NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आपदा से आरएसएस इस तरह फायदा उठा रही !
नई पुस्तक डिसास्टर रिलीफ एंड द आरएसएस: रिसर्रेक्टिंग ‘रिलिजन’ थ्रू ह्यूमैनिटेरिज्म के अनुसार संघ परिवार के 'राहत' कार्य का उद्देश्य हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना है।
एजाज़ अशरफ़
15 Oct 2019
RSS relief work
Image Courtesy: Twitter

26 जनवरी 2001 को आए विनाशकारी भूकंप ने गुजरात को हिलाकर रख दिया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस भूकंप में ढह चुकी इमारतों के मलबे में फंसे लोगों को निकाला, मृतकों का अंतिम संस्कार किया और ठंडी रातों में बेघर हुए लोगों को मुफ्त भोजन मुहैया कराने के लिए रसोई स्थापित किया। आरएसएस ने बाद में बेघर हुए लोगों के पुनर्वास के लिए गांवों का एक समूह बनाया। 2001 के भूकंप के दौरान संघ द्वारा की गई मानवीय सहायता अभी भी लोगों के ज़हन में पूरी तरह छाया हुआ है।

अठारह साल बाद संघ की इस अनुकरणीय भूमिका का विस्तार करने वाली एकतरफा कहानी को मालिनी भट्टाचार्जी ने चुनौती दी है। भट्टाचार्जी बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं। उन्होंने ये चुनौती अपनी पुस्तक डिसास्टर रिलीफ एंड द आरएसएस: रिसर्रेक्टिंग ‘रिलिजन’ थ्रू ह्यूमैनिटेरिज्म के ज़रिए दी है।

भट्टाचार्जी ने कहा कि संघ ने पुनर्निर्माण किए गए गांवों में बाहर करने के सिद्धांतों सहित पारंपरिक सामाजिक पदानुक्रम को दोहराया और अपनी हिंदू पहचान पर ज़ोर दिया। ऐसा कहा जा सकता है कि इन गांवों को लेकर उनका बयान उसे हिंदू राष्ट्र के छोटे क्षेत्र के रूप में प्रकट करता है। फिर भी, संघ ने सचेत रूप से अपने राहत कार्य को गैर-भेदभावपूर्ण या धर्मनिरपेक्ष के रूप में पेश करने के लिए एक रिवायत तैयार किया है।

भूकंप के चलते बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने के ग्यारह साल बाद भट्टाचार्जी ने गुजरात के कच्छ ज़िले में अपनी अध्ययन यात्रा के दौरान संघ के राहत कार्यों के इन पहलुओं का पड़ताल किया। उनके अध्ययन का उद्देश्य इस हक़ीक़त का पता लगाना था कि संघ की सेवा या सामाजिक सेवा, गतिविधियां उन लोगों के लिए थे जो इससे लाभान्वित हुए। हिंदू परंपरा में सेवा को निस्वार्थ माना जाता है। यह आरएसएस के मामलों से जुड़ा नहीं है। भट्टाचार्जी लिखती हैं, "परिवार के भीतर अन्य सभी संस्थानों की तरह सेवा अपने आप में कोई अंतिम वस्तु नहीं है बल्कि हिंदुत्व के जागृति के माध्यम से एक मज़बूत हिंदू राष्ट्र बनाने का एक साधन है।"

संघ ने अपने द्वारा जारी पुस्तिकाओं में अपनी मानवीय सहायता का बखान कर अपनी छवि को बेहतर करने की कोशिश की। इनमें से एक पुनह निर्माण चुनौती में "20,000 से अधिक स्वयंसेवकों को संबोधित किया जिनमें से कई इस भूकंप में परिवार और दोस्तों को खो चुके थे।" उसने बिना तैयारी के बचाव कार्यों में सहायता की। संघ के प्रकाशनों ने सेवा करने में अपने अनुभव के बारे में आरएसएस के स्वयंसेवकों के विवरणों को चित्रित किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके काम ने गुजरात में संघ की लोकप्रिय धारणा को कैसे बदल दिया।

