NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
सोशल मीडिया
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
प्रधानमंत्री जी, ‘जनता कर्फ़्यू’ तो ठीक है, लेकिन आप बताइए कि सरकार का क्या इंतज़ाम है?
सोशल मीडिया से : यह जनता का काम है कि वह संयम और अनुशासन की हर सलाह पर अमल करे और यह भी कि वह सरकारों पर दबाव बनाए कि वे अब देर से ही सही, सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा सेवाओं को आम जन तक पहुंचाने में कोताही न करे। यह संदेश सुनिश्चित किया जाए कि एक वैश्विक और राष्ट्रीय संकट में जो संसाधन हैं, वे सब के लिए हैं। 
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
20 Mar 2020
जनता कर्फ़्यू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुरुवार रात राष्ट्र के नाम संबोधन और ‘जनता कर्फ़्यू’ के आह्वान पर सोशल मीडिया पर तेज़ी से प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। बहुत लोगों ने उनके इस कदम का स्वागत किया है तो बहुतों ने कई तरह की आपत्तियां जताई हैं। बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिन्होंने प्रधानमंत्री की सलाह का तो स्वागत किया है और अपनी ओर से हर तरह का ऐहतियाती कदम उठाने की ज़रूरत भी मानी है, लेकिन साथ ही ये भी पूछा है कि सरकार की भी कोई ज़िम्मेदारी है? क्या सरकार भाषण और सलाह के अलावा अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभा रही है?

आइए पढ़ते हैं सोशल मीडिया पर आईं कुछ ख़ास प्रतिक्रियाएं। शुरुआत उस शख्स से जो आमतौर पर मोदी समर्थक माने जाते हैं। राष्ट्रीय गौ रक्षा वाहिनी के राष्ट्रीय मंत्री और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (यूथ विंग) के राष्ट्रीय प्रचार प्रभारी हैं। जी हां, पत्रकार और टीवी एंकर डॉ. इमरान खान अपनी फेसबुक वॉल पर लिखते हैं -  

माफ़ कीजिएगा आदरणीय प्रधानमंत्री जी..थाली पीटने  के बजाय मैं अपने देश के डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के समर्पण के प्रति एक पोस्ट लिखकर शांत रहना ज़्यादा पसंद करूंगा..

हर चीज को बाज़ार में चीखकर बेचना ज़रूरी नहीं..परम श्रध्देय आप आत्मश्लाघा से भर चुके हैं.. आप शांत रहें और दुनिया को आपका मूल्यांकन करने दें. कम से कम    मेरे हिंदुत्व की महान परंपरा तो इसी धारा की रही है..

और रही बात जानकारी की तो जो जानकारियां आपने बांटी वो पिछले करीब एक महीने से सोशल मीडिया में दौड़ रही हैं..इसमें नया कुछ भी नहीं था.. हां अगर आप 

1- ये बताते की टेस्ट कम क्यों हो रहे है?? 

2- अगर विस्फोटक स्थिति जिसका ज़िक्र आप कर रहे थे होती है तो आपका क्या प्लान है??  क्योंकि हमारे यहां हज़ार मरीजो पर एक डॉक्टर भी नहीं है.. 

3- आप ये बताते की जो Corona वायरस को आइसोलेट करने की बात है वो कितनी सच है और उससे होगा क्या??

मैंने आपके परम मित्र ट्रंप की और ब्रिटेन के पीएम की प्रेस कॉन्फ्रेंस देखी Corona को लेकर..उनके पास कंटेंट था, वो बता रहे थे क्या तैयारियां हैं,  जानकारी स्पेसिफिक थी.. वो थाली बजाने या गीत गाने को नहीं कह रहे थे, न मैंने सुना..

मैं जानता हूं बहुत सारे लोग असहमत होंगे, उनसे विनम्र माफी मांगते हुए, आपकी थाली पीटने वाली इटालियन नकल की मै हिमायत नही करता...

भारत माता की जय..

....

