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भारत
राजनीति
रिकॉर्ड फसल, रिकॉर्ड भंडार; लोग फिर भी भूखे क्यों हैं?
यह किसी के भी विश्वास और समझ से परे की बात है कि सरकार अपने गोदामों में अटे पड़े  अनाज के भंडार को ग़रीब लोगों में बांटने से इनकार क्यों कर रही है।
सुबोध वर्मा
27 Jul 2020
Translated by महेश कुमार
रिकॉर्ड फसल, रिकॉर्ड भंडार
फाइल फोटो

भारत ने 2019-20 में लगभग 273 मिलियन टन के रिकॉर्ड अनाज की फसल का उत्पादन किया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 10 मिलियन टन अधिक है। जबकि चावल के उत्पादन में मामूली सी वृद्धि हुई, लेकिन गेहूं और मोटे अनाज दोनों में यह वृद्धि उल्लेखनीय है। इनके अलावा, इस वर्ष दालों का उत्पादन भी लगभग एक मिलियन टन बढ़ गया है, हालांकि यह 2017-18 के रिकॉर्ड तोड़ 25.4 मिलियन टन से कम है। [खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा जारी आंकड़ों से हासिल नीचे दिए चार्ट को देखें]

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इन निरंतर अच्छी फसल के परिणामस्वरूप, सरकार द्वारा बनाए गए खाद्यान्न भंडार छतों तक अट गए हैं। 20 जुलाई तक केंद्रीय पूल में चावल, गेहूं और मोटे अनाज का स्टॉक 824 लाख टन पहुँच गया था। जबकि जून में स्टॉक 835 लाख टन के शिखर पर था। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में देखा जा सकता है, कि जून वह महीना होता है जब रबी की फसल कटने के बाद केंद्रीय स्टॉक हर साल अपने शिखर यानि उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता हैं- इस खरीद में मुख्य रूप से गेहूं शामिल होता है।

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इस वर्ष जून का भंडारण अब तक का सबसे ऊपर था, इसने पिछले साल के उच्च भंडारण 92 लाख टन को पार कर लिया है। वास्तव में, जैसा कि ऊपर देखा जा सकता है, प्रत्येक जून का का ऊंचा भंडारण पिछले कई वर्षों से पिछले वर्ष के मुक़ाबले अधिक हो रहा है, जो सरकारी गोदामों में अनाज के अटे पड़े बड़े पैमाने को दर्शाता है। वर्तमान में, भंडारण जुलाई के महीने के लिए वैधानिक रूप से जरूरत के स्तर से दोगुना है।

जब महामारी और लॉकडाउन ने आम लोगों के जीवन को तबाह कर दिया है तो ऐसे में सरकार का अनाज के इस पहाड़ को दबा कर बैठना किसी की भी समझ से परे की बात, लोग भूखे हैं उन्हे अनाज़ चाहिए?

सबसे पहले तो इस संकट के पैमाने को पूरी तरह से समझना होगा। पिछले कई वर्षों से, कृषि और औद्योगिक मजदूरी या तो ठहर गई है या उसमें केवल मामूली सी वृद्धि हुई है। इससे एक गहरे और गंभीर संकट की स्थिति पैदा हो गई थी क्योंकि गरीब परिवारों को अपने खर्च पूरे करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। एक उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण जो कभी आधिकारिक रूप से प्रकाशित नहीं हुआ, में पाया गया था कि परिवारों के खर्च में गिरावट आ रही है, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों पर खर्च कम हुआ है- यह ऐसा कुछ हुआ जो पिछले चार दशकों में नहीं देखा गया।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के मुताबिक अनिवार्य रूप से खाद्यान्न के बड़े पैमाने पर वितरण के बाद भी कुछ राज्यों में भुखमरी से मौतें हुईं हैं, जबकि अधिनियम के तहत कुछ 80.42 करोड़ लोगों को सस्ती कीमत पर (या कुछ राज्यों में, मुफ्त) अनाज मिल रहा है। यह संख्या 2011 की जनगणना के आधार पर सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है, और जिस जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या को 121 करोड़ बताई गई थी। तब से, नौ साल बीत चुके हैं और अनुमान यह है कि अब जनसंख्या 133 करोड़ से अधिक है, और सस्ते अनाज के लेने वाले जरूरतमन्द लोग कुछ 89 करोड़ के करीब होंगे। हालाँकि पीएम मोदी अक्सर अपने भाषणों में "130 करोड़ भारतीयों" का उल्लेख करते हैं, लेकिन जब उयांके लिए भोजन या राशन का प्रावधान करने की बात आती है तो सरकार 2011 की जनगणना का लेकर बैठ जाती है, और नतीजतन कम से कम 9 करोड़ लोग अधर में छूट जाते है।