उदाहरण के लिए आरएसएस के साप्ताहिक ऑर्गनाइज़र ने एक आर्थोपेडिक सर्जन के हवाले से लिखा कि उन्होंने पहले सोचा था कि आरएसएस और उसके सहयोगी विश्व हिंदू परिषद केवल "मंदिर निर्माण" (अयोध्या में राम मंदिर निर्माण) में रुचि रखते थे। सर्जन ने कहा कि उन्होंने "इसके उल्लेखनीय राहत कार्य को देखने" के बाद अपनी राय को बदल दिया।

पार्टी के मुखपत्र का विवरण किसी के लिए भी सत्यापित करना असंभव है। हालांकि, खास तौर से भट्टाचार्जी लिखती हैं कि लोग संघ के राहत कार्यों के बारे में याद करते थे। वह अजनार, कच्छ के एक कांग्रेस नेता का हवाला देते हुए कहती हैं, "संघ से मेरा कुछ विरोध है इसके बावजूद, मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि उन्होंने भूकंप के बाद बचाव और राहत कार्य करने में अभूतपूर्व काम किया।"

संघ ने भूकंप की घटना के बाद अपनी मानवीय सहायता के ग़ैर-भेदभावपूर्ण प्रकृति की व्याख्या करने पर ज़ोर दिया। उदाहरण के लिए, एक पैम्फलेट, धरतीकमपनेसर्जनो सद या भूकंप के बाद पुनर्निर्माण कार्य’, में एक ऐसी घटना का बयान किया जिसमें कहा गया एक गांव में मुस्लिम परिवारों को सहायता देने से पहले ही आरएसएस ने उन्हें राहत पहुंचा दी थी। मनोवैज्ञानिक रूप से यह आरएसएस का खुलासा करता है कि यह बिना किसी भेदभाव के सहायता देने के बारे में होना चाहिए जिसे ज्यादातर लोग इसकी प्रकृति समझेंगे। तब फिर, भट्टाचार्जी को संघ कार्यकर्ताओं द्वारा बार-बार अपने सेवा के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर ज़ोर देने के लिए कच्छी गांव के चपरेडी में मुसलमानों को आवंटित किए गए आठ घरों के बारे में बताया गया था।

फिर भी ये कहानियां मीडिया रिपोर्टों और लोगों के साथ भट्टाचार्जी के साक्षात्कार के विरोधाभासी थे। मुस्लिमों और दलितों के निवास वाले क्षेत्रों में राहत शिविरों का इंतेज़ाम नहीं करने को लेकर संघ परिवार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों में दिवंगत पत्रकार कुलदीप नायर भी शामिल थें। तब की एक "मुस्लिम पाक्षिक" पत्रिका मिल्ली गजट में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि मुसलमानों को स्वामीनारायण मंदिर में भोजन देने से पहले 'जय स्वामी नारायण' और 'जय श्री राम' बोलने के लिए कहा गया। कच्छ के एक शहर भुज के इस मंदिर में सबसे बड़ा सामुदायिक रसोईघर संचालित किया जाता था।

सेवा की ग़ैर-भेदभावपूर्ण प्रकृति के बारे में अस्पष्टता गांवों में विलुप्त हो गई जिसे संघ ने पुनर्निर्माण के लिए गोद लिया था। जीर्णोद्धार किए गए गांव पारंपरिक हिंदुत्व की दृष्टि से स्व-जागरूक हिंदूवादी समाज बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो कि पदानुक्रमित, भेदभावपूर्ण और बहिष्कृत है।

कुल मिलाकर संघ ने 22 गांवों को गोद लिया। इनमें से 14 गांव का पुनर्निर्माण सेवा भारती द्वारा किया गया था। ये सेवा इंटरनेशनल के साथ साझेदारी में सामाजिक सेवा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संचालन शाखा है। बाकी आठ सेवा भारती के साझेदार के रुप में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) का अमेरिकी विंग था।

