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भारत
राजनीति
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ने ज़िला अस्पतालों के निजीकरण के प्रस्ताव को ख़ारिज किया
कुछ रिपोर्टों के मुताबिक़, केंद्र सरकार स्वास्थ्य के विषय को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में ला सकती है।
काशिफ़ काकवी
28 Jan 2020
MP, Chhattisgarh

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ने नीति आयोग द्वारा अस्पतालों को निजी हाथों में देने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। आयोग ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत ऐसा करने का सुझाव दिया था।  

अपने प्रस्ताव में नीति आयोग ने कहा कि राज्य सरकारों को ज़िला अस्पतालों को कम से कम साठ सालों के लिए निजी हाथों में दे देना चाहिए। यह लोग अपने निवेश के ज़रिये इन्हें तीन सौ पचास बेड के मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में बदलेंगे। प्रस्ताव के मुताबिक़ इस क़दम से सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे को दोबारा आकार दिया जाएगा और स्वास्थ्य शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा।

प्रस्ताव में कहा गया,''ज़िला अस्पताल के प्रबंधन, विशेषाधिकार, लाइसेंस और स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के अधिकार समेत मेडिकल हॉस्पिटल की डिज़ाइन, वित्त, और दूसरे अधिकारों को समझौते में तय शर्तों के मुताबिक़ कम से कम साठ सालों के लिए निजी हाथों में दे देना चाहिए।''

आयोग का कहना है कि यह प्रस्ताव डॉक्टरों की भयानक कमी और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए दिया गया। प्रस्ताव में कहा गया, ''व्यवहारिक तौर पर केंद्र और राज्य के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने सीमित संसाधनों के ज़रिए स्वास्थ्य शिक्षा की खाई को भर सकें। इसके लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल की ज़रूरत है। जिसमें निजी और सरकारी क्षेत्र को जोड़ा जाएगा। इसके बाद एक योजना के तहत निजी मेडिकल कॉलेजों को पीपीपी मॉडल के तहत ज़िला अस्पतालों से जोड़ा जोड़ने से मेडिकल सीटों की संख्या बढ़ेगी और मेडिकल एजुकेशन की कीमत तार्किक बनेगी।''

नीति आयोग ने राज्यों से दस जनवरी 2020 तक जवाब देने को कहा था। जवाब में दो राज्यों ने इसे ख़ारिज कर दिया। मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा, ''सार्वजनिक स्वास्थ्य सिस्टम का उद्देश्य ग़रीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार होता है। सरकारी अस्पतालों के ज़रिये मुफ़्त में सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। अगर जिला अस्पतालों को ही पीपीपी मॉडल के तहत निजी हाथों में दे दिया गया और वे फायदे के लिए चलाए जाने लगे, तो ग़रीब आदमी इलाज के लिए कहां जाएगा?''

उन्होंने आगे कहा, ''राज्य सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए प्रतिबद्ध है और हम स्वास्थ्य के अधिकार के विधेयक पर काम कर रहे हैं। इस क़ानून से स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित होंगी। इसमें तय सेवाएं मुहैया न कराए जाने पर जुर्माने का भी प्रावधान होगा।''

इसी तरह छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने नीति आयोग के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ ट्वीट किया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों में कांग्रेस की सरकार है और स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है।

सूत्रों के मुताबिक़, विरोध के चलते नीति आयोग ने 21 जनवरी को नई दिल्ली में होने वाली परामर्श बैठक रद्द कर दी है। आयोग की अगली बैठक अब पच्चीस फ़रवरी को तय की गई है।

नीति आयोग का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को निजी खिलाड़ियों को बेचना है: JSA

जन स्वास्थ्य अभियान के मध्यप्रदेश चैप्टर की ओर से नीति आयोग के प्रस्ताव के खिलाफ सात पेज की एक रिपोर्ट जारी की गई।

