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स्वास्थ्य
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प्रधानमंत्री मोदी का डिजिटल हेल्थ मिशन क्या प्राइवेसी को खतरे में डाल सकता है? 
हेल्थकेयर से जुड़े पेशेवरों और विशेषज्ञों ने डेटा गोपनीयता एवं स्वास्थ्य तक पहुंच पर डिजिटल हेल्थ मिशन के ढांचे से पड़ने वाले प्रभावों पर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं।
दित्सा भट्टाचार्य
30 Sep 2021
health
केवल प्रतीकात्मक उपयोग।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) की शुरुआत की, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह देश में “स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़” बनायेगा। वर्तमान में, इस परियोजना को छह केंद्र शासित क्षेत्रों में एक पायलट चरण के तौर पर लागू किया जा रहा है।

2020 के अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में नरेंद्र मोदी ने पहली बार इस योजना की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ने कहा था “आज से, एक बड़े अभियान की शुरुआत की जा रही है जिसमें तकनीक का बेहद अहम योगदान होने जा रहा है। आज से नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की शुरुआत होने जा रही है। इससे भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नई क्रांति आने जा रही है और तकनीक की मदद से इलाज मिल पाने में होने वाली दिक्कतों को कम करने में यह मददगार साबित होगा।”

एबीडीएम एक डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र को तैयार करने के लिहाज से एक महत्वाकांक्षी योजना है जो सार्वजनिक एवं निजी दोनों स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में विभिन्न हितधारकों को जोड़ता है। इस

मिशन का एक प्रमुख पहलू विशिष्ट स्वास्थ्य पहचानकर्ता प्रणाली (यूएचआईडी) को स्थापित करना है, जो प्रत्येक व्यक्ति (अथवा इकाई) के लिए एक विशिष्ट पहचान संख्या जारी करता है, जो उस व्यक्ति (या इकाई) के इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड (ईएचआर) से जुड़ता है। ईएचआर मरीजों की संपूर्ण मेडिकल हिस्ट्री का एक अनुदैर्ध्य इलेक्ट्रॉनिक संस्करण है जिसमें (विभिन्न परीक्षणों, निदान, उपचार, नुस्खों की सूची इत्यादि) शामिल है, जिसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के साथ बिना किसी बाधा एवं सुगमता के साथ आदान-प्रदान किया जा सकता है। 

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इसका उद्देश्य शोध एवं स्वास्थ्य देखभाल योजना सहित मरीज की देखभाल और माध्यमिक उपयोग के लिए स्वास्थ्य सूचना की अदलाबदली की सुविधा मुहैया कराना है। इस घोषणा के बाद राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) ने आधिकारिक तौर पर भारत के छह केंद्र शासित प्रदेशों में पायलट आधार पर डिजिटल हेल्थ आईडी का काम शुरू कर दिया था। 14 दिसंबर 2020 को सरकार ने यूएचआईडी प्रणाली के विकास को दिशा देने के लिए नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन: हेल्थ डेटा मैनेजमेंट पालिसी (एनडीएचएम-एचडीएमपी) के साथ-साथ व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकार्ड्स के निर्माण, भंडारण, प्रसंस्करण एवं साझा करने की सुविधा को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी थी।

हालाँकि, स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों और विशेषज्ञों ने डेटा प्राइवेसी और स्वास्थ्य तक पहुँच पर एनडीएचएम के ढाँचे से पड़ने वाले प्रभाव को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं। स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति के विश्लेषण के मुताबिक, इस बात को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि मेडिकल रिकार्ड्स के डिजिटलीकरण के काम को व्यक्तिगत स्वायत्तता, सूचित सहमति, गोपनीयता और निजता की यथोचित सुरक्षा के साथ संपन्न किया जा सकता है। यह विश्लेषण सेंटर फॉर हेल्थ, इक्विटी, लॉ एंड पालिसी (सी- हेल्प), आईएलएस लॉ कॉलेज और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईऍफ़ऍफ़) द्वारा किया गया था और जून 2021 में इसे प्रकाशित किया गया था। यह पालिसी सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा स्वास्थ्य डेटा को इकट्ठा करने, भंडारण, प्रसंस्करण और साझा करने के काम की देखरेख के लिए एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण को स्थापित नहीं करता है। इसके अलावा, इस बारे में एचडीएमपी सिर्फ इतना भर कहता है कि सभी देनदारियां और दंड मौजूदा कानून के मुताबिक लागू होंगे। 

ऊपर उल्लिखित पेपर के अनुसार, डेटा सुरक्षा कानून के अभाव में “मौजूदा कानूनों के पास इसके विभिन्न कर्ता-धर्ताओं को कवर करने के लिए पर्याप्त दंड की व्यवस्था नहीं है, और ऐसे कई तरीके हैं जिनके जरिये डेटा की गोपनीयता को भंग किया जा सकता है।”

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इस जोखिम के बावजूद, भारत सरकार को-विन पोर्टल के माध्यम से टेलीमेडिसिन और कोविड-19 टीकाकरण मुहिम के बाद अब एनडीएचएम-एचडीएमपी ढाँचे से सम्बद्ध और ज्यादा डिजिटल स्वास्थ्य पहलों को जोड़ने के मामले में कदम बढ़ा रही है।

पेपर के लेखकों के अनुसार, एक ओर यूएचआईडी और ईएचआर स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर, किफायती और सुलभ बना सकने में सक्षम साबित हो सकते हैं। लेकिन वहीँ दूसरी ओर वे निजता, गोपनीयता और व्यक्तिगत स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से जोखिम में भी डाल रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि डिजिटल निरक्षरता के चलते कहीं न कहीं बहिष्करण और अनौचित्य की स्थिति को उत्पन्न कर रहे हैं।

