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भारत
राजनीति
“मोदी की सुरक्षा में चूक या राजनीतिक ड्रामा?” क्या सोच रहे हैं पंजाब के लोग! 
जिला लुधियाना के नौजवान किसान जगजीत सिंह का कहना है, “पहली बात तो किसान मोदी के काफिले से करीब एक किलोमीटर दूरी पर थे। दूसरी बात उनके पास कोई हथियार नहीं थे। वह कम से कम मोदी को काले झंडे दिखा सकते थे या मुर्दाबाद कर सकते थे जोकि उनका लोकतान्त्रिक अधिकार है। यह कैसा प्रधान सेवक है जो अपनी ही जनता से डरता है?”
शिव इंदर सिंह
11 Jan 2022
security lapse
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

5 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब के सरहदी ज़िला फिरोज़पुर में होने वाली रैली ‘सुरक्षा में खामियों` के कारण रद्द होने के बाद इस मुद्दे पर राजनीति तेज़ हो गई है। केंद्र सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता पंजाब की चन्नी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि यह उनकी गलती है और पंजाब की कांग्रेस सरकार ने जान-बूझकर भाजपा की रैली को असफल करने के लिए प्रधानमंत्री की जान को खतरे में डाला है। पंजाब के मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी इन तमाम आरोपों को झुठलाते हुए कह रहे हैं, “प्रधानमंत्री की सुरक्षा में कोई कोताही नहीं हुई, उन्होंने जाँच टीम बिठा दी है। भाजपा की अपनी रैली में लोग इकठ्ठा नहीं हुए और सुरक्षा का बहाना बनाकर पंजाब और पंजाबियत को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है।” दूसरी तरफ पंजाब के किसान नेता, बुद्धिजीवी और साधारण जनता इसे भाजपा का पाखंड बता रहे हैं। इस मामले में कई नयी बातें सामने आ रही हैं, जो भाजपा और केन्द्र सरकार द्वारा किये जा रहे दावों पर सवालिया निशान खड़ा करती हैं।

ध्यातव्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 जनवरी को फिरोज़पुर में भाजपा चुनावी रैली को सम्बोधन करना था। 2 जनवरी को ही पंजाब के 12 किसान संगठनों ने इस रैली के विरोध में और लखीमपुर खीरी मामले में केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा की बर्खास्तगी व गिरफ्तारी की मांग व दिल्ली के बॉर्डर से आंदोलन खत्म करते समय केंद्र सरकार ने जो वायदे किये थे वह पूरे न होने को लेकर सांकेतिक धरने देने का ऐलान किया था। इस ऐलान के तहत गांव-गांव में मोदी के पुतले फूंके जाने थे और ज़िला सचिवालयों के आगे प्रदर्शनों के आयोजन का फैसला किया गया था।

2 जनवरी को ही पंजाब के गांवों में मोदी के पुतले फूंकने शुरू हो गये थे। लेकिन किसी भी किसान संगठन का प्रोग्राम मोदी के काफिले को रोकने का नहीं था और न ही रैली वाली जगह पर प्रदर्शन करने का था। सिर्फ एक किसान संगठन ‘किसान मजदूर संघर्ष कमेटी’ ने 5 जनवरी को मोदी की रैली वाली जगह प्रदर्शन करने की बात की थी पर उनसे केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने मीटिंग करके मसला हल कर लिया था। 5 जनवरी को बारिश होने के कारण नरेंद्र मोदी बठिंडा हवाई अड्डे से सड़क के रास्ते हुसैनीवाला के लिए निकले जहाँ शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का समाधि स्थल है। यह अभी भी विवाद का विषय है कि हुसैनीवाला जाना मोदी के शड्यूल में पहले से था या नहीं?

बठिंडा से हुसैनीवाला की दूरी लगभग 130 किलोमीटर है। हुसैनीवाला शहीद यादगार से करीब 30 किलोमीटर दूरी पर ही जब मोदी का काफिला पहुंचा तो पता लगा कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क जाम की हुई है। मोदी की गाड़ी प्रदर्शनकारियों के धरने से करीब एक किलोमीटर पीछे थी। प्रधानमंत्री का काफिला करीब 15 से 20 मिनट तक उसी फ्लाईओवर पर रुका रहा। इसके बाद प्रधानमंत्री का काफिला बिना हुसैनीवाला और रैली पर जाये वापिस बठिंडा हवाई अड्डे की तरफ रवाना हो जाता है। केंद्र सरकार के नजदीक मानी जाने वाली खबर एजंसी एएनआई के मुताबिक, “मोदी ने वापिस बठिंडा हवाई अड्डे पर पहुंचकर सरकारी अधिकारी से कहा कि ‘अपने मुख्यमंत्री का धन्यवाद करना कि मैं बठिंडा हवाई अड्डे से ज़िंदा वापिस जा रहा हूँ’

