NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’- कोरोना के साथ भी, कोरोना के बाद भी
‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ स्थापित करने के लिए दुनिया की महाशक्तियाँ पूरी तन्मयता से लगी हुई हैं। यह एक ऐसा लंबा विराम है जिसमें दर्शकों के सामने पर्दा गिरा दिया गया है और ग्रीन रूम में अभिनेता पोशाक बदल रहे हैं। जब पर्दा उठेगा तो मंच पर साज- सज्जा बदली हुई होगी।
सत्यम श्रीवास्तव
09 Aug 2020
covid-19
image courtesy : Al Jazeera

कोरोना के साथ चलते हुए दुनिया बदल रही है। दबी ज़ुबान से कुछ जानकार यह मान भी रहे हैं कि कोरोना एक बीमारी या महामारी नहीं है। अगर उनकी बात में लेशमात्र भी सच्चाई है तो वाकई कोरोना एक समयावधि है। एक काल-खंड है। एक अंतराल है। जिसे बीतना ही है। लेकिन यह तब तक नहीं बीतेगा जब तक पूरी दुनिया में पूंजीवाद का नया ‘वर्ल्ड ऑर्डर’ स्थापित होकर अमल में नहीं आ जाता। चूंकि दुनिया के तमाम देश अलग-अलग भू-राजनैतिक परिस्थितियों में बसे हुए हैं और इस विविधता से भरी दुनिया में किसी एक दिन कोरोना की समाप्ति की घोषणा नहीं की जा सकती है इसलिये अलग-अलग देशों के लिए यह काल-खंड या समयावधि अलग- अलग हो सकती है।

‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ स्थापित करने के लिए दुनिया की महाशक्तियाँ पूरी तन्मयता से लगी हुई हैं। यह एक ऐसा लंबा विराम है जिसमें दर्शकों के सामने पर्दा गिरा दिया गया है और ग्रीन रूम में अभिनेता पोशाक बदल रहे हैं। जब पर्दा उठेगा तो मंच पर साज- सज्जा बदली हुई होगी। कलाकार कमोबेश वही होंगे लेकिन उनके परिधान से लेकर चाल चरित्र बदल चुके होंगे। इस बदलाव में कालावधि का ध्यान रखा जाएगा। ताकि दर्शक उस नाटक को निरंतरता में ही देखे।

नाटक या सिनेमा की खूबी यही होती है कि दर्शक अपने स्थान पर ही बैठा रहता है और मंच सज्जा, संगीत संयोजन और प्रकाश संयोजन के प्रभाव और कलाकारों की रूप-सज्जा में फेर बदल करके उसे समय से आगे-पीछे ले जाया जा सकता है। दर्शक इसे कला कहते हैं और उस कला के प्रभाव में आकर उसी के साथ समय के उलट-फेर में हिचकोले खाने लगते हैं।

यह कला वैश्विक स्तर पर एक विराट रंगमंच पर उतर आयी है। दुनिया के अधिकांश देशों के नागरिक इस विराट मंच के प्रेक्षक बना दिये गए हैं। वो टकटकी लगाए देख रहे हैं जो उनके सामने घटित हो रहा है। वो वह भी देखेंगे जो उनके सामने आने वाले समय में घटित होगा।

अन्य देशों के बारे में, उन देशों के कलाकारों के बारे में, उन देशों के दर्शकों के बारे में कुछ सूचनाओं के आधार पर अटकलें लगाईं जा सकती हैं लेकिन अपने प्यारे भारतवर्ष में घटित होती घटनाओं के बारे में, दर्शकों की प्रतिक्रियाओं के बारे में और अपने कलाकारों के बारे में बहुत कुछ ठोस रूप से बताया जा सकता है।

दुनिया रुकी नहीं है। फिलवक्त वह अपनी धुरी पर ही घूम रही है। जो जहां था वो वहीं है। मंच पर चित्र बदल रहे हैं। प्रसंग बदल रहे हैं और किरदार बदल रहे हैं। भारतवर्ष भी अपनी धुरी पर पकड़ बनाए हुए इस घूमती हुई धरती से अपनी संगत बनाए हुए है। दो महीने के सम्पूर्ण लॉकडाउन से उपजी एकरसता अब टूटने लगी है। हिंदुस्तान में अच्छा ये है कि यहाँ मनोरंजन के लिए बहुत कुछ है। अपने-अपने घरों में कैद लोगों के सामने एक टेलीविजन है। डिजिटल तकनीकी से युक्त सर्विस प्रोवाइडर्स हैं। और अनगिनत चैनल हैं। हर चैनल पर कुछ न कुछ एक्स्लुसिव चल रहा है। इसके अलावा इन्टरनेट है, एंड्रायड फोन्स हैं, फेसबुक है, वाट्सएप है, नेटफ्लिक्स है, एमाज़ोन प्राइम है, ज़ी 5 है, हॉट स्टार है जिन पर नयी नयी फिल्में हैं, वेब सीरीज हैं।

