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क्या सरकार ने रिलायंस की 53,000 करोड़ रुपये इकट्ठा करने में मदद की?
कोरोना महामारी के दौरान कई नियमों और शर्तों में भारत सरकार द्वारा किए गए बड़े बदलावों से रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड को राइट्स इश्यू करने में मदद मिली है।
अबीर दासगुप्ता, परंजॉय गुहा ठाकुरता
10 Jun 2020
Mukesh Ambani
Image Courtesy: wealthypersons.com

मुंबई/दिल्ली, 7 जून, 2020: भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (RIL) द्वारा निकाला गया ''अब तक का सबसे बड़ा'' ''राइट इश्यू'' तीन जून को बंद हो गया। यह अपनी उद्घोषित कीमत, 53,124 करोड़ रुपये से 1.59 गुना ज़्यादा खरीदा गया। RIL को यह पैसा 2021 तक ग्राहकों द्वारा चुकाया जाएगा।

20 मई को न्यूज़क्लिक पर प्रकाशित एक लेख में हमने बताया था कि RIL के राइट इश्यू उस रणनीति का सबसे अहम हिस्सा हैं, जिसके तहत कर्ज़ में फंसती जा रही रिलायंस पैसा इकट्ठा कर रही है। अगस्त, 2019 में देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी ने कंपनी को कर्ज़ मुक्त करने की घोषणा की थी।

आने वाले महीनों में पूंजी इकट्ठा करने की योजना सामने आई, जिसमें अपने टेलीकम्यूनिकेशन और मोबाईल इंटरनेट डेटा कंपनी रिलायंस जियो के ज़रिए कंपनी ने अपनी बाधाओं से पार पाने का रास्ता निकाला। यहीं रिलायंस के ऑयल रिफाइनिंग-पेट्रोकेमिकल्स बिज़नेस में सऊदी अरब की कंपनी अरेमेको ने 15 बिलियन डॉलर निवेश करने की योजना भी अहम है। 

फिर पिछले दो महीने में रिलायंस जियो में फ़ेसबुक ने 43,574 करोड़ रुपये और अमेरिका स्थित तीन प्राइवेट इक्विटी फर्म्स (विस्टा इक्विटी पार्टनर्स, सिल्वर लेक और जनरल एटलांटिक्स) ने 22,620 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की। 20 मई को जारी किए गए राइट् इश्यू के ठीक पहले की यह घटनाएं हैं।

हैरान करने वाली है पूंजी इकट्ठा करने की क़वायद

जब RIL का राइट इश्यू जारी था, तब भी कंपनी पूंजी इकट्ठा करने में लगी रही। यहां दो और दूसरी विदेशी कंपनियों ने निवेश की इच्छा जताई। अमेरिका स्थित प्राइवेट इक्विटी फर्म KKR ने 22 मई को पहली घोषणा की। यह 11,367 करोड़ रुपये की डील है, जिसमें रिलायंस जियो के मालिकाना हक़ वाली कंपनी जियो प्लेटफॉर्म में 2.32 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदी जानी है।

5 जून को अबुधाबी की स्टेट इंवेस्टमेंट फंड फर्म मुबादला इंवेस्टमेंट कंपनी ने दूसरी घोषणा की। इसके तहत जियो प्लेटफॉर्म में 1.85 फ़ीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 9,093.6 करोड़ रुपये निवेश करने की घोषणा हुई। इससे पहले 3 जून को NDTV ने सूत्रों के हवाले से बताया था कि पश्चिम एशिया की दो कंपनियां- 'अबुधाबी इंवेस्टमेंट अथॉरिटी' और सऊदी अरब का 'द पब्लिक इंवेट्स्टमेंट फंड' भी जियो प्लेटफॉर्म में निवेश करने के लिए बातचीत कर रहे हैं।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 17 मई को भारतीय कंपनियों को अपने स्टॉक विदेशी बाज़ारों में सूचीबद्ध कराने की अनुमति की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की। रिपोर्टों से पता चलता है कि इसके बाद RIL रिलायंस जियो के शेयर्स को विदेशी स्टॉक बाज़ारों में सूचीबद्ध कराने की कोशिश कर रहा है।

5 जून, शुक्रवार को रॉयटर्स ने बताया कि तीन अमेरिकी निवेशक कंपनियों में से एक, सिल्वर लेक जियो प्लेटफॉर्म में 601.4 मिलियन डॉलर या 4,546 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश करेगी। इस तरह जियो इंफोकॉम और इसके म्यूज़िक-वीडियो स्ट्रीमिंग एप्लीकेशन की मालिक कंपनी जियो प्लेटफॉर्म की एंटरप्राइज़ वेल्यू बढ़कर 5,16,000 करोड़ रुपये हो गई। वहीं सिल्वर लेक की प्लेटफॉर्म में हिस्सेदारी दो फ़ीसदी से थोड़ी ज़्यादा बढ़ गई।

40 बिलियन की संपत्ति वाली, कैलीफोर्निया स्थित प्राइवेट इक्विटी फर्म सिल्वर लेक ने कुछ बड़ी इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनियों में निवेश किया है। इन कंपनियों में एयरबीएनबी, अलीबाबा, अल्फाबेट(गूगल, यू ट्यूब और एंड्रॉयड के मालिकाना हक़ वाली कंपनी), ट्विटर, डेल टेक्नोलॉजीज़ और मूवी थियेटर चेन एएमसी एंटरटेनमेंट होल्डिंग्स शामिल हैं।

