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भारत
राजनीति
एनसीआरबी रपट: पुलिस कार्रवाई से हुई नागरिक मौतों ने छुआ रिकॉर्ड
हिंसक प्रदर्शनों की वजह से हताहत पुलिस कर्मियों की भी संख्या बढ़ी है जिन्हें संभवतः सरकारों का समर्थन प्राप्त था।
सुबोध वर्मा
31 Oct 2019
Translated by महेश कुमार
NCRP data
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत में 2017 में घटे अपराधों के बारे में आंकड़ों पर हाल ही में जारी की गई रपट एक पहलू के बारे में आश्चर्यजनक विवरण देती है, जिस पर आमतौर पर बहुत अधिक टिप्पणी नहीं की जाती है: वह है पुलिस बलों की कार्रवाई से हताहतों हुए लोगों की संख्या में बढ़ोतरी।

2017 में, पिछले साल जिसके लिए डेटा जारी किया गया था, उपरोक्त पुलिस कार्रवाईयों में 786 नागरिक मारे गए और 3,990 घायल हुए। इन संख्याओं के कई चिंताजनक पहलू सामने उभर कर आए हैं।

इन चिंताओं में सबसे प्रमुख बात यह है: कि 2017 में मारे गए नागरिकों की संख्या 2016 की संख्या से छह गुना से अधिक है जबकि घायल होने वालों की संख्या लगभग चार गुना अधिक है।
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वास्तव में, 2015 से पुलिस की कार्रवाइयों में हताहतों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2015 और 2016 के बीच, नागरिकों की मौत की संख्या तीन गुना हो गई थी, इसके बाद अगले वर्ष में छह गुना की बढ़ोतरी हुई थी। 2015 में घायल लोगों की संख्या 39 से बढ़कर 2016 में 1,110 हो गई थी और फिर 2017 में यह तीन गुना से अधिक हो गई।

ऐसा लगता है कि पहले के मुक़ाबले हिंसक विरोध प्रदर्शन बढ़े हैं और साथ ही उनके प्रति पूलिस बलों की हिंसक प्रतिक्रिया में भी खासा इजाफ़ा हुआ है। पुलिस की हिंसक प्रतिक्रिया एक तेजी से बढ़ती प्रवृत्ति है, जिसे किसी भी प्रकार के विरोध से निपटने के लिए बल का प्रयोग करने पर नहीं हिचकती है और ऊपर से उसे सरकार का समर्थन भी हासिल होता है।

यहाँ यह जरूर याद रखें कि यह डेटा पुलिस से संबंधित है (जो राज्य सरकार के नियंत्रण में होती है) इसका केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, जैसे कि सीआरपीएफ, आदि से कोई लेना-देना नहीं है। केंद्रीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई के कारण होने वाले हताहतों की गणना नहीं की जाती है।

हताहतों की संख्या में बढ़ोतरी क्यों?

2017 में हताहतों की संख्या में आई तेज़ी और नाटकीय बढ़ोतरी में दो कारणों का समागम हो सकता है। वह कि: डेटा प्रस्तुत करने में कुछ निश्चित और वर्गीकरण में परिवर्तन और जो अपरिहार्य तथ्य है वह यह कि 2017 ने सामाजिक विरोध प्रदर्शनों और पुलिस बलों के बीच कई हिंसक टकराव देखे हैं।

सबसे पहले, आइए 2017 रिपोर्ट में उस नए तरीके को देखते हैं जिसके ज़रीए हताहतों का डेटा प्रस्तुत किया गया है। नीचे दी गई तालिका बताती है कि 2017 में 786 लोग कैसे मारे गए और 3,990 लोग क्यों घायल हुए। इसे शब्दश: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से लिया गया है।
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इसमें कई उल्लेखनीय बातें मौजूद हैं। कुल मारे गए 134 लोगों और घायल हुए 146 को देश विरोधी करार दिया गया हैं। चूंकि डेटा पुलिस की कार्रवाई से संबंधित है, फिर इसे इसमें शामिल क्यों किया गया है?

