NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
लॉकडाउन: जो मालिक और कंपनियां अपने मज़दूरों को वेतन नहीं दे रहीं उनके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई से रोका
गौरतलब है कि कई निजी कंपनियों ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने संबंधी केंद्र सरकार के 29 मार्च के आदेश को चुनौती दी है और कोर्ट से यह आदेश रद्द करने की मांग की है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
16 May 2020
 सुप्रीम कोर्ट
Image courtesy: The Hindu

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के सरकारी निर्देश पर केन्द्र सरकार को जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय और दे दिया है। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार को दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। लेकिन केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने शुक्रवार को कोर्ट से जवाब के लिए एक और सप्ताह की मांग की जिसे कोर्ट ने मान लिया।

इसके साथ ही कोर्ट ने मालिकों को बड़ी राहत देते हुए, सरकार से उन मालिकों और कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई से मना किया है। गौरतलब है कि कई निजी कंपनियों ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने संबंधी केंद्र सरकार के 29 मार्च के आदेश को चुनौती दी है और कोर्ट से यह आदेश रद्द करने की मांग की है।

आपको बता दें कि गृह मंत्रालय द्वारा 29 मार्च को जारी अधिसूचना के मुताबिक सभी नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन देना होगा। सरकार के इस आदेश के बाद भी कई जगहों पर नियोक्ता मज़दूरों को वेतन नहीं दे रहे हैं। कंपनी मालिकों की अपनी दलील है की बिना उत्पादन के वो वेतन का भुगतान कैसे करें?

जस्टिस एनवी रमना,संजय किशन कौल और बीआर गवई की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया, जिसमें निजी संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई की जा रही थी। इस याचिका में गृह मंत्रालय के उस नोटिफिकेशन को चुनौती दी गई है, जिसमें लॉकडाउन के दौरान नियोक्ताओं को पूर्ण वेतन देने का आदेश दिया गया है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी कर्मचारी को हटाया नहीं जा सकता है।

हालंकि कोर्ट के सामने वेतन संबंधी 41 याचिकाएं थी लेकिन कोर्ट ने कार्रवाई न करने का आदेश  केवल एक याचिका लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन के लिए दिया है। बाकी अन्य याचिकाओं के लिए कोर्ट ने अगले सप्ताह तक का समय दिया और सरकार से जवाब माँगा है। सुप्रीम कोर्ट ने लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका और उसके साथ दायर कई अन्य यचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गृह मंत्रालय के आदेश पर रोक लगा दी।

याचिकाकर्ताओं ने चेतावनी दी कि इस तरह के भुगतान करने से कई इकाइयां बंद हो जाएंगी और जो बदले में स्थायी बेरोजगारी का कारण बनेंगी और अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेंगी।

लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन ने कहा "सरकार ने मज़दूरों के लिए कोई कदम नहीं उठाया है, इसके बजाय पूरी मज़दूरी देने के लिए बोझ हम पर डाला दिया।" याचिका में कहा गया है कि एक नियोक्ता और कर्मचारी के बीच पारस्परिक वादा (reciprocal promises) होता हैं जिसके तहत वेतन मांगने का अधिकार कर्मचारी के पास तभी है जब वो काम करे। इसके अलावा नियोक्ता काम नहीं होने पर भुगतान नहीं करने का अधिकार रखते हैं।

उन्होंने यहां तक कहा कि सैकड़ों करोड़ की राशि भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा निगम में बिना किसी दावे के पड़ी हुई है यानी उस राशि का मालिक कोई नहीं है। सरकार निजी क्षेत्र पर बोझ डालने के बजाय उस राशि का इस्तेमाल कर सकती है। इसके साथ ही मालिकों ने अपनी याचिकाओं में कहा कि 29 मार्च को आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 के तहत गृह मंत्रालय का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी), 265 और 300 का उल्लंघन है। और इसे तत्काल वापस लेना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि लॉकडाउन के दौरान कंपनियों को भी आर्थिक नुकसान हो रहा है, इसलिए उन्हें लॉकडाउन के दौरान अपने काम करने वालों को भुगतान करने से छूट दी जानी चाहिए। हालाँकि पिछली सुनवाई में कोर्ट ने मंत्रालय (MHA) अधिसूचना के बारे में अपनी "नीति को रिकॉर्ड पर" रखनेके लिए केंद्र को दो सप्ताह का समय दिया था। यानी शुक्रवार को सरकार को कोर्ट में बताना था कि सरकार की क्या नीति है और कैसे कर्मचारियों को उनका पूरा वेतन मिलेगा? लेकिन सरकार ने शुक्रवार को भी कोई नीति कोर्ट में नहीं बताई और कहा उसे इसके लिए एक सप्ताह का और समय चाहिए।

