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नौकरी गंवाने वालों को राहत देने वाली योजना का माखौल बनाती मोदी सरकार
सरकार ने नौकरी गंवा चुके लोगों को आर्थिक सुरक्षा मुहैया करवाने के लिए अटल बीमित कल्याण योजना की शुरुआत की थी। साल 2019 में ऐसे10 लाख लोगों ने अपनी नौकरी गँवा दी, जो इस योजना से लाभ ले सकते थे। लेकिन हैरत की बात है कि अभी तक केवल 58 लोगों को इस योजना का लाभ मिला है।
बी सिवरमन, कुमुदिनी पति
02 Dec 2019
unemployment

शहरी भारत में लोग 1 माह में 26 लाख नौकरियां गवां बैठे। सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकाॅनमी के एक सर्वे के अनुसार जून 2019 में 12 करोड़ 87 लाख नौकरियों में से जुलाई में 12 करोड़ 61 लाख नौकरियां बचीं। एक महीने में इतनी भारी संख्या में नौकरियों का जाना पूरी तरह आर्थिक मंदी के कारण हुआ।

10 लाख नौकरियां तो केवल ऑटोमोबाइल सेक्टर में गईं। कर्नाटक लघु उद्योग ऐसोसिएशन के अध्यक्ष आर राजू का कहना है कि लघु व मध्यम उद्यमों में से 30 प्रतिशत मंदी की वजह से बन्द हो चुके हैं, जिसके कारण 5 लाख नौकरियां जा चुकी हैं। आप कह सकते हैं कि आर्थिक मंदी का सबसे कष्टप्रद सामाजिक प्रभाव रहा है, नौकरियों का जाना।

ज़ाहिर है ऐसे रोज़गार संकट के कारण राज्य सभा में हंगामा मचा। न केवल विपक्ष की ओर से बल्कि भाजपा के सदस्यों और उनके सहयोगी दलों से भी; उन्होंने आक्रोशित होकर सवाल उठाया कि सरकार कुछ करती क्यों नहीं? सफाई में मंत्री पीयूष गोयल बोले कि काॅरपोरेट घरानों को 1.4 लाख करोड़ की कर्ज़-माफी दी गई है, जैसे कि काॅरपोरेट्स को दिये इस तोहफे से श्रमिकों की जीविका का संकट टल जाएगा। विपक्ष ने मांग की कि कोई ऐसी योजना जारी की जाए जो प्रभावित श्रमिकों को सीधे लाभ पहुंचाए।

दरअसल 2018 में ही सरकार ने एक स्कीम घोषित की थी, जिसका नाम है अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना। इसका क्रियान्वयन ई एस आई सी के माध्यम से होना था। यह स्कीम अंतिम प्राप्त वेतन (यानि नौकरी जाने से पूर्व आखिरी 3 महीनों में प्राप्त वेतन का औसत) का 25 प्रतिशत किसी भी नौकरी गंवाए हुए श्रमिक को 2 वर्षों तक देगी। इसके मायने हैं यह बेरोज़गारी भत्ता 6 माह के वेतन के बराबर होगा और 24 माह की अवधि में दिया जाएगा। पर यह स्कीम केवल ईएसआई कार्ड धारकों के लिए है।

जबकि आर्थिक मंदी के कारण 20 लाख से अधिक श्रमिक नौकरी से हाथ धो बैठे हैं, यदि हम अनौपचारिक श्रमिकों को छोड़ भी दें, तो करीब 10 लाख ई एस आई कार्ड धारकों ने 2019 में ही अपनी नौकरियां गंवाई होंगी। पर इस योजना से कितनों का भला हुआ? हैरत की बात है कि यह संख्या मात्र 58 है! 10 लाख में केवल 58!

नवम्बर 25, 2019 को सरकार की अपनी प्रेस एजेन्सी, प्रेस इन्फाॅरमेशन ब्यूरो ने राज्य-वार आंकड़े दिये हैं कि कितने लाभार्थी इस स्कीम से फायदा ले सके। ये आंकड़े लोक सभा में उठाए गए प्रश्न के उत्तर में श्री संतोष गंग्वार द्वारा दिये गये। आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा में, जहां गंड़गांव-मनेसर में ही एक लाख श्रमिक नौकरियां गंवा चुके हैं, केवल 1 कर्मचारी को योजना से लाभ मिला, महाराष्ट्र के भिवंडी में जबकि 2 लाख श्रमिक इस साल बेरोज़गार हुए, केवल 2 श्रमिकों को स्कीम से भत्ता मिला। कर्नाटक में, जहां 10,000 आई टी वर्कर अपनी नौकरियां खो चुके हैं, केवल 1 कर्मी को स्कीम से लाभ मिला। सबसे भयावह स्थिति तो तमिल नाडू की है, जहां 70,000 ऑटोमोबाइल कर्मचारी चेन्नई और आस-पास के क्षेत्र में, जिसे भारत का डेट्राॅय कहते हैं, बेरोज़गार हुए हैं, और कपड़ा उद्योग में 1 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं। यहां स्कीम के अंतरगत 1 व्यक्ति को राहत मिली है।

यदि एक सरकारी योजना को लागू करने के मामले में स्थिति इतनी हास्यास्पद है, जबकि योजना को बनाया ही इसलिए गया है कि लोग आज की भयानक बेरोज़गारी के सामाजिक प्रभाव से निजात पा सके, तो लगता है इस स्कीम में ही कुछ खोट है!

