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सीधी प्रकरण: अस्वीकार्य है कला, संस्कृति और पत्रकारिता पर अमानवीयता
सीधी की घटना को लेकर पत्रकार, रंगकर्मियों के अलावा मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रगतिशील लेखक संघ व अन्य प्रसिद्ध लेखक-साहित्याकारों ने गहरा प्रतिरोध दर्ज कराया है और इसे लोकतंत्र में तानाशाही का बेहद बेरहम, बेशरम चेहरा करार दिया है। मामला शुरू हुआ था प्रख्यात रंगकर्मी नीरज कुंदेर की गिरफ़्तारी से और फिर सामने आई पुलिस की वह करतूत जिसने पूरे शासन-प्रशासन को ही नंगा कर दिया।
रूबी सरकार
09 Apr 2022
NSD
थियेटर ओलंपिक NSD नई दिल्ली में नीरज कुंदेर के नाटक ‘एकलव्य’ की प्रस्तुति के दारौन की तस्वीर। (फाइल)

एक दौर था जब समाज में ऐसे प्रबुद्ध लोग होते थे, जो साहित्य कला के साथ-साथ बौद्धिक राजनीतिक विमर्श को प्रोत्साहित करने का बीड़ा उठाते थे। इन्हीं के प्रयासों से समाज में सांस्कृतिक चेतना का विकास होता था तथा कला संस्कृति साहित्य का नया संसार रचा जाता था। ऐसे लोग स्वयं रचनाधर्मी न होते हुए भी अपनी बौद्धिक समझ और संसाधनों से सृजन  की निरंतरता बनाए रखने में अपनी भूमिका निभाते थे।

दरअसल यह जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि बीते हफ्ते मध्यप्रदेश के सीधी जिले में कला आंदोलन के प्रमुख स्तंभ नीरज कुंदेर को सीधी पुलिस ने फेक आईडी के आरोप में गिरफ्तार किया और वे सब चालें चली जिससे उनकी जमानत न हो पाए और उन्हें जेल जाना पड़े, जबकि उनके ऊपर लगाए गए आरोप की धाराओं में उन्हें तत्काल जमानत और मुचलके पर रिहा किया जाना चाहिए था।

बहरहाल नीरज जेल गए क्योंकि सत्तारूढ़ दल के नेता, विधायक यही चाहते थे। लेकिन यह चीज यहीं नहीं थमी। पुलिस के इस कृत्य का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे इंद्रवती नाट्य समिति के वरिष्ठ रंगकर्मी रोशनी प्रसाद मिश्र, नरेंद्र बहादुर सिंह, शिवा कुंदेर, रजनीश जायसवाल सहित यही कोई 10-15 कलाकारों को प्रतिबंधक धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, इनमें दो पत्रकार भी थे। एक कनष्कि तिवारी और दूसरे अनुराग मिश्र। इनमें सभी की उम्र दो-तीन को छोड़कर 25 से 30 वर्ष के बीच है। यह वह उम्र होती है, जब जागरूक इंसान किसी भी गलत गतिविधि का विरोध खुलकर करना पसंद करते हैं। इनका विरोध भी इसलिए था कि उनके साथी नाटककार, निर्देशक, लेखक व कवि नीरज कुंदेर को आखिर किस धारा के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है और क्यों! पुलिस की ज्यादती यही नहीं थमी, बल्कि विधायक की हुक्म बजाने के लिए पुलिस ने इनलोगों को थाने में अर्द्धनग्न कर इनकी नुमाइश की, इसका फोटो वीडियो बनाया और उसे वायरल किया।

इसे पढ़ें : मध्य प्रदेश : बीजेपी विधायक के ख़िलाफ़ ख़बर दिखाई तो पुलिस ने पत्रकारों को थाने में नंगा खड़ा किया

सीधी पुलिस की यह कार्रवाई कई सवाल खड़े करती है 
 
1. नीरज कुंदेर के विरुद्ध फेक आईडी के आरोप की यथोचित जांच के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए थी, लेकिन पुलिस आरोपी और उसके वकील को संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई ?

