NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
भारतीय लोकतंत्र पर बाबा साहेब की चेतावनी सुननी होगी
बाबा साहेब ने लोकतंत्र की जो शर्तें बताई हैं वह तत्कालीन ही नहीं आज के समाज के लिए आइना साबित हो सकती हैं। हमें इसी आइने में अपनी आज की लोकतांत्रिक अव्यवस्था को देखना होगा और सोचना होगा कि हम उसमें से किस चीज को ठीक करने की कोशिश कर सकते हैं और कहां से शुरू कर सकते हैं।
अरुण कुमार त्रिपाठी
25 Jul 2020
बाबा साहेब

पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के साथ भारत में भी लोकतंत्र के भविष्य के बारे में चिंता व्याप्त हो रही है। कुछ लोगों का मानना है कि लोकतंत्र सिर्फ नाममात्र का रह गया है जबकि कुछ अन्य का मानना है कि वह धीरे- धीरे समाप्त हो रहा है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि हमारे संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने लोकतंत्र चलते रहने के बारे में क्या अनिवार्य शर्तें बताई थीं और क्या हम उन शर्तों को लागू कर पा रहे हैं?

इस बारे में पूना डिस्ट्रिक्ट लॉ लाइब्रेरी की ओर से  आयोजित 22 दिसंबर 1952 को बाबा साहेब का वह व्याख्यान बहुत महत्त्वपूर्ण है जो उन्होंने लोकतंत्र के सफलतापूर्वक संचालन के लिए दिया था। उन्होंने इस रवैये पर सवाल किया था कि भारत में बहुत सारे लोग लोकतंत्र की ऐसी चर्चा करते हैं जैसे वह एकदम स्थापित हो चुका है या वर्षों से यहां पर था। उन्होंने ब्रिटिश संविधान पर केंद्रित वाल्टर बगेहाट की परिभाषा को उद्धृत करते हुए कहा था कि उनके अनुसार `लोकतंत्र वह व्यवस्था है जो बहस और चर्चा से चलती है’। फिर वे दक्षिणी राज्यों की विजय के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन के गेटिसबर्ग में दिए गए उस भाषण का जिक्र करते हैं जिसमें उन्होंने अपनी लोकतंत्र की प्रसिद्ध परिभाषा दी थी जिसके अनुसार---`लोकतंत्र जनता के द्वारा, जनता के लिए और जनता का शासन है’।

इसके बाद बाबा साहेब लोकतंत्र की अपनी परिभाषा देते हैं। उनके अनुसार, `` लोकतंत्र सरकार का वह स्वरूप और पद्धति है जहां पर जनता के सामाजिक और आर्थिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन बिना खून खराबे के संपन्न किया जा सकता है।’’ हालांकि लोकतंत्र पर लिखने वालों ने किसी तरह की कोई रूढ़िगत परिभाषा नहीं स्थापित की है। इसलिए लोकतंत्र कैसे चलेगा यह जानने के लिए यह देखना जरूरी है कि वह इतिहास में कब कब और क्यों विफल हुआ। वे लोकतंत्र के कुशल संचालन के लिए जिन चार अनिवार्य शर्तों का उल्लेख करते हैं वे इस प्रकार हैः----

लोकतंत्र के लिए पहली शर्त है---समानता---

समता का अर्थ है समाज में किसी प्रकार की विकराल असमानता का न होना। यानी समाज में किसी प्रकार का दमित वर्ग नहीं होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक वर्ग ऐसा हो जिसके पास कुछ भी करने की छूट हो और जिसके पास सारे विशेषाधिकार हों और एक वर्ग ऐसा हो जिस पर सिर्फ दायित्व निर्वहन का बोझ हो। क्योंकि ऐसे समाज में हिंसक क्रांति के बीज होते हैं और वहां लोकतंत्र का चलना संभव नहीं होता। अगर विशेष अधिकार संपन्न वर्ग अपने अधिकारों को स्वतः त्याग नहीं देता तो उसके और निम्न श्रेणी वाले वर्ग के बीच का अंतर लोकतंत्र को खत्म कर देगा।

यहीं पर बाबा साहेब के 20 मई 1956 को लिखे गए लेख पर भी गौर करना होगा जो उन्होंने भारत में लोकतंत्र के भविष्य पर लिखा था। इस लेख में उन्होंने जाति और वर्गीय व्यवस्था को जारी रखने के लिए राजनीतिक दलों और तत्कालीन शासक दल कांग्रेस पर कठोर प्रहार किया था। वे सवाल करते हैं कि क्या जाति व्यवस्था को शिक्षा के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है? उनका कहना था कि शिक्षा निम्न वर्ग के भीतर जाति व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह उत्पन्न करती है। लेकिन अगर शिक्षा उस वर्ग को दी जा रही है जो जाति व्यवस्था को बनाए रखना चाहता है तो जाति प्रणाली कभी नष्ट नहीं होगी। इसके बजाय शिक्षा उस निम्न वर्ग को दी जानी चाहिए जिसका हित जाति व्यवस्था को तोड़ने में है। इसी के साथ उनकी उस बात का भी स्मरण करना जरूरी है जहां उन्होंने लोकतंत्र के लिए स्वतंत्रता और समता से ज्यादा बंधुत्व यानी मैत्री को महत्व दिया था। उनका कहना था कि स्वतंत्रता और समता का आधार तो मैत्री है और यह शब्द भारत में फ्रांसीसी क्रांति से नहीं बुद्ध के मैत्री भाव से लाया गया है।