हालांकि यह भी हक़ीक़त है कि लॉकडाउन के 50 से अधिक दिन हो गए हैं लेकिन सरकार के पास कोई योजना नहीं है कि कैसे मज़दूरों को उनका वेतन दिया जाए। क्योंकि नियोक्ता या मालिक तो सरकार के आदेश के बाद भी मज़दूरों को उनके वेतन देने से मना कर रहे हैं। ऊपर से कोर्ट ने भी मालिकों के हक में ही राहत दी।

पिछले 50 दिनों से वेतन का भुगतान नहीं किया गया। इस दौरान बड़े स्तर पर लोगों की छंटनी हुई है और कई जगह पर लोगों को अनपेड लीव पर भेजा गया है लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मार्च महीने में भी बहुत मज़दूरों को वेतन मिला लेकिन अप्रैल महीने का वेतन न मिलने से स्थति और भी ख़राब हुई है। यहाँ तक कि सरकार के अपने संस्थानों में काम करने वाले आउटसोर्स और ठेका कर्मचारयों को वेतन नहीं मिल रहा है। बाकी की तो बात ही छोड़ दी जाए। यह एक गंभीर सवाल है कि लॉकडाउन के इतने समय बीत जाने के बाद भी सरकार के पास अभी भी कोई ठोस योजना या नीति नहीं दिख रही है।

इसे भी पढ़े :  लॉकडाउन में वेतन न देने को लेकर कंपनी मालिक पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, अदालत ने सरकार से मांगा जवाब

Lockdown
Company
Company boss
Workers Payment
Central Government
modi sarkar
Supreme Court
MHA

Related Stories

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

मंत्रिमंडल ने तीन कृषि क़ानून को निरस्त करने संबंधी विधेयक को मंज़ूरी दी

सुप्रीम कोर्ट को दिखाने के लिए बैरिकेड हटा रही है सरकार: संयुक्त किसान मोर्चा

महामारी का दर्द: साल 2020 में दिहाड़ी मज़दूरों ने  की सबसे ज़्यादा आत्महत्या

बाहरी साज़िशों और अंदरूनी चुनौतियों से जूझता किसान आंदोलन अपनी शोकांतिका (obituary) लिखने वालों को फिर निराश करेगा

दिल्ली: ट्रेड यूनियन के साइकिल अभियान ने कामगारों के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा शुरू करवाई

लखीमपुर खीरी : किसान-आंदोलन की यात्रा का अहम मोड़

कार्टून क्लिक: किसानों का गला किसने घोंटा!


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा
    27 May 2022
    सेक्स वर्कर्स को ज़्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों सेक्स…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब अजमेर शरीफ निशाने पर! खुदाई कब तक मोदी जी?
    27 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं हिंदुत्ववादी संगठन महाराणा प्रताप सेना के दावे की जिसमे उन्होंने कहा है कि अजमेर शरीफ भगवान शिव को समर्पित मंदिर…
  • पीपल्स डिस्पैच
    जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?
    27 May 2022
    ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में प्राप्त हुई, फिर गवाईं गईं चीज़ें बताती हैं कि पूंजीवाद और अमेरिकी समाज के ताने-बाने में कितनी गहराई से नस्लभेद घुसा हुआ है।
  • सौम्यदीप चटर्जी
    भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन
    27 May 2022
    चूंकि भारत ‘अमृत महोत्सव' के साथ स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, ऐसे में एक निष्क्रिय संसद की स्पष्ट विडंबना को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा
    27 May 2022
    ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज़्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है, जहां 48 फ़ीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License