NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
भारत
राजनीति
अपना बुटीक खोलने और अपनी ज़िंदगी खुलकर जीने के लिए हासिल की ट्रांस महिला की पहचान
“...बैंक ने मुझे लोन नहीं दिया। मेरे पास आधार कार्ड है। जिसमें मेरी पहचान पुरूष के तौर पर है। मेरे सर्टिफिकेट्स में मेरा पुरुष नाम ही है। जब मैं लोन के लिए जाती हूं तो मुझे स्त्री के तौर पर देखकर वह कहते हैं कि ये तस्वीर आपकी नहीं है। इसमें आप अलग दिख रही हैं”।
वर्षा सिंह
13 Jul 2021
नेशनल पोर्टल फॉर ट्रांस जेंडर पर्सन्स के ज़रिये अदिति (हरी साड़ी में) और काजल (लाल लिबास में) को मिली ट्रांस महिला की पहचान। फोटो : वर्षा सिंह 
नेशनल पोर्टल फॉर ट्रांस जेंडर पर्सन्स के ज़रिये अदिति (हरी साड़ी में) और काजल (लाल लिबास में) को मिली ट्रांस महिला की पहचान। फोटो : वर्षा सिंह 

“मैंने खुद को छिपाने की बहुत कोशिश की। लेकिन हम कभी बहुत ज्यादा छिप नहीं सकते। 10 साल या ज्यादा से ज्यादा 15 साल की उम्र तक। बंदा जैसे-जैसे जवान होता जाता है। उसका शरीर बदलता है। भावनाएं बदलती हैं। लक्षण बदलते हैं”।

ट्रांसजेंडर होने की वजह से 30 साल की अदिति शर्मा ने कई मुश्किलें झेली हैं। उत्तरकाशी में अपने माता-पिता का घर छोड़कर वह देहरादून आकर बस गईं। मुश्किलें अब भी हैं। लेकिन यहां उन्हें अपने जैसे लोग मिले। अलग-अलग नामों के साथ जिनकी कहानियां तकरीबन एक जैसी हैं।

“मैंने उत्तरकाशी से ही ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की। जब मेरे हाव-भाव बदलने लगे तो स्कूल में बहुत दिक्कत होने लगी। लड़के हमें अपने साथ नहीं आने देते। घर वालों ने शुरू-शुरू में सपोर्ट किया। लेकिन मेरा भाई मुझे बहुत मारता था। कहता था कि तूने समाज में हमारी नाक कटा दी। एक समय के बाद घर पर रहना मुश्किल हो गया। 20 की उम्र में मैंने तय किया कि अपनी पहचान नहीं छिपानी है। मुझे खुलकर जीना चाहिए। फिर मैं उत्तरकाशी से देहरादून की बस में बैठ गई”।

फरवरी में अदिति से मेरी मुलाकात हुई। देहरादून आए हुए उसे तकरीबन 10 वर्ष हो चुके हैं। वह किराए के कमरे में अकेली रहती है। उसकी बातें बताती हैं कि देहरादून शहर ने भी उसका स्वागत नहीं किया।

“मैंने घरों में साफ-सफाई का भी काम किया। लेकिन कोई हमें काम पर नहीं रखना चाहता। मजबूरी में धंधा भी करना पड़ा। भूखे तो नहीं रह सकते। लोग परेशान करते हैं। हमारे पीछे पड़ जाते हैं। हम सड़क पर स्वाभिमान के साथ चल नहीं सकते। मुझे तो बहुत डर लगता है। समाज में हमें हमारी तरह अपनाने के लिए कोई तैयार नहीं है”।

ट्रांसजेंडर होने की वजह से अदिति को नहीं मिल रहा था बैंक से लोन। फोटो : वर्षा सिंह 

जो हूं, वही कहलाऊं

इन मुश्किलों को झेलते हुए अदिति अपनी ज़िंदगी को बदलना चाहती थी। उन्होंने ये तय कर लिया था कि किन्नर समाज से नहीं जुड़ना है। जो परंपरागत शादी-ब्याह, बच्चे के जन्म जैसे अवसरों पर बधाई लेने के काम करती हैं। 