क्या प्रधानमंत्री की जान सच में खतरे में थी इस बारे में न तो प्रधानमंत्री ने खुद आगे आकर कोई बयान दिया है न पीएमओ का कोई बयान आया है और न ही एस.पी.जी. की कोई प्रतिक्रिया आई है लेकिन भाजपा नेताओं ने इसे ज़ोर शोर से उछालना शुरू कर दिया।

गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार से इस मामले में सम्बंधित रिपोर्ट मांगी है। गृह मंत्री अमित शाह ने पंजाब सरकार को घेरते हुआ कहा कि कांग्रेसी लीडरशिप को अपने कार्य के लिए देश से माफ़ी माँगनी चाहिए। भाजपा के प्रधान जेपी नड्डा ने आरोप लगाया कि पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी ने मेरा फोन नहीं उठाया। पंजाब में भाजपा के हाल ही में मित्र बने कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस मुद्दे को लेकर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने तो यहाँ तक आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी देश के प्रधानमंत्री को शारीरिक नुकसान पहुँचाना चाहती थी।

इसी तरह ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी की भी सख्त प्रतिक्रियायें सामने आई हैं। पंजाब की दूसरी विपक्षी पार्टियों शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मुद्दे पर चन्नी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को इतना तूल दिया कि ‘सुरक्षा में खामी’ का मुद्दा पीछे रह गया और ‘प्रधानमंत्री की जान को खतरा’ प्रमुख मुद्दा बन गया। भाजपा ने कई राज्यों में प्रधानमंत्री की लम्बी आयु के लिए महा मृत्युंजय पाठ आयोजित किये जिसमें भाजपाई मुख्यमंत्रियों के अलावा भाजपा के बड़े नेता शामिल हुए।

दूसरी तरफ पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का कहना है कि प्रधानमंत्री दौरे के दौरान सुरक्षा में कोई कोताही नहीं हुई, भाजपा इसे सियासी रंग दे रही है। उन्होंने कहा है कि न ही प्रधानमंत्री को कोई खतरा था और न ही उनपर कोई हमला हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य के डीजीपी ने भाजपा को पहले ही सचेत किया था कि बारिश व आन्दोलन के कारण प्रोग्राम रद्द कर दिए जाएँ तो ठीक रहेगा। चन्नी ने कहा कि फिरोजपुर रैली के प्रबंध में केन्द्रीय एजेंसियों ने पंजाब सरकार की भूमिका को सीमित किया हुआ था। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से जा रहे थे तो पंजाब पुलिस के अफसरों ने सड़क जाम वाली जगह से पहले ही काफ़िला रोक कर जानकारी दे दी थी और वैकल्पिक मार्ग भी सुझाया था। केंद्र सरकार के अधिकारियों ने ही वापस मुड़ने का फैसला लिया। किसान भी अचानक ही सड़क पर आ गये थे। 

उन्होंने कहा कि भाजपा जानबूझकर राजनीति कर रही है क्योंकि उनकी रैली सुपरफ्लॉप सिद्ध हुई अब वे ‘प्रधानमंत्री की सुरक्षा में खामी’ का बहाना बनाकर अपनी बेइज्जती से बचना चाहते हैं। यह बताना ज़रूरी है कि भाजपा की रैली में नाममात्र ही लोग पहुंचे थे। भाजपा द्वारा 25 एकड़ जगह में डेढ़ लाख लोगों के इकठ्ठा होने का दावा किया जा रहा था पर लोगों की गिनती बहुत कम थी। अंग्रेज़ी के अख़बार `द ट्रिब्यून` की खबर के मुताबिक यह गिनती सिर्फ पांच हजार के करीब थी। कुछ पंजाबी मीडिया संस्थान इस गिनती को दो से ढाई हजार के करीब बताते हैं। रैली की ऐसी फोटो और वीडियो सामने आयी हैं जिसमें दिखाई देता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा नेता खाली कुर्सियों को ही संबोधन करता रहा। किसानों ने भी कुछ जगहों पर भाजपा की रैली में जाने वाली बसें रोकीं थीं पर उनमें से बहुत सारी बसों में लोगों की गिनती आधी या आधी से भी कम थी। 6 जनवरी को पंजाबी ट्रिब्यून में छपी खबर में लिखा है कि किसानों द्वारा रोकी एक बस में बैठी औरतें कहती हैं कि हमें तो दिहाड़ी पर रैली में ले जाया जा रहा है।

