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भारत
राजनीति
‘लव जिहाद', मुग़ल और दुष्प्रचार पर इरा मुखोटी की राय
दरअस्ल इस आरोप के समर्थ में कोई सुबूत नहीं मिलता है कि मुग़लों ने सामूहिक धर्मांतरण तलवार के ज़ोर पर कराया था।
आईसीएफ़
18 Jan 2021
‘लव जिहाद', मुग़ल और दुष्प्रचार पर इरा मुखोटी की राय
इरा मुखोटी | सरमाया / फ़ेसबुक

“संघ के लव जिहाद” के दुष्प्रचार का हाल ही में भाजपा के योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से लाये गये अध्यादेश में कानूनी प्रत्यक्षीकरण हुआ है। यह अध्यादेश किये जा रहे धर्मांतरण के तरीक़े को एक ग़ैर-ज़मानती अपराध ठहराता है और जिसे वे "ग़ैर-कानूनी साधन" के तौर पर परिभाषित करते हैं, और इस अध्यादेश में ज़बरन और छल-कपट से धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं का हवाला देते हुए कहा गया है कि सबसे पहले उन्हें ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।

हालांकि, इतना तो साफ़ है कि यह अध्यादेश भी हिंदुत्व वाली इस सरकार के मुस्लिम-विरोधी, महिला-विरोधी, अम्बेडकरवादी विरोधी एजेंडे का ही हिस्सा है, जैसा कि इस सिलसिले में आदित्यनाथ के दिये उस हालिया भाषण में सब कुछ एकदम खुलकर सामने आ गया है, जिसमें उन्होंने ऐलान किया था कि "लव जिहाद" पर अंकुश लगाने के लिए सख़्त क़ानून लाया जायेगा। दरअस्ल, इस सिद्धांत की पृष्ठभूमि 1920 के दशक से शुरू होती है, जब हिंदू कट्टरपंथियों ने एक ऐसा षड्यंत्रकारी सिद्धांत विकसित किया था, जिसमें कहा गया था कि मुसलमान, हिंदू महिलाओं के जबरन सामूहिक धर्मांतरण में लगे हुए हैं। यह क़ानून मानवाधिकारों की उस सार्वभौमिक घोषणा का खुला उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है, “सभी को विचार, अंत:करण और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है;  इस अधिकार में किसी को अपने धर्म या आस्था बदलने की स्वतंत्रता और अकेले या दूसरों के साथ या सार्वजनिक या निजी तौर पर किसी समुदाय के साथ हो लेने की स्वतंत्रता भी शामिल है” ,लेकिन यह अध्यादेश देश की समन्वय, विविधता वाली प्रकृति के साथ-साथ किसी के जीवन साथी चुनने और किसी की अपनी पसंद के धर्म में धर्मांतरित होने के अधिकार के लिए नुकसानदेह होगा।

मुग़लों को बार-बार "लव जिहाद" के आसपास चलती बहस में इस तर्क के साथ घसीट लिया जाता है कि इस उपमहाद्वीप में मुग़ल बादशाहों के कार्यकाल के दौरान यह लव जिहाद व्यापक तौर पर चलन में था। आज मुसलमानों पर इसी अवधारणा को थोपे जाने को लेकर लव जिहाद को एक युगों पुरानी इस्लामी परंपरा के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन, सवाल है कि इस सिलसिले में इतिहास और सुबूत क्या कहते हैं ? आइये, इसी सवाल का जवाब हम इरा मुखोटी(@mukhoty)के साथ हुई इस बातचीत के ज़रिये तलाशते हैं

मुकुलिका आर (एमआर): निम्नलिखित उद्धरण पर आपके क्या विचार हैं ?

