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राजनीति
रजनीकांत और तमिलनाडु की राजनीति : क्या ये दो समानांतर रेखाएँ हैं?
“मैंने खुद के बारे में मुख्यमंत्री के रूप में कभी कल्पना भी नहीं की है। मैं खुद को विधानसभा में देखने के बारे में सोच भी नहीं सकता, ऐसा किसी भी सूरत में नहीं होने जा रहा है। मैं पार्टी प्रमुख की भूमिका में बना रहूँगा।” ये उस कलाकार का कहना है जिसने अभी तक अपनी राजनीतिक पार्टी का शुभारम्भ तक नहीं किया है।''
नीलाबंरन ए
13 Mar 2020
rahnikant
छायाचित्र सौजन्य: डेक्कन हेराल्ड'

69 वर्षीय लोकप्रिय अभिनेता रजनीकांत के राजनीतिक सफर की शुरुआत में एक बार फिर से देरी होने जा रही है। बृहस्पतिवार के दिन चेन्नई में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस में इस अभिनेता ने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। केवल इतना कहा कि वे “सिर्फ बदलाव चाहते हैं। रजनी का कहना था कि वे उन्हीं शर्तों पर राजनीतिक दल की शुरुआत करेंगे, यदि लोगों की मनःस्थिति ‘उनकी’ नीतियों के अनुरूप ढलती नजर आयेंगी। लेकिन वे नीतियाँ क्या हैं, इसका स्पष्ट खुलासा उनकी और से किया जाना अभी बाकी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने तय किया है कि वे लोगों और अपने प्रशंसकों के बीच ‘अपनी नीतियों’ का प्रचार प्रसार करने जाएंगे।

अगले वर्ष होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पूर्व इस सुपरस्टार ने ये भी कहा है कि “मुख्यमंत्री के रूप में खुद को देखने के बारे में मैं कभी कल्पना भी नहीं करता। विधानसभा के भीतर हिस्सा लेने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता। ये हरगिज सम्भव नहीं है। मैं पार्टी मुखिया की भूमिका में रहूँगा।”

हालाँकि जिस पार्टी की न तो अभी घोषणा हुई और ना ही कोई सरकार बनी है, उसके लिए 50 साल से नीचे की उम्र के लोगों को उसमें शामिल करने की घोषणा से लगता है कि उनके कई प्रशंसकों के बीच अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ा है।

इस तमिल सुपरस्टार ने ‘आध्यात्मिक राजनीति’ को आगे बढ़ाने की बात की है, जिसके चलते उनके ढेर सारे प्रशंसकों के बीच हैरानी और भ्रम की स्थिति बनी हुई है। संवादाता सम्मेलन में अपनी बात को स्पष्ट करते हुए रजनीकांत का कहना था “मैं जानता हूँ कि मेरे कई समर्थकों और शुभचिंतकों को मेरी ये बात गले से नीचे नहीं उतर पा रही होगी। लेकिन मेरे पास कोई दूसरा चारा भी नहीं है। यदि मैं राजनीति में सिर्फ इसलिये शामिल होऊं कि एक दिन मुख्यमंत्री बन जाऊं तो मेरी आध्यात्मिक राजनीति का क्या अर्थ रह जाएगा?”

याद करिए इस सुपरस्टार ने दिसम्बर 2017 में सक्रिय राजनीति में उतरने के अपने इरादे की घोषणा की थी। आम तौर पर अक्सर ही इस अभिनेता ने ढेर सारे मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नीतियों के पक्ष में ही अपने समर्थन का इजहार किया है। उदाहरण के लिए विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम को ही ले लें।

प्रेस कांफ्रेंस में अभिनेता ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत के लिए तीन-सूत्रीय योजना गिनाई। लेकिन अपने बहुत से अनुयायियों और प्रशंसकों को निराश करते हुए उन्होंने जानकारी दी कि जिस प्रकार से कुछ मुख्य राजनीतिक दल “पार्टी ढाँचे” खड़े करते हैं, वे इन चीजों के खिलाफ हैं। क्योंकि ये ढाँचे महज इस मकसद से खड़े किये जाते हैं कि चुनावों में हिस्सेदारी की जाये और यही “भ्रष्टाचार की मूल वजह” है।”

रजनीकांत ने जिस दूसरे बिंदु का जिक्र किया वो “उम्र को लेकर’ था। इस सुपरस्टार ने जिनकी खुद की उम्र दिसम्बर 2019 में 69 वर्ष की हो गई है, ने राजनैतिक दलों और राज्य विधानसभा में निर्वाचित सदस्यों की बढ़ती उम्र को लेकर सवाल उठाए। अपने अनुयायियों और प्रशंसकों की उम्मीदों पर तुषारापात करते हुए उन्होंने घोषणा की कि उनकी पार्टी में कम से कम 60 से 65% युवाओं को शामिल किया जाएगा।