भट्टाचार्जी ने 22 गांवों में से तीन गांव- चपरेदी, मीठा पसवरिया और लोदाई का दौरा किया। ये सभी कच्छ ज़िले में स्थित हैं। हर एक गांव में हिंदू समाज का प्रभुत्व था। अहीर प्रमुख जाति समूह था। इसके बाद दलितों की आबादी थी। चपरेदी और लोदाई में मुसलमानों की आबादी 10% से कम थी। मीठा पसवरिया में मुसलमान नहीं थे। भट्टाचार्य कहती हैं, इन तीन गांवों में पहले से ही मौजूद आधार को मजबूत करने के लिए, आरएसएस ने "ईसाई गैर सरकारी संगठनों को हटाने के लिए समर्थन [इन गांवों में] हासिल किया।"

लोदाई में पुनर्निर्माण की शुरुआत भूमि पूजन समारोह के साथ की गई। इस समारोह में विहिप के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता ने भाग लिया। 10,000 ग्रामीणों के लिए एक भोज का आयोजन किया गया था। इस दौरान आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के नाम पर लोदाई का नाम केशव नगर रखा गया। इसी तरह, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर चपरेदी को अटल नगर नया नाम दिया गया जिन्होंने वहां की भूमि पूजन में हिस्सा लिया।

संघ के तत्कालीन प्रमुख के.एस. सुदर्शन ने मिठा पसवरिया के भूमि पूजन में भाग लिया जिन्होंने अपने संबोधन में हिंदू संस्कृति की विशेषता को बताया। भट्टाचार्जी लिखती हैं, "सुदर्शन ने आंख बंद करके पश्चिमी संस्कृति का पालन करने की बढ़ती प्रवृत्ति की आलोचना की और मनुष्यों, जानवरों, पक्षियों और पेड़ों के बीच के अंतर-संबंधों को पहचानने की आवश्यकता पर बल दिया जो हिंदू पूर्वजों द्वारा हमारे देवताओं के वाहनों के रूप में बताए गए थे।" यह संघ की वर्चस्ववादी प्रवृत्तियों का एक विशिष्ट उदाहरण था।

अटल नगर और मीठा पसवरिया में नवनिर्मित मकान तीन अलग-अलग आकार के थे। उनका आवंटन परिवारों के स्वामित्व के भूमि के आकार से जुड़ा था जैसे कि बड़े भू-क्षेत्र के स्वामी को बड़े आकार का घर मिला और छोटे भू-क्षेत्र के स्वामी या जिनके पास कोई ज़मीन का टुकड़ा नहीं है उन्हें छोटे आकार का घर मिला। हालांकि इन घरों को रहने वालों को मुफ्त में दिया गया था लेकिन संघ ने मौजूदा आर्थिक विषमताओं पर भी नज़र रखा। निम्न जातियों को एक साथ रख दिया गया, जिससे दूसरे जातियों से दूर हो गया। मीठा पसवरिया में पृथक बस्ती की भी योजना बनाई गई थी लेकिन दलितों के विरोध के चलते ड्रा सिस्टम के माध्यम से घरों को आवंटित करने का फैसला लिया गया।

सेवा भारती और विहिप दोनों ने इन तीन गांवों को एक विशिष्ट हिंदू स्वरूप दिया। गांवों में विशाल प्रवेश द्वार बनाए गए। चूंकि प्रमुख जाति समूह अहीर भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं इसलिए उनकी प्रतिमा को इन द्वारों के ऊपर स्थापित किया गया। भट्टाचार्जी कहती हैं, शानदार गौशालाओं का निर्माण बड़े पैमाने पर किया गया था क्योंकि "गायों का संरक्षण हिंदू अधिकार का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक एजेंडा है...।" घरों की चाहरदीवारी पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र बनाए गए जबकि मूल बस्तियों में हिंदू देवी-देवता का चित्र नगण्य है।

जब पुनर्निमित गांवों में बसाने का समय आया तो लोदाई के किसी भी मुसलमान केशव नगर में नहीं भेजा गया। अटल नगर में चपरेदी के केवल आठ मुस्लिम परिवारों को घर दिए गए थे। इन दो पुराने गांवों में किसी भी मुस्लिम परिवार ने नई बस्तियों से उन्हें बाहर करने के जबरन प्रयास के बारे में बात नहीं की, जो भट्टाचार्जी के अनुसार "हिंदू बस्ती" बन गई थी। उन्होंने केवल इतना कहा कि वे अपने पुराने घरों को छोड़ना नहीं चाहते थे क्योंकि ये भूकंप से बच गए थे। लोदाई में कुछ हिंदू परिवारों ने भी केशव नगर में शिफ्ट न करने का फैसला किया था।