“लव जिहाद कोई नयी बात नहीं है। यह ऐसा कुछ नहीं है, जो हिंदू समुदाय के साथ चला आ रहा हो। यह तो मुग़लों के साथ यहां आया।”

(चेतना शर्मा, विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी की संयोजक)

इरा मुखोटी: बहुत सारे रिश्तेदारी व्यवस्था की तरह मुग़लों के लिए भी शादी-विवाह वास्तव में विभिन्न राजवंशों और शासकों के साथ गठजोड़ को मज़बूत करने और इन परिवारों को शासन की एक आम व्यवस्था में शामिल करने और उन्हें शासन के अनुरूप बनाने का एक तरीक़ा ही था। अकबर ने ख़ास तौर पर यह महसूस किया था कि हिंदुस्तान में बहुत सारे अलग-अलग धर्मों, जातियों और जनजातियों के लोग रहते हैं, तो उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों की महिलाओं से शादी करने का फ़ैसला किया ताकि ये क्षेत्र बढ़ते मुग़ल साम्राज्य की ताक़त को आत्मसात कर सके। अपने शासनकाल में बहुत पहले अकबर ने महसूस कर लिया था कि राजस्थान के कई लड़ाके राजवंशों की ज़रूरत होगी...और इसलिए, सैन्य विकल्पों और हथियारों की ताक़त के साथ-साथ उन्होंने राजस्थान के कुछ घरानों से शादी करना भी शुरू कर दिया। इस तरह का पहला घराना आमेर के कच्छवाहों का छोटा घराना था और कच्छवाहा राजा भारमल ही थे, जिन्होंने अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव लेकर नौजवान बादशाह के पास गये थे। राजा भारमल को अपने ही कबीलों से दशकों से विवादों का सामना करना पड़ रहा था और ऐसे में उन्होंने फ़ैसला लिया कि मुगल सेना की बढ़ती ताक़त इस लिहाज़ से एक उपयोगी बचाव साबित हो सकती है।

एक महिला का चित्रण| मुग़ल कला, रचना-काल-1640 के आस-पास

इसी चलते अकबर ने राजा भारमल की बेटी, हरखा बाई से शादी की थी। हरखा बाई ने इस्लाम को नहीं अपनाया था और अपने धर्म के संस्कारों और अनुष्ठानों के मुताबिक ही अपनी ज़िंदगी जीती रहीं। हमें यह बात इसलिए पता है, क्योंकि जीवनी लेखक, बदायुनी की किताब में इसे लेकर अहम विवरण मौजूद हैं। बदायू ने अपनी किताब में इस बात पर दुख जताया है कि अकबर ने अपनी पत्नियों को पवित्र अग्नि पूजा, हिंदू तौर-तरीक़े से प्रार्थना आदि को जारी रखने की अनुमति दी थी और बदायू ने उन तरीक़ों का भी ब्योरा दिया है, जिस तरीक़े से अकबर इन सभी अनुष्ठानों और परंपराओं में भाग लेता था। अकबर के शासन के तहत सभी शाही महिलाओं को ख़िताब दिया जाता था, क्योंकि उनके नाम आम लोगों को पता हो, यह मुनासिब नहीं समझा जाता था, इसलिए उन सभी महिलाओं, जिनमें उनकी मां और उनकी पत्नियां भी शामिल थीं, उन्हें मुग़ल राजसी गौरव के रूप में उनकी शक्ति और प्रतिष्ठा को दर्शाते हुए ख़िताब दिये जाते थे। यही वजह है कि हरखा बाई को "मरियम-उज़-ज़मानी", या "विश्व की मैरी" का ख़िताब दिया गया था, जबकि हमीदा बानू को "मरियम मकानी" का ख़िताब मिला था। अकबर की मां और सबे बड़ी पत्नी, दोनों को ही प्रतिष्ठित ख़िताबें दी गयी थीं। ये ख़िताब इन दोनों महिलाओं का शाही मुग़ल महिलाओं के प्रति सम्मान थे, न कि ये उनके धार्मिक नाम थे। सुलह-ए-कुल यानी सार्वभौमिक शांति का प्रचार करने वाले अकबर ने अपने लोगों से बार-बार कहा था कि अपने-अपने धर्म को मानने के लिए हर कोई आज़ाद हैं, और उनके शुरू किये गये इस धर्म में हिंदू, शिया मुस्लिम, जैन, ईसाई, पारसी और अन्य धर्मों के मानने वाले शामिल थे। उन्होंने अपने बेटों, विदेशी मुस्लिम रहनुमाओं,और अपने सभी प्रांतीय प्रशासकों को इस बारे में चिट्ठियां लिखी थीं। अगर वह अपनी ही पत्नी को धर्म बदलने के लिए मजबूर करता, तो इसका मतलब तो यही होता कि वह अपने ही बनाये धर्म से दूर जा रहा है।