अभिनेता ने बताया कि यदि वे भविष्य में अपने राजनीतिक दल के विचार को अमली जामा पहनाते हैं और सरकार बनाने लायक संख्याबल हासिल कर लेते हैं तो किसी “मर्यादित नौजवान” को ही मुख्यमंत्री के रूप में मौका देंगे। रजनीकांत ने यह भी दावा किया कि अभी तक राज्य की जनता किसी पार्टी के स्थान पर सिर्फ ‘चेहरे’ को देखकर वोट देती आई है।

“अभी तक हमारे राजनीतिक परिदृश्य में दो दिग्गज हुआ करते थे, एक थीं जयललिता और दूसरे कलईगनार (एम करुणानिधि) थे। किसी पार्टी के नाम पर नहीं बल्कि कुछ नहीं तो कम से कम 70% वोट करुणानिधि और जयललिता के चलते ही इन दलों को मिला करते थे। लोगों को यह बात स्वीकार करनी चाहिए।” थालाईवर ने बताया, जैसा कि इस नाम से वे अपने फैन्स के बीच मशहूर हैं।
 
एक भ्रम वाली स्थिति?

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान रजनीकांत ने जिन बिन्दुओं को उठाया है, उसे देखकर लगता है कि अभिनेता कहीं न कहीं राजनीति में बढ़ते भ्रष्टाचार, वंशवाद, नौजवानों की अनुपस्थिति और शिक्षित लोगों की कमी को लेकर चिंतित हैं। लेकिन अपनी पार्टी के नाम तक को उजागर करने को लेकर बनी हुई उनकी उदासीनता ने विभ्रम की स्थिति बना रखी है। ऐसा लगता है जैसे अभिनेता इस बात की गारण्टी चाहते हों कि जब कभी भविष्य में इसकी घोषणा की जाये, तो लोग उनकी पार्टी को ही वोट देने का वचन दें। लेकिन अभी यह भी साफ़ नहीं कर पा रहे कि वे आखिर किन उद्देश्यों  को लेकर आगे चलेंगे।

याद करें कि जबसे रजनीकांत ने राजनीति में अपने पाँव रखे हैं वो चाहे 1996 में द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम (डीएमके) को समर्थन देने का सवाल हो या फिर नीतिगत मुद्दों पर कई उदाहरणों में वे बीजेपी के समर्थन का सवाल हो, लेकिन कहीं भी उनके विचारों में स्पष्ट सोच नजर नहीं आती। और जब अभिनेता ने ‘आध्यात्मिक राजनीति’ को लेकर आगे बढाने की बात की तो कुछेक छिटपुट दक्षिणपंथी गुट ही उनके उस बयान के समर्थन में आगे आये थे।

विरोध प्रदर्शनों को लेकर नकारात्मक रुख

तमिलनाडु में इस अभिनेता के चाहने वालों की भारी संख्या मौजूद है, लेकिन विरोध प्रदर्शनों को लेकर इन्होने अक्सर विरोधी रुख प्रदर्शित किया है। वो चाहे थूथूकुड़ी के स्टरलाइट प्लांट के खिलाफ चले संघर्षों की बात हो या वर्तमान में सीएए कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकों के राष्ट्रीय पंजीकरण (एनआरसी) के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों पर विरोधी रुख हो। अधिकतर मौकों पर वे बीजेपी के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं के साथ उनकी गहरी नजदीकियों के बारे में भी लोग भलीभांति परिचित हैं। मोदी-शाह जोड़ी के प्रति जिस प्रकार के प्रशंसा के भाव वे व्यक्त करते रहे हैं इससे भी उनके भविष्य की राजनीतिक संलिप्तता को लेकर संदेह पैदा होते हैं।

वहीँ दूसरी तरफ इस सुपरस्टार की ओर से दक्षिणपंथी संगठनों जिनमें हिन्दू मुन्नानी और हिन्दू मक्कल काची शामिल हैं के प्रति भी मुखर सर्मथन देखने को मिला है। कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बीजेपी उन्हें अपनी पार्टी या गठबंधन के चेहरे के रूप में आगे करने की इच्छुक लगती है। लेकिन यदि अभिनेता ने अपना नया संगठन भी खड़ा किया और बीजेपी की नीतियों का समर्थन करना जारी रखा तो ये भी उनके फायदे में ही होने जा रहा है।वर्तमान में ‘सुपरस्टार’ ने जिस प्रकार से अनिर्णय की स्थिति दर्शाई है, यह फ़िलहाल डीएमके और एआईडीएमके के लिए राहत की बात है। लेकिन ऐसा लगता है कि दो दशकों से प्रतीक्षारत रजनीकांत के फैन्स के लिए जैसे इन्तजार की घड़ियाँ शायद ही कभी खत्म हों, कम से कम अभी तो ऐसा ही लगता है। 

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Rajinikanth and TN Politics: Two Parallel Lines?

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