NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
मध्यप्रदेश में चल रहे सियासी संकट से नुकसान सिर्फ़ जनता का है
गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और अब मध्य प्रदेश में चल रहे सियासी संकट से यह साफ़ ज़ाहिर है कि जनता के हाथ में केवल जनादेश देना बचा है और राजनीतिक दल इस जनादेश का मनमाना इस्तेमाल कर रहे हैं। इसकी लगातार पुनरावृत्ति होते जाना लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक संकेत है।
अमित सिंह
17 Mar 2020
Shivraj-Kamalnath
Image courtesy: News State

मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार पर छाया खतरा अब गंभीर रूप लेता जा रहा है। राज्यपाल लालजी टंडन के स्पष्ट निर्देश के बावजूद सोमवार को बजट सत्र के पहले दिन फ्लोर टेस्ट नहीं कराया गया। इससे नाराज राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को दूसरा पत्र लिखकर चेतावनी दी कि 17 मार्च यानी मंगलवार तक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराकर बहुमत साबित करें, अन्यथा माना जाएगा कि वास्तव में आपको बहुमत नहीं प्राप्त है।

दूसरी ओर भाजपा ने अपने 106 विधायकों की राजभवन में परेड कराकर कांग्रेस पर दबाव बढ़ा दिया है। साथ ही राज्यपाल के आदेश का पालन नहीं किए जाने को लेकर वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, जिस पर मंगलवार को ही सुनवाई होनी है।

फिलहाल सभी विश्लेषण, भविष्यवाणियां और हालात इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि कमलनाथ के हाथ से कुर्सी फिसल रही है। वह जिस तरह का दांव खेल रहे हैं उससे साफ जाहिर है कि गेंद उनके पाले में नहीं है। जब भी किसी राज्य में ऐसी स्थितियां बनती हैं तो सत्ताधारी दल विश्वास मत परीक्षण को किसी तरह से टालने की कोशिश करते रहते हैं। उन्हें उम्मीद रहती है कि शायद ज्यादा टाइम मिलने पर वह हालात को मैनेज करने में सफल हो जाएगा।

वैसे भी मध्य प्रदेश में हालात देखें तो विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। जनता ने अपने जनादेश में बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था तो कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। वह बहुमत से मामूली सी दूरी पर थी और बसपा, सपा के समर्थन से सरकार बनाई थी। हालांकि अब हालात बदल गए हैं। बड़ी संख्या में कांग्रेस के विधायक बगावत पर उतर आए हैं। ऐसे में सबसे आसान रास्ता यही है कि कमलनाथ सदन में बहुमत परीक्षण साबित करें अन्यथा अपनी कुर्सी छोड़ दें।

इससे इतर एक सवाल यह भी उठता है कि क्या इस बात पर विचार नहीं होना चाहिए कि जनता के जनादेश के हिसाब से सरकार का गठन हो। साथ ही उन्हें अस्थिरता से कैसे बचाया जाए? अभी के हालात यह हैं कि जनता मतदान के जरिए जनादेश दे रही है लेकिन सदन में बहुमत उसके चुने हुए विधायकों द्वारा तय हो रहा है और विधायक इस जनादेश का मनमाना इस्तेमाल कर रहे हैं। वह जनता की चुनी हुई सरकार से छेड़छाड़ कर रहे हैं और अस्थिरता का माहौल पैदा कर रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में सिर्फ जनता ही ठगी जा रही है।

ऐसे में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने और उनका विश्वास मजबूत रखने के लिए सुधार की जरूरत है। चूंकि सियासी दल तात्कालिक लाभ के फेर में रहते हैं और जब जिसे मौका मिलता है वही सत्ता हासिल करने में जुट जाता है इसलिए आवश्यक सुधारों की पहल या तो निर्वाचन आयोग को करनी चाहिए या फिर सुप्रीम कोर्ट को। किसी लोभ-लालच में दलबदल किया जाना जनादेश को ठेंगा दिखाने के साथ ही लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रहार भी है।

गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और अब मध्य प्रदेश में चल रहे सियासी संकट से यह साफ जाहिर है कि जनता के हाथ में केवल जनादेश देना बचा है और राजनीतिक दल इस जनादेश का मनमाना इस्तेमाल कर रहे हैं।

इसका कोई मतलब नहीं कि जनता जिस दल को शासन करने का अधिकार दे वह अपने विधायकों या सांसदों की बगावत के चलते सत्ता से बाहर हो जाए। आम तौर पर यह बगावत मौकापरस्ती ही होती है।

इस मौकापरस्ती से बचने के लिए ऐसे नियम-कानून बनने ही चाहिए जिससे किसी चुनी हुई सरकार को एक निश्चित समय तक शासन करने का मौका मिल सके। जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को अस्थिरता की आशंका से मुक्त करके ही बेहतर शासन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

ऐसी सरकारें सुशासन की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकतीं जो अपनी स्थिरता को लेकर चिंतित बनी रहें। लेकिन सवाल कई हैं क्योंकि इससे दूसरी तरफ निरकुंशता का ख़तरा बना रहता है।

मध्यप्रदेश में जो कुछ हो रहा है उससे सबसे अधिक नुकसान वहां की जनता को ही हो रहा है। किसी भी राज्य के लिए यह बहुत जरूरी है कि वहां राजनीतिक अस्थिरता का दौर लंबा न खिंचे। 

Madhya Pradesh
MP Politics
kamalnath
KAMALNATH SARKAR
BJP
Congress
Shiv Raj Chouhan
Amit Shah
Narendra modi

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License