नई दिल्ली: दिल्ली के उत्तरी-पूर्व जिले में नृशंस एवं भयावह साम्प्रदायिक हिंसा के नौ महीनों के बाद भी कट्टरपंथी हिन्दुत्ववादी संगठनों कथित तौर पर कुछ इलाकों में मुस्लिम निवासियों को आतंकित करने में लगे हुए हैं, और पुलिस लगता है एक बार फिर से इस सबको लेकर उदासीन बनी हुई है।
फ़रवरी हिंसा में प्रभावित इलाकों में से एक खजुरी ख़ास के कई मुस्लिम निवासियों का आरोप है कि 14 नवंबर की दिवाली की रात को सात लड़कों के एक समूह ने इलाके की 29 नंबर गली में इकट्ठा होकर उनकी स्थानीय मस्जिद के सामने पटाखे फोड़े, सांप्रदायिक बदजुबानी की और मुस्लिमों से गंभीर अंजाम भुगतने की धमकी दी थी।
एक स्थानीय निवासी महबूब आलम ने लड़कों से पटाखे न फोड़ने का आग्रह किया था। उन्होंने पुलिस कण्ट्रोल रूम से मदद के लिए भी फोन किया था। कुछ पुलिसकर्मी कुछ घंटों के बाद आये थे और फिर वापस चले गए थे।
इसके दो सप्ताह बाद 27 नवंबर के दिन आलम को पुलिस ने यह दावा करते हुए गिरफ्तार कर लिया कि फरवरी दंगों में वह भी शामिल था। वर्तमान में आलम मंडोली जेल में बंद है। जबकि वे लड़के जिनपर मस्जिद को “अपवित्र” करने और साम्प्रदायिक एवं अपमानजनक नारे लगाने का आरोप था, अभी भी छुट्टा घूम रहे हैं।
आलम की बहन के अनुसार, यहाँ पर कई परिवार अभी भी डर के साए में जी रहे हैं। उस रात की घटना का वर्णन करते हुए उसने न्यूज़क्लिक को बताया कि जैसे ही दिवाली की रात नजदीक आई, विभिन्न गलियों से से कुछ लोग गली नंबर 29 में इकट्ठा हो गए और एक दहशत का माहौल खड़ा करने लगे।
उसका कहना था “पहले पहल हमें लगा था कि दिवाली होने के कारण लड़के जश्न मना रहे हैं लेकिन जल्द ही वे आक्रामक मुद्रा में आ गए और उन्होंने सांप्रदायिक तौर पर नारेबाजी करनी शुरू कर दी थी।”
“लडकों ने मस्जिद की दीवारों, गेट और खिडकियों पर पटाखे रखने शुरू कर दिए थे। इसके बाद मेरे बड़े भाई नीचे गए और उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा था कि पुलिस को बुलाया जाएगा।” हमने 100 नंबर पर काल किया था लेकिन पुलिस की ओर से कोई जवाब नहीं आया। पुलिस की गश्ती बाइक रात के 1:30 बजे आई, लेकिन डर के मारे कोई भी बाहर नहीं निकला था” उसने बताया।

वीडियो फुटेज से प्राप्त तस्वीर, जिसे न्यूज़क्लिक द्वारा स्वतंत्र तौर पर सत्यापित नहीं किया गया है।
गली के एक अन्य निवासी का आरोप था “यदि पूरी गली को देखें तो यह काफी लंबी है, लेकिन वे जानबूझकर मस्जिद के गेट के सामने इकट्ठा हुए थे। जब हमने उनसे सवाल-जवाब किया तो उन्होंने बताया था कि वे कई गलियों से वहाँ पर इकट्ठा हुए थे। उनमें से कुछ गली नंबर 5, और कुछ 23 से थे। सब कुछ पूर्वनियोजित ढंग से किया जा रहा था।”
न्यूज़क्लिक को जो कथित वीडियो फुटेज हासिल हुई है जिसे स्वतंत्र तौर पर सत्यापित करने का दावा नहीं किया जा रहा है, में नौजवान लड़के मस्जिद के बाहर पटाखे फोड़ते देखे जा सकते हैं। फुटेज में एक शख्स (जिसे आलम बताया गया) को भी हस्तक्षेप करते हुए देखा जा सकता है।
स्थानीय निवासियों का दावा है कि हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर की नीवं रखे जाने के बाद से ही सांप्रदायिक सद्भाव के माहौल को बिगाड़ने की कोशिशें चल रही हैं, जब इस इलाके को भगवा झण्डों से पाट दिया गया था और दंगा पीड़ितों को धमकाया जा रहा था।
आलम को 27 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया गया था। जहाँ उनके परिवार का कहना है कि उन्हें मुखर होने और भड़काए जाने के खिलाफ आवाज उठाने के अपराध में सजा दी जा रही है, वहीँ दिल्ली पुलिस का दावा है कि उसे दंगों से जुड़े होने के कारण गिरफ्तार किया गया है, जैसा कि नए वीडियो फुटेज में निकलकर आ रहा है जो इस बात को स्थापित करता है कि मामले में उसकी भूमिका देखी गई है।
अपने 25 वर्षीय भाई के साथ फैक्ट्री में कार्यरत 45 वर्षीय महबूब आलम, जिनके बारे में पता चला है कि करीब 10 साल पहले इनके द्वारा मस्जिद की नींव रखी गई थी, आज जेल में हैं। दोनों भाइयों को भारतीय दण्ड संहिता की विभिन्न धाराओं 147, 148, 149, 436 के तहत आरोपित किया गया है। इन आरोपों में दंगा करने, दंगों के लिए सजा, आग या विस्फोटक चीजों के साथ शरारत और गैर-क़ानूनी तरीके से इकट्ठा होने के आरोप बनाये गए हैं।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए आलम के वकील प्रफुल्ल नेगी ने इन आरोपों की पुष्टि की है।