“इधर-उधर भटकने के बाद मैंने बुटीक का काम शुरू किया। मैं लोगों के कपड़े सिलती हूं। किराये के कमरे में ही मेरा बुटीक है। मैंने अपना खुद का बुटीक शुरू करने के लिए लोन के लिए अप्लाई किया। लेकिन बैंक ने मुझे लोन नहीं दिया। मेरे पास आधार कार्ड है। जिसमें मेरी पहचान पुरूष के तौर पर है। मेरे सर्टिफिकेट्स में मेरा पुरुष नाम ही है। जब मैं लोन के लिए जाती हूं तो मुझे स्त्री के तौर पर देखकर वह कहते हैं कि ये तस्वीर आपकी नहीं है। इसमें आप अलग दिख रही हैं”।

बुटीक के अपने सपने को पूरा करने के लिए अदिति को बैंक से लोन की जरूरत थी। लोन लेने में आ रही लैंगिक अड़चनों के बाद उन्होंने तय किया कि वो ट्रांस महिला के तौर पर अपनी पहचान बनाएंगी। उन्होंने स्थानीय संस्था परियोजन कल्याण समिति की मदद से देहरादून में समाज कल्याण विभाग में इसके लिए आवेदन किया। साथ ही जेंडर सर्जरी करवाने के लिए चिकित्सक से काउंसिलिंग भी शुरू कर दी।

अदिति के साथ अन्य ट्रांस महिला काजल भी इस प्रक्रिया में साथ थी। काजल किन्नर समाज से जुड़ी हुई हैं। अदिति बताती है कि बधाइयों और नृत्य के सहारे जीने वाला किन्नर समाज किसी ट्रांस महिला को स्वीकार नहीं करता।

नेशनल पोर्टल फॉर ट्रांस जेंडर पर्सन्स पर ट्रांस पहचान पत्र के लिए कर सकते हैं आवेदन

ट्रांस महिला की पहचान हासिल करने की प्रक्रिया

देहरादून की परियोजन कल्याण समिति ने अदिति और काजल की मदद की। समिति की सचिव नताशा नेगी बताती हैं कि नेशनल पोर्टल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स  (https://transgender.dosje.gov.in/Applicant/Registration) पर दोनों का रजिस्ट्रेशन कराया। ये पोर्टल 2019 में लॉन्च हुआ था। इस पर आवेदन करने वाले को फॉर्म भरने के साथ अपना मौजूदा पहचान पत्र और पासपोर्ट के आकार की तस्वीर अपलोड करनी होती है। जिसके बाद ट्रांस-पर्सन के रूप में पहचान पत्र और सर्टिफिकेट जारी होता है। ये सर्टिफिकेट ज़िला समाज कल्याण विभाग के ज़रिये मिलता है।

नताशा बताती हैं कि नेशनल पोर्टल के ज़रिये उत्तराखंड में पहली बार अदिति और काजल को ये सर्टिफिकेट मिला है।

संस्था ने सर्जरी में भी अदिति और काजल की मदद की। सर्जरी को लेकर नताशा कहती है “ये उन दोनों की इच्छा की बात थी। सर्जरी के लिए मनो-चिकित्सक से जेंडर डिस्फोरिया सर्टिफिकेट लेना होता है। ये तन और मन को एक करने वाली बात है। कई बार चाहत होती है कि मैं स्त्री के तौर पर खुद को महसूस करती हूं तो मेरा शरीर भी स्त्री का ही हो”।

मनो-चिकित्सक की सलाह

देहरादून में नेशनल इंस्टीट्ययूट फॉर द एम्पावरमेंट ऑफ द परसन विद विजुअल डिसएबिलिटी (एनआईईपीवीडी) के क्लीनिकल साइकोलॉजिकल डिपार्टमेंट में क्लीनिकल साइकॉलजी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र ढालवाल ने अदिति और काजल की काउसिलिंग की। डॉ. ढालवाल बताते हैं कि सर्जरी से पहले मनो चिकित्सक की सलाह बेहद जरूरी होती है।

“हम ये देखते हैं कि सर्जरी कराने जैसा जीवन का बड़ा फ़ैसला लेने वाला व्यक्ति सही मानसिक स्थिति में ये फ़ैसला ले रहा है या नहीं। कहीं वो भावनाओं में बहकर या किसी मनो रोग की वजह से तो इस तरह का फ़ैसला नहीं ले रहा। जिस पर आगे जाकर उसे पछतावा हो”।

डॉ. ढालवाल बताते हैं कि क्लीनिकल जांच के लिए व्यक्ति से तकरीबन 350 सवाल पूछे जाते हैं। जो उसकी मानसिक स्थिति से जुड़े होते हैं। इसके आधार पर हम सर्जरी कराने या न कराने की सलाह और सर्टिफिकेट देते हैं। काउसिलिंग के बाद अदिति और काजल को उन्होंने जेंडर डिस्फोरिया सर्टिफिकेट दिया।