मुख्यमंत्री चन्नी ने कुछ मीडिया संस्थानों को अपना इंटरव्यू देते हुए अपनी गाड़ी में बिठा कर दिखाया कि विरोध प्रदर्शन तो लोग उनका भी कर रहे हैं। वह आराम से गाड़ी से निकलकर उनकी बातें सुनते हुए दिखाई देते हैं। अभी तक इस मामले में पंजाब व केंद्र सरकार द्वारा जाँच कमेटियां गठित की गई हैं। पंजाब सरकार द्वारा गठित की गई कमेटी में रिटायर्ड जस्टिस महताब सिंह गिल व प्रमुख सेक्रेटरी अनुराग वर्मा शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब व हरियाणा के रजिस्ट्रार जनरल को पंजाब सरकार, पंजाब पुलिस व केन्द्रीय एजेंसियों से प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान सुरक्षा प्रबंधों का सारा रिकॉर्ड अपने कब्ज़े में लेने की हिदायत दी है। दूसरी ओर इस मामले में केंद्र सरकार ने एनआईए को जाँच में शामिल करने की मांग की है।

पंजाब की राजनीति को लम्बे समय से कवर करते आ रहे सीनियर पत्रकार जगतार सिंह का विचार है, ‘जान बचा कर आने वाली` स्टेटमेंट एक खबरी एजेंसी से सामने आती है जिसको अभी तक पीएमओ ने स्पष्ट नहीं किया जोकि करना चाहिए था। कृषि कानून रद्द होने के बाद यह पी.एम. का यह पहला पंजाब दौरा था। पी.एम. के दौरे के समय एक हफ्ता पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। हर एजेंसी उसमें शामिल होती है। यह जिम्मेदारी किसी राज्य के मुख्यमंत्री या राज्य के गृहमंत्री की नहीं होती बल्कि स्टेट टू स्टेट होती है। जब केंद्र को पीएम का दौरा प्लान करना होता है तो वह सीएम के साथ नहीं बल्कि राज्य के चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी के साथ प्लान करते हैं। कहा गया है कि मौसम की खराबी के कारण प्रधानमंत्री को सड़क के रास्ते जाना पड़ा।

मौसम की रिपोर्ट एक हफ्ता पहले आम लोगों के पास भी होती है। केंद्र इस मामले में स्पष्ट करे कि जब प्रधानमंत्री का जहाज़ दिल्ली से उड़ा तब उनके पास मौसम की रिपोर्ट थी या नहीं? इसलिए सड़क से जाने वाली दलील में कोई दम नहीं है। दूसरी बात वीआईपी साधारण हेलिकॉप्टर नहीं बल्कि `आल- वैदर` हैलीकाप्टर इस्तेमाल करते हैं। चंडीगड़ के हवाई अड्डे में भी ‘आल- वैदर` हैलीकाप्टर मौजूद हैं। जो बात मुझे समझ आती है वह यह है कि रैली में कोई भीड़ नहीं थी कुर्सीयां खाली थीं, जब मोदी को इस बात का पता लगा तो उन्होंने सोचा होगा कि हम सड़क के रास्ते चले जाते हैं ताकि टाईम निकल जाये और लोग आ जाएँ। लेकिन पंडाल भरना ही नहीं था। मुझे लगता है भाजपा अपनी विफलता को छुपाने के लिए यह सब कर रही है। मैंने आज तक मोदी की किसी रैली का ऐसा बुरा हाल नहीं देखा। सरहदी इलाका होने के कारण पंजाब में हर तरह की एजेंसियां कार्यशील हैं। यदि किसान प्रदर्शन हो रहा था या रास्ता ब्लॉक था तो यह रिपोर्ट उनके पास भी होनी चाहिये थी। भाजपा अब इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बना कर इसका फ़ायदा यूपी में लेना चाहती है।