दंगों के दौरान एक तस्वीर में आलम अपने जले हुए सामान के साथ
इन गिरफ्तारियों के बाद से इलाके में भय का माहौल व्याप्त हो गया है, जिसमें स्थानीय नागरिक दिल्ली पुलिस के इरादों को लेकर सवाल उठा रहे हैं- जो कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीनस्थ है। उनका आरोप है कि दिल्ली दंगों के सन्दर्भ में कहीं से भी लोगों को पकड़कर, कुछ घटनाओं के साथ उनका रिमोट लिंक का हवाला देकर उनके उपर अभियोगात्मक कार्यवाही चलाई जा रही हैं।
‘पीड़ित का ही उत्पीड़न किया जा रहा है’
आलम के परिवार का कहना है कि दंगा पीड़ितों की मदद करने के बजाय पुलिस उन्हें ही विभिन्न मामलों में फंसाने का काम कर रही है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उनकी पत्नी ने कहा “हमारे समूचे तीन-मंजिला मकान को जलाकर ख़ाक कर दिया गया था, हम इस दंगे के सबसे बड़े भुक्तभोगीयों में से एक हैं। लेकिन इस सबके बावजूद भी हम लोग चैन के साथ नहीं जी पा रहे हैं। हम इस हिंसा के शिकार लोग हैं और हमें ही आगे भी उत्पीड़ित किया जा रहा है। लेकिन संविधान पर हमें यकीन है।”
आलम की एक और बहन का कहना था “उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कुछ लोग सादे कपड़ों में आये थे। हमें यह तक पता नहीं था कि ये क्या हो रहा है और हम उस समय सदमे की हालत में थे। वे हमसे रुखाई से पेश आये थे और उनके पास न कोई वारंट ही था या न ही उन्होंने कोई वर्दी पहन रखी थी।”
यहीं के एक निवासी जिन्होंने गिरफ्तारी का वाकया अपनी आँखों के सामने होते देखा था, का कहना था “जिस दिन से यह वाकया हुआ है तबसे मैं सो नहीं पा रहा हूँ। हम अपनी जिन्दगी को लेकर बेहद डरे हुए हैं। इस प्रकार की जिन्दगी से हम उकता चुके हैं। हमारे लिए अब यही विकल्प बचा है कि या तो हम अदलात की शरण में जाएँ या मर जाएँ। क्यों नहीं वे हमें एक ही बार में मार डालते हैं?”
परिवार ने अब इस मामले को क़ानूनी तौर पर उठाने की कसम खाई है, लेकिन संसाधनों एवं सामाजिक समर्थन के मामले में उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है।
आलम की गिरफ्तारी की प्रकृति को समझने के लिए न्यूज़क्लिक ने डीसीपी कार्यालय का दौरा किया। जब उनसे दिवाली के दिन पटाखे फोड़े जाने की घटना के बारे में पूछा गया तो डीसीपी ऑफिस के पुलिस इंस्पेक्टर पवन कुमार का कहना था “पटाखे फोड़ने का मामला इससे भिन्न है। हमारी किसी के भी प्रति कोई दुर्भावना नहीं है। यदि किसी को भी कुछ प्रस्तुत करना है तो उसे किसी भी सूरत में किया जा सकता है।”
इसके बाद इंस्पेक्टर ने न्यूज़क्लिक को 25 फरवरी के दिन की एक मिनट से भी अधिक की एक वीडियो क्लिप दिखाई, जिसमें एक आदमी नजर आ रहा था जो गली के अन्य लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने के लिए पुकार रहा था, और दावा किया गया कि वह शख्स आलम था जो “दूसरों को बाहर निकलने के लिए और दंगों में शामिल होने के लिए उकसा रहा था।”
ऐसा प्रतीत होता है कि यह क्लिप सीसीटीवी से निकाली गई थी और यह दानेदार थी। न्यूज़क्लिक इस बात को सत्यापित नहीं कर सकता कि कथित वीडियो क्लिप में नजर आने वाला शख्स आलम ही था या नहीं।
पुलिस अधिकारी का कहना था कि इन महीनों के दौरान उनके पास यह फुटेज उपलब्ध नहीं थी और हाल ही में एक अन्य कार्यवाही के दौरान उन्हें यह उपलब्ध हो सका था। डीसीपी (उत्तर-पूर्व) वेद प्रकाश सूर्या के अनुसार: “हमने कोई गैर-क़ानूनी गिरफ्तारी नहीं की है, यह गिरफ्तारी हमारे पास दंगों के संबंध में उपलब्ध वीडियो फुटेज की छानबीन करने के बाद की गई है।”
आलम का मामला अपनेआप में कोई अकेला उदहारण नहीं है। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि लॉकडाउन के दौरान इस इलाके के कई युवाओं को इस साल की शुरुआत में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के आरोप में फँसाकर उठा लिया गया है और वे सभी जेलों में सड़ रहे हैं। इस हिंसा में 54 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर संख्या मुसलमानों की थी, और जिसके चलते इस क्षेत्र में चलने वाले व्यवसाय और आजीविका पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं, जिसने मुख्य तौर पर मुस्लिम परिवारों को प्रभावित किया है।
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Man Who Stopped Cracker Bursting Near Mosque on Diwali Held in Delhi Violence Case, Alleges Family