NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
नई नस्ल के राजनेताओं को क़ानून तोड़ने में मज़ा आता है
विश्व के राजनीतिक नेताओं की नई नस्ल को न केवल क़ानून को तोड़ने की चाहत है, बल्कि इसे तोड़ने में उन्हें मज़ा भी आता है।
शकुंतला राव 
15 Feb 2020
Translated by महेश कुमार
My Way or a Road-Block
Image Courtesy : Boing Boing

हालांकि फ़ासीवाद के उदय को शायद वर्तमान हालात की व्याख्या करने के लिए काफ़ी दोहराया जा चुका है और वह अपर्याप्त भी है, यहाँ परेशान करने वाली चीज़ की तरफ़ इशारा करना आवश्यक है: विश्व के राजनीतिक नेताओं की नई नस्ल में न केवल क़ानून को तोड़ने की चाहत है, बल्कि इसे तोड़ने में उन्हें मज़ा भी आता है। वे अपनी इस शत्रुता के मामले में कोई पछतावा नहीं दिखाते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका की सीनेट द्वारा बरी किए जाने के बाद एक घंटे के भाषण में, ट्रंप के बरी होने पर नहीं था, जो संबंधित नागरिकों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए था, बल्कि उसका वह तरीक़ा था जिसके ज़रिये उन्होंने महाभियोग प्रक्रिया के बारे में बात की थी - संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में ऐसा क्लॉज़  निहित है और जिसका उपयोग डेमोक्रेटस ने "सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास के लिए" किया था, लेकिन देखा यह गया कि ट्रंप को अपने उन कृत्यों के बारे में कोई पछतावा नहीं था जिन्होंने डेमोक्रेट्स को महाभियोग की कार्यवाही करने के लिए मजबूर किया था।

शायद इसका सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि राष्ट्रपति बारी होने के बाद इस तरह का भाषण को देने के लिए काफ़ी जोश महसूस कर रहे थे – जो बदले की भावना की कोरी लफ्फाजी से भरा था- अपने आप में एक बुरा लक्षण है। इसलिए अगर कोई यह उम्मीद कर रहा था कि महाभियोग की प्रक्रिया से गुजरने और उन्हे उनके पद से हटाने के लिए हासिल वोट से ट्रंप को झटका लगेगा, तो उनका जीत से भरा भाषण किसी के भी संदेह को खत्म करने के लिए काफी होना चाहिए। वास्तव में, मामला इसके विपरीत दिखाई देता है। इससे न केवल ट्रंप का होंसला बढ़ा, बल्कि क़ानून का निज़ाम कितना विवश है, का भी संकेत मिला कि वे इस तरह के सभी क़ानूनों को दोबारा से अपने चुनाव के अभियान का एक विषय बना देंगे।

ट्रंप इसमें अकेले नहीं 

फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने डींग हाँकते हुए कहा कि वे अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर उन लोगों पर गोली दागेंगे जिन पर भी उन्हें गिरोह के सदस्य या अपराधी होने का संदेह होगा। एक राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने वास्तव में, फिलिपिनो पुलिस बल को एक ‘मृत्यु दस्ते’ में बदल दिया, जो उन्हें उन लोगों की हत्या करने के लिए सशक्त बनाता है, जिन्हें वे ड्रग अपराधों में शामिल मानते हैं। अप्रत्याशित रूप से, इस निरंकुश लाइसेंस के कारण वामपंथी राजनीतिक विरोधियों, यूनियन के नेताओं और शिक्षकों की हत्याएं हुई हैं।

यहां तक कि जब वह ड्रग व्यापार में शामिल संदिग्धों लोगों की हत्या करने की सराहना करता है, तो डुटर्टे मज़ाक में कहते हैं कि वे बैठक में खुद को जगाए रखने के लिए अवैध ड्रग्स लेते हैं। विरोधियों को जेल में डाल दिया जाता है, न्यायाधीशों को निकाल दिया जाता है, और पत्रकारों को आरोपों लगाकर जेल में डाल दिया जाता है और ऐसा कर डुटर्टे इन कामों को हास्य और उल्लास के साथ जनता के सामने पेश कराते हैं।

