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"लव स्टोरी": महज़ एक प्रेम कथा नहीं?
शेखर कम्मुला की नयी फ़िल्म नव-उदार भारत में रहने के अंतर्विरोधों को कुशलता के साथ दर्शाती है।
अनीश तोरे
10 Nov 2021
love story
फ़ोटो साभार: द हिन्दू

हम भारत में फ़िल्मों को कॉमर्शियल बनाम आर्ट सिनेमा या प्रगतिशील सिनेमा बनाम मनोरंजन सिनेमा जैसे स्पष्ट श्रेणियों में बांटने के आदी रहे हैं। यहां तक कि ऐसे फ़िल्म निर्माता, जो अपनी फ़िल्मों में जातिगत उत्पीड़न या महिलाओं के मुद्दों से जुड़े विषयों को उठाने से नहीं हिचकिचाते, वे भी दर्शकों के ख़ास तबके की ज़रूरत पूरी करने के जाल में फ़ंस सकते हैं।

लेकिन, शेखर कम्मुला की नयी तेलुगू फ़िल्म 'लव स्टोरी' उन्हें एक अलग ही श्रेणी में ला खड़ा करती है। यह फ़िल्म दिखाती है कि शेखर में समाज के हर तबके को उकेरने की क्षमता है। लव स्टोरी को बतौर एक ऐसी फ़िल्म देखी जा सकती है, जो जाति के भीतर हो रहे बदलाव, बाल यौन शोषण, रोमांटिक रिश्तों में विकसित होते लिंगगत संरचना, शहर-गांव की अंत:क्रिया, या फिर ज़ाहिर है, प्यार को लेकर बातें करती है। कम्मुला इस फ़िल्म पर ज़्यादा बोझ डाले बिना कई आयामों को कामयाबी के साथ जोड़ देते हैं। कोई शक नहीं कि इस फ़िल्म में किरदारों का संयोजन इसके निजी किरदारों से कहीं ज़्यादा मायने रखता है।

कल्पनाशील पृष्ठभूमि

रेवंत एक परिवार से है और मौनिका की पृष्ठभूमि एक उच्च जाति के ज़मींदार परिवार से हैं। दोनों अक्सर अपने-अपने अपार्टमेंट की छतों से बातें करते हैं और इन दोनों छतों के बीच एक निर्माणाधीन बिल्डिंग है। यह व्यवस्था इस बात की याद दिलाती है कि कैसे डॉ बीआर अंबेडकर ने जाति व्यवस्था का वर्णन किया था। उन्होंने इसे "...बिना किसी सीढ़ी के बहुमंजिला इमारत" कहा था। हर एक फ़्लोर किसी न किसी जाति को आवंटित है। जिस फ़्लोर पर कोई पैदा होता है, उसी फ़्लोर पर वह मरता भी है।"

इन दोनों के रहने की जगहों की वास्तुकला असल में कठोर जाति संरचना को दर्शाती है। रेवंत और मौनिका जातीय संरचना के दो छोर से आते हैं और यह स्थिति उनके अलग-अलग आवासीय क्वार्टरों से दर्शाये गये हैं। अम्बेडकर की दलील यहां मज़बूती से प्रतिध्वनित होती है। उन्होंने कहा था, "ऐसी कोई सीढ़ी या सीढ़ियां नहीं हैं, जो अलग-अलग फ़्लोर को जोड़ती हों," यानी कि जाति समूहों को जोड़ती हों। रेवंत और मौनिका की इमारतों के बीच की दूरी जाति व्यवस्था के विभिन्न सामाजिक तबके के लोगों के बीच वास्तविक संवाद की संभावना को भी नकारने का संकेत देती है।

रेवंत और मौनिका के अपार्टमेंट के बीच की निर्माणाधीन इमारत एक अनूठी प्रतीकात्मक भूमिका निभाती है। यह इमारत बहुत ही अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले दो लोगों के मिलने की जगह का प्रतिनिधित्व करती है। निर्माणाधीन इमारत की यह कल्पना एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को दर्शाती है, जो धीरे-धीरे बनायी जा रही है, जहां लोग जाति, वर्ग और लिंग की बाधाओं को पार कर सकते हैं। सच्चाई यही है कि जो इमारत निर्माणाधीन है, वह सामाजिक बदलाव की अधूरी, लेकिन चल रहे प्रोजेक्ट का प्रतीक है।

