पिछले तीन दशकों से हमारे देश में निजीकरण के पक्ष में प्रचार चलाया गया है। 1991 की राव-मनमोहन 'रिफ़ोर्म्स' के बाद बताया गया था कि इससे न सिर्फ़ भारत की आर्थिक विकास दर तेज़ी से बढ़ेगी, साथ में ग़रीबी भी घटेगी। लेकिन 30 सालों बाद अब साफ़ है, विकास भी नहीं हुआ और ग़रीब भी वहीं के वहीं रह गए।