लेखक और शिक्षक सुजाता लिखती हैं-

मुखर-    करोना का भय और पैनिक की स्थिति में लोगों को यह बड़ी बात नहीं लग रही है कि पीएम ने जनता-कर्फ्यू की बात की लेकिन यह नहीं बताया कि सरकार की इससे निपटने की तैयारी क्या है? कोई योजना और कोई प्लान नहीं है। 

स्वगत-  टीवी-कर्फ्यू से भी काम चल सकता था। रिपब्लिक वाले एंकर ऐसे बात करते हैं जैसे टीवी सेट से निकल कर गला पकड़ लेंगे हमारा।

मुखर- लेकिन, उन्होंने एक ज़रूरी बात कही कि खामखाह में सामान भंडारण मत कीजिए। पैनिक मत होइए। पर बाज़ार में जाइए, दुकानों की हालत देखकर आप ख़ुद पैनिक होकर राशन भरने लगेंगे घर में। 

स्वगत-  पीएम, विदेश जाना तो दूर, लोकसभा तक के लिए नहीं निकले। पैनिक तो होना ही है।

मुखर- सही कहें तो नवरात्रि पर नौ हिदायतें तो दी गई लेकिन इस भाषण से समझ नहीं आया कि हमें डराया गया या आश्वस्त किया गया!  

स्वगत-   उम्मीद है भाषण रिकॉर्डिंग के बाद सर ने साबुन से हाथ धो लिए होंगे।

(एक नाटक में कुछ सम्वाद मुखर होते हैं कुछ स्वगत होते हैं। स्वगत यानी अपने आप से की जाने वाली बात।)

....

शाहिद अख़्तर ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है – “आईए थाली और ताली पीटने की जगह रविवार 22 मार्च को शाम 5 बजे “हम देखेंगे” गाएं!”

.....

संतोष चंदन लिखते हैं-

"जनता कर्फ्यू"......हा-हा !!

सुनते ही पहली प्रतिक्रिया मेरी यही थी लेकिन बाद में लगा ये तो बहुत भयंकर थ्योरी है। कहा भी गया कि 'जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए 'जनता कर्फ्यू'। मतलब जनता के कंधे पर रखकर जनता के ख़िलाफ़ ही निशाना लगाया जा रहा है ! 

कौन ऐसी जनता है जो कर्फ्यू लगाकर अपनी ही आज़ादी पर अंकुश लगाएगी।

एक तो अघोषित इमरजेंसी पहले से ही है वह भी ऐसा-वैसा नहीं। हाकिम के ख़िलाफ़ ज़रा भी मुंह खोले तो सीधे गोली मार देंगे। और फिर कोरोना को लेकर 'हेल्थ इमरजेंसी' घोषित कर ही दिया गया है। और अब जनता के नाम पर पूरे देश में कर्फ्यू लगाना सीधी तौर पर इमरजेंसी थोपने की साज़िश नहीं तो और क्या है ?

कोरोना वायरस के चलते अगर सरकार को इतनी ही फिक्र है जनता की तो ऐन इसी वक़्त 'सीएए-एनआरपी-एनआरसी' वापस ले। ज्योंहि ये 'नागरिकता का नर्क' खत्म होगा देश भर के शाहीन बाग़ भी तुरंत ही अपने-अपने घरों को चले जाएंगे। लेकिन 'सीएए-एनपीआर-एनसीआर' पर तो ये भगवा... सरकार "एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे" वाली पोज़िशन में है। ऐसे में, जब सरकार ने जनता के ख़िलाफ़ लड़ाई ठान ही ली है तो जनता एक इंच तो दूर, सूईं की नोक बराबर भी पीछे नहीं हटनेवाली।

ध्यान रहे, सरकार मुट्ठी भर लोगों की होती है जबकि जनता विशाल.. गिनना भी मुश्किल.

कुल मिलाकर, कोरोना क्रोनोलॉजी के बहाने "जनता कर्फ्यू"...कोरोना के ख़िलाफ़ जंग नहीं, आत्म समर्पण है। और हमें हर हाल में बहादुरों की तरह लड़ना पसंद है, डरपोक की तरह मैदान छोड़कर भागना नहीं।

...फिर जब शाहीन बाग़ साथ है तो डरें भी क्यों !!

....