यहाँ की राजनीति भी मनोरंजन है। उसमें गहरे संदेश भी हैं लेकिन उन्हें डी-कोड करने की सलाहीयतें नहीं हैं या बहुत कम हैं इसलिए तर्क-वितर्क के खलल नहीं हैं।

कुछ दावे हैं, कुछ वादे हैं, कुछ संकल्प हैं कुछ सिद्धियाँ हैं, कुछ एजेंडे हैं, कुछ गफ़लतें हैं, कुछ भरोसे हैं, कुछ निराशाएं हैं। कहीं चुनाव हैं, कहीं उप-चुनाव हैं, कहीं सरकारों की उठा-पटक है, तो कहीं डिजिटल रैलियाँ हैं तो इनके बीच सभी जगहों से आ रही स्वास्थ्य सेवाओं के कुप्रबंधन की नाकाबिले गौर खबरें भी हैं। बेरोजगारी है, महंगाई है, रेंगती हुई अर्थव्यवस्था है। ढहती हुई संस्थाएं हैं, औचित्यहीन होता सेक्युलरिज़्म है, अहंकारी और एकतरफ तराजू का पलड़ा झुकाये बैठा न्याय-तंत्र है आखिरकार एक दम तोड़ता हुआ 70 साल का बूढ़ा लोकतन्त्र है। लेकिन यह सब मंच के एक हिस्से का ब्यौरा है। जो कमोबेश पहले से मौजूद था।

कोरोना नामक इस कालावधि में जो नया है वो है बीमार हो चुके या बीमारी से जूझते या बीमार हो जाने की भरपूर संभावनाओं के बीच लोगों की कलुषित प्रवृत्तियों को बाहर लाना जबकि इस अवस्था में और इस अवधि में इन्हें बाहर नहीं आना था। इस देश में नया है, बीमारों के प्रति नज़रिया। बीमारी फैलाने के लिए कुछ लोगों की शिनाख्त और उसके बहाने एक पुराने एजेंडे की खुराक की असीमित सप्लाई। मुफ्त मुफ्त मुफ्त।

कोरोना को एक अंतराल या समयावधि कहने की ज़ुर्रत दो महीने पहले नहीं होती। पर आज है क्योंकि सरकारों के आचरण से उनकी प्राथमिकताओं से यह लग नहीं रहा है कि कोरोना वाकई एक संकट है या सबको एक साथ अपनी जद में ले सकने की ताक़त रखने वाली कोई विकराल बीमारी या महामारी है।

देश के शीर्षस्थ नेताओं ने अपने आचरण से यह बार- बार बताया है कि यह एक अंतराल ही है जिसका चयन आप अपनी सुविधा से कर सकते हैं। आप जब चाहें कोरोना पॉज़िटिव हो सकते हैं। जब चाहें क्वारींटाइन हो सकते हैं। आप एकांतवास में जा सकते हैं। आप चाहें तो दो दिन पहले की कोरोना पॉज़िटिव रिपोर्ट को धता बताकर बाहर आ सकते हैं (संदर्भ शिवराज सिंह चौहान)। आप चाहें तो संक्रमण के संदेह में 14 दिन पाँच सितारा हस्पताल में मेडिकल टूरिज़म कर सकते हैं और किसी अन्य शहर में लगी पेशी में पेश होने से खुद को बचा सकते हैं (संदर्भ संबित पात्रा)। आप चाहें तो कोरोना काल में किसी बड़े पाँच सितारा हस्पताल का विज्ञापन कर सकते हैं और इस तोहमत से भी बच सकते हैं कि विज्ञापन करने वाले खुद उस उत्पाद का इस्तेमाल नहीं करते (संदर्भ-अमिताभ बच्चन)।

किसी बड़े समारोह का आमंत्रण नहीं मिला तो सवालों की आबरू रखने के लिए भी यह कोरोना रूपी अंतराल एक सहूलियत देता है। इससे पहले कि लोग पूछें आपको बुलाया नहीं गया? आप तपाक से कह सकें कि पॉज़िटिव आ गया। और फिर ट्विटर पर जाकर सर्वसाधारण को सूचित कर दें।