देश के कई नामवर रक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि प्रधानमंत्री के दौरे के समय सभी केन्द्रीय और राज्य एजेंसियां सक्रिय होती हैं। एसपीजी, एएसएल और राज्य के डीजीपी का आपस में तालमेल होता है। सभी एजेंसियां ने एसपीजी के अधीन काम करना होता है। अब सवाल यह उठता है यदि राज्य पुलिस ने यह जानकारी दे दी थी कि रोड साफ़ है तो क्या एसपीजी ने अपनी तरफ़ से इसकी जाँच की? पंजाब में किसानों का रोष करने का प्रोग्राम 4 दिन पहले से था, 2 जनवरी को उन्होंने अपना प्रदर्शन शुरू कर दिया था, यह जानकारी एसपीजी को क्यों नहीं थी? प्रधानमंत्री को इस तरह के हालात में रोड से इतने लंबे सफर पर क्यों ले जाने का फैसला किया गया? क्या एसपीजी की कोई भी ज़िमेवारी नहीं बनती? अभी तक इस बारे एसपीजी के मुखिया का कोई बयान क्यों नहीं आया। यह तमाम सवाल खड़े करता है।

प्रधानमंत्री के काफिले को जिस जगह रुकना पड़ा उस से 1 किलोमीटर आगे जिस किसान संगठन का धरना था उसका नाम है बीकेयू(क्रांतिकारी)। इस संगठन के नेता बलदेव सिंह ज़ीरा बताते हैं, “मेरी अगुवाई में डेढ़ सौ के करीब किसान फ़िरोज़पुर जा रहे थे। हमें अपने संगठन द्वारा निर्धारित किए प्रोग्राम के मुताबिक डिप्टी कमिशनर दफ्तर के आगे प्रधानमंत्री की नीतियों के खिलाफ धरना प्रदर्शन करना था। पर रास्ते में ही यह सब हो गया। जैसे ही हमारा काफिला पियारेआना गांव के नजदीक पहुंचा तो पुलिस ने हमें राष्ट्रीय राजमार्ग पर रोक लिया। मैं अपने दिल पर हाथ रख कर आप को बताता हूँ हमें कोई इल्म नहीं था कि प्रधानमंत्री इस सडक से गुजरेंगे।”

बलदेव सिंह आगे बताते है, “हमें तो पुलिस प्रशासन ने यही कहा था कि भाजपा वर्कर्स को बसों से यहाँ से गुजरने दिया जाये हम मान भी गए थे। पर जब भाजपा कार्यकर्ता हिंसा पर उतर आये तो फिर किसानों ने पुलिस प्रशासन को कहा कि हम किसी भी कीमत पर रास्ता नहीं छोड़ेंगे। प्रधानमंत्री कब वापिस चले गये हमें कुछ भी नहीं पता” इसी तरह दो वीडियो भी सामने आते हैं। जिसमें बलदेव सिंह किसानों को संबोधन करते हुए बोल रहे हैं “पुलिस वाले भाई हमें कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री इस रास्ते से आ रहे हैं हम रास्ता छोड़ दें। क्योंकि हमारे पुलिस वाले भाई अपनी नौकरी का वास्ता दे रहे हैं पर प्रधानमंत्री तो हेलिकॉप्टर से आयेंगे वह हुसैनीवाला पहुँच गये हैं मीडिया वाले बता रहे हैं यह पुलिस वाले हमें डिप्टी कमिशनर दफ्तर जाने से रोकना चाहते हैं’’ 

दूसरी वीडियो में किसान सभी को लंगर छकने को कहते हैं और यह बोला जा रहा है कि बाबे नानक का लंगर सब के लिए हैं भाजपा वाले भी छक कर जाएँ। एक और वीडियो और कुछ फोटो से पता चलता है कि प्रधानमंत्री के काफिले के बिल्कुल पास आकर नारे लगाने वाले भाजपा के ही कार्यकर्ता हैं उनमें से एक की तस्वीरें भाजपा की प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसी नेता के साथ भी हैं। यह लोग हाथों में भाजपा के झंडे लिए मोदी और भाजपा की जय जयकार कर रहे थे।

