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‘दलित अधिकारों की वास्तविक अर्थों में रक्षा’, तमिलनाडु में अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चे की मांग
टीएनयूईएफ के घोषणापत्र में दलितों के खिलाफ प्रचलन में जारी अत्याचारों के खात्मे के लिए मौजूदा कानूनों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
नीलाम्बरन ए
05 Mar 2021
‘दलित अधिकारों की वास्तविक अर्थों में रक्षा’, तमिलनाडु में अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चे की मांग
कैप्शन: मात्र प्रतीकात्मक उपयोग हेतु।

तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा (टीएनयूईएफ) ने राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले एक ‘दलित सामाजिक न्याय घोषणापत्र’ को जारी किया है। ट्रेड यूनियन एवं कम्युनिस्ट नेता, एम सिंगारवेलु की पुण्यतिथि के अवसर पर इस घोषणापत्र को 11 फरवरी के दिन जारी किया गया था।

राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 20.01% है, जो कि 16.6% की राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। जातीय दीवारों और बाड़े के साथ-साथ निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ भेदभाव,पंचमी भूमि को छीन लेने से लेकर हाथ से मैला ढोने तक तमिलनाडु में छूआछूत की प्रथा के प्रचलन में यथावत बने रहने की कोई सीमा नहीं है।

घोषणापत्र में मौजूदा कानूनों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता को प्रमुखता से उठाया गया है, जिससे कि दलितों के खिलाफ इस प्रकार के अत्याचारों को समाप्त करने के साथ-साथ उनके अधिकारों की गारंटी की जा सके। राज्य में दलितों के खिलाफ अत्याचार से जुड़े मामलों में दोषी ठहराए जाने की दर में लगातार बेहद धूमिल प्रदर्शन को देखते हुए इस घोषणापत्र पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। 

इस बात का दावा करते हुए कि राज्य के 600 से अधिक गाँवों में आज भी अस्पृश्यता की प्रथा जारी है, घोषणापत्र ने शासन के भीतर मौजूद भेदभाव पर भी प्रकाश डालने का काम किया है। संगठन ने शिक्षा, रोजगार, भूमि तक अपनी पहुँच बना सकने में मामले में दलितों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में आवश्यक कदम उठाए जाने की मांग की है।

टीआईएनयूईएफ ने सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से अपने चुनावी घोषणापत्र में दलित समुदाय के वाजिब हकों को शामिल किये जाने का आह्वान किया है।

प्रभावित लोगों के लिए न्याय को सुनिश्चित किया जाए  

तमिलनाडु में जातिगत अत्याचारों की संख्या हमेशा से ही अधिक रही है, जिसमें हत्याएं, उनकी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने से लेकर उनके घरों पर हमला करना शामिल है। दलितों पर इस प्रकार के हमलों के मामले में एससी/एसटी (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 का क्रियान्वयन बेहद निराशाजनक रहा है।

इस बारे में टीएनयूईएफ महासचिव, के. सैमुअल राज का कहना है “इस अधिनियम को सच्चे अर्थों में लागू किये जाने की जरूरत है। सरकार को इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे मामलों को  उपर्युक्त धाराओं के तहत दर्ज किया जाए। इसके साथ ही दोषियों की गिरफ्तारी, पीड़ितों की सुरक्षा और उन्हें मुआवजा देने की व्यवस्था की जाए। ऐसे मामलों में सजा की दर 6% से भी कम है, जो इस अधिनियम के कार्यान्वयन में मौजूद छिद्रों को उजागर करता है।”

संगठन ने ऐसे अनेकों मामलों की ओर ध्यान दिलाया है जिन्हें 20 साल पहले दर्ज किया गया था, लेकिन अभी भी मुकदमेबाजी के तहत लंबित पड़े हैं। घोषणापत्र में मांग की गई है कि सरकार को निश्चित तौर पर इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि अपराध के 60 दिनों के भीतर ही प्रथम जांच रिपोर्ट दर्ज करा ली जाए और 120 दिनों के भीतर ऐसे मामलों पर सुनवाई पूरी कर ली जाए। इसके अलावा ऑनर किलिंग की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही हैं, जिसपर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

सैमुअल के अनुसार “फिलहाल समूचे राज्य में मात्र छह विशेष अदालतें काम कर रही हैं, और सरकार को चाहिए कि सभी जिलों में इस प्रकार की अदालतें स्थापित किया जाएँ, ताकि न्याय मिलने में देरी न हो।”

शिक्षा और रोजगार का अधिकार 

नीतियों में स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण के पक्षपोषण के चलते, समुदाय के लिए शिक्षा हासिल कर पाना अज भी बेहद कठिन बना हुआ है। घोषणापत्र में आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के निराशाजनक कार्यान्वयन को भी इंगित किया गया है।

सैमुअल के अनुसार “दलितों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित करना हमारे राष्ट्र के लिए शर्म की बात है। सिर्फ शिक्षा से ही शोषितों की सामाजिक और आर्थिक हैसियत में सुधार को लाया जा सकता है। उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों और शिक्षकों के लिए आरक्षण के घटिया क्रियान्वयन से समुदाय की दयनीय हालत का खुलासा होता है, और इस तरह के बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।” 