पत्रकार धीरेश सैनी ने विस्तार से लिखा है-

केरल एक छोटा सा राज्य है जहाँ की लेफ्ट सरकार ने बाढ़ की भयंकर विभीषका के दौरान भी हार नहीं मानी थी। मंत्री अपने कंधों पर सामान ढोते दिखाई देते थे। खजाने का मुँह जनता को बचाने के लिए खोल दिया गया था। मददगारों से आ रही राहत राशि और सामाग्री के वितरण में पारदर्शिता की मिसाल कायम की थी। अफ़सोस कि तब अपनी ही जनता के संकट को लेकर देश का एक हिस्सा भयानक दुष्प्रचार कर रहा था और केरल की मदद नहीं करने की अपील के मैसेज भी वायरल कर रहा था। अफ़सोस यह कि ऐसा करने वालों में ट्रोल सेना ही नहीं थी बल्कि केंद्र सरकार से जुड़े कई बड़े लोग भी थे। गुरुमूर्ति का ट्वीट आपको याद होगा। जनता के संकट में फंसे होने के वक्त ही केंद्र सरकार के निराशाजनक रवैये की बानगी रेकॉर्ड पर है। 

यही राज्य इस वक़्त कोरोना के हमले से निपटने के लिए फिर एक मॉडल पेश कर रहा है। यह ठीक है कि वायरस की कोई वैक्सीन फ़िलहाल नहीं है। सोशल डिस्टेंसिंग एक ज़रूरी क़दम है लेकिन इससे लड़ने का रास्ता सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी और सामूहिकता में ही है। इस तरह कि हर नागरिक बिना शेख़ी बघारे और गौमूत्र, गंडा, ताबीज़ वगैरह के नाम पर पर भ्रमित हुए बग़ैर इस बात को समझे कि ग़ैरज़िम्मेदारी उसे और पूरे समाज को संकट में डालती है।

यह काम सरकार का है कि वह जनता का अनावश्यक मूवमेंट रोकने के लिए हर उस शख़्स जिसके पास बिना काम पाए एक वक़्त भी रोटी खाना मुश्किल हो, उस तक रोटी, इलाज़ और इस वक़्त उनकी निरीह ज़रूरियात पहुंचाने का बंदोबस्त करे। नागरिकों से वसूलियां स्थगित करे और उनके ज़रूरी भुगतान, वेतन, पेंशन वगैराह तुरंत उन तक पहुंचाए। सरकार वास्तविक संकट में फंसे डॉक्टरों को इस बात के लिए प्रेरित करे कि यह उनके जान जोखिम में डालकर ख़ुद के डॉक्टर होने का हक़ साबित करने का वक़्त है। इसके लिए सबसे पहले ज़रूरी है कि डॉक्टरों को लगे कि सरकार के पास जो भी संसाधन हैं, उन्हें सचमुच इस बीमारी से लड़ने में काम में लाया जा रहा है। उनके मास्क व सुरक्षा के ज़रूरी इक्विपमेंन्ट्स मुहैया कराने में बेईमानी नहीं की जा रही है।

यह जनता का काम है कि वह संयम और अनुशासन की हर सलाह पर अमल करे और यह भी कि वह सरकारों पर दबाव बनाए कि वे अब देर से ही सही, सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा सेवाओं को आम जन तक पहुंचाने में कोताही न करे, सरकारी और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों  और आम लोगों के राशन और इस बीमारी के दौरान की ज़रूरतों को युद्धस्तर पर उन तक पहुंचाए। और साफ पानी की उपलब्धता सब के लिए सुनिश्चित हो। कोरोना के नाम पर खजानों को मुंह पहले से ही देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य के ढांचे को लूटकर खा जाने वाले कॉरपोरेट को छूट देने के लिए न खोले। सरकारी और सभी ग़ैर सरकारी अस्पतालों को एक नियंत्रण (जनता के मतलब सरकार के) में लिया जाए और यह संदेश सुनिश्चित किया जाए कि एक वैश्विक और राष्ट्रीय संकट में जो संसाधन हैं, वे सब के लिए हैं। 