पेपर का कहना है कि “कागजों से एक डिजिटल सिस्टम में सफलतापूर्वक संक्रमण करने के लिए, और साथ ही इससे जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए डिजिटलीकरण के समर्थन हेतु यह आवश्यक है कि स्वास्थ्य प्रणाली और सुरक्षा पर्यावरण की तैयारियों को चाक-चौबंद रखा जाए। एक सुदृढ़ क़ानूनी एवं नियामक ढांचा जो पर्याप्त प्रवर्तन, पारदर्शिता एवं जवाबदेही तंत्रों के माध्यम से व्यक्तिगत अधिकारों की रखा करता हो, भी अनिवार्य तौर पर अत्यावश्यक है।”

पेपर के एनडीएचएम-एचडीएमपी के विश्लेषण से पांच महत्वपूर्ण खामियों का पता चलता है- कमजोर क़ानूनी नींव और अपर्याप्त प्रारंभिक जमीनी कार्य, जरूरत से ज्यादा हस्तांतरण, सहमति और गोपनीयता के लिए संकीर्ण ढांचा, बहिष्करण के जोखिम, विशेषकर आधार-आधारित प्रमाणीकरण प्रणाली पर निर्भरता के कारण, और निजी क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा डेटा के मुद्रीकरण की संभावनाएं इसमें निहित हैं।

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कागज पर तो एनडीएचएम मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई कई अन्य योजनाओं और नीतियों की तुलना में कहीं अधिक समावेशी नजर आता है। लेकिन यह पालिसी स्पष्ट रूप से स्वास्थ्य आईडी कार्ड और आधार कार्ड-आधारित सत्यापन, दोनों के ही संबंध में गैर-बहिष्करण की व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करती नजर आती है। यह जनादेश देता है कि राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र (एनडीएचई) में भागीदारी स्वैच्छिक आधार पर होगी, और किसी भी व्यक्ति को हेल्थ आईडी के अभाव में स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बना पाने से वंचित नहीं किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त, हेल्थ आईडी के लिए आधार को पंजीकरण की अनिवार्य शर्त नहीं बनाया जायेगा, जबकि प्रत्येक डेटा धारी के पास किसी भी समय इस कार्यक्रम से बाहर निकलने और अपने डेटा को डी-लिंक करने और हटाने के लिए कहने का अधिकार होगा।

हालाँकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या प्रस्तावित ढांचा व्यवहार में उपयोगकर्ता की सहमति को समायोजित कर पाने पाने में सक्षम होगा या नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि हेल्थ आईडी के लिए

पंजीकरण भी आधार आधारित पंजीकरण के समान हो सकता है। कागजों पर भले ही यह “स्वैच्छिक” होगा, लेकिन कुछ सरकारी और निजी दोनों ही संस्थानों में इसे अनिवार्य किया जायेगा।” विभिन्न

मीडिया रिपोर्टों में ऐसे मामलों का जिक्र किया गया है जिनमें हेल्थ आईडी को अनिवार्य बना दिया गया है।

चिंताएं इस बात को लेकर भी जताई गई हैं कि क्या एनडीएचएम स्वास्थ्य सेवा के निजीकरण की दिशा में एक और कदम तो नहीं है। अगस्त 2020 में जारी एक बयान में एबी-पीएमजेएवाई (आयुष्मान भारत-प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना) के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) में कहा गया है कि एनडीएचएम “विभिन्न हितधारकों जैसे कि डॉक्टरों, अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, फार्मेसियों, बीमा कंपनियों और नागरिकों को एक साथ लाकर उनके बीच में मौजूद अंतराल को कम करके उन्हें एक एकीकृत डिजिटल हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ जोड़ने का काम करेगा।” एनएचए एनडीएचएम का मुख्य नक्शानवीस और संस्थापक है और इसे सरकार के थिंक-टैंक, नीति आयोग द्वारा सलाह दी जाती है।

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ऐसी आशंका जताई जा रही है कि एनडीएचएम निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए सरकार की ‘सेवा प्रदाता से बिचौलिए’ की भूमिका में बदलने में मदद करने जा रहा है। यह कुछ ऐसा है जिसे पूर्व में भी देखा जा चुका है। आयुष्मान भारत परियोजना को सरकार की भूमिका को ‘सेवा प्रदाता से वित्त-व्यवस्थापक’ की भूमिका में तब्दील करने के उद्देश्य से लाया गया था, जैसा कि पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने घोषणा की थी। हालाँकि, प्रभावी तौर पर इसने बीमा कंपनियों के लिए मुफ्त और सार्वभौम स्वास्थ्य सेवा मुहैय्या कराने हेतु प्राथमिक और तृतीयक बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने के बजाय लाभ कमाने के उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा के लिए धन उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त किया है।

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विशेषज्ञों के अनुसार, एनडीएचएम योजना असल में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को स्थानापन्न कर पूरी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के निजीकरण की एक योजना है, जो निजी क्षेत्र को लाभ पहुंचाने के इरादे से

ऑनलाइन निदान के एक प्रारूप (मोड) के रूप में दवाओं और टेलीमेडिसिन की ऑनलाइन आपूर्ति के लिए ‘ई-फार्मेसी’ को बढ़ावा देने के काम को अंजाम देने जा रही है। यह व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री और अन्य विवरणों को भी सरकारी नियंत्रण के तहत रखता है, जिसका उपयोग निजी क्षेत्र द्वारा व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जिसमें बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा नए योगों (फार्मूलेशन) के परीक्षण के दौरान इस्तेमाल में लिया जाना भी शामिल है।

(लेख में निहित विचार निजी हैं) 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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