NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
मादा को ख़त्म करने पर आमादा मर्दाना समाज...!
देश की आधी आबादी असुरक्षा में जी रही है। हालात में बदलाव लाना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, वरना वो वक़्त दूर नही जब औरतें समय पर नहीं खूंटियों पर टंगी नज़र आएंगी।

नाइश हसन
07 Oct 2020
Hathras

घरों से जारी अघोषित हुक़्मनामे औरत को कमज़ोर रखने की साज़िश रचते है, और औरत की दुनिया को अपने मुताबिक तैयार करने का फरमान सुनाते है। उसमें तनिक भी हेर-फेर उस मर्दाना ज़ोम को जामें से बाहर कर देती है। वह औरत को अपने काबू से जरा भी बाहर देखना पसन्द नही करता। यही नफ़रतज़दा सोच हम बलात्कार के मामले में भी देखते है, और जब सवाल दलित या हाशिया आधारित समुदाय की महिला से बलात्कार का हो तो उसमें नफ़रत का एंगल ज़्यादा पुख़्ता तौर पर नुमाया होता है।

हाथरस बलात्कार कांड में भी ऐसा ही देखा गया। हमारे सभ्य समाज होने की सारी पोल खुल गई। सभ्यता लिबास बदल कर नही आती, उसका रिश्ता हमारी ज़ेहनियत से होता है। यूं मालूम होता है कि मादा से ऊबा हुआ समाज उसे खत्म करने पर आमादा है। एक ऐसे हिन्दुस्तान का तसव्वुर कीजिए जहां एक भी औरत नहीं होगी। वह मार डाली जाएगी, उसका बलात्कार हो जाएगा, लगता है अब पुरुष सत्ता को अपनी निगाह के सामने बेटी नहीं चाहिए वह उसके खात्में पर उतारू हो गया है। एक बेहतर समाज बनने की उम्मीद हर-पल, हर-रोज़ टूटती नजर आती है।

सन् 2012 में निर्भया आन्देालन के दौरान देश सड़कों पर था, क्या महिला क्या पुरुष, क्या नौजवान सभी बस एक आवाज़ में कह रहे थे अब बस्स!! इससे ज़्यादा ये मुल्क और बर्दाश्त नही कर सकता, जस्टिस वर्मा कमीशन की सिफारिशों ने भी उम्मीदें बढा दी थी, लेकिन उसके एक माह के अन्दर ही हमने निर्भया से भी ज्यादा दर्दनाक हादसा नोएडा में देखा था, उसके बाद अनेकों घटनाओं के हम गवाह बने। हमने जस्टिस ए.के. गांगुली, तरूण तेजपाल, आर.के. पचौरी, एम.जे. अकबर, डा. अय्यूब, चिन्मयानन्द, कुलदीप सेंगर आदि सफेदपोशों को भी देखा ऐसी फहरिस्त काफी लम्बी है। हमने हाथरस के फौरन बाद यानी कुल 20 दिन के अन्दर जब टीवी और अखबारों में हाथरस बलात्कार का ही हंगामा नजर आ रहा था ऐसे समय में भी बलरामपुर, आज़मगढ, लखनऊ, भदोही में बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के मामले देखे।

तो क्या यह महज एक सनकीपन है? क्या ये बलात्कारी दिमागी तौर पर बीमार हैं? नहीं! जब हम इसे सनकी, या बीमार कहते हैं तो एक तरफ उस अपराधी के आपराधिक इरादे के पहलू को कमजोर कर देते हैं और साथ ही हम उसकी शिकार बनी पीड़िता की तकलीफ को भी हल्का कर देते है।