मुकुलिका आर: व्यापक तौर पर स्वीकार किया जाने वाला एक और तर्क यह है कि "जौहर" (आत्मदाह) की इजाद और उस पर अमल उन राजपूत महिलाओं द्वारा किया गया था, जो मुसलमान / मुग़लों द्वारा "पकड़ लिये जाने" से बचने के लिए करती थीं। हमने इसे समकालीन भारतीय सिनेमा और पॉप संस्कृति को मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंदुओं की तरफ़ से किये जाने वाले प्रतिरोध के लिहाज़ से इसे वीरतापूर्ण कार्य के रूप में महिमा मंडित करते देखा है। आपकी क्या राय है ?

इरा मुखोटी: 18 वीं शताब्दी के बाद से जौहर और सती का महिमामंडन करते हुए जेम्स टॉड जैसे ब्रिटिश लोगों और फिर हिंदू राष्ट्रवादियों, दोनों के साथ-साथ पॉप संस्कृति ने भी इसकी उत्पत्ति को पूरी तरह से हक़ीक़त से ओझल कर दिया है। 15 वीं और 16 वीं शताब्दी में राजपूत राजवंश किसी बेहद हिंसक और युद्धरत समुदाय से गठजोड़ करने के लिए इस बहुविवाह को एक साधन के तौर पर अपनाया करते थे। राजपूत सम्मान को उनकी महिलाओं के शील और विशाल ज़नाने से जोड़ना एक आम बात हो गयी थी, और इससे बड़ी संख्या में उन महिलाओं को लेकर अभिमान का मामला बन गया था, जो "संरक्षित" जीवन जी रही थी। राजपुताना के सरदार विवादास्पद ज़मीनों को लेकर लगातार आपस में लड़ते रहते थे। सरदारों का जीवन हमेशा ख़तरे में होता था और चूंकि उनकी महिला समूहों का शील राजपूत वीरता और सम्मान के विचार से अटूट रूप से जुड़ा हुआ था, तो ऐसे में महिलाओं के लिए जौहर ज़रूरी माना जाने लगा था। राजस्थान की इतिहासकार, रीमा हूजा ने दिखाया है कि राजपूत न सिर्फ़ मुसलमानों, बल्कि अक्सर आपस में भी एक-दूसरे लड़ते रहते थे और जौहर तब भी होता था, जब एक राजपूत राजवंश दूसरे राजपूत राजवंश से हार जाता था, मसलन जब पंवार राजपूतों ने हमला करके भाटी राजपूत को हरा दिया था।

इस तरह की हिंसा का सम्बन्ध धर्म के बजाय राजनीतिक और आर्थिक हक़ीक़त के साथ कहीं ज़्यादा था। इस साधारण मामले को "मुस्लिम बनाम हिंदू" जैसा जटिल मामला बना देना न सिर्फ़ भ्रामक है, बल्कि ख़तरनाक भी है।

लोकप्रिय संस्कृति द्वारा इस तरह के चलनों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना और विदेशी तौर-तरीक़ा बता देना दुर्भाग्य से महिलाओं को नियंत्रित करने के साधनों की लंबी और बेशर्म परंपरा के ही अनुरूप है। बाल-विवाह, और नौजवान नवविवाहिता को उनके पैदा लेने वाले घरों से दूर भेज देने की दुखद प्रथा, और इसे प्रथा को सहज बनाने और समर्थन देने वाले सभी तरह के ज़रिए को भी "बिदाई" गीत के ज़रिये महिमामंडित किया गया है, इस तरह के आकर्षक और भावुक दृश्य बॉलीवुड की कई फ़िल्मों की कहानियों में मिल जाते हैं।

