NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
हिंदुत्व को होश दिलाने आए पंजाब के किसान
“पंजाब के किसानों के नेतृत्व में देश भर के किसान दिल्ली में जिन मुद्दों को लेकर धरना देने आए हैं वे एकदम आर्थिक हैं लेकिन उससे धर्म के आधार पर राजनीति करने वाला हिंदुत्व भयभीत है।” ये तत्व क्यों भयभीत हैं, उन्हें क्या डर है, इसी का विश्लेषण कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी।
अरुण कुमार त्रिपाठी
30 Nov 2020
पंजाब के किसान

हालांकि पंजाब के किसानों के नेतृत्व में देश भर के किसान दिल्ली में जिन मुद्दों को लेकर धरना देने आए हैं वे एकदम आर्थिक हैं लेकिन उससे धर्म के आधार पर राजनीति करने वाला हिंदुत्व भयभीत है। यह महज संयोग नहीं है कि तमाम सरकार समर्थक चैनल आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी बता रहे हैं। भाजपा आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने भी लिखा है, `` यह किस तरह का किसान आंदोलन है? क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह आग से खेल रहे हैं? क्या कांग्रेस यह नहीं समझ पा रही है कि अतिवादी तत्वों के साथ खड़े होने की राजनीति अपनी मियाद पूरी कर चुकी है? ’’ वे भीड़ में एक किसान के मात्र यह कहने को अतिवाद का प्रमाण बता रहे हैं कि जब इंदिरा गांधी से लड़ा जा सकता है तो मोदी से लड़ने में किस बात का डर है। उधर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी इस आंदोलन में खालिस्तानी तत्वों के प्रवेश का आरोप लगा रहे हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि यह आंदोलन केंद्र सरकार की तानाशाही नीतियों के विरुद्ध है। वह नीतियां जो अपने में हिंदुत्व और कारपोरेट हितों का काकटेल बनाकर तैयार की गई हैं। केंद्र सरकार और उससे जुड़े राजनीतिक दलों की कोशिश है कि जो भी उसकी नीतियों का विरोध करे उसे पहले मोदी और अमित शाह का विरोधी फिर हिंदुत्व का विरोधी बताया जाए और आखिर में राष्ट्रविरोधी। वह इस बात के लिए सतर्क है कि किसी भी तरह से उसकी नीतियों के विरोध को कारपोरेट या पूंजीवाद विरोध की पहचान न मिलने पाए। यानी हिंदुत्व कारपोरेट जगत के लिए कवच का काम कर रहा है और इन्हीं दो तत्वों ने मिलकर राष्ट्रवाद का नया आख्यान रचा है। वे अपने ढंग से किसानों को परिभाषित करते हैं और वे ही बताते हैं कि कौन असली किसान है और कौन दलाल और कौन सा आंदोलन वास्तव में राष्ट्र के हित में है और कौन सा राष्ट्रविरोधी।

इसीलिए यह विमर्श तेजी से फैलाया जा रहा है वे लोग किसान थोड़े हैं, वे तो खाते पीते संपन्न और अमीर लोग हैं। वे मंडियों के दलाल हैं, वे छोटे किसानों और मजदूरों के शोषक हैं और वे अभी तक लूट खा रहे थे लेकिन मोदी जी ने उनकी लूट बंद करा दी तो वे भड़के हुए हैं। यह वही आख्यान है जो नोटबंदी के समय भी चलाया गया था कि प्रधानमंत्री अमीरों की तिजोरी से नोट निकालकर गरीबों की जेब में डाल रहे हैं। इसीलिए काला धन रखने वाले परेशान हो रहे हैं। पर इसी आख्यान में सरकार के काला धन लाने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने के दावे का उल्टा पाठ छुपा हुआ है।

लेकिन पंजाब से उठे किसान आंदोलन ने राष्ट्रवाद के हिंदुत्ववादी आख्यान को कड़ी चुनौती दी है। वह चुनौती ऐसे समय मिली है जब भाजपा कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण के तमिलनाडु और केरल तक में हिंदुत्व का झंडा फहराने में लगी है। तब दिल्ली की नाक के नीचे पंजाब जैसे समृद्ध राज्य से उठी यह चुनौती उस आख्यान को पंचर कर देती है कि सिख हिंदुओं की रक्षा के लिए बनाया गया पंथ है और वे हिंदुत्व के आख्यान से पूरी तरह सहमत है। हिंदुत्व के पैराकार अपने तमाम नायक सिख समुदाय से ही चुनते हैं। भाजपा और अकालियों के बीच लंबे समय से चला आ रहा राजनीतिक गठबंधन और वहां फैल रहा संघ का काम इस आख्यान को मजबूती प्रदान करता था।

