NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मिस्त्री के पत्र में भारतीय अल्पसंख्यकों के लिए छिपा है गहरा अर्थ 
हालांकि टाटा समूह के अध्यक्ष साइरस मिस्त्री ने अपने और अपने समूह के बारे में पत्र लिखा है, लेकिन उनके शब्द सभी लक्षित अल्पसंख्यक शेयरधारकों पर लागू होते हैं।
नीलांजन मुखोपाध्याय
08 Jan 2020
Translated by महेश कुमार
Mistry’s Letter Has Profound Hidden
Image Courtesy : NDTV

हालांकि साइरस मिस्त्री का महत्वपूर्ण बयान यह है कि वे "टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष या टीसीएस, टाटा टेलीसर्विसेज़ या टाटा इंडस्ट्रीज़ के निदेशक" बनने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं, यह टाटा समूह का आंतरिक मामला तो है लेकिन साथ ही  यह राष्ट्र की मौजूदा स्थिति को भी प्रतिबिंबित करता है और एक ऐसा रास्ता सुझाता है जिसका अनुसरण किया जा सकता है।

यदि कोई भारत की जगह टाटा समूह को ले आता है, और रतन टाटा कों नरेंद्र मोदी-अमित शाह के अधिकार मिल जाते हैं, और यदि कोई नागरिकों की जगह 'शेयरधारकों' की अदला-बदली कर लेता है, तो कॉर्पोरेट गवर्नेंस और कॉर्पोरेट लोकतंत्र से 'कॉर्पोरेट' शब्द निकाल दें तो  मिस्त्री के शब्दों में सरकार की ही आलोचना नज़र आएगी।

ग़ौरतलब है कि टाटा संस के अपदस्थ चेयरमैन को एनसीएलएटी ने जो ऑफ़र दिया था, उसे उन्होंने त्याग दिया, ऐसा कर अल्पसंख्यक शेयरधारकों की भावना को बुलंद किया है और  अल्पसंख्यक-धार्मिक और बुद्धिजीवियों के साथ देश में जो हो रहा है उससे कुछ अलग नहीं है। मिस्त्री ने दावा किया कि वे "टाटा समूह के हित में ही बोल रहे थे, जिनके हित किसी भी व्यक्ति विशेष के हितों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।"

वैसे ही जैसे देश में आज अल्पसंख्यक बोल रहा है, और उन कुंद किस्म के विधेयक या सरकार की कार्रवाइयाँ जैसे कि सीएए या एनआरआईसी, जम्मू-कश्मीर की स्थिति, यूएपीए में संशोधन के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहा है, या फिर रविवार को जवाहर लाल नेहरू विष्वविधालय में फेकल्टी सदस्यों और छात्रों पर अभूतपूर्व हमला हो, क्योंकि ये लोग केवल अपने लिए विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि, वे ख़ुद को जोखिम में डाल कर सार्वजनिक प्रतिरोध कर रहे हैं इस विश्वास के साथ कि वे देश में उस लोकाचार और मूल्यों की रक्षा करने के लिए लड़ रहे हैं जो देश के संविधान में स्थापित हैं।

बहुसंख्यक हमेशा उन न्यायिक या अर्ध-न्यायिक संस्थानों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, जो अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों को छीनने के उनके इरादों या प्रयासों को नाकाम करते हैं। इसी तरह, मिस्त्री ने भी कहा कि जब रतन टाटा और अन्य ने एनसीएलएटी के फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुनवाई से पहले सवाल दागा तो वे "कॉर्पोरेट लोकतंत्र की व्याख्या" कर रहे थे कि इस व्यवस्था में अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकारों के साथ क्रूर मज़ाक़ चल रहा  है।"

मिस्त्री भले ही उस समूह के बारे में बात कर रहे हैं जो उन्हें भी प्रिय है, लेकिन उनके बयान को हर भारतीय के संदर्भ में पढ़ा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनकी पार्टी के निचले दर्जे के समर्थकों तक जो मानते हैं कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रथा में अल्पसंख्यक समूहों का कोई अधिकार नहीं होगा, से कुछ अलग नहीं है। और यदि कोई उनके ख़िलाफ़ बोलता है या विरोध जताता है, तो उन्हें 'देशद्रोही' या 'राष्ट्र-विरोधी' क़रार दे दिया जाएगा, जैसा कि टाटा प्रमुख का दावा किया है कि मिस्त्री ने समूह को बदनाम किया है।