यह खुद को आला और महिला को कमजोर साबित करने की ज़ेहनियत है। साथ ही क़ानून व्यवस्था के प्रति बेख़ौफ़ होना भी है। क़ानून से बेख़ौफ़ इन्सान कब होता है जब क़ानून को लागू कराने वाले बेपरवाह हों, ज़ात मज़हब में बंटे हों, हर सवाल चुनावी गणित से देखा जा रहा हो, औरत को इंसान ही न माना जा रहा हो, ऐसी स्थिति तभी सामने आती है। साथ ही जिस तरह की परवरिश हम देते है उसमें अपनी बेटी को सवाल करने की छूट नहीं होती, उस पर यक़ीन नही किया जाता, उत्पीड़न को छुपाने के लिए कहा जाता है। इन सारी बातों से बलात्कारी भी तो परिचित ही होता है। मनोवैज्ञानिक इन्हें बीमार बताते है पर सवाल है कि हर तीसरा-चौथा आदमी मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार नहीं हो सकता। अगर ऐसा है तो पूरे देश का कम से कम 80 फीसदी पुरुष बीमार ही हुआ। उसे शासन-प्रशासन, राजनीति, और बाकी काम-काज भी छोड़ देना मुनासिब होगा, औरतें एक बेहतर समाज बना सकती हैं।

हाथरस घटना के दूसरे तमाम पहलू भी काबिले गौर है जिन्हें नज़रअन्दाज नहीं किया जा सकता। पुलिस जिसे क़ानून की सबसे ज्यादा जानकारी होती है, वह पुलिस जब बलात्कार की इस घटना में वीर्य की तलाश करे और कहे कि बलात्कार नहीं हुआ क्योंकि वीर्य वहां बरामद नहीं हुआ, तो यह कभी आप को हास्यास्पद भी लग सकता है, और सीना ज़ोरी भी, या आम अवाम को गुमराह करने की एक साज़िश भी कह सकते हैं। बलात्कार की परिभाषा कहती है कि स्त्री की इच्छा के विरूद्व, उसकी सहमति के बिना, उसकी सहमति मृत्यु या चोट के भय में डाल कर प्राप्त की गई हो वह बलात्कार माना जाएगा। इस परिभाषा को सामने रखने के बाद पुलिस से दूसरा सवाल तो बनता ही है कि क्या जब तरूण तेजपाल, ए.के. गांगुली, आर.के. पचौरी, विपुल कुमार, गौरव शुक्ला, चिन्मयानन्द, डॉ. अय्यूब, कुलदीप सिंह सेंगर को पुलिस ने गिरफ्तार किया और उन्हें जेल भेजा तो क्या पुलिस वीर्य की तलाश में निकली थी? उन्हें गिरफ्तार महिला के बयान के आधार पर किया गया था न कि वीर्य के आधार पर।

दूसरी बात जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री नार्को टेस्ट की घोषणा करते है उसमें भी सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन का उल्लंघन होता है। आरोपी के साथ पीड़ित पक्ष के लोगों का भी नार्केा टेस्ट कराए जाने की बात की जाती है, जबकि महिला का मृत्यु पूर्व का बयान जिसकी क़ानून में बहुत अहमियत है पुलिस के पास पहले से मौजूद है। साथ ही गुजरे 20 दिनों में सारे सुबूत भी मिटाए जा चुके है, लड़की की लाश को पुलिस ने घर वालों को सुपुर्द न करके उसे सुपुर्द-ए-आतिश कर दिया, यह भी मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। मुख्यमंत्री अपने एक बयान में कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में महिला के खिलाफ अपराध में सजा़ का प्रतिशत 55 है और यह देश में सबसे ज्यादा है, लेकिन बाकी की 45 प्रतिशत महिलाएं क्या न्याय के लिए भटकती रहे, मुख्यमंत्री अगर यह भी आंकड़ा देते कि उत्तर प्रदेश में महिला अपराधों में प्रथम सूचना दर्ज करने का प्रतिशत कितना है, कितनी महिलाएं थाने से भगा दी जाती है, कितनों को पुलिस घर पहुंच कर धमका देती है, वह सारे आंकड़े सामने आते तो अन्य प्रदेशों से उत्तर प्रदेश की तुलना करना ज्यादा आसान होता।