मुकुलिका आर: मुग़ल हरम के विचार को दक्षिणपंथी और औपनिवेशिक अवधारणाओं, दोनों में ऐसी "संदिग्ध" जगह के तौर पर दिखाया-बताया जाता है, जहां अक्सर हिंदू महिलाओं को बंदी बनाकर रखा जाता था। हिंदू महिलाओं की कामुकता को नियंत्रित करने की हिंदुत्व की आकांक्षा को लेकर जब "लव जिहाद" के विमर्श पर ध्यान दिया जाता है, तो यह लव जिहाद दोगुना दिलचस्प मामला बन जाता है। इस हरम का वर्णन इतिहासकारों ने कुछ इस तरह किया है, जो इन अवधारणाओं से काफ़ी अलग था। क्या आप इसे और साफ़ कर सकती हैं ?

इरा मुखोटी:  मैं अपनी किताबों में जिस हरम के बारे में लिख रही हूं, वह ख़ास तौर पर मुग़ल हरम ही है। इस ख़ास फ़र्क़ को ज़ेहन में रखना ज़रूरी है कि मुग़ल तैमूरी थे, यानी वे तैमूर बेग़ के वंशज थे और ओट्टोमन जैसे दूसरे इस्लामिक राजवंशों के मुक़ाबले उनका इस्लाम से सम्बन्ध पूरी तरह अनौपचारिक था। मध्य एशिया के तैमुरी शासक अपने साम्राज्यों की बहु-जातीय प्रकृति से भी अच्छी तरह वाकिफ़ थे और यही वजह है कि उन्होंने इस्लाम का दूसरे आस्थाओं के सह-अस्तित्व को लेकर व्यावहारिक तरीक़े ढूंढ लिए थे। वे अर्ध-घुमंतू थे, और उनकी महिलायें, पुरुषों के साथ चलने वाले हुजूम में सफ़र करती थीं, यही वजह है कि उनमें पर्दा नाममात्र का था। शाही महिलायें तलाक़ ले सकती थीं, फिर से शादी कर सकती थीं या फिर बिना कभी शादी किए जीवन गुज़ार सकती थीं और उन्हें काफ़ी सम्मान और शक्ति हासिल थे। जब मुग़ल भारत पहुंचे, तो वे अपने साथ अपने ये विचार भी यहां लेते आये थे और अकबर ने तलाक़शुदा और विधवा महिलाओं को फिर से शादी करने के लिए प्रोत्साहित किया था, मगर जब उन्हें यह मालूम हुआ कि हिंदू महिलाओं को आमतौर पर इसकी इजाज़त नहीं है, तो वे भौंचक्के रह गये, अकबर को यह जानकर बेहद अफ़सोस हुआ था कि इस तरह के प्रतिबंध की वजह से बाल विधवायें अक्सर अपना लम्बा जीवन बिना किसी उत्साह के बिता देती थीं।

इतिहासकार, रूबी लाल ने मुग़लों के हरम को एक ऐसी जगह के तौर पर दिखाया है, जहां रहते हुए शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी महिलायें काफ़ी ताक़त का इस्तेमाल करती थीं, और कई क्षेत्रों में फ़ैसला लेने वाले ज़रूरी लोगों में शुमार थीं। ये हरम उस तरह के नहीं होते थे, जिस तरह की जगह यूरोपीय कल्पनाओं में दिखाते हुए कहा गया है कि ये हरम, बादशाहों की कामुकता को पूरा करने के लिए उपलब्ध महिलाओं से अटे-पड़े थे। इसके बजाय, हरम में अविवाहित बहनें, विधवा चाची-मौसियां, शरणार्थी कुलीन महिलायें, तलाकशुदा महिला रिश्तेदार और इसी तरह की और महिलायें बड़ी संख्या में रहती थीं, इन महिलाओं के अलावा इन हरमों में ज़नाना कामकाज को पूरा करने को लेकर जवाबदेह प्रशासक, नर्तक, रसोइया, पुजारी, संगीतकार,लेखक और ऐसी ही दूसरी महिलायें होती थीं। यह एक बेहद जटिल, सुव्यवस्थित और एक ऐसी व्यस्त जगह होती थी, जिसके ज़रिये शाही महिलायें अपने व्यापार जहाजों के प्रबंधन और अपने जागीर, या भूमि का प्रबंधन करने सहित कई तरह के कार्यों को अंजाम दिया करती थीं। दुर्भाग्य से हरम को तिरस्कृत और एक ऐसे निर्जन जगह के तौर पर दर्शाया जाता रहा है, जहां महिलायें महज़ गपशप करती थीं और उनका मक़सद किसी की यौन पिपासा को शांत करना भर था।