मिस्त्री ने अल्पसंख्यक समूहों द्वारा उस शक्ति और विशेषाधिकार को हासिल करने के लिए दौड़ लगाने के ख़िलाफ़ तर्क दिया है जो उनके पास कभी तुष्टिकरण के माध्यम थे। बल्कि उन्होंने कहा कि बजाय इसके कि सांकेतिक पदों को स्वीकार किया जाए, उन्हें "शासन और पारदर्शिता" के "उच्चतम मानकों" के पालन के लिए बहुमत पर दबाव बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।

न्यायपालिका द्वारा पेश की गई छोटी सी राहत के लिए समझौता करने के बजाय, हम सबका उद्देश्य संविधान में निहित अधिकारों को हासिल करना और राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में समान भागीदारी का होना चाहिए। जैसा कि मिस्त्री ने तर्क दिया कि, अल्पसंख्यकों की दीर्घकालिक रणनीति "अल्पसंख्यक शेयरधारक के रूप में अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सभी विकल्पों का सख़्ती से पालन करने" के लिए होनी चाहिए।

मिस्त्री का यह कहना भी सही था कि कॉर्पोरेट दिग्गजों के भीतर क़ानूनी विवाद या तो "अल्पसंख्यक शेयरधारकों के ख़िलाफ़ बहुसंख्यक की दमनकारी कार्रवाइयाँ हैं या फिर वे  न्यायिक निगरानी से बाहर और तिरस्कार की रणनीति का हिस्सा हैं।"

भारतीय न्यायपालिका ने हाल के दिनों में अल्पसंख्यक को पर्याप्त कारण दिए हैं कि वे यह मानने लगे कि बहुसंख्यकों के अत्याचारी कांड अब न्यायिक फटकार या जांच से परे होते जा रहे हैं और यहाँ यदि अल्पसंख्यकों के अधिकारों और जीवन को समाप्त कर भी दिया जाए, तो अदालतें आंखें मूंद सकती हैं।

यद्यपि टाटा समूह के बीते युग के बारे में मिस्त्री का बोलना देश के लिए भी सही है, जब "टाटा समूह के संस्थापकों ने एक मज़बूत नैतिक नींव रखी थी जो सभी हितधारकों की देखभाल का एहसास दिलाती थी।"

कंपनी और अल्पसंख्यक के बीच संबंध, यहां तक कि राष्ट्र के मामले में भी, "सामान्य समझौते और आपसी विश्वास पर निर्मित था।" और, पहले के "टाटा के नेताओं (राष्ट्रीय संदर्भ में प्रीमियर पढ़ें) ने सभी हितधारकों के लिए मूल्य कों बनाने के लिए सभी अल्पसंख्यक के साथ मिलकर काम किया था।"

मिस्त्री ने याद दिलाया कि कंपनी क़ानून लोकतांत्रिक राष्ट्रों के भीतर "अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा और कॉर्पोरेट प्रशासन को मज़बूत करने के लिए विकसित किया गया है।" इसी तरह, भारत जैसे लोकतंत्र में शासन को हाशिए पर पड़े लोगों की आकांक्षाओं और विचारों को समायोजित करके साथ चलना चाहिए।

वैसे भी कंपनी अधिनियम, 2013 "बहुसंख्यक शेयरधारकों के दमनकारी आचरण से अल्पसंख्यक शेयरधारकों को दी गई वैधानिक सुरक्षा को काफ़ी मज़बूत बनाता है।" इस तरह भारतीय संविधान और मौजूदा क़ानून भी सामाजिक अल्पसंख्यकों और असहमतिपूर्ण आवाज़ों को सुरक्षा  प्रदान करते हैं और कोई कारण नहीं है कि इनका उल्लंघन होने पर इस बारे में राज्य से सवाल क्यों नहीं किया जा सकता है। टाटा समूह के बारे में मिस्त्री का दृष्टिकोण राष्ट्र के मामले में भी सटीक है: "कॉर्पोरेट लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए, सभी हितधारकों को क़ानून के दायरे में और वैधानिक रूप से सुनिश्चित सुरक्षा के साथ काम करना चाहिए।"