यह भी देखा गया है कि जब भी ऐसी जघन्य वारदात पेश आती है सीबीआई जांच की मांग जोर-शोर से उठने लगती है, ऐसी घोषणा कई बार आम अवाम का गुस्सा ठंडा करने के काम भी आती है, माहौल को अपने पक्ष में करने के काम भी।

मैनपुरी में नवोदय विद्यालय में पढ़ने वाली छात्रा का मामला, कानपुर का संजीत यादव का कामला, जिनमें सीबीआई जांच की सिफारिश की गई थी, इसके पहले की सरकार में भी आशियाना बलात्कार कांड में भी ऐसी सिफारिश हुई थी जिसे केन्द्र सरकार ने स्वीकार तक नही किया था, और अन्जाम इतना भर रहा कि फिर कोई दूसरी संनसनी मुल्क में फैल गई और वह सारी चीखें उसी तले दब गईं, फिर उनका नामलेवा कोई न बचा। क़ानून और प्रशासनिक तिकड़म बहुत समझदारी से किए जाते हैं जो कमजोर को दबा देते हैं और ताकतवर से दब जाते हैं।

भारत ने दुनिया के मंच पर भारत की स्त्रियों की गरिमा बचाने की गारंटी ली है, 1993 में वियना में सीडॉ संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। चौथे विश्व सम्मेलन बीजिंग-1995 में भारत जिसका सदस्य था जहां लैंगिक भेदभाव व महिलाओं के प्रति होने वाली यौन हिंसा को पूरी तरह से ख़ारिज़ किया गया था।

दूसरी ओर हमारा संविधान महिला को गरिमापूर्ण जीवन जीने की गारंटी देता है। अनुच्छेद 51(ए) (ई) सामन्जस्य के बढ़ावा देना तथा औरतों की गरिमा के विरूद्व जाने वाले तौर-तरीकों का परित्याग किए जाने की बात करता है। अनुच्छेद 21 जीवन और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण देता है। महिला की गरिमा का प्रश्न गैर-पराक्राम्य (non- negotiable) है। विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) के मामले में भी न्यायालय ने यौन हिंसा के प्रश्न पर कहा था कि महिला की गरिमा पूरे विश्व में मान्य बुनियादी मानवाधिकार है। मानवाधिकार अधिनियम 1993 की धारा 2(डी) के अनुसार मानवाधिकार का अर्थ जीवन, स्वतन्त्रता, समानता और गरिमा के अधिकार से सम्बन्धित है। परन्तु अफसोस कि सरकारों का इस प्रकार का रवैया अन्तर्राष्ट्रीय संधियों, मानवाधिकार और संविधान का भी उल्लंघन है। ऐसे में सरकार को अपनी जवाबदेही स्पष्ट करना ही चाहिए, ऐसा हिन्दुस्तान बनाकर हम दुनिया के नक्शें पर विश्वगुरू तो नहीं हो सकते, हां, बलात्कारी देश जरूर बन जाएंगे। देश की आधी आबादी असुरक्षा में जी रही है। हालात में बदलाव लाना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, वरना वो वक़्त दूर नही जब औरतें समय पर नहीं खूंटियों पर टंगी नज़र आएंगी।    

 

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

 

violence against women
crimes against women
UP Hathras GangRape
Rape And Murder Case

Related Stories

हाथरस, कठुआ, खैरलांजी, कुनन पोशपोरा और...

हाथरस बनाम बलरामपुर, यूपी बनाम राजस्थान की बहस कौन खड़ी कर रहा है!

लॉकडाउन में बच्चों पर बढ़े अत्याचार के मामले हमारे सामाजिक पतन की कहानी बयां कर रहे हैं

एक अन्याय से दूसरा अन्याय दूर नहीं किया जा सकता

नज़रिया : बलात्कार महिला की नहीं पुरुष की समस्या है

मी लॉर्ड! न्याय हो गया, लेकिन होते हुए दिखा नहीं!!

न्याय बचेगा तभी बचेगी न्यायपालिका


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License