बीकेयू(डकोंदा) के नेता नरायण दत्त कहते हैं, “मोदी को क्या अपने ही देश के किसानों से खतरा था? इन किसानों के पास ऐसे कौन-से हथियार थे कि उन्हें कहना पड़ा कि वह जान बचा कर आयें हैं? ये वही किसान हैं जिन्होंने दिल्ली की सरहदों पर पूरा एक साल शांतिमय आंदोलन किया है जिसका लोहा पूरी दुनिया ने माना है। असल में मोदी और उनकी भाजपा अपनी रैली के असफल होने से घबरा गई है। उन्हें दीवार पर लिखा पढ़ लेना चाहिये कि यह पंजाब की मिट्टी है यहाँ साम्प्रदायिक नफरत करने वालों की कोई जगह नहीं है। अब पूरा संघी खानदान सुरक्षा के नाम पर पाखंड कर पंजाब, पंजाबियों और किसानों को बदनाम करना चाहता है पर इसमें ये सफल नहीं होंगे”

जिला लुधियाना के नौजवान किसान जगजीत सिंह का कहना है, “पहली बात तो किसान मोदी के काफिले से करीब एक किलोमीटर दूरी पर थे। दूसरी बात उनके पास कोई हथियार नहीं थे। वह कम से कम मोदी को काले झंडे दिखा सकते थे या मुर्दाबाद कर सकते थे जोकि उनका लोकतान्त्रिक अधिकार है। यह कैसा प्रधान सेवक है जो अपनी ही जनता से डरता है? मुझे लगता है कि मोदी को उनके और उनकी पार्टी द्वारा किये कर्म ही डरा रहे थे। पंजाब के लोग तो अपने मेहमान को सर आँखों पर बिठाते हैं, चाहे मेहमान कैसा भी हो’’

पंजाब के प्रसिद्ध राजनैतिक विशेषज्ञ प्यारा लाल गर्ग का विचार है, “प्रधानमंत्री देश के प्रधानमंत्री की तरह नहीं बल्कि भाजपा के प्रधानमंत्री की तरह व्यवहार कर रहे हैं। मुझे तो यह सब ड्रामा नजर आता है। यह ऐसा ड्रामा है जिसमें पंजाब को बदनाम कर, अपने लिए हमदर्दी बटोर कर सुरक्षा या भावुकता का पत्ता खेलकर, इसका फ़ायदा यूपी और उतराखंड में लेना चाहते हैं। मोदी तो शहीद हुए किसानों के बारे में भी यह सोचते हैं कि वे उनके लिए थोड़े मरे हैं! भाजपा के नेताओं ने जब-जब किसानों को बदनाम किया, मोदी ने कब उन्हें रोका है? मोदी का पंजाबियों के बारे में यह रवैया उन्हें पंजाबियों से और दूर कर सकता है”

पंजाब और गुजरात की राजनीति को लंबे समय से कवर करने वाले सीनियर पत्रकार राजीव खन्ना का मानना है “मैंने काफी गौर से यह देखा है कि मोदी जब भी खुद घिरते हैं तो वह हमदर्दी बटोरने की कोशिश करते हैं। चाहे रो लें या अपनी जान को खतरे की बात कर लें। मौजूदा मामला भी देखा जाये तो कुछ नहीं है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में जो चूक हुई है उसके लिए मुख्य तौर पर एसपीजी जिम्मेवार है। दूसरी बात, यह मामला कुछ अधिकारियों पर कार्यवाही तक सीमित था जिसे कि `जान के खतरे` का नाटक बना दिया गया। क्या मोदी पहले कभी जाम में नहीं फंसे? बहुत सारी ऐसी जगह हैं जहाँ भाजपा समर्थक बिल्कुल उनकी गाड़ी के पास आकर `मोदी  जिंदाबाद` करते हैं मोदी खुद उनकी ओर हाथ हिलाते हैं। एक बार तो ऐसे भक्तों ने उनकी गाड़ी के पास आ कर उन्हें पगड़ी भी पहनाई थी। क्या वह सुरक्षा में चूक नहीं थी? उस समय क्या कार्रवाई हुई? क्या उस समय रूल अलग हैं? यह कौन-सा नियम है कि सिर्फ जिंदाबाद करने वाले ही प्रधानमंत्री के पास जाएँ? इस मामले में तो किसान मोदी के पास भी नहीं थे उनके काफिले के पास भाजपा समर्थक थे। यदि `शक्तिशाली प्रधानमंत्री` को इतनी सुरक्षा के होते हुए भी डर लगता है तो वह देश की रक्षा कैसे करेंगे? 

आखिरी बात, प्रधानमंत्री मोदी को याद रखना चाहिए कि यह लोकतंत्र है यहाँ `जिंदाबाद` के नारे भी सुनने पड़ते है और `मुर्दाबाद` के नारे भी, उनसे पहले प्रधानमंत्रीयों ने भी ऐसे नारे सुने हैं”।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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