लोकतंत्र के लिए दूसरी शर्त है- विपक्ष-----

लोकतंत्र के लिए विपक्ष कितना अनिवार्य है इसको स्पष्ट करते हुए बाबा साहेब लिखते हैं कि लोकतंत्र में शासक वर्ग को वीटो करने वाली व्यवस्था बनाई गई है ताकि शासक वर्ग मनमाने ढंग से काम न कर सके। वह काम सबसे पहले तो जनता करती है जिसके पास हर पांच साल में सत्तारूढ़ दल और उसका नेता अपने कामों का ब्योरा लेकर पहुंचता है और उस पर हां या ना में मुहर लगाती है। लेकिन इन पांच सालों के भीतर सरकार के निर्णयों पर तत्काल वीटो लगाने का काम विपक्ष करता है। इसीलिए विपक्ष के नेता को सरकार की ओर से वेतन भी दिया जाता है और एक सम्मानजनक दर्जा दिया जाता है। यहीं वे प्रेस की स्वतंत्रता का सवाल भी उठाते हैं कि सरकारों से मिलने वाले विज्ञापन के कारण उसकी स्वायत्तता कमजोर बनी रहती है।

लोकतंत्र की तीसरी शर्त है –---कानून और प्रशासन के समक्ष समानता----

यहां पर वे कहते हैं कि कानून के समक्ष समता महत्वपूर्ण है लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है प्रशासनिक कार्रवाइयों में समदृष्टि। वे उदाहरण देकर कहते हैं कि मान लीजिए जिला मजिस्ट्रेट कहता है कि मैं फलां व्यक्ति पर इसलिए कार्रवाई नहीं करूंगा क्योंकि वे फलां पार्टी से जुड़ा है। यह एक पक्षपातपूर्ण स्थिति है जो अमेरिका के स्पायल सिस्टम की याद दिलाता है। वहां जो भी पार्टी सत्ता में आती थी वह अपने ढंग से प्रशासन चुन लेती थी और वह पक्षपाती व्यवहार करता था। इसकी तुलना में ब्रिटेन की नौकरशाही की तटस्थ और स्थायी व्यवस्था को ठीक माना जाता है। इसीलिए अमेरिका ने धीरे- धीरे इस व्यवस्था में सुधार किया और नौकरशाही के एक हिस्से को स्थायी रूप दिया। भारत में नौकरशाही के स्थायी रूप के बावजूद आज उसका रूप अमेरिका के स्पायल सिस्टम के ढर्रे पर जा रहा है और इसी कारण तमाम तरह के पक्षपात और भेदभाव पनप रहे हैं।

लोकतंत्र की चौथी शर्त है---- संवैधानिक नैतिकता----------

बाबा साहेब ने कहा था कि तमाम लोग संविधान को लेकर बहुत उत्साहित हैं लेकिन मैं नहीं हूं। उनका कहना था कि अगर संविधान ठीक से काम नहीं करता तो मैं उसे खारिज करने और फिर से ड्राफ्ट किए जाने वालों में शामिल होना चाहूंगा। क्योंकि संविधान तो महज कंकाल है। उसमें रक्त मांस मज्जा तो संवैधानिक नैतिकता से आते हैं। वे इस बारे में इंग्लैंड की परंपराओं का उल्लेख करते हैं और अमेरिका के संदर्भ में अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि वाशिंगटन तो अमेरिकी जनता के लिए भगवान थे। लेकिन उन्होंने एक बार के बाद दोबारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। हालांकि वे जब तक चाहते तब तक अमेरिका के राष्ट्रपति रह सकते थे।

जब लोगों ने कारण पूछा तो उनका कहना था,`` मेरे प्रिय देशवासियों आप भूल रहे हो कि हमने यह संविधान क्यों बनाया। हमने यह संविधान इसलिए बनाया क्योंकि हम वंशानुगत राजशाही नहीं चाहते थे। इसीलिए हम कोई वंशानुगत शासक या तानाशाह स्वीकार नहीं कर सकते। अगर आप इंग्लैंड की व्यवस्था को ठुकराने के बाद हमें ही बार बार राष्ट्रपति बनाओगे तो संविधानिक आदर्शों का क्या होगा।’’ हालांकि काफी आग्रह के बाद वे दोबारा राष्ट्रपति बने लेकिन उन्होंने तीसरी बार बनने से साफ इनकार कर दिया।