लोगों को सोचना चाहिए कि चीन में वायरस फैलने के बाद हमारी रहनुमा और हमारा मीडिया क्या कर रहा था। अब क्या करना चाहिए। पहले ही पिछले सालों में सार्वजनिक स्वास्थ्य के बजट में कटौती हुई हैं। जिन लोगों को सरकार से सवाल पूछना और इन ज़िम्मेदारियों के लिए कहना इस वक़्त के लिहाज़ से बुरा लग रहा है और जो ट्रोलिंग में लगे हुए हैं, वे भूल रहे हैं कि ऊपर के एक तबके के अलावा इस बीमारी से बाक़ी का सुरक्षा घेरा बेहद कमज़ोर है। वायरस भक्त-ग़ैर भक्त, जाति, धर्म का भेदभाव नहीं करता है। सरकार से बचाव के ज़यादा से ज़्यादा ठोस कार्यक्रम सुनिश्चित कराकर उनका पालन करा लेने में ही उनका और पूरे समाज का बचाव संभव है।

...

फेसबुक पर आकांक्षा पांडेय गांधी लिखती हैं-

कोरोना वायरस को लेकर भारत सरकार बड़े बड़े दावे कर रही है जिसमे वह कह रही है कि हम इस वायरस से लड़ने में सक्षम है और ज़ी न्यूज़ ने तो "कोरोना की मौत मरेगा पाकिस्तान"तक कह दिया है न्यूज़ चला दी है।

भारत के छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई हासिल करने के लिए फिलीपींस में रह रहे है, वहां की सरकार ने भारतीय छात्रों को निकाल दिया है।

वह अब कई दिनों से अपने बैग के साथ एयरपोर्ट पर सो रहे है। आंखे खुलती है तो भारतीय दूतावास को कॉल करते है , ईमेल भेजते है लेकिन भारतीय दूतावास ना उनके कॉल रिसीव कर रहा है ना उनके ईमेल का जवाब दे रहा है।

बाहर के लोगों को नागरिकता देनी वाली सरकार अपने ही देश के नागरिकों को मुसीबत में छोड़ रही है उनको टिकट तक नही दिया जा रहा है।

प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद हैदर रिज़वी लिखते हैं :

मुझे उम्मीद थी देश को आज सरकार द्वारा लिये गये ठोस कदमों की जानकारी दी जायगी, ताकि जनता अपनी सरकार पे ज्यादा भरोसा करे और पैनिक कम हो

-ट्रेनों बसों को अभी तक डिएंफेक्ट करना नही शुरू किया

-सैनेटायजर मुश्किल से बीस रूपये में एक लीटर बन सकता है, प्राइवेट कंपनियां लूट रही हैं... सरकार ने आगे बढ कोई स्टेप नहीं लिया अभी

-मास्क हर स्टेशन पर फ्री मिलने शुरू हो जाने चाहिये थे

-कई स्टेट्स में अभी तक केवल एक ही सेंटर बना है, जो इतने बडे देश में ऊंट के मुंह में जीरा है

- लोकल डॉक्टर्स की अब तक ट्रेनिंग शुरू हो जानी चाहिये थी... बलिया में किसी को थ्रोट इंफेक्शन हो जाय तो वो पैनिक तो होगा ही

मोदी जी जाने कब अपने तालियां बजववाने वाले इवेंट मोड से बाहर निकलेंगे और जनता को लॉलीपॉप देना बंद करेंगे.... 

ये भारत के लिये जटिल समय है, और ये बातों से नहीं प्रीप्लान्ड ऐक्शन्स से ही सफल होगा

कवि-लेखक अशोक कुमार पांडेय लिखते हैं-  

ठीक है। वही बातें थीं जो लोग अक्सर जानते हैं। मुझे उम्मीद थी कि कुछ सरकारी उपाय भी बताए जाएँगे। कम से कम निजी क्षेत्र के अस्पतालों का कोरोना के रोकथाम, जाँच और इलाज़ में अधिक इस्तेमाल करने के लिए कोई नियम बनेगा। 

लेकिन कुछ ऐसा नहीं कि विरोध किया जाए। सलाहें सब ऐसी हैं जो मानी जानी चाहिए। जनता कर्फ़्यू भविष्य के लॉक डाउन का एक ड्रिल हो सकता है। संडे को लोग बाहर न निकलें छुट्टी मनाने न निकलें तो बेहतर ही है। 

ठीक है। उम्मीद तो ज़्यादा की होगी ही फिर भी फ़िलहाल एक आपदा का समय है। वे करें तो करें हम रोक सकते हैं न राजनीति?