इस बीच कथित कृषि कानूनों पर केंद्र की सरकार से अलग होकर अकाली दल ने साफ संकेत दिया है कि कारपोरेट हितों के लिए अगर हिंदुत्व की तानाशाही एक सीमा से ज्यादा थोपी गई तो उसके व्यापक परिवार में विद्रोह हो सकता है। यह विद्रोह सीएए और एनआरसी से नहीं थमने वाला है। इस तानाशाही का विरोध इस आंदोलन में शामिल पंजाब के सारे किसान नेता कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष डॉ. दर्शनपाल और बीकेयू के उग्राहन गुट के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहन से लेकर तमाम नेता यही कह रहे हैं कि यह बिल किसानों से बात किए बिना लाए गए हैं। यह किसानों का अपमान है। इस तरह कानून लोकतंत्र के विरुद्ध हैं। किसान आंदोलन किसानों के स्वाभिमान बहाली का भी एक तरीका है।

सत्तर और अस्सी के दशक में कांग्रेस पार्टी ने अगर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अपनी गलत नीतियों के कारण पंजाब के सिखों को खालिस्तान आंदोलन के छोर तक पहुंचाया तो भाजपा ने अयोध्या में अपनी तोड़फोड़ के काम को कारसेवा जैसा नाम देकर सिख धर्म को हिंदुत्व के आख्यान से जोड़ने का प्रयास किया। हालांकि 1984 के दंगों में संघ परिवार के लोग कम सक्रिय नहीं थे। लेकिन आज हिंदुत्व अपने घमंडी आख्यान और नीतियों के चलते वही काम कर रहा है जो कभी इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने किया था। पंजाब के किसानों और विशेषकर सिखों के बारे में अंग्रेजों ने बहुत सारी हिदायतें दी थीं। उन्होंने अनुभव किया था कि एक खास भौगोलिक क्षेत्र में सक्रिय रहने वाला यह समुदाय तमाम बाहरी आक्रमणों को झेलते रहने के कारण निर्भीक और लड़ाका हो गया है। वह दोगलापन नहीं जानता। वह आमतौर पर मेहनती, मस्त रहने वाला शांत और कारोबारी है लेकिन जब उसके साथ छेड़छाड़ की जाती है या उसके स्वाभिमान को चुनौती दी जाती है तो वह तनकर खड़ा होता है और तब तक पीछे नहीं हटता जब तक कोई फैसला न हो जाए। एक अंग्रेज अधिकारी ने लिखा था कि अगर पंजाबियों से बातचीत हो तो या तो उनसे कुछ देने का वादा न किया जाए और अगर किया जाए तो उस दे दिया जाए। इसलिए दिल्ली के शासकों को सोचना होगा कि पंजाब के किसानों के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन से कैसे संवाद किया जाए।

केंद्र सरकार के लिए यह रणनीतिक रूप से जीत वाली स्थिति दिख रही है कि इस आंदोलन में मुख्यतः पंजाब के किसान बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। वे सोच रहे हैं कि देश के बाकी हिस्से के किसान हिंदुत्व के सम्मोहन में इस कद्र आ चुके हैं कि उन्हें राम मंदिर और लव जिहाद के आगे न तो खेती किसानी का मुद्दा दिखेगा और न ही अर्थव्यवस्था के पतन का। तभी उत्तर प्रदेश के तमाम हिंदुत्ववादी बौद्धिक यह सिद्ध करने में लगे हैं कि दिल्ली के द्वार पर विरोध करने आए लोग किसान नहीं हैं वे तो कांग्रेस पार्टी के दलाल हैं। लेकिन भाजपा की यही रणनीति उनके शासन और हिंदुत्व के आख्यान के लिए घातक है। अगर वे इस तरह से पंजाब के लोगों को दलाल और खालिस्तानी बताकर पूरे देश के किसानों से अलग थलग करने की कोशिश करेंगे तो इसका खामियाजा उनकी राजनीतिक और धार्मिक आख्यान दोनों को उठाना पड़ेगा।