घोषणापत्र अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए विशेष स्कूलों और छात्रावासों को स्थापित किये जाने की भी मांग करता है जिससे कि वे अपनी शिक्षा को पूरा कर सकें। घोषणापत्र कहता है कि “किसी भी विद्यार्थी द्वारा बीच में ही अपनी पढाई-लिखाई को छोड़ने के लिए मजबूर होने की स्थिति से बचने के लिए मैट्रिक के बाद की छात्रवृत्ति को जारी रखे जाने की जरूरत है और इसका वितरण समय पर किया जाना चाहिए।” 

राज्य और केंद्र सरकार के विभागों में मौजूदा रिक्त पदों के बैकलॉग का हवाला देते हुए सैमुअल कहते हैं कि “रोजगार में आरक्षण को हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, दलितों की बढ़ती जनसंख्या के बावजूद उनके लिए आरक्षण की सीमा नहीं बढ़ाई गई है। इसके लिए एक कानून बनाया जाना चाहिए, ताकि आनुपातिक आरक्षण को लागू किया जा सके। अरुंथथियारों के लिए आरक्षण दिए जाने पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है।”

मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन हो  

क़ानूनी तौर पर प्रतिबंधित मैला ढोने की प्रथा के बावजूद राज्य में कई जिंदगियों को गंवाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। पिछले आठ वर्षों से मैला ढोने के तौर पर रोजगार पर निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 का कानून अपनी जगह पर बना हुआ है। लेकिन इस सबके बावजूद यह प्रथा आम तौर पर प्रचलन में है, जबकि सरकारें इस पर प्रतिबन्ध लगाने को लेकर कोई चिंता नहीं दिखा रही हैं। टीएनयूईएफ का आरोप है कि राज्य सरकार ने इस कानून को लागू कराने के लिए अभी तक कोई नियम नहीं बनाये हैं।

हाल के ही कुछ हफ़्तों के दौरान हाथ से मैला ढोने के चलते राज्य में 6 जिंदगियों से हाथ धोना पड़ा है, जिसमें से 2 लोग तो सरकारी सचिवालय परिसर में मारे गए थे। पुरुषों को सेप्टिक टैंक और भूमिगत नालों के भीतर जाने के लिए मजबूर किये जाने का क्रम जारी है। 

सैमुअल कहते हैं “केंद्र सरकार का रेलवे विभाग और राज्य का स्थानीय प्रशासनिक विभाग इस अमानवीय प्रथा को जारी रखे हुए है। इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाये जाने की जरूरत है और ऐसे श्रमिकों का पुनर्वास किया जाना चाहिए।”

सरकार हर बार की तरह उन ठेकेदारों के खिलाफ मामले दर्ज करती है जिन्होंने हाथ से मैला ढोने वालों को काम पर रखा था, लेकिन यह प्रथा सरकारी कार्यालयों तक में जारी है और यह बिना रोकथाम के जारी है। 

भूमि एवं भूमि अधिकार संरक्षण  

दलितों के भूमि अधिकारों के मामले में, पंचमी भूमि के पुनर्ग्रहण का मुद्दा, जिसे हाल ही में एक नया जीवन मिला है, पर कई दशकों से बहस चल रही है। राज्य में मात्र 6% दलितों ही जमीन के मालिक हैं, जो तमिलनाडु में भूमि सुधारों की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है।

इसके अलावा अधिकांश दलित आबादी खेतिहर मजदूरों के तौर पर कार्यरत है या असंगठित क्षेत्रों में काम करती है, जो बेहद कम मजदूरी प्रदान करते हैं। 

सैमुअल के अनुसार इस बीच, दलितों के बीच में निरक्षरता का फायदा उठाते हुए प्रभुत्वशाली जाति के सदस्यों द्वारा दलितों की पंचमी जमीनों को हड़प लिया गया है। उनकी मांग है कि सरकार को ऐसी जमीनों पर वापस छीन लेना चाहिए और इसके योग्य लोगों के बीच वापस दे दिया जाना चाहिए।

कई गावों में आज भी दलितों से कब्र खुदवाने, गाँव में मुफ्त में कपड़े धुलवाने की प्रथा प्रचलन में है। घोषणापत्र में राजनीतिक दलों से इस प्रकार की प्रथाओं के उन्मूलन को सुनिश्चित किये जाने का आह्वान किया गया है।

घोषणापत्र में अन्य प्रमुख मांगों में सभी के लिए मंदिरों का पुजारी बनाए जाने का अधिकार शामिल है, जिसके लिए तमिलनाडु सरकार द्वारा एक कानून बनाया गया था। घोषणापत्र में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को प्रमुखता से स्थान दिया गया है, क्योंकि दलित महिलाओं को विभिन्न स्तरों पर शोषण का शिकार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

‘Protect Dalit Rights in Letter and Spirit,’ Demands Untouchability Eradication Front in Tamil Nadu

Atrocities against Dalits
Untouchability in Tamil Nadu
manual scavenging
Panchami Land
Reservation for Dalits
Tamil Nadu Untouchability Eradication Front
Dalit Soshan Mukti Manch
Untouchability Wall in Tamil Nadu

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