सवाल है कि यह प्रोजेक्ट कब और कैसे पूरा होगा? इसका जवाब देते हुए अंबेडकर ने कहा था कि अंतर्जातीय विवाह ही एक रास्ता है। दूसरे शब्दों में, दो व्यक्तियों के एक साथ आने से पुलों (या सीढ़ियां) का निर्माण करके जाति समाज की उन कठोर बेड़ियों को तोड़ने में मदद मिल सकती है, जहां कोई भी पुल या सीढ़ी मौजूद नहीं है। हालांकि, इसके लिए विश्वास की एक छलांग की ज़रूरत होती है, जैसा कि रेवंत को इस फ़िल्म के एक अहम मोड़ पर एहसास होता है। जब मौनिका रेवंत के साथ पेशेवर सहयोग को लेकर सहमत हो जाती है, तो रेवंत ख़ुशी के मारे अपनी छत से उस निर्माणाधीन इमारत की छत पर कूद जाता है। संभावित घातक परिणामों वाला यह ख़तरनाक काम एक बेहतर कल की कोशिश में शामिल जोखिम को दर्शाता है।

यह निर्माणाधीन इमारत अनिश्चितता का एक ऐसा क्षेत्र है, जहां अपनी सामाजिक रूप से मिली पहचान को पार करने के इच्छुक लोगों को दाखिल होने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब मौनिका बीच रास्ते में रेवंत से मिलने के लिए निर्माणाधीन इमारत की छत पर पहुंचती है, तो वह एक इंजीनियर और जमींदार होने का अपना सारा दिखावा छोड़ देती है। रेवंत भी एक समृद्ध कारोबारी होने की अपनी झूठी छवि का त्याग कर देता है। निर्माणाधीन इमारत के ऊपर वह अब मौनिका से अपनी आर्थिक संकट को नहीं छिपाता है। प्रेम जैसा कुछ नया और सुंदर तभी उभर सकता है, जब व्यक्ति सामाजिक-आर्थिक गौरव की भावना को त्याग दे और अपनी मानवीय कमज़ोरियों को उजागर होने दे, यानी जब व्यक्ति अनिश्चितता की स्थिति में दाखिल हो जाये।

बाद में मौनिका निर्माणाधीन इमारत और रेवंत की इमारत के बीच एक लकड़ी का तख़्ता लगा देती है, जिससे तीनों इमारतों के बीच निर्बाध रूप से चल पाना मुमकिन हो जाता है। यही वह स्थिति है, जिसे अम्बेडकर ने सोशल एंडोस्मोसिस यानी सामाजिक अंतराभिसारी कहा है, यानी एक ऐसी स्थिति, जिसमें अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति बिना किसी बाधा के सामाजिक अनुक्रमों के बीच आगे बढ़ सकते हैं। अम्बेडकर के मुताबिक़, जाति व्यवस्था इस सोशल एंडोस्मोसिस को असंभव बना देती है। लकड़ी की यह तख़्ती सोशल एंडोस्मोसिस के लिए छोटी गुंज़ाइश बनाकर सामाजिक बाधाओं को दूर करने के व्यक्तिगत प्रयासों का प्रतिनिधित्व करती है।

 दलित पूंजीवाद: मुक्ति का रास्ता?

लव स्टोरी, 'कर्णन', 'काला' और 'परियेरम पेरुमल (तमिल), 'कोर्ट' (मराठी) या न्यूटन (हिंदी) जैसे दलित लीड कैरेक्टरों वाले समकालीन सिनेमा से अलग रास्ते पर चलती है। दलित सिनेमा की न्यू वेव उन कहानियों को चित्रित करती है, जहां भारत की सरकार या तो दलितों के सशक्तिकरण के मौक़े मुहैया कराती है (न्यूटन) या फिर सरकार-बाज़ार-समाज की सांठगांठ दलित समुदाय का शिकार करती है (कर्णन, काला, कोर्ट) । इस लिहाज़ से लव स्टोरी एक अलग रास्ता दिखाती है, क्योंकि रेवंत को उम्मीद है कि बाज़ार की ताकतों के साथ जुड़ जाने से वह मुक्त हो जायेगा।