अदिति को समाज कल्याण विभाग से सर्टिफिकेट तो मिल गया लेकिन राज्य में ट्रांसजेंडर एक्ट लागू करने की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। फोटो सौजन्य: अदिति

उत्तराखंड में नोटिफाई नहीं हुआ है ट्रांसजेंडर एक्ट-2019

अदिति और काजल को ट्रांस महिला की पहचान का सर्टिफिकेट तो हासिल हो गया है। लेकिन एक मुश्किल ये भी है कि उत्तराखंड में  ट्रांसजेंडर विधेयक (सुरक्षा और अधिकार) एक्ट-2019 को अधिसूचित नहीं किया गया है। ये एक्ट कहता है कि ट्रांसजेंडर वह व्यक्ति है जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। ये जननांगों या हार्मोन्स में महिला या पुरुष शरीर के आदर्श मानकों से अलग होते हैं। ये  कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है। साथ ही शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा जैसे अधिकार देता है।

देहरादून में ज़िला समाज कल्याण अधिकारी हेमलता पांडेय कहती हैं उत्तराखंड में ट्रांसजेंडर एक्ट को अब तक अधिसूचित नहीं किया गया है। इसके लिए हमने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी पत्र लिखा है। इसके बाद ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की मान्यता अधिकृत हो सकेगी।

राज्य में ट्रांसजेंडर आबादी या उनके कल्याण से जुड़ी योजना को लेकर हेमलता कहती हैं “हमारे पास ऐसे लोगों की आबादी का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है। उनके लिए कोई विशेष योजना भी नहीं है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पेंशन देने से जुड़ी एक योजना जरूर है। लेकिन उसका भी कोई सरकारी आदेश नहीं है। हमारे राज्य में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग से कोई नीति नहीं है। हमने विभाग से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़ी योजनाओं के बारे में सूचना भी मांगी है”।

हालांकि तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश जैसे कुछ राज्य हैं जहां ट्रांसजेंडर समुदाय के कल्याण से जुड़ी योजनाएं चलायी जा रही हैं।

उधर, अप्रैल में सर्जरी और जून में ट्रांस महिला होने का सर्टिफिकेट हासिल करने के बाद अदिति बेहद ख़ुश है। “मैंने इधर-उधर से कर्ज लेकर अपनी सर्जरी करायी। अब मैं बहुत ख़ुश हूं। मुझे लग रहा है कि आज से दस साल पहले ही ये सर्जरी करवानी चाहिए थी। मैं घुट-घुट कर जी रही थी। कहीं पुरुष की भूमिका तो कहीं स्त्री की भूमिका निभा रही थी। मुझे उस दोहरे जीवन से छुटकारा मिला”।

अदिति जैसे कई ट्रांसजेंडर व्यक्ति हैं जो घरेलू हिंसा से लेकर सामाजिक भेदभाव, देह-व्यापार और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनने के लिए अब भी जूझ रहे हैं। भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार के चलते स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। अपनी पहचान छिपाकर रहना पड़ता है। नौकरी हासिल करना बेहद मुश्किल होता है। मज़बूरी में देह-व्यापार अपनाने और यौन बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। मुश्किल ये है कि इस आबादी के लिए हमारे राज्य में कोई नीति नहीं है।

(देहरादून स्थित वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Uttrakhand
Dehradun
transgender
Transgender community
transgender rights
Discrimination
Unequal society

Related Stories

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव परिणाम: हिंदुत्व की लहर या विपक्ष का ढीलापन?

उत्तराखंड चुनाव: भाजपा के घोषणा पत्र में लव-लैंड जिहाद का मुद्दा तो कांग्रेस में सत्ता से दूर रहने की टीस

गैर-बराबरी वाले समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय का मानसिक स्वास्थ्य

सीएए : एक और केंद्रीय अधिसूचना द्वारा संविधान का फिर से उल्लंघन

भोपाल के एक मिशनरी स्कूल ने छात्रों के पढ़ने की इच्छा के बावजूद उर्दू को सिलेबस से हटाया

माघ मेला: संगम में मेला बसाने वाले जादूगर हाथों का पुरसाहाल कोई नहीं

मानवता की राह में बाधक जाति-धर्म की दीवारें

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस: कहां हैं हमारे मानव अधिकार?

एकतरफ़ा ‘प्यार’ को प्यार कहना कहां तक जायज़ है?

चलो ख़ुद से मुठभेड़ करते हैं...


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License