बहुमत का अल्पमत पर आतंक नहीं------बाबा साहेब इन चार शर्तों के साथ अपने पुणे के भाषण में जिस अन्य बात का जोर देकर उल्लेख करते हैं वह है बहुमत का अल्पमत पर किसी प्रकार के आतंक का निषेध। यहां वे भारत में चल रही उन कमियों का उल्लेख करते हैं जहां सदन में विपक्ष के कार्यस्थगनादेश के प्रस्तावों को बार बार खारिज किया जाता है। इस बारे में वे अपने बांबे विधानसभा के अनुभवों का उल्लेख करते हैं जहां पर स्पीकर मावलंकर का व्यवहार लोकतांत्रिक नहीं था क्योंकि वे मंत्री के दबाव को मानते थे।

नैतिक व्यवस्था---- लोकतंत्र के लिए समाज में एक नैतिक व्यवस्था का होना भी आवश्यक है। हालांकि ज्यादातर राजनीतिशास्त्री इसका उल्लेख नहीं करते। पर हेराल्ड लास्की इसके अपवाद हैं। लास्की कहते हैं कि लोकतंत्र में नैतिक व्यवस्था को मानकर चला जाता है। यानी लोकतंत्र में एक नैतिक व्यवस्था तो होगी ही। लास्की कहते हैं कि अगर नैतिक व्यवस्था नहीं होगी तो लोकतंत्र खंड खंड हो जाएगा। जैसा कि हमारे देश में हो रहा है (बाबा साहेब ने लोकतंत्र के खंड खंड होने की बात 1952 में ही कही थी)।

लोक विवेक----बाबा साहेब की नजरों में लोकतंत्र के लिए अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है लोकविवेक की। लोकविवेक न्याय और अन्याय में अंतर स्पष्ट करता है और लोगों में अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की भावना जागृत करता है और न्याय करने की प्रेरणा देता है। वह अन्याय से क्रोधित होता है और न्याय से प्रसन्न होता है। इस बारे में वे यहूदियों पर होने वाले अत्याचार और फिर दक्षिण अफ्रीका के समाज में अनुसूचित वर्ग पर होने वाले अत्याचार का जिक्र करते हैं। उन्हें इस बात अफसोस था कि इंग्लैंड में ईसाइयों ने यहूदियों पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई। वहां सिर्फ महाराजा ने यहूदियों की मदद की।

बाबा साहेब ने लोकतंत्र की जो शर्तें बताई हैं वह तत्कालीन ही नहीं आज के समाज के लिए आइना साबित हो सकता है। हमें इसी आइने में अपने आज की लोकतांत्रिक अव्यवस्था को देखना होगा और सोचना होगा कि हम उसमें से किस चीज को ठीक करने की कोशिश कर सकते हैं और कहां से शुरू कर सकते हैं।

अंत में यहां यह याद दिलाना आवश्यक है कि लोग बाबा साहेब को सिर्फ नियम कानून और संविधान के इंजीनियर के रूप में देखते हैं। वे उनके नैतिक आग्रह और लोकविवेक को जगाने के प्रयासों को भूल जाते हैं। वे उनके सद-असद विवेक को भी याद नहीं करते। वे कहते भी थे कि लोकतंत्र राजनीतिक मशीन नहीं है। वह एक लोकतांत्रिक समाज पर टिका होता है। अगर लोकतांत्रिक समाज नहीं बनेगा तो यह प्रणाली नहीं चल पाएगी। यहीं पर इस देश का यह भी दुर्भाग्य कहा जाएगा कि महात्मा गांधी जैसे नैतिक आग्रही महानायक और बाबा साहेब जैसे समता के जननायक और संविधान विशेषज्ञ के बीच जो द्वैत था उसे आज भी हवा दी जा रही है। अगर भारतीय समाज बाबा साहेब के संविधान और गांधी जी के नैतिक आग्रह को मिलाकर चलता तो आज उसके लोकतंत्र की यह दुर्दशा न होती जो आज हो रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Baba Saheb Ambedkar
B R Ambedkar
Constitution of India
Indian democracy
Democratic disorder
Fundamental Rights
Right to equality

Related Stories

एक व्यापक बहुपक्षी और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता

हम भारत के लोग: देश अपनी रूह की लड़ाई लड़ रहा है, हर वर्ग ज़ख़्मी, बेबस दिख रहा है

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है

हम भारत के लोग : इंडिया@75 और देश का बदलता माहौल

हम भारत के लोग : हम कहां-से-कहां पहुंच गये हैं

संविधान पर संकट: भारतीयकरण या ब्राह्मणीकरण

विशेष: लड़ेगी आधी आबादी, लड़ेंगे हम भारत के लोग!

झंझावातों के बीच भारतीय गणतंत्र की यात्रा: एक विहंगम दृष्टि

आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमारा गणतंत्र एक चौराहे पर खड़ा है

हम भारत के लोग: झूठी आज़ादी का गणतंत्र!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License