एक बच्चे के रूप में रेवंत ने जातिगत भेदभाव के साथ-साथ आर्थिक अभाव को भी महसूस किया है। उसकी मां कहती है कि जब तक वे आर्थिक रूप से ऊंची जातियों पर निर्भर हैं, तब तक भेदभाव ख़त्म नहीं होगा। अपनी सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को पार करने की उम्मीद के साथ रेवंत ज़ुम्बा को पढ़ाने के लिए एक फिटनेस उद्यम की शुरुआत करता है। वह मौनिका से भी कहता है, "भविष्य उनका है, जो कारोबार शुरू करते हैं।" मौनिका के साथ उसके रिश्तों की शुरुआत इसी अर्थशास्त्र में निहित है। मौनिका उस नौकरी और स्थिर आय की तलाश में है, जो रेवंत उसे मुहैया कराता है, क्योंकि रेवंत अपने कारोबार के विस्तार की इच्छा रखता है। बाद में उनके बीच प्यार पनपता है। (तर्कवादी गोविंद पानसरे ने कभी कहा था कि प्रेम-आधारित अंतर्जातीय सम्बन्ध तभी संभव हैं, जब ग़ैर-अभिजात वर्ग की आर्थिक गतिशीलता सामाजिक असमानताओं को चुनौती दे।)

अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने कहा है कि हम "पितृसत्तात्मक पूंजीवाद" के दौर में रह रहे हैं, जिसमें वे ही लोग इस समकालीन पूंजीवाद में समृद्ध हो सकते हैं,जो बड़े पैमाने पर पैतृक संपत्ति हासिल करते हैं। रेवंत को भी इसी वास्तविकता का खामियाजा भुगतना पड़ता है। उसके परिवार के पास सिर्फ़ आधा एकड़ ज़मीन है, इसलिए, अपने उद्यमशीलता कौशल के बावजूद, वह अपने व्यवसाय का विस्तार करने को लेकर पूंजी जुटा पाने में विफल रहता है। उसकी कहानी पूंजीवाद के इस प्राथमिक मिथक को नग्न रूप में सामने रख देती है कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास व्यावसायिक विचार, उद्यमशीलता की मानसिकता है, और जो कड़ी मेहनत करता है, वह समृद्ध हो सकता है। रेवंत इन तीनों बातों पर खरा उतरता है, फिर भी वह बिना किसी अपनी ग़लती के नाकाम हो जाता है।

एक अन्य घटना जाति-आधारित व्यवस्था के एक अलग पहलू को उजागर करती है और वह यह है कि आर्थिक सशक्तिकरण भी जातिगत असमानता को चुनौती देने में विफल रहता है। रेवंत और उसकी मां शादी का प्रस्ताव लेकर मौनिका के घर जाते हैं। वे अपने सबसे अच्छे और बेहतरीन कपड़े पहनकर वहां जाते हैं,जो उनकी आगे बढ़ती आर्थिक गतिशीलता का संकेत देते हैं। जैसे ही रेवंत की मां मौनिका की मां को रेवंत की कारोबार की कामयाबी के बारे में बताने ही वाली होती है कि मौनिका की मां उस बात में रुचि लिये बिना वहां से चली जाती है। यह दृश्य पूंजीवाद को लेकर गढ़े गये इस मिथक को भी तोड़ देता है कि आप जितने अमीर होंगे, आपको उतना ही ज़्यादा सामाजिक सम्मान मिलेगा। जाति बंधन को पार करने के लिए आर्थिक सशक्तिकरण एक ज़रूरी,मगर अपर्याप्त शर्त है।

