NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
नौकरी गंवाने वालों को राहत देने वाली योजना का माखौल बनाती मोदी सरकार
सरकार ने नौकरी गंवा चुके लोगों को आर्थिक सुरक्षा मुहैया करवाने के लिए अटल बीमित कल्याण योजना की शुरुआत की थी। साल 2019 में ऐसे10 लाख लोगों ने अपनी नौकरी गँवा दी, जो इस योजना से लाभ ले सकते थे। लेकिन हैरत की बात है कि अभी तक केवल 58 लोगों को इस योजना का लाभ मिला है।
बी सिवरमन, कुमुदिनी पति
02 Dec 2019
unemployment

शहरी भारत में लोग 1 माह में 26 लाख नौकरियां गवां बैठे। सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकाॅनमी के एक सर्वे के अनुसार जून 2019 में 12 करोड़ 87 लाख नौकरियों में से जुलाई में 12 करोड़ 61 लाख नौकरियां बचीं। एक महीने में इतनी भारी संख्या में नौकरियों का जाना पूरी तरह आर्थिक मंदी के कारण हुआ।

10 लाख नौकरियां तो केवल ऑटोमोबाइल सेक्टर में गईं। कर्नाटक लघु उद्योग ऐसोसिएशन के अध्यक्ष आर राजू का कहना है कि लघु व मध्यम उद्यमों में से 30 प्रतिशत मंदी की वजह से बन्द हो चुके हैं, जिसके कारण 5 लाख नौकरियां जा चुकी हैं। आप कह सकते हैं कि आर्थिक मंदी का सबसे कष्टप्रद सामाजिक प्रभाव रहा है, नौकरियों का जाना।

ज़ाहिर है ऐसे रोज़गार संकट के कारण राज्य सभा में हंगामा मचा। न केवल विपक्ष की ओर से बल्कि भाजपा के सदस्यों और उनके सहयोगी दलों से भी; उन्होंने आक्रोशित होकर सवाल उठाया कि सरकार कुछ करती क्यों नहीं? सफाई में मंत्री पीयूष गोयल बोले कि काॅरपोरेट घरानों को 1.4 लाख करोड़ की कर्ज़-माफी दी गई है, जैसे कि काॅरपोरेट्स को दिये इस तोहफे से श्रमिकों की जीविका का संकट टल जाएगा। विपक्ष ने मांग की कि कोई ऐसी योजना जारी की जाए जो प्रभावित श्रमिकों को सीधे लाभ पहुंचाए।

दरअसल 2018 में ही सरकार ने एक स्कीम घोषित की थी, जिसका नाम है अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना। इसका क्रियान्वयन ई एस आई सी के माध्यम से होना था। यह स्कीम अंतिम प्राप्त वेतन (यानि नौकरी जाने से पूर्व आखिरी 3 महीनों में प्राप्त वेतन का औसत) का 25 प्रतिशत किसी भी नौकरी गंवाए हुए श्रमिक को 2 वर्षों तक देगी। इसके मायने हैं यह बेरोज़गारी भत्ता 6 माह के वेतन के बराबर होगा और 24 माह की अवधि में दिया जाएगा। पर यह स्कीम केवल ईएसआई कार्ड धारकों के लिए है।

जबकि आर्थिक मंदी के कारण 20 लाख से अधिक श्रमिक नौकरी से हाथ धो बैठे हैं, यदि हम अनौपचारिक श्रमिकों को छोड़ भी दें, तो करीब 10 लाख ई एस आई कार्ड धारकों ने 2019 में ही अपनी नौकरियां गंवाई होंगी। पर इस योजना से कितनों का भला हुआ? हैरत की बात है कि यह संख्या मात्र 58 है! 10 लाख में केवल 58!