यह तो साफ़ है कि "लव जिहाद" की बहस वास्तव में महिलाओं को नियंत्रित करने के सिलसिले में ही है, जिन्हें उन ज़ायदादों से थोड़ी ही ज़्यादा अहमियत दी जाती है, जिन्हें पुरुषों, आमतौर पर उच्च जाति के पुरुषों की मर्ज़ी के मुताबिक़ बांट ली जाती है।

मुकुलिका आर: अगर धर्मांतरण शादी का हिस्सा नहीं था, तो क्या इस बात के सबूत हैं कि उस दौरान मुग़लों ने अन्य प्रकार के सामूहिक धर्मांतरण कराये थे ? इसके अलावा, इस हक़ीक़त के बावजूद कि इस उपमहाद्वीप में मुग़लों से पहले भी कई मुस्लिम शासक रहे हैं, तो फिर ऐसा क्यों है कि सिर्फ़ मुग़लों को ही इस तरह के हमले का सामना करना पड़ता है ?

इरा मुखोटी : दरअस्ल इस आरोप के सुबूत में कोई साक्ष्य नहीं है कि मुग़लों ने तलवार के ज़ोर पर सामूहिक धर्मांतरण कराया था। हरबंस मुखिया जैसे इतिहासकारों ने दिखाया है कि आधुनिक भारत में मुसलमानों का जनसांख्यिकीय फ़ैलाव भारत के कश्मीर, केरल, बांग्लादेश और मौजूदा पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा था। मुसलमानों की आबादी उस मध्य भारत-गंगा वाले भू-भाग में कम थी, जहां मुग़लों का आधिपत्य सबसे लंबे समय तक रहा था। अगर हम उस धारणा को मानते हैं कि मुग़लों ने आबादी के बड़े हिस्से को जबरन धर्मांतरित किया था, तो इतिहास में दर्ज यह हक़ीक़त उस आम धारणा के एकदम विपरीत है। इसके अलावा, दर्ज आंकड़े बताते हैं कि 1940 से पहले 100 सालों में, भारत में मुस्लिम आबादी में एक बड़ा इज़ाफ़ा हुआ था, यानी यह वह समय था, जब ब्रिटिश भारत पर शासन कर रहे थे और जिस अवधि का सम्बन्ध मुग़लों से बिल्कुल भी नहीं था।

मेरा मानना है कि मुग़ल तो बदले के शिकार रहे हैं क्योंकि वे हमारे दौर के सबसे क़रीबी साम्राज्य रहे हैं। उनकी मौजूदगी हर तरफ़ दिखती है, चाहे वे भव्य स्मारक हों, जिनसे हम चाहकर भी दूरी नहीं बना सकते, या फिर संगीत, भाषा, संस्कृति, भोजन और वे लिबास ही क्यों न हो, जो  हमारी ज़िंदगी में कहीं न कहीं सूक्ष्म रूप से मौजूद हैं। ये चीज़ें उनमें साफ़ तौर पर खीझ पैदा करती रही हैं, जो मुसलमानों के शासनकाल को "उत्पीड़न के एक हज़ार साल" बताना पसंद करते हैं।

आतिशबाज़ी करते पुरुष | मुग़ल लघुचित्र, रचना-काल:1730-40 के आस-पास

मुकुलिका आर: सेक्स के भूखे, लंपट और कुंठित, जानवरों की तरह और बर्बर लोग लगातार मासूम हिंदू महिलाओं को शादी करने की जाल में फंसाते रहते हैं-यह कुछ-कुछ उसी तरह का रूपक है, जिसका इस्तेमाल भारतीय लोकप्रिय संस्कृति अक्सर मुग़लों और मुसलमान शासकों को आम तौर पर चित्रित करने के लिए करती हैं। आपको क्या लगता है कि इस तरह की अवधारणाओं का मुक़ाबला कैसे किया जा सकता है ?