स्कीम को लागू करने के मामले में इस कदर लापरवाही 1 साल तक कैसे हुई? जब न्यूज़क्लिक की ओर से एक वाम ट्रेड यूनियन के भूतपूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कुमारस्वामी से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ‘‘पिछले लोक सभा चुनाव से पहले जल्दबाज़ी में इस स्कीम की घोषणा इसलिए की गई थी कि भारी संख्या में नौकरियों का जाना चुनाव अभियान का एक प्रमुख मुद्दा बन गया था और वोटों को प्रभावित कर रहा था। चुनाव के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और जानबूझकर इसे प्रचारित भी नहीं किया गया।’’

उन्होंने कहा कि ‘‘श्रमिकों की बात तो दूर, यहां तक कि कई केंद्रीय ट्रेड यूनियन नेता भी योजना के बारे में अनभिज्ञ हैं।’’ उनका कहना था कि ‘‘लाखों श्रमिकों की आजीविका के सवाल को हल करने के लिहाज से यह योजना एक अच्छी शुरुआत है पर यह अपने मूल डिज़ाइन में गड़बड़ है, क्योंकि यह ‘‘एक्सक्लूज़नरी’’ है। दसियों लाख ‘गिग वर्कर’, यानि ई-कॉमर्स कम्पनियों में काम कर रहे डिलिवरी बाॅयज़ और गर्ल्स के पास ई एस आई कार्ड नहीं हैं, जबकि यह बहुत बड़ा उद्योग है।

दूसरी ओर सरकार का प्रस्ताव है कि कर्मचारियों को ई एस आई की जगह प्राईवेट स्वास्थ्य बीमा का विकल्प दिया जाएगा और ई एस आई तब ऐच्छिक योजना रहेगी। जो कर्मचारी प्राईवेट स्वास्थ्य बीमा लेंगे,उन्हें अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना के लाभार्थी नहीं माना जाएगा। स्कीम की शर्तों में यह भी लिखा है कि जिन श्रमिकों ने 2 वर्षों तक ई एस आई का प्रीमियम भरा है वे ही लाभ के हकदार होंगे, तो इस वजह से कई श्रमिक छूट जाएंगे।’’

वैसे भी ई एस आई गैर-कृषि कार्यशक्ति के 10 प्रतिशत से भी कम श्रमिकों को कवर करता है और जबकि 2017 में मोदी सरकार ने इसका विस्तार करने की घोषणा की थी, वह पीछे हट गई। आई टी वर्कर्स यूनियन एफ आई टी ई की सुश्री परिमला ने बताया कि ‘‘सरकार ने अनौपचारिक क्षेत्र के उन कर्मचारियों के लिए कुछ नहीं किया, जो नौकरी गंवा चुके हैं, जबकि इन्हें सबसे अधिक मदद की ज़रूरत है। आई टी वर्कर और अन्य सर्विस सेक्टर कर्मचारी, जैसे दुकानदार ई एस आई के लाभार्थी नहीं हैं, जबकि वे इस लाभ के हकदार हैं। 21,000 रु प्रति माह कमाने वाले ब्लू-काॅलर श्रमिकों को भी इस स्कीम के दायरे से बाहर रखा गया है।’’

श्री कुमारस्वामी कहते हैं कि ‘‘यह स्कीम ‘टू लिट्ल, टू लेट’ है; एक औद्योगिक कर्मचारी भारत में औसतन 11,551रु मासिक कमाता है, तब क्या कोई परिवार 3000 रु प्रति माह पर जीवित रह सकता है? नौकरी खोने पर उसे कम-से-कम आखिरी वेतन का 50 प्रतिशत् हिस्सा मिलना चाहिये। यह उसे 3 साल तक दिया जाना चाहिये, क्योंकि नौकरियां मंदी के कारण जा रही हैं; तो नई नौकरी पाना ऐसे दौर में कठिन ही होगा।’’ सीटू के प्रमुख नेता श्री इलंगोवन रामालिंगम ने कहा कि उनकी यूनियन इस स्कीम के बारे में चेतना पैदा करेगी और उसे लागू करने के लिए लड़ेगी।चेन्नई में होने वाले उनके राष्ट्रीय सम्मेलन का एक प्रमुख ऐजेन्डा होगा इस स्कीम को बेहतर बनाना और लागू करवाना।

ई एस आई के एक बड़े अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि पहले साल में इसे लागू करने के मामले में इतनी बुरी स्थिति इसलिए थी कि श्रमिकों को आधार लिंकेज के बारे में जानकारी नहीं थी, जो कि पूर्वशर्त है। दूसरी शर्त थी कि श्रमिक के आधार से जुड़े बैंक अकाउंट में पैसा सीधे पहुंचेगा, पर विडम्बना है कि अकाउंट में पैसा हस्तांतरित करने हेतु स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ समझौता ज्ञापन को 3 सितम्बर 2019 को पूरा किया जाता है!

ई एस आई सी अधिकारियों की इस लापरवाही को माफ नहीं किया जा सकता। इलंगोवन ने कहा कि योजना के बारे में जानकारी और उन्हें प्रचारित करने वाले श्रम मंत्री के भाषण लगातार प्रेस इंफाॅरमेशन ब्यूरो के साइट पर छप रहे हैं पर मीडिया ने इसे प्रसारित नहीं किया, न ही ट्रेड यूनियनों ने श्रमिकों को स्कीम के बारे में आगाह किया। अब भी इस काम को पूरा करने का मौका है!

ई एस आई सी स्कीम के बारे में इस सर्कुलर से जानेंः-

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