नवम्बर 25, 2019 को सरकार की अपनी प्रेस एजेन्सी, प्रेस इन्फाॅरमेशन ब्यूरो ने राज्य-वार आंकड़े दिये हैं कि कितने लाभार्थी इस स्कीम से फायदा ले सके। ये आंकड़े लोक सभा में उठाए गए प्रश्न के उत्तर में श्री संतोष गंग्वार द्वारा दिये गये। आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा में, जहां गंड़गांव-मनेसर में ही एक लाख श्रमिक नौकरियां गंवा चुके हैं, केवल 1 कर्मचारी को योजना से लाभ मिला, महाराष्ट्र के भिवंडी में जबकि 2 लाख श्रमिक इस साल बेरोज़गार हुए, केवल 2 श्रमिकों को स्कीम से भत्ता मिला। कर्नाटक में, जहां 10,000 आई टी वर्कर अपनी नौकरियां खो चुके हैं, केवल 1 कर्मी को स्कीम से लाभ मिला। सबसे भयावह स्थिति तो तमिल नाडू की है, जहां 70,000 ऑटोमोबाइल कर्मचारी चेन्नई और आस-पास के क्षेत्र में, जिसे भारत का डेट्राॅय कहते हैं, बेरोज़गार हुए हैं, और कपड़ा उद्योग में 1 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं। यहां स्कीम के अंतरगत 1 व्यक्ति को राहत मिली है।

यदि एक सरकारी योजना को लागू करने के मामले में स्थिति इतनी हास्यास्पद है, जबकि योजना को बनाया ही इसलिए गया है कि लोग आज की भयानक बेरोज़गारी के सामाजिक प्रभाव से निजात पा सके, तो लगता है इस स्कीम में ही कुछ खोट है!

स्कीम को लागू करने के मामले में इस कदर लापरवाही 1 साल तक कैसे हुई? जब न्यूज़क्लिक की ओर से एक वाम ट्रेड यूनियन के भूतपूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कुमारस्वामी से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ‘‘पिछले लोक सभा चुनाव से पहले जल्दबाज़ी में इस स्कीम की घोषणा इसलिए की गई थी कि भारी संख्या में नौकरियों का जाना चुनाव अभियान का एक प्रमुख मुद्दा बन गया था और वोटों को प्रभावित कर रहा था। चुनाव के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और जानबूझकर इसे प्रचारित भी नहीं किया गया।’’

उन्होंने कहा कि ‘‘श्रमिकों की बात तो दूर, यहां तक कि कई केंद्रीय ट्रेड यूनियन नेता भी योजना के बारे में अनभिज्ञ हैं।’’ उनका कहना था कि ‘‘लाखों श्रमिकों की आजीविका के सवाल को हल करने के लिहाज से यह योजना एक अच्छी शुरुआत है पर यह अपने मूल डिज़ाइन में गड़बड़ है, क्योंकि यह ‘‘एक्सक्लूज़नरी’’ है। दसियों लाख ‘गिग वर्कर’, यानि ई-कॉमर्स कम्पनियों में काम कर रहे डिलिवरी बाॅयज़ और गर्ल्स के पास ई एस आई कार्ड नहीं हैं, जबकि यह बहुत बड़ा उद्योग है।

दूसरी ओर सरकार का प्रस्ताव है कि कर्मचारियों को ई एस आई की जगह प्राईवेट स्वास्थ्य बीमा का विकल्प दिया जाएगा और ई एस आई तब ऐच्छिक योजना रहेगी। जो कर्मचारी प्राईवेट स्वास्थ्य बीमा लेंगे,उन्हें अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना के लाभार्थी नहीं माना जाएगा। स्कीम की शर्तों में यह भी लिखा है कि जिन श्रमिकों ने 2 वर्षों तक ई एस आई का प्रीमियम भरा है वे ही लाभ के हकदार होंगे, तो इस वजह से कई श्रमिक छूट जाएंगे।’’

वैसे भी ई एस आई गैर-कृषि कार्यशक्ति के 10 प्रतिशत से भी कम श्रमिकों को कवर करता है और जबकि 2017 में मोदी सरकार ने इसका विस्तार करने की घोषणा की थी, वह पीछे हट गई। आई टी वर्कर्स यूनियन एफ आई टी ई की सुश्री परिमला ने बताया कि ‘‘सरकार ने अनौपचारिक क्षेत्र के उन कर्मचारियों के लिए कुछ नहीं किया, जो नौकरी गंवा चुके हैं, जबकि इन्हें सबसे अधिक मदद की ज़रूरत है। आई टी वर्कर और अन्य सर्विस सेक्टर कर्मचारी, जैसे दुकानदार ई एस आई के लाभार्थी नहीं हैं, जबकि वे इस लाभ के हकदार हैं। 21,000 रु प्रति माह कमाने वाले ब्लू-काॅलर श्रमिकों को भी इस स्कीम के दायरे से बाहर रखा गया है।’’