भट्टाचार्जी लिखती हैं, “जबकि गैर-संघ परिवार के दानदाताओं द्वारा बनाए गए कुछ गांवों ने जाति और धर्म के आधार पर अलग-थलग पड़े आवास के पुराने पैटर्न को बरकरार रखा है, उनमें से कोई भी ग्रामीण समुदाय ने नई कॉलोनियों के बाहर रहने का विकल्प नहीं चुना। यह इस संभावना को पुष्ट करता है कि संघ परिवार द्वारा बनाए गए गांवों को हिंदू गांवों के तौर पर तैयार किया गया था जिसके चलते मुस्लिम समुदाय के लोग इस गांव में नहीं जाना चाहते थे।”

हिंदू गांव के रूप में नए गांवों की अवधारणा भव्य मंदिरों के निर्माण को लेकर सबसे अधिक स्पष्ट थी। चार मंदिर का निर्माण केशव नगर में, दो अटल नगर में और एक मिठा पसवरिया में निर्माण किया गया। पुराने गावों में भी मंदिर थे लेकिन ये तुलना में छोटे थे। अटल नगर में मस्जिद नहीं थी हालांकि वहां आठ मुस्लिम परिवार रहते थे।

आरएसएस के स्वयंसेवकों ने भट्टाचार्जी को बताया कि सेवा भारती ने मुस्लिमों को कहा था कि चपरेदी से जब सब लोग आ जाएंगे तो अटल नगर में एक मस्जिद बनाई जाएगी। लेकिन वे नहीं आए और इसलिए अटल नगर में कोई मस्जिद नहीं है। संघ की इस बात को अटल नगर के मुसलमानों ने सही नहीं कहा। और फिर भी चपरेदी को मानवीय सहायता के लिए संघ के गैर-भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण के एक उदाहरण के रूप में बताया गया था!

संघ ने भले ही धार्मिक और जातिगत विद्वेष को जन्म नहीं दिया हो, लेकिन भट्टाचार्जी के अनुसार इसने किया और इसे आगे बढ़ाया। भट्टाचार्जी कहती हैं, "संघ परिवार की गतिविधियां [राहत और पुनर्वास के दौरान] असमानताओं को बाधित करना नहीं चाहती थी क्योंकि यह हिंदू राष्ट्रवाद की पारंपरिक दृष्टि से प्रेरित इसके व्यापक राजनीतिक लक्ष्यों का मुकाबला होगा।" दूसरे शब्दों में जाति पदानुक्रम पूरी तरह खत्म करना नहीं था।

आरएसएस के स्थानीय पदाधिकारियों ने भट्टाचार्जी को बताया कि भूकंप के दौरान राहत प्रदान करने में इसकी भूमिका के चलते संगठन की सदस्यता में पूरे कच्छ इलाक़े में तेज़ी देखी गई। उन्होंने कबूल किया कि लेकिन शाखा की गतिविधियां केवल उन्हीं गांवों में जारी रह सकी जिन्हें उन्होंने पुनर्निर्मित किया था। शायद एक हिंदू राष्ट्र के छोटे क्षेत्र में रहने से ग्रामीणों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच का रिश्ता गहरा हो गया। या दायित्व और पारस्परिकता के संबंधों से ग्रामीणों को आरएसएस से जोड़ा गया था। किसी भी तरह आरएसएस को सेवा से मोक्ष ही नहीं बल्कि काफी फायदा मिला है।

RSS
RSS Relief Work
hindu rashtra
Kutch Quake Relief
RSS Agenda
Sangh Parivar

Related Stories

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !

कांग्रेस का संकट लोगों से जुड़ाव का नुक़सान भर नहीं, संगठनात्मक भी है

कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...

पीएम मोदी को नेहरू से इतनी दिक़्क़त क्यों है?

कर्नाटक: स्कूली किताबों में जोड़ा गया हेडगेवार का भाषण, भाजपा पर लगा शिक्षा के भगवाकरण का आरोप

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License