यदि कोई राज्य-वार डेटा पर नज़र डालता है, तो उसे उत्तर स्पष्ट मिल जाएया। इन हताहतों की सबसे बड़ी संख्या जम्मू और कश्मीर और छत्तीसगढ़ से है, जहां उग्रवाद और उग्रवामपंथी गतिविधियां क्रमशः जारी हैं।

दोनों ही मामलों में, पुलिस बलों और उग्रवादियों/विद्रोहियों के बीच हिंसक टकराव नागरिकों की जान लेवा लगता है। इसलिए, शायद, उपरोक्त से समझा जा सकता है कि इसे ‘पुलिस कार्रवाई के दौरान हताहत नागरिक’ के तहत क्यों शामिल किया गया हैं।

लेकिन असली पहेली तो आखिर में आती है। जिसमें "अन्य घटनाओं" में हताहतों की संख्या में 553 मृत और 3,120 घायल हैं, या वह सभी मारे गए और घायलों की संख्या का 70 प्रतिशत हैं। इन "अन्य घटनाओं" की प्रकृति के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। ये दंगे या मुठभेड़ या डकैती विरोधी कार्यवाही नहीं हैं इन्हे अलग से सूचीबद्ध किया गया हैं।

फिर, एनसीआरबी रिपोर्ट में अलग से दिए गए राज्य-वार आंकड़े में गोलमाल का संकेत मिलता है। भारतीय जनता पार्टी शासित हरियाणा में इन "अन्य घटनाओं" में 431 मौतें और 839 घायल होने की बात सामने आई है, जो सभी मौतों का लगभग 78 प्रतिशत है और "अन्य घटनाओं" में घायल हुए लोगों का 27 प्रतिशत है।

वर्ष 2017 में हरियाणा में क्या हुआ था? अगस्त 2017 में बाबा की गिरफ्तारी के बाद बाबा राम रहीम के अनुयायियों ने हिंसक विरोध प्रदर्शनों की लड़ी लगा दी थी, जो पूरे राज्य में फैल गयी थी और अंततः पुलिस ने बेरहमी से उसे कुचल दिया था।

बाबा सत्तारूढ़ भाजपा के मुखर समर्थक थे, जिसके कारण संभवत: प्रारंभ में पुलिस काफी शिथिल रही जिससे हिंसा काफी तेज़ भड़क गई थी। यह विशेष घटना "अन्य घटनाओं" में हताहतों की संख्या की व्याख्या नहीं करती है, लेकिन इसमें जो शामिल है, वह इसका संकेत देती है कि प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच टकराव हुआ।

इस सबसे जो कुछ निकल कर आता है वह यह कि कम से कम 2017 में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पों में अधिकांश लोग हताहत हुए हैं।

इस प्रकार हताहतों की संख्या में अगला प्रदेश उत्तर प्रदेश है, जहाँ मार्च 2017 में भाजपा सत्ता में आई थी। यहाँ, 75 लोगों की मौत हुई और 88 लोग घायल बताए गए हैं।

आश्चर्य की बात तो यह है कि पुलिस कर्मियों के बीच अप्रत्याशित रूप से हताहतों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 2016 में महज पांच मौतें हुई थी और 5,440 घायल हुए थे जबकि, एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में 840 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई और 2,684 घायल हुए हैं।

जैसा कि रपट बताती है कि इसमें 13 ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिनकी मौत 'आत्म-शस्त्र की दुर्घटना' से हुई है, और आश्चर्यजनक बात तो यह है कि 502 लोग को 'दुर्घटनाओं' में मारे गए बताया है। इसे बाद में स्पष्ट नहीं किया गया है। भले ही इन दोनों श्रेणियों को काट भी दिया जाए, फिर भी 2017 में पुलिस हताहतों की संख्या 325 और 2,329 घायलों की संख्या का होना अपने आप में बहुत अधिक है।

पुलिस की कार्रवाइयों में बढ़ती मौतों की संख्या सभी के लिए चौंकाने वाली है क्योंकि इन वर्षों में हिंसक भीड़ द्वारा कत्ल (मोब लिंचिंग) और गाय सतर्कता समूहों के ज़रीए हिंसा के भयावह मामलों में तेज़ी देखी गई है, जिन्हे रोकने के लिए शायद ही कभी पुलिस के हस्तक्षेप किया हो।

ज्यादातर मामलों में पुलिस का हिंसक हस्तक्षेप उन लोगों के खिलाफ होता है जो अपने अधिकारों और मांगों के लिए आंदोलन कराते हैं और जिसमें समाज के विभिन्न वर्ग शामिल होते हैं। 

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आपने नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Civilian Deaths in Police Actions Surge to Record Levels: NCRB Report

NCRB Report 2017
Police Action Deaths
Civilian Deaths Rise
Police Casualties
Anti-Nationals
India Crime Statistics
NCRB

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