पंजाब के लोगों से झूठ बोलना और उनसे दगाबाजी करना दिल्ली पर पहले भी बहुत भारी पड़ा है। इंदिरा गांधी ने अकालियों को चंडीगढ़ देने के लिए बहुत अपमानित किया था और एक दौर में भिंडरावाले की आक्रामकता को उनके विरुद्ध इस्तेमाल किया था। उसके परिणामस्वरूप सिखों को हिंदुओं से अलग बताने, पंजाब को स्वायत्तता देने और केंद्र के पास सिर्फ रक्षा, मुद्रा, विदेश और संचार जैसे मुद्दे रखने की मांग करने वाला आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया गया। उसके बाद अलगाववादी आंदोलन ने उस प्रस्ताव का समर्थन किया और पूरा पंजाब अशांत रहा। इंदिरा गांधी के इसी व्यवहार से दुखी अकाली नेता प्रकाश सिंह बाद और गुरचरण सिंह तोहड़ा कहा करते थे कि हम तीन बार बारात लेकर दिल्ली गए लेकिन हमको दुल्हन (चंडीगढ़) विदा नहीं की गई। इसलिए पंजाब को अलग थलग करके उसे बदनाम और अपमानित करने के खतरों के प्रमाण इतिहास में मौजूद हैं। हिंदुत्व और कारपोरेट गठबंधन की राजनीति इतनी नामसझ तो नहीं है कि वह इसे भूल गई होगी लेकिन वह एक महामारी के समय में किसानों से छल करने वाले कानूनों को पास करके फंस गई है। अगर आज वह कानून वापस लेती है तो कारपोरेट का भरोसा खोती है और कृषि सुधार की लंबी तैयारी को पीछे ढकेलती है। अगर केंद्र सरकार इस मुद्दे पर तीन महीनों से शांतपूर्ण और बेहद समझदारी से रचनात्मक आंदोलन कर रहे पंजाब के किसानों का दमन करती है तो सिख गुरद्वारों, अकाली दल और किसानों के गुस्से का शिकार होती है। यह गुस्सा हिंदुत्व के विरुद्ध भी होगा। पंजाब के किसानों की नाराजगी और आंदोलन हिंदुत्व के बृहत्त आख्यान से एक विद्रोह होगा।

अब यह देश के बाकी हिस्से के किसानों को तय करना है कि वे हिंदुत्व की राजनीति के साथ चलते हुए कारपोरेट के हित में बनने वाले हर कानून और व्यवस्था को स्वीकार करें या पंजाब के किसानों द्वारा बनाए जा रहे रास्ते पर चल कर देश में किसानों की नई राजनीति विकसित करें। निश्चित तौर पर हिंदुत्व का आख्यान अभी बहुत शक्तिशाली है। वह पूरे देश को अपने आगोश में ले रहा है। लेकिन उसके भीतर पंजाब जैसे विद्रोह भी हो रहे हैं जिनके आगे नया रूप लेने की संभावना है। समाजवादी और वामपंथी राजनीति की एक धारा मानती है कि बहुसंख्यकवाद के साथ मिलकर चल रही वैश्वीकरण और उदारीकरण की इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक मुद्दे उठाकर नहीं रोका जा सकता। उसे रोकने के लिए किसानों और मजदूरों का आंदोलन खड़ा करना होगा और वहीं से नई राजनीति विकसित होगी। पंजाब के किसानों के इस आंदोलन में जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से लेकर अखिल भारतीय किसान सभा, स्वराज इंडिया और देश भर के दूसरे तमाम प्रगतिशील और सेक्यूलर संगठन शामिल हैं। वे इस आंदोलन को एक नया चरित्र दे रहे हैं। अगर यह आंदोलन सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को विजय दिलाने में सफल होता है तो देश की राजनीति को नई दिशा मिलेगी। अगर यह आंदोलन पराजित होता है और उसका दमन करके उसे हराया जाता है तो उसके सिखवाद के भीतर प्रवेश करने के खतरे हैं।

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार और विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)      

Farm bills 2020
Farmer protest
Punjab Farmers
punjab
Hindutva
MSP
Captain Amarinder Singh
BJP
Narendra modi
Modi government

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License