2. गिरफ्तारी के बाद उन्हें बिना किसी दुर्भावना के जमानत का लाभ दिया जाना चाहिए था, वे प्रतिष्ठित रंगकर्मी हैं आदतन अपराधी नहीं। लेकिन गिरफ्तारी के लिए जानबूझकर शनिवार का दिन चुना गया और ऑफिस अवधि खत्म होने के ऐन वक्त में सारी कार्रवाई की गई ताकि वे जमानत की औपचारिकता पूर्ण नही कर पाए और उन्हें जेल जाना पड़े।

3. शासन-प्रशासन के किसी भी निर्णय या कृत्य का शांतिपूर्ण संवैधानिक तरीके से विरोध करना किसी भी नागरिक का लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार है। बावजूद इसके पुलिस ने शांतिपूर्ण संवैधानिक तरीके से नीरज कुंदेर की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे रंगकर्मियों और पत्रकारों को गिरफ्तार किया है। जो पुलिस की दुर्भावना का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

4. हैरान करने वाली बात ये हैं कि पुलिस ने क्रोनिक किडनी पेशेंट जनकवि नरेंद्र बहादुर की भी गिरफ्तारी की जबकि वे जीवन रक्षक दवाओं पर निर्भर हैं। उन्हें बिना दवा और भोजन के रखा गया। सुबह 7.30 बजे उनकी पत्नी रंगकर्मी और अभिनेत्री करुणा सिंह चौहान उनसे मिलने गई तो उन्हें मिलने भी नहीं दिया गया। बाद में चारों तरफ से दबाव और हल्ला मचने के बाद दोपहर में उन्हें दवा और परहेजी भोजन (बिना तेल-मसाले और नमक वाला) देने की छूट दी गई।

इसे देखें: बेशर्म नंगई पर उतरा तंत्र, नफ़रती एजेंटों की पौ-बारा

पुलिस और जेल हमारा हौसला नहीं तोड़ सकती

 रंगकर्मियों और कलाकारों से राजनीतिक प्रतिशोध लेने के लिए पुलिस का इस तरह इस्तेमाल निंदनीय है। नीरज के परिजनों का कहना है नीरज के ऊपर लगाया गया आरोप पूरी तरह से झूठा और निराधार है। नरेंद्र बहादुर सिंह की पत्नी जो खुद भी थियेटर आर्टिस्ट है का कहना है कि पुलिस और जेल हमारा हौसला नहीं तोड़ सकती, हम अपना प्रतिरोध जारी रखेंगे।

वह कहती हैं— हम पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हैं और पुलिस प्रशासन और सरकार से कहना चाहते हैं कि वैचारिक असहमति और शांतिपूर्ण प्रतिरोध लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है। सरकार और उसके नुमाइंदे उसके प्रति उदार और सहिष्णु बनें तथा पत्रकारों व कलाकारों का दमन और उत्पीड़न बंद करें।

थियेटर ओलंपिक NSD नई दिल्ली में नीरज कुंदेर के नाटक ‘एकलव्य’ की प्रस्तुति की तस्वीर। (फाइल)

बेइज़्ज़त करने का यह नया तरीका

जमानत पर जेल से बाहर आए नीरज कहते हैं कि पुलिस ने बेइज्जत करने का यह नया तरीका ढूंढ़ा है। ऐसा तो कोई अपराधी के साथ भी नहीं करता। जिससे लोग पुलिस से खौफ खाए। हालांकि यह दांव पुलिस को उल्टा पड़ गया, क्योंकि पूरी दुनिया मध्य प्रदेश पुलिस की इस बर्बरता की निंदा हो रही है। चारों तरफ पुलिस की थू-थू हो रही है।

नीरज बताते है कि उनके छोटे भाई को पुलिस ने इतना पीटा कि उसकी कान का पर्दा फट गया। अब उसका इलाज चल रहा है। उसे सुनाई नहीं दे रहा है, जबकि वह रंगमंच का बेहतरीन कलाकार है। उन्हें इस बात का भी दुख है कि उनके 72 वर्षीय पिता बाबूलाल कुंदेर को इस घटना ने अंदर तक झकझोर दिया। नीरज ने कहा कि पिता बहुत ज्यादा भयभीत हैं और अपने दोनों बच्चों की सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं। क्योंकि कोई भी वकील विधायक के डर के कारण केस लेना नहीं चाहते थे।

