NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
1993 की वो नौ मौतें जिन्होंने मुंबई को दहला दिया था
सुलेमान बेकरी केस की पिछले 27 साल से सुनवाई जारी है।
मीना मेनन
07 Dec 2019
Suleman Bakery case
Photo Courtesy: Mumbai Mirror

कोर्ट के लिए निकलते वक़्त ग़ुलाम मोहम्मद फ़ारूक़ शेख़ अपनी जेब में 500 रुपये का एक नोट डाल रहे हैं। दूसरे हाथ से वे उजले हरे रंग के एक धब्बेदार प्लास्टिक बैग को बंद करते हैं। शेख़, लोक अभियोजक रतनावली पाटिल से कहते हैं कि वे अगली सुनवाई में नहीं आ पाएंगे, क्योंकि उन्हें अम्बेजोगोई में एक शादी में जाना है। 1993 के सुलेमान बेकरी केस में वे तीसरी बार गवाही देने आए हैं। अब केस में केवल कुछ पत्रकारों और संबंधित पक्षों को छोड़कर किसी की रुचि नहीं है।

68 साल के शेख़ के मुताबिक़ उन्हें दिल की बीमारियाँ हैं, इसके चलते उन्हें सेशन कोर्ट की पुरानी बिल्डिंग की सीढ़ियां चढने में दिक़्क़त होती है। वे जज के फ़ैसले के इंतज़ार में बैठे-बैठे ज़ुखाम की गोलियां ले रहे हैं। सुनवाई में जज, बचाव पक्ष की 26 नवंबर को होने वाली सुनवाई को स्थगित करने की मांग पर विचार कर रहा है। जज ने स्थगन के लिए 1500 रुपये भरने और आगे कोई देरी न करने का फ़ैसला दिया। शेख़ और दो और गवाहों का वक़्त तो नहीं लौटाया जा सकता, लेकिन उनका यात्रा भाड़ा दे दिया गया। बाक़ी दो गवाह पुलिसवाले हैं।

उस दिन सात आरोपी पुलिसकर्मियों के वकील श्रीकांत शिवड़े मौजूद नहीं थे। इससे पहले भी गवाहों को अलग-अलग कारणों के चलते वापस भेजा जा चुका है। एक बार गवाहों को देर से आने की वजह से वापस भेजा गया। तो दूसरी बार आरोपी पुलिसवालों में से एक बीमार हो गया और कोर्ट नहीं आ सका। उस वक़्त जो शख़्स गवाही देने आया था, उसने फ़ायरिंग में अपने पिता को खोया था। एडिशनल सेशन जज यू एम पडवाड देरी होने का रोना रोते रहते हैं और चीज़ों में वक़्त लगता जाता है। 

दक्षिण मुंबई की मोहम्मद अली सड़क पर मशहूर बेकरी और उसके पास वाले मदरसे में घटी घटना को अब 27 साल हो चुके हैं। 1992-93 के दंगों पर आई जस्टिस श्रीकृष्णा की रिपोर्ट में तथ्यों को रिकॉर्ड किया गया था। मामले में दोषी ठहराए गए लोगों से ज़्यादा लोग बरी हुए हैं।

अभी तक पांच गवाह, गवाही दे चुके हैं। मौक़ा-ए-वारदात का पंचनामा भी 2001 में बनाया गया। इस केस में घटना का पहला गवाह भी अब पलट चुका है। इसकी वजह सबूतों के परीक्षण में हो रही देरी है। क्योंकि पुलिस कंट्रोल रूम से संबंधित पुराने टेप को सुनने के लिए कोर्ट में टेप रिकॉर्डर नहीं था। जब तक ने जज ने फटकार नहीं लगाई, तब तक कंट्रोल रूम की लॉग बुक्स को कोर्ट में नहीं लाया गया। गवाहों के लिए इतने सालों के बाद घटनाओं को हूबहू याद करना या उन संदेशों को दोहराना कई बार मुमकिन नहीं होता। बतौर वॉयरलैस ऑपरेटर उन्होंने जो संदेश और दूसरी जानकारी लिखी थी, उसे याद करना भी मुश्किल होता है।

पहले गवाह मोहम्मद फ़ारूक़ मोहम्मद फ़ाज़िल ने कोर्ट में कहा था कि वे जूते-चप्पल बेचते हैं। उन्होंने केवल यही बात कोर्ट में मानी। उनके मुताबिक़, जब एक जून 2001 को पुलिस उनसे पंचनामा पर दस्तख़त करवाने आई, तब उन्हें पंचनामा में लिखी सामग्री की जानकारी नहीं थी। ना ही उन्हें यह जानकारी है कि बेकरी में 1993 में क्या हुआ। उन्होंने अपने बयान में हर चीज़ से इनकार कर दिया। 

