NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
स्मृति शेष : मंगलेश ने वामपंथी धरातल को कभी नहीं छोड़ा
वरिष्ठ कवि अजय सिंह मंगलेश डबराल के बहुत पुराने साथी रहे हैं। क़रीब 50 साल का साथ रहा दोनों का। आज जब मंगलेश जी हम सबको अलविदा कहके जा चुके हैं, अजय सिंह उनकी यादों में डूब-उतर रहे हैं। हमारे आग्रह पर उन्होंने अपनी यादें कुछ इस तरह साझा की, पढ़िए-
अजय सिंह
10 Dec 2020
मंगलेश डबराल

हिंदी कवि व गद्यकार मंगलेश डबराल (1948-2020) के इंतकाल के साथ उससे मेरी बहुत पुरानी दोस्ती, बहुत पुराना संग-साथ एक झटके से टूट गया। हालांकि इसे टूटना भी कैसे कहा जाये! दोस्तियां ख़त्म नहीं होतीं, अगर वे पुख़्ता आधार पर हों। वे हमारी स्मृति में आवाजाही करती रहती हैं। वे प्रेम, बहस, झगड़ा, पसंद-नापसंद, झुंझलाहट, गुस्सा, विचारों व भावनाओं की शेयरिंग और टकराहट, एक-दूसरे की निजता व स्वतंत्रता का ख़याल, और अंततः सजल प्रेम के साथ चलती रहती हैं। मंगलेश के साथ मेरा रिश्ता ऐसा ही था, जहां सहमति और असहमति के लिए दोस्ताना स्पेस मौजूद था।

इस रिश्ते में पारिवारिक स्पर्श भी शामिल था। दिल्ली की तीसहज़ारी कोर्ट में मेरी और शोभा की अदालती शादी के वक़्त तीन गवाहों में एक मंगलेश था। (अन्य दो गवाह सईद शेख़ व त्रिनेत्र जोशी थे।) हम दोनों के बीच मज़बूत सूत्र थे, कविश्रेष्ठ शमशेर बहादुर सिंह।

इसी साल दिल्ली में 7 अगस्त को वरिष्ठ कवि शोभा सिंह के कविता संग्रह के विमोचन और सम्मान समारोह के अवसर पर मंगलेश डबराल (दाएं)। बीच में अजय सिंह और बाएं शोभा सिंह।   

मंगलेश से पहली बार मैं 1969 में दिल्ली में मिला था। वह बहादुरशाह जफ़र मार्ग पर लिंक हाउस में से निकलनेवाली साप्ताहिक पत्रिका ‘हिंदी पेट्रियट’ में नौकरी कर रहा था। वह उसी साल पहाड़ (उत्तराखंड) से दिल्ली पहुंचा था—अपनी पीठ पर ‘पहाड़ों की यातनाएं’ लेकर और सामने ‘मैदानों की यातनाओं’ से जूझने के लिए। मैं भी उसी साल दिल्ली पहुंचा था—इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ‘भग्न ह्रदय’ लेकर। हम दोनों की अलग-अलग यातना, पवित्र आवारागर्दी, और पुरानी, सड़ चुकी दुनिया को ध्वस्त कर नयी दुनिया बनाने के धधकते सपने के साथ हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई।

इस दोस्ती को बढ़ाने में सी 12, मॉडल टाउन, दिल्ली का अच्छा-खासा हाथ था। इस मकान में शमशेर, मलयज, शोभा व अन्य पारिवारिक सदस्य रहते थे। इसकी मियानी/दुछत्ती में रहने के लिए मंगलेश और तिनेत्र जोशी चले आये थे। शोभा इन दोनों को बीच-बीच में चाय-नाश्ता-खाना पहुंचा देती थीं। मैं अक्सर आ जाता था मियानी में रहने के लिए।

 इसे भी पढ़े : स्मृति शेष: वह हारनेवाले कवि नहीं थे

यहां पर यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि मंगलेश की कविता यात्रा नक्सलबाड़ी जन सशस्त्र संघर्ष की छाया व असर में शुरू हुई। यह असर ताज़िंदगी उसके चिंतन और कविता में बना रहा। जाहिर है, यह असर उसके यहां अलग रंग-रूप व बारीकियों में मौजूद है। और यह उसका बहुत अपना, बहुत खास स्वर है, जो सार्वजनिक विस्तार पाता रहा है। इसी चीज़ ने मंगलेश की कविता को विशिष्ट और लोकप्रिय बनाया।