उमरिया के पत्रकार व लेखक कहते हैं कि इन दिनों सरकार या उससे जुड़े लोग अपनी आलोचना सुनने को कतई तैयार नहीं है। छोटी सी आलोचना से सरकार या उसके नौकरशाही न सिर्फ तुरंत बचाव की मुद्रा में आ खड़े होते हैं बल्कि उन्हें कुर्सी खिसकने का जबरदस्त डर भी सताने लगता है। स्वस्थ आलोचना सरकार या सिस्टम को आईना दिखाती है उसकी गवर्नेंस को मजबूती देती है। लेकिन बीते कुछ सालों से यह चलन में आ गया है कि जो सरकार या उसके नुमाइंदों के खिलाफ बोलेगा उसे कुचल दिया जाएगा चाहे साम दाम या दंड ही क्यों ना अपनाना पड़े। जीरो टॉलरेंस डेमोक्रेसी के लिए घातक है। सीधी का मामला हो या फिर व्हिसल ब्लोअर डॉ. आनंद राय को हिरासत  में लिया जाना दोनों ही हालिया मामले इसी तरह की कार्रवाई का नतीजा है।

मीडिया के लिए भी आत्मघाती साबित हो रहा कट्टरवाद

सीधी की घटना सोशल मीडिया में जंगल में आग की तरह फैल गई है। वरिष्ठ पत्रकार व नेशनल जर्नलिस्ट यूनियन के कार्यकारिणी सदस्य लज्जा शंकर हरदेनिया कहते हैं कि सीधी में पत्रकार व रंगकर्मियों पर पुलिस की बर्बरता ने कहीं भीतर तक हिला दिया है। इस घटनाक्रम के पीछे विधायक, सत्ता का पावर, पुलिसिया डंडा सबने अपना-अपना काम किया है। उन्होंने कहा कुछ सालों पहले एक नियम बनाया गया था कि किसी पत्रकार को गिरफ्तार करने से पहले डीआईजी की अनुमति आवश्यक है। पता नहीं वह नियम अभी भी अस्तित्व में है या नहीं। उन्होंने कहा कि आईजेयू पुलिस की इस बर्बरता का भरपूर विरोध करती है और इसके लिए पुलिस महानिदेशक व मध्यप्रदेश शासन को पत्र लिखेंगे तथा पुरानी कानून को लागू कराने के लिए दबाव बनाएंगे, जिससे भविष्य में किसी पत्रकार को इस तरह अपमानित न होना पड़े।  

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस घटना की आलोचना की है।

लोकजतन के संपादक बादल सरोज कहते हैं कि मध्यप्रदेश के सीधी जिले में पुलिस का व्यवहार पूरी तरह गैर कानूनी था, इस मामले में प्रदेश सरकार द्वारा तिनका भर कार्यवाही सम्बंधित पुलिस वालों के विरुद्ध की गई जबकि आरोपी पुलिस वालों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए था जो अभी तक नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) लेखकों और बुद्धिजीवियों द्वारा सीधी के रंगकर्मियों व पत्रकारों के विरुद्ध की गई दुर्भावनापूर्ण, अमानवीय व आपराधिक कार्यवाही की भर्त्सना करने के साथ दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग’ करती है और माकपा पूरे मध्यप्रदेश में केवल इस घटना का ही नहीं, बल्कि अमरकंटक के आदिवासी केंद्रीय विश्वविद्यालय में सुंदरकांड और हनुमान चालीसा के नाम पर सत्ताधारी दल अपना एजेंडा आगे बढ़ाने व सागर विश्वविद्यालय की प्रावीण्य सूची में आने वाली छात्रा के किसी खाली कमरे में नमाज पढ़ने को लेकर खड़े किए जा रहे नफरती माहौल का भी पूरे प्रदेश में विरोध करेगी।