श्री कुमारस्वामी कहते हैं कि ‘‘यह स्कीम ‘टू लिट्ल, टू लेट’ है; एक औद्योगिक कर्मचारी भारत में औसतन 11,551रु मासिक कमाता है, तब क्या कोई परिवार 3000 रु प्रति माह पर जीवित रह सकता है? नौकरी खोने पर उसे कम-से-कम आखिरी वेतन का 50 प्रतिशत् हिस्सा मिलना चाहिये। यह उसे 3 साल तक दिया जाना चाहिये, क्योंकि नौकरियां मंदी के कारण जा रही हैं; तो नई नौकरी पाना ऐसे दौर में कठिन ही होगा।’’ सीटू के प्रमुख नेता श्री इलंगोवन रामालिंगम ने कहा कि उनकी यूनियन इस स्कीम के बारे में चेतना पैदा करेगी और उसे लागू करने के लिए लड़ेगी।चेन्नई में होने वाले उनके राष्ट्रीय सम्मेलन का एक प्रमुख ऐजेन्डा होगा इस स्कीम को बेहतर बनाना और लागू करवाना।

ई एस आई के एक बड़े अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि पहले साल में इसे लागू करने के मामले में इतनी बुरी स्थिति इसलिए थी कि श्रमिकों को आधार लिंकेज के बारे में जानकारी नहीं थी, जो कि पूर्वशर्त है। दूसरी शर्त थी कि श्रमिक के आधार से जुड़े बैंक अकाउंट में पैसा सीधे पहुंचेगा, पर विडम्बना है कि अकाउंट में पैसा हस्तांतरित करने हेतु स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ समझौता ज्ञापन को 3 सितम्बर 2019 को पूरा किया जाता है!

ई एस आई सी अधिकारियों की इस लापरवाही को माफ नहीं किया जा सकता। इलंगोवन ने कहा कि योजना के बारे में जानकारी और उन्हें प्रचारित करने वाले श्रम मंत्री के भाषण लगातार प्रेस इंफाॅरमेशन ब्यूरो के साइट पर छप रहे हैं पर मीडिया ने इसे प्रसारित नहीं किया, न ही ट्रेड यूनियनों ने श्रमिकों को स्कीम के बारे में आगाह किया। अब भी इस काम को पूरा करने का मौका है!

ई एस आई सी स्कीम के बारे में इस सर्कुलर से जानेंः-

UNEMPLOYMENT IN INDIA
modi sarkar
Unemployment in Modi era
अटल बीमित कल्याण योजना
Center for Monitoring Indian Economy
automobile sector
economic crises
Economic Recession
बेरोज़गार श्रमिकों
Nirmala Sitharaman
BJP

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान
    24 May 2022
    वामदलों ने आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों और बेरज़गारी के विरोध में 25 मई यानी कल से 31 मई तक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आह्वान किया है।
  • सबरंग इंडिया
    UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध
    24 May 2022
    संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत ने दावा किया है कि देश में 10 करोड़ से ज्यादा आदिवासी और दूसरे समुदायों के मिलाकर कुल क़रीब 30 करोड़ लोग किसी ना किसी तरह से भोजन, जीविका और आय के लिए जंगलों पर आश्रित…
  • प्रबीर पुरकायस्थ
    कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक
    24 May 2022
    भारत की साख के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 सदस्य देशों में अकेला ऐसा देश है, जिसने इस विश्व संगठन की रिपोर्ट को ठुकराया है।
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी मस्जिद की परछाई देश की राजनीति पर लगातार रहेगी?
    23 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ज्ञानवापी मस्जिद और उससे जुड़े मुगल साम्राज्य के छठे सम्राट औरंगज़ेब के इतिहास पर चर्चा कर रहे हैं|
  • सोनिया यादव
    तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?
    23 May 2022
    पुलिस पर एनकाउंटर के बहाने अक्सर मानवाधिकार-आरटीआई कार्यकर्ताओं को मारने के आरोप लगते रहे हैं। एनकाउंटर के विरोध करने वालों का तर्क है कि जो भी सत्ता या प्रशासन की विचारधारा से मेल नहीं खाता, उन्हें…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License