पत्रकार दिलीप ख़ान लिखते हैं -

किसी भी घटना को इवेंट में बदले बग़ैर इस आदमी को रोमांच नहीं आता। कोरोनावायरस जैसे सीरियस मुद्दे पर देश को संबोधित करने के दौरान इसने सबसे ज़्यादा ज़ोर एकदिवसीय जनता कर्फ्यू और 5 बजे थाली-ताली बजाने पर दिया।

जो मेन एडवाइज़री/सलाह थी वो गौण हो गई। जो मुख्य गुहार थी, वो पीछे छूट गई। ताली बजवाने के लिए अब देश भर का प्रशासन पहले सायरन बजाएगा। इस तरह कोरोनावायरस उस पांच मिनट की आवाज़ से घबरा जाएगा। 

कॉमन ह्यूमन साइकी यही रिसीव करेगी कि घड़ी देखकर पांच बजे पांच मिनट ताली बजाना ही उसका मुख्य काम है।

जो भूतपूर्व चौकीदार है, वो नौटंकी का सरदार है।

मसूद अख़्तर लिखते हैं -

कुल मिलाकर देश को बता दिया गया कि यदि कोरोना से बचना है तो खुद के भरोसे ही बच सकते हो। सरकार से कोई उम्मीद न करो कि वो कुछ करेगी।

फर्रह शकेब ने लिखा -

चीन ने 10 दिन में 1000 बेड का हॉस्पिटल बनाकर तैयार कर दिया था। स्वास्थ्य व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी। वुहान शहर अब नियंत्रण में है। दुनिया भर के अन्य देशों में इमरजेंसी फण्ड रिलीज़ कर रही है सरकार।

सार्वजनिक स्थानों पर सफ़ाई व्यवस्था रखी जा रही है और सेनेटाइजर से लें कर मास्क सरकार Free में बांट रही है।

आप टीवी पर आकर थाली और ताली बजाइये।

और भक्तों को ख़ुशी से झूमते हुए देख कर आंनदित होते रहिये।

इसी तरह का विचार रिंकू यादव ने व्यक्त किया है-

सरकार कुछ नहीं करेगी,घर में रहिए,थाली पीटिए!

घोषणा सरकार की,

नाम जनता कर्फ्यू!

लेखक-शिक्षक गंगा सहाय मीणा लिखते हैं-

आज की तरह अगर आप 24 फरवरी को भी राष्ट्र, या केवल दिल्ली के नाम संदेश दे देते तो काफी लोगों की जान बच जाती; दिल्ली, देश और सरकार पर दाग लगने से बच जाता! सबसे बड़ी बात, साम्प्रदायिक सौहार्द की हत्या होने से शायद रुक जाती।

Narendra modi
Public Curfew
Coronavirus
novel coronavirus
Social Media
जनता कर्फ़्यू
Facebook
twitter
BJP
modi sarkar

Related Stories

बीजेपी के चुनावी अभियान में नियमों को अनदेखा कर जमकर हुआ फेसबुक का इस्तेमाल

फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये

चुनाव के रंग: कहीं विधायक ने दी धमकी तो कहीं लगाई उठक-बैठक, कई जगह मतदान का बहिष्कार

पंजाब विधानसभा चुनाव: प्रचार का नया हथियार बना सोशल मीडिया, अख़बार हुए पीछे

अफ़्रीका : तानाशाह सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए कर रहे हैं

‘बुल्ली बाई’: महिलाओं ने ‘ट्रोल’ करने के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा

मुख्यमंत्री पर टिप्पणी पड़ी शहीद ब्रिगेडियर की बेटी को भारी, भक्तों ने किया ट्रोल

मृतक को अपमानित करने वालों का गिरोह!

सांप्रदायिक घटनाओं में हालिया उछाल के पीछे कौन?

हेट स्पीच और भ्रामक सूचनाओं पर फेसबुक कार्रवाई क्यों नहीं करता?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License