प्रख्यात रंगकर्मी नीरज कुंदेर की गिरफ्तारी और जमानती धाराओं का आरोप होने के बावजूद उन्हें जमानत का लाभ न देने के विरुद्ध शांतिपूर्ण, संवैधानिक धरने पर बैठे रंगकर्मियों व पत्रकारों को राजनीतिक इशारे में गिरफ्तार करने, कपड़े उतरवाकर लॉकअप में बंद कर उनकी पिटाई करने और उसके फोटो वीडियो वायरल कर उनके आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने जैसे घृणित, शर्मनाक, अमानवीय और आपराधिक कृत्य की मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन और प्रगतिशील लेखक संघ की उमरिया, शहडोल, अनूपपुर और सीधी की जिला इकाइयों से सम्बद्ध लेखकों और बुद्धिजीवियों ने भर्त्सना करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की है। लेखकों और बुद्धिजीवियों ने मानव अधिकार आयोग, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और उच्च न्यायालय से मामले को स्वतः संज्ञान में लेकर कार्यवाही सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।

चित्रकार व कहानीकार मनोज कुलकर्णी बताते हैं कि दरअसल यह स्वतंत्र आवाज को दबाने की नाकाम कोशिश है। इसे लेकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने के लिए सभी सामाजिक संगठन व लेखक संगठन विचार कर रहे हैं।

 प्रदेश के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री को बयान देना चाहिए  

एक बयान में विश्वप्रसिद्ध कवि व कथाकार उदय प्रकाश, गिरीश पटेल, दीपक अग्रवाल, ललित दुबे, रामनारायण पांडेय, पूर्णेन्दु कुमार सिंह, मिथिलेश रॉय, किरण सिंह शिल्पी, संतोष कुमार द्विवेदी, बाला सिंह टेकाम, शम्भू सोनी ‘पागल’, रामनिहोर तिवारी, डॉ. अनिल सिंह, शिव शंकर मिश्र ‘सरस’, सोमेश्वर सिंह, नंदलाल सिंह और सुसंस्कृति परिहार आदि ने कहा है कि पुलिस ने पत्रकारों और कलाकारों के कपड़े उतरवाकर राज्य की पुलिस व्यवस्था को ही नंगा किया है। यह तो वैसे ही हुआ कि ‘अपनी जांघ उंघारो और खुद ही लाजन मरो’ । इस घटना पर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री को बयान देना चाहिए।

बयान में कहा गया है कि पूरी दुनिया में आरोपियों के भी और अपराधियों के भी मानवाधिकार होते हैं। उनकी मानवोचित गरिमा व स्वतंत्रता को कानून से संरक्षण प्राप्त है, जबकि सीधी में पुलिस प्रताड़ना के शिकार युवा प्रतिष्ठित कलाकार और पत्रकार हैं। बावजूद इसके उनके साथ सीधी पुलिस द्वारा बर्बरता की गई। कलाकारों व पत्रकारों के विरुद्ध की गई यह पुलिसिया कार्रवाई हमारी लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है।

एडीजी सही या सीएम का फ़ैसला

इधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर थाने के पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया गया है, लेकिन सीधी मामले में रीवा के एडीजी केपी वेंकटेश्वर राव ने मीडिया के सामने कहा कि इसमें उन्हें पुलिस की कोई गलती नजर नहीं आती है। अपनी पुलिस को लेकर वे बचाव की मुद्रा में नजर आए। अपने बयान में उन्होंने सरकार और मुख्यमंत्री को भी यह जता दिया कि आपके खिलाफ लग रहे नारों पर उनकी पुलिस ने कार्रवाई की। एडीजी साहब ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

किसी को नंगा करना और उसकी तस्वीर को पब्लिक डोमेन में डालना क्या पुलिस की कार्यप्रणाली का हिस्सा है। जबकि लॉकअप में तस्वीर लेना मना है। आखिर  थाने के भीतर आकर किसने तस्वीर ली क्या थाना इतना असुरक्षित है कि कोई भी घुसकर उनकी तस्वीरें क्लिक करेगा जब आपकी पुलिस इतनी ही कानून सम्मत और दूध की धुली है तेा फिर सूबे के मुखिया ने घटना को संज्ञान में लेते हुए 11 पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर क्यों किया। पब्लिक क्या समझे एडीजी सही या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।

(लेखिका भोपाल स्थित स्वंतत्र पत्रकार हैं।)

इसे भी देखें—बीजेपी शासित एमपी और उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर ज़ुल्म क्यों ?

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