JSA की रिपोर्ट के मुताबिक़, ''इस प्रस्तावित योजना से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इस स्कीम के ज़रिये कॉर्पोरेट निवेश और स्वास्थ्य में फ़ायदे को लाया जा रहा है। जिसके तहत दुनिया के बड़े खिलाड़ी इसमें निवेश करेंगे। इसका एक निहित लक्ष्य और है। जिसके तहत स्वास्थ्य क्षेत्र को कॉर्पोरेट इंडस्ट्री की लाइन पर चलाने की योजना है। जिसमें फ़ायदा प्राथमिकता होगी, न कि स्वास्थ्य सेवाएं।''

रिपोर्ट में आगे कहा गया, ''पूरा प्रस्ताव ही यूनिवर्सल हेल्थकेयर का सीधा उल्लंघन है। यह सरकारी की ख़ुद की स्वास्थ्य योजना 2017 का उल्लंघन है, जिसके तहत सभी सार्वजनिक अस्पतालों में मुफ़्त दवाइयों, डॉयग्नोस्टिक की व्यवस्था का वायदा है। जिसके तहत सार्वजनिक अस्पतालों को बनाने की प्राथमिकता है। जिन्हें फ़ायदे के लिए नहीं, बल्कि द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए चलाया जाएगा।''

स्वास्थ्य सेवाओं को कॉर्पोरेट एकाधिकार के तहत लाने की कोशिश क़रार देते हुए जेएसए की रिपोर्ट कहती है, ''एक तरफ़ रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर धन के व्यव को बढ़ाने और दूसरी तरफ़ आर्थिक मंदी से विकास रुकने के दवाब के चलते सरकार सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को राजस्व की तरह देख रही है और अपने कल्याणकारी राज्य देने के वायदे से अलग हट रही है। ऊपर से आर्थिक मंदी के दौरान यह स्वास्थ्य को देशी-विदेशी निवेशकों के निवेश की जगह बनाना चाहती है। इस क्रम में यह प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं से ज़िला अस्पतालों को बाहर कर रही है और इसे कॉर्पोरेट एकाधिकार का हिस्सा बना रही है।''

अपने सुझाव के पक्ष में आयोग ने दुनिया की सबसे अच्छी सेवाओं और गुजरात-कर्नाटक का उदाहरण दिया, जहां पीपीपी मॉडल जैसी ही सेवाएं दी गई हैं।

जेएसए के मुताबिक़, सबसे शानदार दुनिया भर की सेवाओं की बात बिना किसी सबूत के रखी गई है। बहुत सारे सबूत इशारा करते हैं कि पीपीपी मॉडल पर आधारित योजनाएं दुनिया में असफल रही हैं। जेएसए चैप्टर की अमूल्य निधि कहती हैं, ''भारत में तो जेएसए कर्नाटक में ऐसा कोई अनुभव पाने में नाकामयाब रहा, जिसके आधार पर इसे लागू किया जा सके। सबसे क़रीबी रायचूर में मिला, जो पूरी तरह ख़ुद सरकारी आंतरिक जांचों के मुताबिक़ असफल है।''

यह प्रस्ताव भुज में गुजरात अदानी इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस की तरह है, जो पूरी तरह असफल है। इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ''क़रीब एक हज़ार बच्चे पिछले पांच सालों में इस अस्पताल में मर चुके हैं।''

इस मॉडल के तहत सरकार की तरफ़ से भारी निवेश किया गया। साथ में अडानी भी सौ करोड़ का निवेश लेकर आया। लेकिन दस साल बाद भी इसका बकाया है। यह सब तब है, जब एक बच्चे की मेडिकल फ़ीस तीन लाख रुपये और एनआरआई की आठ लाख रुपये है।

ऊपर से अडानी के लिए यह निवेश CSR बाध्यताओं के तहत माना गया, भुज में अडानी का क़रीब चौबीस हज़ार करोड़ का निवेश है। गुजरात में भी छह ज़िलों में यह योजना लागू कर दी गई, इसके बावजूद इसे लेने वाला कोई नहीं है। गुजरात के तापी, दाहोद, पंचमहल, बनासकांठा, भरूच और अमरेली में इस मॉडल को लागू किया गया। यह योजना केवल निवेशकों के लिए आकर्षण हो सकती है, उसमें भी सरकार की तरफ से भारी निवेश की ज़रूरत होती है। यह विदेशी निवेशकों को भी आकर्षित कर सकती है।