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर लगे कई भ्रष्टाचार के आरापों के बाद, उन्होंने "बाहरी हितों" के खिलाफ मुखर और सार्वजनिक रूप से भाषण पर भाषण दिए। एक मामले में तो नेतन्याहू पर लोकप्रिय इज़रायली टैब्लॉइड के प्रकाशक, अर्नोन मोजेज़ को पेशकश करने का संदेह था, जो सकारात्मक कवरेज के बदले अनुचित लाभ देने की एक विस्तृत श्रृंखला के बारे में है।

दूसरे केस में उन्हे "केस 1000" करार दिया गया था, उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने कई प्रमुख मित्रों की मदद की और इसमें हॉलीवुड निर्माता अरोन मिल्चन और ऑस्ट्रेलियाई व्यापारी जेम्स पैकर भी शामिल हैं, उनसे क्यूबा सिगार, फ्रेंच शैंपेन और हजारों डॉलर के अन्य उपहारों के बदले उनकी मदद की। बिना किसी की परवाह किए हुए नेतन्याहू ने अपने खिलाफ साजिश रचने के लिए इजरायल के अटॉर्नी जनरल अविचाई मंडेलब्लिट के खिलाफ हमला बोल दिया और मांग की कि "जांचकर्ताओं की जांच हो" और कहा कि उन्हे दोषी करार देने के लिए "जांच गलत ढंग से की गई" है।

हंगरी के दक्षिणपंथी लोकप्रिय राष्ट्रपति, विक्टर ओरबान, क़ानून के शासन को प्रभावित करने के लिए अपने खास तरीके के आकर्षक वाक्यांश को लेकर आए हैं: उनका मतलब ईसाई लोकतंत्र से है। 2014 में अपने एक भाषण में, उन्होंने पहली बार उदारवाद की विफलताओं को गिनाया और कहा कि इसने अल्पसंख्यकों को जरूरत से अधिक दिया है; उदारवाद के बजाय उन्होंने ईसाई लोकतंत्र का प्रस्ताव रखा और कहा कि "ईसाई स्वतंत्रता की रक्षा करना पवित्र काम होना चाहिए।" ईसाई मूल्यों की ओर्बन की व्याख्या में, (जो शायद ही पड़ोसी के साथ प्यार की बात करता है)  उन्होंने कहा, "एक पुरुष और एक महिला के पारंपरिक परिवार के मॉडल का समर्थन करना चाहिए, और यहूदी विरोधी भावना को दूर रखना चाहिए, और आर्थिक विकास को एक मौका देना चाहिए।" 

यह ऐसे समय में कहा जा रहा है जब हंगरी में यहूदियों, रोमा, प्रवासियों, और समलैंगिकों के खिलाफ हिंसा के उच्चतम उदय को देखा गया है, क्योंकि ओर्बन सरकार ऐसी हिंसा से नागरिकों को रक्षा करने वाले सभी क़ानूनों की अनदेखी कर रही है। इसके बाद से हंगरी को यूरोपीयन यूनियन में ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा सबसे ज़ेनोफोबिक राज्य कहा है।

क़ानून का शासन, लोकतंत्र, और सुशासन परस्पर जुड़े हुए हैं और इसलिए यह कहना असंभव है कि कौनसा कहाँ से शुरू होता है और दूसरा कहाँ खत्म होता है। भारत आज़ादी के बाद से ही इस बात का प्रयास कर रहा है कि एक क़ानून आधारित समाज की स्थापना की जाए जहां देश की विशाल आबादी जाति और धार्मिक भेदभाव के लंबे इतिहास के बावजूद अपने अधिकारों और आज़ादी का आनंद ले सकें। अधिक विविधता के साथ, एक लोकतांत्रिक राज्य की कल्पना करना कठिन है, और एक औपनिवेशिक क़ानूनी प्रणाली स्थापित करना केवल अनियमित रूप से ही सफल रहा है। लेकिन, केवल छह वर्षों के शासन ने देश के भीतर क़ानून के शासन को पूरी तरह से तोड़ दिया है।