एकजुटता से दमन पर क़ाबू

लव स्टोरी प्यार को लेकर यह ज़रूरी सचाई सामने रख देती है कि इसमें न सिर्फ़ एक साथ नयी चीज़ों की तलाश और सीखना शामिल होता है, बल्कि ऐसी कई चीज़े भी शामिल होती हैं, जो हम समाज से आत्मसात करते हैं और हमारे भीतर उनकी गहरी पकड़ होती है। पितृसत्तात्मक समाज में रहते हुए हम सभी को पितृसत्तात्मक बना देता है। यही बात जाति पर भी लागू होती है। ऐसी स्थिति में प्रेम उभर तो सकता है, लेकिन टिक नहीं सकता। इस फ़िल्म में दिखाया गया है कि कैसे गहरी बैठी जातीय चेतना रेवंत और मौनिका को तक़रीबन अलग कर देती है। एक सीन में तो मौनिका ग़ुस्से में कहती हैं कि 'रेवंत जैसे लोगों' यानी निचली जातियों के लोगों पर 'भरोसा नहीं करना चाहिए'। जाति भले ही शिथिल हो जाये, लेकिन प्रेम सम्बन्धों में भी वह अपना कुरूप सिर उठा लेती है। ऐसे में यह सवाल पैदा होता है कि जिस चीज़ से कोई अनजान हो, उस पर  भला वह कैसे फ़तह हासिल करे ? मौनिका का दावा है कि वह "जातिगत मानसिकता" से ग्रस्त नहीं है, लेकिन जातिहीनता एक ऐसा मिथक है, जिसमें सिर्फ़ विशेषाधिकार प्राप्त अभिजात वर्ग ही भरोसा कर सकता है। एक वास्तविक जाति-विरोधी रुख़ में सामूहिक कार्रवाई और जाति से उत्पीड़ित लोगों और उन लोगों के बीच वास्तविक संवाद शामिल होता है, जिनके पास जातिगत विशेषाधिकार हों, लेकिन वे उन्हें छोड़ने के लिए तैयार भी हों।

इसके अलावा, जाति से पार पाने के लिए जाति के मानदंडों के विपरीत दिशा में भी कार्य करने की ज़रूरत है। शुचिता की धारणा पर आधारित जाति को लेकर कुलीन जातियों के लोगों को 'अशौच' ग़ैर-कुलीन जातियों से दूरी बनाये रखने की ज़रूरत होती है। मौनिका की जातिवादी टिप्पणियों से तक़रीबन ख़त्म हो चुके इस जोड़े के रिश्ते को उस परिवर्तन लाने वाली कार्रवाई से फिर से जीवंतता मिलती है, जो दोनों के बीच की दूरी की संभावना को पार कर जाती है।

दरअसल, मौनिका ने ग्रामीण भारत में पितृसत्तात्मक परिवार में जन्म लेने वाली महिला के उत्पीड़न को महसूस किया है, और इससे भी बदतर स्थिति को झेला है। उसके आघात ने उसके जीवन को निजी और सार्वजनिक दोनों ही तरह से आकार दिया है।

भारत में सार्वजनिक जीवन को परिभाषित करता सवाल दो लोगों के बीच सत्ता में हो रहे बदलाव का सवाल बन जाता हैं, जो कई तरह के उत्पीड़न से होकर गुज़र रहे होते हैं। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि क्या पितृसत्ता जाति पर हावी हो जाती है, या जाति श्रेष्ठता पितृसत्ता पर हावी हो जाती है ? ज़्यादतर लोग उत्पीड़न और शोषण गुज़रे हैं, ऐसे में  एक फ़र्क़ तो उत्पीड़न के स्तर का है। किसी उच्च जाति की महिला को जातिगत पितृसत्ता से पीड़ित होना पड़ता है, लेकिन निम्न जाति के पुरुष को जाति और वर्ग,दोनों के कारण शोषण की दोहरी धुरी का सामना करना पड़ता है।

जैसा कि भगत सिंह का सपना था कि क्या उत्पीड़न के साझा अनुभव हमें "मनुष्यों द्वारा मनुष्यों के शोषण को ख़त्म करने" को लेकर उत्पीड़न की इच्छा को पार पाने में मदद कर सकते हैं? आम तौर पर, उत्पीड़न की यादों को इतना हिंसक और परेशान करने वाला माना जाता है कि उन्हें फिर से बयान कर पना या फिर से बता पाना मुमकिन नहीं होता है। हालांकि, कम्मुला बताते हैं कि हम उत्पीड़न के जिस अनुभव को महज़ साझा करते हैं,उनसे हम एकजुटता और साझेदारी का निर्माण भी कर सकते हैं, जो हमें अपने शोषण से लड़ने और उससे आगे निकलने में मदद कर सकता है। इसके अलावे, अतीत से मिले आघात में एक उज्जवल भविष्य की इमारत की तामिर करने वाले ईंट बनने की क्षमता भी होती है।

लेखक स्वतंत्र टीप्पणीकार हैं। इनके विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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