एक दूसरे गवाह 64 साल के दिलीप वामनराव निकाले उस वक्त कंट्रोल रूम में बतौर वायरलेस ऑपरेटर काम करते थे। उस दिन वे ड्यूटी पर भी थे। उन्होंने लॉग बुक में एंट्रियों की पहचान भी की, जिसे कोर्ट में लाया गया था। निकाले के मुताबिक़, उस दौरान 100 से 150 गुना ज़्यादा तेज़ी से संदेश आए। कमरे में आठ या नौ वायरलेस थे। डोंगरी और पायढोनी इलाक़ों में दंगों के वक़्त कुछ अस्थायी वॉयरलैस सेट भी लगाए गए थे। इसमें लोगों द्वारा पुलिस पर फ़ायरिंग करने के कुछ संदेश थे। निकाले और अन्य वायरलेस ऑपरेटर्स इस अभूतपूर्व स्थिति के गवाह थे।

9 जनवरी 1993 को सुलेमान बेकरी फ़ायरिंग हुई थी। बाबरी मस्ज़िद गिराए जाने के बाद 1992 के दिसंबर में शहर दंगों की गिरफ़्त में था। तक़रीबन 500 लोगों की मौत हो चुकी थी। दिसंबर के अंत में पायोढीन इलाके में एक मथाड़ी और जनवरी में चार लोगों की हत्या के बाद फिर से हिंसा भड़कने की स्थिति बन गई। इन हत्याओं को सांप्रदायिक रंग शिवसेना ने दिया था।

9 जनवरी की सुबह रिपोर्ट आई कि सुलेमान बेकरी इलाक़े में कुछ लोगों ने फ़ायरिंग की है, इसके बाद ज्वाइंट कमिश्नर रामदेव त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम और भारी हथियारों के साथ स्पेशल ऑपरेशन स्कवॉड घटनास्थल की ओर बढ़ा। पुलिस के पहुंचने के बाद घटनास्थल पर हुई फ़ायरिंग में नौ लोगों की मौत हो गई। श्रीकृष्णा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ''सबूतों का बारीक़ी से परीक्षण करने के बाद आयोग को लगता है कि पुलिस की कहानी में विश्वसनीयता नहीं है।''

त्यागी ने बेकरी में घुसने और गोली चलाने से इनकार किया था। 2001 में महाराष्ट्र सरकार की स्पेशल टास्क फ़ोर्स (एसआईटी) ने सुलेमान बेकरी केस में 18 पुलिसवालों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया। लेकिन ट्रॉयल कोर्ट ने 2003 में त्यागी समेत 9 पुलिसवालों को बरी कर दिया। तब लोक अभियोजक ने कहा था कि पुलिसवालों को बरी किए जाने के फ़ैसले को चुनौती देने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। ट्रॉयल कोर्ट ने बाक़ी पुलिसवालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई आगे बढ़ाने को कहा और फ़िलहाल इस मामले में सात लोगों पर सेशन कोर्ट में मामला चल रहा है। इनमें से दो की मौत हो चुकी है। 

बेकरी से सटे मदरसे में पढ़ाने वाले शिक्षक नुरूल हुदा मक़बूल अहमद भी उस फ़ायरिंग में पीड़ित थे। उन्होंने त्यागी को बरे किए जाने के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील की। कोर्ट ने कहा कि गोली चलाना ग़ैर-ज़रूरी था, लेकिन पुलिसवालों के ख़िलाफ़ सबूतों की कमी है। इसके बाद अहमद 2011 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। यहां भी सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखा। 2012 में अहमद की मौत हो गई। उनके बेटे अब्दुल समद एक मोबाइल सुधारने की दुकान चलाते हैं। उन्हें केवल इतना याद है कि फ़ायरिंग में अहमद के पैर में चोट आई थी, जो पूरी ज़िंदगी उनके साथ रही।

वहीं बेकरी के मालिक मोहम्मद अब्दुल सत्तार इस मामले से आगे बढ़ चुके हैं। घटना में उनके पांच कर्मचारियों की मौत हुई थी। उनके कई कर्मचारियों पर दंगा-फ़साद के आरोप लगे थे, हालांकि बाद में सभी बरी हो गए। सत्तार दो सालों में अपना व्यवसाय फिर खड़ा करने में सफल हो गए। वो आमतौर पर शाम को बेकरी के पास सड़क किनारे अपने दोस्तों के साथ बैठते हैं।

इतने साल गुज़रने के बाद भी घटना की याद पीड़ितों के ज़ेहन में ताज़ा है। पीड़ितों को 6 दिसंबर 1992 के दंगों से प्रभावित लोगों की तरह अब इंसाफ़ की उम्मीद भी कम ही है। इस बीच 16 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई है, जहां और गवाहों को हाज़िर किया जाएगा।

मीना मेनन स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Nine Deaths that Once Shook Mumbai

Suleman Bakery case
Babri Demolition
Bombay Riots
Babri aftermath
BJP
RSS
Shiv sena

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License