ओर्बन की तरह, मोदी और उनके लोग इस क़ानूनविहीन रास्ते को अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से दूर ले जाने का रास्ता  और पहचान-आधारित राजनीति से विकास-उन्मुख राजनीति में बदलाव बताते हैं, जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिन-प्रतिदिन हिंसा पर आधारित हिंदू बहुमतवाद को बढ़ावा देती है। जो एक कार्यात्मक लोकतंत्र के लिए मौलिक संतुलन रखते हैं। उदाहरण के लिए, फौरन रेगुलेशन करेंसी एक्ट (FRCA) में 2010 में संशोधन कर विदेशी धन प्राप्त करने वाले ग़ैर सरकारी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

2014 के बाद से, बीजेपी सरकार ने लगभग 20,000 एनजीओ के लाइसेंस रद्द करने की बात कही है, जिसमें एफआरसीए के प्रावधानों का कथित रूप से उल्लंघन किया बताया गया है, जिसकी संयुक्त राष्ट्र के अधिकार विशेषज्ञों ने व्यापक रूप से निंदा की गई है, जिन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा उन एनजीओ को निशाना बनाया गया है जो नागरिक स्वतंत्रता, अल्पसंख्यक अधिकार और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर काम कराते हैं। अन्य देशों की तरह, भारत के भीतर भी ग़ैर-सरकारी संगठनों पर सरकार की सख्ती व्यापक नागरिक समाज को प्रभावित करने वाली चिंता की ओर इशारा करती है।

प्रत्येक नीतिगत निर्णय में- फिर चाहे आरटीआई को कमजोर करना, कश्मीर का विनाश, एक खतरनाक राफेल सौदा, एनआरसी की परिकल्पना - मोदी (और उनके दाएं हाथ, अमित शाह) द्वारा निरंकुश निर्णय लेने को ही दर्शाता है जहां क़ानून या लोकतांत्रिक विचार-विमर्श का नियम कोई मायने नहीं रखता है।

मोदी के भाषण और ट्वीट पूर्व प्रधानमंत्रियों (जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, और मनमोहन सिंह) के अपमान से भरे हैं, जिन्होंने उक्त क़ानूनों की वकालत की थी, और सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी (जिन्हे अब देशद्रोही कहा जाता है) ऐसे क़ानूनों का समर्थन करते थे।

महाभियोग के बाद ट्रम्प के भाषण के प्रति विश्व स्तर पर फटकार मिली, लेकिन शायद ही यह कोई अद्वितीय बात थी। ये नेता ‘खुद बनाम वे’ की अपनी बयानबाजी में एक खास किस्म की विशेषता साझा करते हैं: वे क़ानून की धज्जियां उड़ाते हैं और ऐसा वे बिना किसी शर्म के करते हैं। यह शुद्ध दोष की राजनीति है जहां क़ानून और नियमों का उल्लंघन राष्ट्रीय पहचान की बहिष्कारवादी धारणा को हासिल करने के लिए किया जाता है।

लेखक कम्यूनिकेशन स्टडीज़ विभाग, न्यूयॉर्क की स्टेट यूनिवर्सिटी, प्लैट्सबर्ग में पढ़ाती हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

My Way or a Road-Block: Politicians Who Revel in Breaking Laws

trump
Netanyahu Authoritarianism
Exclusion
migrants
Nationalism

Related Stories

जम्मू-कश्मीर के भीतर आरक्षित सीटों का एक संक्षिप्त इतिहास

भारत की राष्ट्रीय संपत्तियों का अधिग्रहण कौन कर रहा है?

यूक्रेन युद्ध में पूंजीवाद की भूमिका

श्रीलंका का संकट सभी दक्षिण एशियाई देशों के लिए चेतावनी

समय है कि चार्ल्स कोच अपने जलवायु दुष्प्रचार अभियान के बारे में साक्ष्य प्रस्तुत करें

एक सप्ताह में 10 लाख लोगों ने किया यूक्रेन से पलायन: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी

सामाजिक कार्यकर्ताओं की देशभक्ति को लगातार दंडित किया जा रहा है: सुधा भारद्वाज

अगर हमें कचरे के पहाड़ दिखाई देते हैं, तो कचरा बीनने वाले क्यों नहीं?

भाजपा का हिंदुत्व वाला एजेंडा पीलीभीत में बांग्लादेशी प्रवासी मतदाताओं से तारतम्य बिठा पाने में विफल साबित हो रहा है

पेंटागन का भारी-भरकम बजट मीडिया की सुर्खियां क्यों नहीं बनता?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License