मिस्त्री के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में, "आचरण में और बड़े पैमाने पर दुनिया के सामने उनके अपने बयानों में, टाटा समूह के नेतृत्व ने अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकारों के मामले में तुच्छता से भरा व्यवहार किया है।"

हालांकि, देश के लिए यह नया काला युग है जिसकी शुरुआत 2014 की गर्मियों से हुई है। यह युग मई 2019 में और अधिक गहरा हो गया।

मिस्त्री टाटा के भीतर 18.37 प्रतिशत शेयर के शेयरधारक हैं। इस आंकड़े में एक अलौकिक भारतीय समानता मिलती है: 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम और ईसाई कुल भारतीय आबादी का 16.5 प्रतिशत हैं। लेकिन, वे ही देश के एकमात्र लक्षित अल्पसंख्यक नहीं हैं और उनकी संख्या शापूरजी पल्लोनजी समूह की तुलना में बहुत अधिक है जो कि कॉर्पोरेट दिग्गजों के भीतर मौजूद है। फिर भी, भारत में निशाने पर लोग अभी भी अल्पमत से हैं।

लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यक को यह पता होना चाहिए कि “समूह की” (यहाँ देश की पढ़ें) दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करना हमारे हित में है। बड़े ही मार्मिक अंदाज़ में, मिस्त्री ने लिखा: "मेरा परिवार, हालांकि एक अल्पसंख्यक है, लेकिन पिछले कई दशकों से टाटा समूह का संरक्षक रहा है।"

भारत की बहुलतावादी विशेषता कों उन लाखों मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यकों के आधार पर तैयार किया गया है- जिन्होंने विभाजन के समय सीमा के इस 'पार' रहना चुना था। जो लोग बहुसंख्यक समुदाय से थे उन्होंने मुसलमानों को कभी भी इस बात का पछतावा नहीं होने दिया,  यहाँ तक कि एक पल के लिए भी नहीं, फिर से 1947-48 में उनकी पूर्व की पीढ़ियों द्वारा लिए गए फ़ैसले को कांधा देने की ज़रूरत है चाहे फिर उसे तसल्ली देने वाला ही क्यों न माना जाए।

मिस्त्री ने कहा कि लड़ाई कभी भी मेरे अपने बारे में नहीं थी। यह हमेशा अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा की और शेयरधारकों को नियंत्रित करने के बजाय कॉर्पोरेट प्रशासन के उच्च मानक की मांग थी ताकि उनके अधिकार को बरक़रार रखा जा सके।"

साइरस मिस्त्री ने टाटा समूह के भीतर अपने और अपने समूह के बारे में लिखा हो सकता है। लेकिन साथ ही उन्होंने भारत में हाशिए पर और लक्षित लोगों की बात भी की है। सरकार अनुमान लगा रही होगी कि टाटा समूह के भीतर का विवाद कॉर्पोरेट जगत का आंतरिक मामला है। लेकिन मिस्त्री का हर एक शब्द आज के आतंकित अल्पसंख्यक के लिए गहरा अर्थ रखता है।

लेखक दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक द आरएसएस: आइकन्स ऑफ़ द इंडियन राइट है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक  पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Shapoorji Pallonji Group
Cyrus Mistry
Minority stakeholders
minority rights
Corporate governance
Governance
Ratan Tata
India persecution

Related Stories

भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पतन 

हड़तालों के सिलसिले में आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक आईएलओ नीति का उल्लंघन

जम्मू-कश्मीर: मनमानी करने वाली युवा आईएएस से स्थानीय लोग नाराज़

भारत का लोकतंत्र उतना ही मज़बूत होगा, जितना इसके संस्थान ताक़तवर होंगे

गृह मंत्रालय के आदेश ने नागरिकता पर बहस को फिर हवा दी

केंद्र की पीएमजेवीके स्कीम अल्पसंख्यक-कल्याण के वादे पर खरी नहीं उतरी

कोविड-19: संवैधानिक सबक़ और शासन व्यवस्था

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव : भाजपा का बदतर प्रदर्शन 

जम्मू और कश्मीर में पीने के पानी में कीटनाशक भरते ज़हर 

महामारी की दूसरी लहर को संभालो, जनता के स्वास्थ्य और आजीविका को बचाओ!


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License