ये सब आचरणगत बदलाव हैं। कोरोना जो तथाकथित रूप से आपको कफन से ढंकने आया था आपने उसे अपने धतकर्म ढंकने के काम ले लिया। जो यहाँ सरकार हैं उनके लिए देह की दूरी एक अचूक युक्ति साबित हुई। जिसे कल तक बुराई भी माना जाता था आज एहतियात में बदल गयी है। इस पूरी समयावधि में अपने-अपने चुनाव-क्षेत्र के जन प्रतिनिधि कहाँ रहे? यह पूछने वाला कोई नहीं क्योंकि कोरोना है। जो बीमारी नहीं अंतराल है। पहले से ही राजनैतिक व्यवहार और आचरण में चली आ रही यह दूरी इस अंतराल में वैधता पा जाती है। यह कोरोना वारीयर्स क्यों नहीं बने जबकि इन्हें अपनी जनता के साथ इस संकट में होना था? यह एक अनुत्तरित सवाल रहेगा। कोरोना से निपटने के लिए पुलिस है, स्वास्थ्य कर्मी हैं, सफाई कर्मी है और मीडिया है। क्यों नहीं पहले दिन से जन प्रतिनिधियों को इस संकट का सामने करने में अगुवाई दी गयी? जो जन प्रतिनिधि इसे स्वास्थ्यगत कारणों के रूप में देख रहे हैं उन्हें यह बात तब ठीक से समझ में आएगी जब यह अंतराल बीत जाने पर उन्हें पता चलेगा कि ऐसे कितने निर्णय जिनमें उनकी भागीदारी ज़रूरी थी, लिए जा चुके हैं। उनकी गैर-मौजूदगी में उनकी शक्तियाँ छीन ली गईं।

यहाँ उल्लेखनीय यह भी है कि देश में नीति आयोग के साथ ही सारी बड़ी परियोजनाओं में स्थानीय जन प्रतिनिधियों की भूमिका खत्म की जा चुकी है। इनके स्थान पर स्पेशल पर्पज़ व्हीकल जैसे नए पद सृजित हो चुके हैं। मसलन इंडस्ट्रीयल कोरिडोर्स, मैन्यूफैक्चरिंग जोन्स, विशेष आर्थिक क्षेत्र आदि  अलबत्ता ये अनभिज्ञ थे और अब जब वापस काम पर लौटेंगे तो अपनी कुर्सी तलाश करेंगे। यह तय है कि देश में तमाम यान्त्रिकी का सम्पूर्ण कॉर्पोरेटीकरण इस अंतराल का सबसे बड़ा ‘आउट कम’ होने जा रहा है।

यह नया वर्ल्ड ऑर्डर जिसमें दूरी एक केन्द्रीय तत्व है हमारे जीवन के हर पहलू पर असर करने वाला है। इस दूरी को अशोक वाजपेयी ने एक व्याख्यान में बहुत दिलचस्प अंदाज़ में बताया है जिसे पढ़ा जाना चाहिए। वो कहते हैं कि – “हमारी राष्ट्रीय कल्पना से गरीब गायब हो चुके होंगे। राष्ट्र की सारी कल्पनाएं भद्र लोक, उच्च वर्ग और मध्य वर्ग तक सिमट गई होंगी। इस विराट राष्ट्रीय कल्पना से वही नहीं होंगे जो सबसे ज़्यादा होंगे। सत्ता की नागरिकता से, मध्य वर्ग की दूरी अपने अंत:करण से, पुलिस की दूरी सुरक्षा से, न्यायतंत्र की दूरी न्याय से, राजनीति की नीति से, मजदूरों की दूरी रोजगार से”।

लिखना, भूलने के विरुद्ध एक कार्यवाही है। इसलिए यह भी लिखा जाना चाहिए कि इस ‘अंतराल को अवसर’ में बदलने का हुंकार किसी और ने नहीं देश के प्रधानमंत्री ने भरी थी और उन्होंने इसे करके दिखाया है। जो काम मंच पर दर्शकों के आगे पर्दा डाले बिना नहीं हो सकते थे वो काम अब किए जा रहे हैं बिना किसी संकोच, लिहाज और नीति के। जो काम इस अंतराल के बीत जाने के बाद किए जा सकते थे वो भी अभी ही निपटा लिए जा रहे हैं। तमाम निगमों, सरकारी कंपनियों, इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेचना हो या सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करने वाली नीतियां बनाना और लागू करना हो। सरकार की आलोचना करने वाले बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ दबाना हो। सब कुछ इसी दौर में अविलंब किया जाना है।

देश अब अनलॉक हो चुका है लेकिन राजनैतिक कार्यक्रमों (असल में नागरिक जुटान, प्रतिरोध या प्रदर्शन) आज भी वर्जित हैं। धार्मिक कांड किए जा सकते हैं। सरकारोन्मुखी सामाजिक काम भी किए जा सकते हैं। यह एक स्थायी कायदा होने जा रहा है जो भी इस न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लिए मुफीद होगा।

(लेखक पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर काम कर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Coronavirus
COVID-19
Pandemic Coronavirus
Fight Against corruption
New world order
Lockdown
World Economic Slowdown

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License