मंगलेश बुनियादी तौर पर, दिलोदिमाग़ से, लाल झंडेवाला और लाल सलाम वाला कवि, दोस्त व कॉमरेड रहा है। अगर उसकी एक कविता से भाव उधार लिये जायें, तो वह अपनी दोस्त के लाल रुमाल को झंडे की तरह फहराना चाहता रहा है। वह उन झोलावाला बुद्धिजीवियों और लेखकों की कतार में शामिल रहा है, जिन्होंने देश में लोकतंत्र को नयी परिभाषा व नया विस्तार दिया है।

अब यह भी सही है कि मंगलेश के जीवन, चिंतन और कविता में कुछ वैचारिक समस्याएं और विचलन, भ्रम व अंतर्विरोध दिखायी देते हैं। वामपंथ को लेकर उसके यहां किंतु-परंतु अच्छा-ख़ासा मिलता है, और वह दुचित्तापन से ग्रस्त भी दिखायी देता है। आत्मसंघर्ष और आत्मालोचन उसके यहां कम है। अब ये चीज़ें एक आर्टिस्ट की ज़िंदगी में आती हैं, जिनसे उसे दो-चार होना पड़ता है। मंगलेश भी जूझता रहा—कभी क़ामयाब हुआ, कभी नाक़ामयाब रहा। हालांकि वह अपने प्रभामंडल के मोह से बाहर नहीं निकल सका।

लेकिन एक बात निर्विवाद रूप से कही जा सकती है कि मंगलेश ने वामपंथी धरातल को कभी नहीं छोड़ा। वह आजीवन वामपंथी बना रहा। हाल के वर्षों में हिंदी का जिस तरह तेज़ी से हिंदूकरण हुआ है और वह हिंदुत्व फ़ासीवाद की वाहक बनी है, मंगलेश उसका कट्टर आलोचक रहा है। इस सिलसिले में उसकी टिप्पणियों से हलचल मची, बहस हुई। नरेंद्र मोदी-अमित शाह-भाजपा-आरएसएस के नेतृत्व में भारत जिस गर्त में जा रहा है और हिटलरी जर्मनी का नया संस्करण बनने की तैयारी कर रहा है—मंगलेश ने इस पर बराबर कसकर हमला बोला। एक फ़ाइटर की तरह।

मंगलेश की कविताओं को पढ़ते हुए अक्सर मुझे लगा है कि उनमें वास्तविकता का मार्मिकीकरण ज़्यादा है। इसके बावजूद उनमें पूंजीवादी लूट-खसोट, साम्राज्यवादी हिंसा और हिंदुत्व फ़ासीवादी लंपटता की व्यंजनापरक शिनाख़्त मिलती है। मंगलेश की कविता व्यक्ति की निजता में केंद्रित आत्मपरकता के साथ गहरे वामपंथी रुझान वाले सार्वजनिक सरोकार की कविता है।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 इसे भी पढ़े : मंगलेश डबराल: लेखक, कवि, पत्रकार

manglesh dabral
Manglesh Dabral dies
Left ideology
poet
writer
journalist
Hindutva Fascism

Related Stories

मंगलेश को याद करते हुए

नागरिकों से बदले पर उतारू सरकार, बलिया-पत्रकार एकता दिखाती राह

बलिया पेपर लीक मामला: ज़मानत पर रिहा पत्रकारों का जगह-जगह स्वागत, लेकिन लड़ाई अभी बाक़ी है

जीत गया बलिया के पत्रकारों का 'संघर्ष', संगीन धाराएं हटाई गई, सभी ज़मानत पर छूटे

बलिया: पत्रकारों की रिहाई के लिए आंदोलन तेज़, कलेक्ट्रेट घेरने आज़मगढ़-बनारस तक से पहुंचे पत्रकार व समाजसेवी

पत्रकारों के समर्थन में बलिया में ऐतिहासिक बंद, पूरे ज़िले में जुलूस-प्रदर्शन

तिरछी नज़र: कुछ भी मत छापो, श..श..श… देश में सब गोपनीय है

सीधी प्रकरण: अस्वीकार्य है कला, संस्कृति और पत्रकारिता पर अमानवीयता

पेपर लीक प्रकरणः ख़बर लिखने पर जेल भेजे गए पत्रकारों की रिहाई के लिए बलिया में जुलूस-प्रदर्शन, कलेक्ट्रेट का घेराव

यूपी बोर्डः पेपर लीक प्रकरण में "अमर उजाला" ने जेल जाने वाले अपने ही पत्रकारों से क्यों झाड़ लिया पल्ला?


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License