विभिन्न छोटे अध्ययनों में यह पाया गया है कि लॉकडाउन के कारण 40-70 प्रतिशत (या उससे अधिक) परिवार अपनी सारी कमाई खो चुके हैं। कई परिवारों ने बताया कि कुछ दिन तो ऐसे भी निकले जब उनके पास खाने को कुछ नहीं था। यद्यपि सरकार ने अतिरिक्त खाद्यान्न और दालों को मौजूदा आवंटन के साथ वितरित करने की घोषणा की थी, लेकिन यह नाकाफी था और इसलिए सभी जरूरतमंद परिवारों तक नहीं पहुंचा सका। सरकारी आंकड़े खुद बताते हैं कि पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत तीन महीने (अप्रैल, मई, जून) में आवंटित किए गए 12 मिलियन मीट्रिक टन (एमटी) में से केवल 11 मीट्रिक टन ही भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से उठाया गया और उसमें से केवल 10 मिलियन मीट्रिक टन ही वास्तव में वितरित किया गया था। ये आंकड़े यह भी स्वीकार करते हैं कि लोगों के लगभग 18 प्रतिशत राशन कार्डों को प्रमाणित नहीं किया जा सका (शायद आधार कार्ड की समस्याओं के कारण) और इसलिए वे लोग अनाज़ पाने के हकदार नहीं पाए गए।

जब बाद में, प्रवासी श्रमिकों की त्रासदी नाटकीय रूप से उनके घर लौटने के लंबे सफर में दिखाई देने लगी, और यह खबर आई कि लगभग 200 से अधिक मजदूरों की थकावट, भूख और प्यास से मौत हो गई तो सरकार ने घोषणा की कि वह उन लोगों के लिए भी पीएमजीकेवाई अनाज वितरण को बढ़ाएगी, जिनके पास कोई राशन कार्ड नहीं है। लेकिन नए सुलभ हुए आंकड़ों से पता चलता है कि अनुमानित एक करोड़ या उससे कुछ अधिक प्रवासी श्रमिकों के परिवारों को तीन महीनों में केवल 7.4 लाख मीट्रिक टन अनाज वितरित किया गया है।

फिर भी इस समय, सरकार के सारे गोदाम अनाज से लबालब हैं। तीन महीने तक अतिरिक्त अनाज़/खाद्यान्न वितरण के बावजूद, भंडारण अपने रिकॉर्ड स्तर पर है। इस साल अनाज़ खरीद में वृद्धि हुई है, हालांकि यह बेहतर गुणवत्ता मानदंडों को ढीला करने के कारण भी है। लेकिन फिर भी, लाखों लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन है जो महामारी/लॉकडाउन की दोहरी मार को झेल रहे हैं।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को सार्वभौमिक बनाने और प्रति व्यक्ति आवंटन बढ़ाने से अनाज का बड़े पैमाने पर वितरण न केवल जीवित रहने के लिए एक जीवन रेखा बनेगा बल्कि यह कदम गरीब परिवार को अनाज की खरीद से बची धनराशि को अन्य चीजों पर खर्च करने में मदद करेगी। यह गैर-खाद्य पदार्थों की मांग में वृद्धि कर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में भी मदद करेगी।

फिर भी सरकार, इन गोदामों के तालों को खोलने से इनकार कर रही है, ताकि न्यूनतम अनाज़ ही बाहर जा सके। क्या सरकार अमेरिका की धमकी से डरती है जो कहता है कि भारत को कृषि और भोजन पर सब्सिडी देना बंद कर देना चाहिए? यह मुद्दा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विचार-विमर्शों में छाया हुआ है। या क्या यह मोदी सरकार की वैचारिक समझ का हिस्सा है कि वह आम लोगों की बहुत अधिक मदद नहीं करना चाहती है और इस तरह निजी क्षेत्र के लिए रास्ता बना रही है? यह सब स्पष्ट नहीं है –लेकिन आज सभी भारतीयों की एक ही दर्दनाक कहानी है कि भोजन कम है और भविष्य अनिश्चित है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Record Harvest, Record Stocks; Yet, Why Are People Hungry?

COVID-19
Public Distribution System
National Food Security Act
2013
Narendra modi
Starvation Deaths
Job cuts
Pay cuts
Hunger
Food Corporation of India
PMGKY

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