ईरा मुखोटी: इतिहास के लेखक के तौर पर मैं कहानियों की ताक़त से पूरी तरह बाख़बर हूं। दुर्भाग्य से भारत में आज उन कहानियों को ज़्यादातर पॉप संस्कृति के ज़रिये फ़ैलाया जाता है, जिसमें बॉलीवुड माहिर खिलाड़ी है, और इतिहास के मुक़ाबले उन पौराणिक कथाओं के ज़रिये इन कहानियों को  ज़्यादा मज़बूती के साथ फ़ैलाना आसान है, जो लोगों के लिए ज़्यादा प्रासंगिक हैं।

इतने सारे पाठकों ने मुझसे यह बताने के लिए संपर्क किया कि उन्होंने मेरी किताबों के ज़रिये उस इतिहास के बारे में कितना कुछ जाना है, जिन्हें वास्तव में जानना चाहिए था। इसलिए, मेरी राय में हमें भारतीय इतिहास तक सबकी पहुंच  हो, इसके लिए ज़रूरी है कि इतिहास का लोकतंत्रीकरण किया जाये और इसे न सिर्फ़ सभी के लिए सुलभ बनाना होगा, बल्कि इसे मनोरंजक और दिलचस्प भी बनाना होगा। इतिहास भारत में लंबे समय से  पेशेवर इतिहासकारों, विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों तक सीमित रहा है। अगर हमें इसे व्यापक अर्थों में फिर से हासिल करना है, तो इसे और ज़्यादा व्यापक रूप से फ़ैलाना होगा। अगर हम दूसरे देशों को देखें, तो इतिहास वहां सभी दौर में अलग-अलग रूपों में मिलता है। उदाहरण के लिए, यूके में हॉरिबल हिस्ट्री श्रृंखला ने भयानक हिंसा का इस्तेमाल करते हुए नौजवान पाठकों को आकर्षित किया है और इतिहास में उनकी दिलचस्पी पैदा की है। पिछले कुछ सालों में भारत में भी कई ग़ैर-पेशेवर इतिहासकारों के साथ-साथ कुछ नौजवान इतिहासकारों की लोकप्रिय इतिहास लेखन में दिलचस्पी दिखायी दे रही है। यह एक ऐसी बेहद उत्साहजनक प्रवृत्ति है, जिसे बढ़ते रहने की ज़रूरत है। अगर स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में हेरफेर और लीपापोती की जा रही है, तो कहानियों को नये-नये प्लेटफ़ॉर्म-पॉडकास्ट, ब्लॉग, ग्राफ़िक कहानी, लोकप्रिय इतिहासों की तलाश की ज़रूरत है, ये सभी इन ज़रूरी लड़ाइयों के सबसे कारगर हथियार हैं।

इरा मुखोटी : ‘डॉटर्स ऑफ़ द सन: एम्प्रेसेस, क्वीन्स एंड बेगम ऑफ़ द मुग़ल एम्पायर’, ‘हेरोइन्स: पॉवरफ़ुल इंडियन वीमेन इन मिथ एंड हिस्ट्री’ और ‘अकबर: द ग्रेट मुग़ल’ की लेखिका हैं। वह बहुत सावधानी और मेहनत से शोध करने के बाद इतिहास को इस तरह कहानियों की तरह पेश करती हैं, जो कि पाठक को आसानी से समझ में आ जाएँ।

मुकुलिका आर दिल्ली स्थित इंडियन कल्चरल फ़ोरम में एडिटोरियल कलेक्टिव की सदस्य हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

‘Love Jihad’, Mughals, Propaganda: Ira Mukhoty Responds


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