपर्क का सख़्ती से पता नहीं लगा पाते हैं तो हम इस महामारी की तीव्रता को महज टाल भर रहे हैं। दूसरे शब्दों में, सिर्फ़ 21 दिन का यह लॉकडाउन, महामारी को समाप्त नहीं कर सकेगा, बल्कि इसके फैलेने के समय को थोड़ा और बढ़ा देगा, और बाद में अपने शीर्ष पर पहुंच जायेगा। इससे होने वाली मौतों की संख्या में भी काफ़ी कमी नहीं आयेगी। यहां तक कि इस कुछ समय के लिए लागू लॉकडाउन का भी उतना प्रभाव नहीं होगा, जितना कि किसी और उपाय का हो सकता है।

जो लोग तपती धूप में अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं। उनकी दुर्दशा तो दर्दनाक है। लेकिन ये भी सोचिये कि वे जहाँ से चले हैं और जहां तक जायेंगे, उस पूरे रास्ते पर अपने साथ संक्रमण का ख़तरा लेकर चले जाएंगे। उनकी भीड़ देखकर आप समझ सकते हैं कि उनके लिए सोशल डिस्टेन्सिंग के कोई मायने नहीं है। हर दिन अपनी जिंदगी बचा लेना , उनकी सबसे बड़ी लड़ाई है। अर्थशास्त्री प्रोनब सेन कहते हैं कि पूरी तरह से बंदी की वजह से एक जगह से दूसरी जगह तक ज़रूरी सामान पहुंचाने की सप्लाई चेन टूट चुकी है।

बहुत सारे लोगों के लिए जिंदगी का मायने केवल दो जून की रोटी है। एक हद से अधिक समय तक इन्हे संभाल पाना रैन बसेरे के बस की बात नहीं है। किसी का भी इंतज़ाम कारगर नहीं होगा। जल्द ही खाने के लिए दंगा होने वाली खबरें भी सुनाई देंगी।  हम अपने आराम घरों में रहकर इसे महसूस नहीं कर सकते। लेकिन जो हर वक्त खाने के लिए ही जीता है, उसे खाना नहीं मिलेगा तो वह किसी भी हद जा सकता है।

अगर यह समय पूरे देश में बंदी लागू कर देने का है तो राशन कार्ड और आधार कार्ड के बिना सब तक भोजन पहुँचाने का भी है। अगर बंदी के बाद भी संक्रमण की सम्भावना है तो पूरे देश से फिर से संवाद करने की भी जरूरत है। यह सोचने की भी जरूरत है कि कैसे बंदी, टेस्टिंग और आम लोगों की जिंदगी के बीच संतुलन बिठाया जाए। सबकी जान की कीमत है। उनकी भी जिनके पास अपनी बात पहुँचाने की ताकत है और उनकी भी जो इस एहसास में जीते हैं कि उनकी कोई नहीं सुनने वाला।

Coronavirus
COVID-19
Corona Crisis
Lockdown
India Lockdown
Hunger Crisis
Daily Wage Workers
CSDS Survey
Narendra modi
modi sarkar

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License