अमूल्य ने बताया कि पीपीपी मॉडल पर आधारित अस्पताल में मध्यप्रदेश में भारी असफल हैं। 2015 में सरकार ने 27 ज़िला अस्पतालों को गुजरात की एक निजी कंपनी को देने की योजना बनाई थी। पहले चरण में अलीराजपुर की ज़िला अस्पताल को निजीकरण किया गया, लेकिन एक साल में ही यह ढह गया। बल्कि नीति आयोग ने इसका ज़िक्र किए बिना ही इन्हें सफलता की कहानी बता दिया।

जेएसए ने मुख्यमंत्री कमलनाथ और स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट को पीपीपी मॉडल में ख़ामियों का जिक्र करते हुए ख़त भी लिखा था।

स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में लाया जाए: वित्त आयोग

प्रस्ताव को ख़ारिज करने से नाराज़ केंद्र सरकार अब स्वास्थ्य को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में लाने पर विचार कर रही है। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ''वित्त आयोग द्वारा बनाई गई हाई लेवल ग्रुप (एटएलजी) कमेटी ने कहा है कि स्वास्थ्य का विषय संविधान की राज्य सूची से अब समवर्ती सूची में लाया जाना चाहिए।''

वित्त आयोग को दी गई एक रिपोर्ट में कमेटी ने कहा, ''चूंकि स्वास्थ्य सेवा और परिवार नियोजन जैसे विषय समवर्ती सूची में आते हैं, इसलिए स्वास्थ्य भी आना चाहिए।"

एचएलजी की अध्यक्षता ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया कर रहे हैं। इसमें देवी शेट्टी (नारायणा हेल्थ सिटी), दीलिप गोविंद महाईसेकर (महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंस), नरेश त्रेहान (आर जी कर मेडिकल कॉलेज) और श्रीनाथ रेड्डी (पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया) शामिल हैं।

एचएलजी ने नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित पीपीपी मॉडल पर भी मुहर लगाई है। वित्त आयोग को सुझाव देते हुए पैनल ने कहा, ''भारत के दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में तीन से पांच हज़ार अस्पतालों को खोलने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना चाहिए। ताकि देश में अस्पतालों की कमी से पार पाया जा सके।''

डॉउन टू अर्थ की रिपोर्ट में नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के पूर्व डायरेक्टर टी सुंदरारमन ने कहा, ''यह बेहद अजीब है। कुछ राज्य केंद्र या इसके सहयोग के बिना बहुत अच्छा कर रहे हैं। कुछ ने ख़ुद की ज़रूरतों के लिए केंद्र की योजनाओं को नहीं अपनाया है। अब जब हम ताक़त और निधि बंटवारे में विकेंद्रीकरण की बात कर रहे हैं, तब यह बिलकुल उल्टी दिशा में बढ़ाया गया क़दम है।''

उन्होंने आगे कहा, ''हमने पाया है कि पैनल के सदस्यों में हितों का टकराव है। उनके दो सदस्य सीधे तौर पर निजी क्षेत्र से जुड़े हैं। हम इस प्रस्ताव का पूरा विरोध करते हैं। हालांकि पैनल को देखते हुए यह सुझाव बहुत अप्रत्याशित नहीं लगता।''

कमेटी के एक सदस्य के श्रीनाथ रेड्डी ने हाल ही में अपनी एक किताब, मेक हेल्थ इन इंडिया में पीपीपी मॉडल को ''पार्टनरशिप फॉर प्रॉफ़िट'' क़रार दिया है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

MP, Chhattisgarh Reject Plan to Privatise District Hospitals

Public Private Partnership Model
Privatisation
Privatisation of healthcare
District Hospitals
Privatisation of District Hospitals
Gujarat Model of Healthcare
Right to Health
Madhya Pradesh government
Chhattisgarh government
Jan Swasthya Abhiyan
Healthcare in India
Gujarat Adani Institute of Medical Sciences
Adani
corporatisation

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