21.4 बिलियन डॉलर के कर्ज़ से मुक्ति पाने की दिशा में यह रिलायंस का हालिया समझौता है। रॉयटर्स ने पहले बताया था कि तीसरी तिमाही से पहले रिलायंस पैसे इकट्ठे करने की इस मुहिम को खत्म करना चाहती है, ताकि कंपनी जियो प्लेटफॉर्म को अमेरिका में सूचीबद्ध करा सके। कंपनी को अमेरिका में प्लेटफॉर्म की कीमत 90 से 95 बिलियन डॉलर मापे जाने की आशा है।

राइट इश्यू को भी शामिल करने के बाद कंपनी करीब 20 बिलियन डॉलर (मौजूदा कीमतों पर 1.50 लाख करोड़ रुपये) इकट्ठे कर चुकी होगी। पैसा इकट्ठा करने के इन कदमों की योजना निश्चित ही पहले बनाई होगी, लेकिन इन्हें तब लागू किया गया जब भारत कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन में है।

मुकेश अंबानी ने कहा कि राइट्स इश्यू के सफ़ल होने को वे ''घरेलू, विदेशी और छोटे खुदरा शेयरधारकों के भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत विश्वास बने रहने को मानते हैं।''

इस लेख में हम उन चीजों का विश्लेषण करेंगे, जिनको अभी तक रिपोर्ट नहीं किया गया है। इनमें हम इस विश्वास और इससे पहले देश के सबसे अमीर आदमी में अलग-अलग मंत्रालयों, भारत सरकार की एजेंसियों द्वारा राइट्स इश्यू करने के वक़्त दिखाए गए विश्वास की बात करेंगे।

सरकार द्वारा नियमों में बदलाव

RIL ने अपने राइट्स इश्यू की घोषणा 16 मई को की थी। दिलचस्प है कि इससे 15 दिन पहले ही SEBI और वित्तमंत्रालय ने इस तरह के राइट्स इश्यू के जरूरी नियामक प्रावधानों में छूट दी थी। 

देश के वित्तीय बाज़ारों के नियंत्रणकर्ता SEBI ने 6 मई को अपनी घोषणा में कहा कि संस्था ने राइट्स इश्यू जारी करने के प्रावधानों में कुछ छूट दी है। इसमें राइट्स इश्यू की घोषणा और इसका पूरा विज्ञापन सिर्फ़ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (ऑनलाइन और टेलीविज़न) के ज़रिए करने देने की घोषणा विशेष थी। इसके लिए रजिस्टर्ड पोस्ट, स्पीड पोस्ट या कोरियर सर्विस की जरूरत नहीं थी।  

यह ''कैपिटल-डिस्कलोज़र'' के जरूरी प्रावधानों में सिर्फ़ ''एक बार'' के लिए दी जाने वाली छूट है। इन प्रावधानों के तहत राइट्स इश्यू करने के पहले कंपनी को भौतिक नोटिस देना जरूरी होता है। SEBI ने कहा कि यह छूट सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरतों और पूरे भारत में लागू लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए दी जा रही है।

एक हफ़्ते से भी कम समय के भीतर 11 मई को वित्त मंत्रालय ने SEBI के आदेश पर मुहिम लगाते हुए प्रपत्र निकाल दिया। इस प्रपत्र में बताया गया कि ''मंत्रालय के सामने आए प्रतिनिधित्व में सूचीबद्ध कंपनी के 'राइट्स इश्यू पर नोटिस' दिए जाने के प्रावधानों में लॉकडाउन के दौरान चीजें साफ़ करने की मांग की गई थी।''

प्रपत्र में कहा गया कि 31 जुलाई, 2020 तक जिन राइट्स इश्यू को जारी किए जाने की योजना है और यह SEBI के 6 मई की घोषणा के मुताबिक़ काम करते हैं, तो उनके क्रियाकलाप कंपनीज़ एक्ट, 2013 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

17 मई को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मीडिया कॉन्फ्रेंस में सरकार द्वारा दिए गए राहत पैकेज में भी इन्ही आर्थिक प्रावधानों का जिक्र किया। उन्होंने अपनी घोषणा में कहा कि उद्योग मंत्रालय राइट्स इश्यू को डिजिटली करने की अनुमति दे रहा है, यह ''उस कदम का हिस्सा है, जिनसे कंपनीज़ एक्ट में अनिवार्य प्रावधानों को कम किया जा रहा है।''

ऐसा समझ आता है कि इन प्रावधानों से जिस एकमात्र कंपनी को लाभ हुआ, वह RIL है।

बिज़नेस स्टैंडर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि रिलायंस जियो अमेरिका के ''NASDAQ'' में सूचीबद्ध कराने की इच्छुक है। 17 मई को निर्मला सीतारमण ने भारतीय कंपनियों को विदेशों में सूचीबद्ध कराने संबंधी जो घोषणा की, उससे रिलायंस को फायदा मिला। 

(Nasdaq या नेशनल एसोसिएशन ऑफ सिक्योरिटीज़ डीलर्स ऑटोमेटेड कोटेशन सिस्टम, एक इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज है, जहां स्टॉक ट्रेडिंग फ्लोर के बजाए कंप्यूटर्स के स्वचलति नेटवर्क से खरीदे-बेचे जाते हैं। मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है।)

3 जून को इस लेख के एक लेखक (परांजॉय) ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को एक प्रश्नावली भेजी, इसकी एक-एक कॉपी वित्त सचिव अजय भूषण पांडे और कंपनी मामलों की सचिव इनजेति श्रीनिवास और सरकार के प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरों में वित्तमंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता को भेजी गई। इसमें 6 सवाल उठाए गए:

शेयरधारकों को राइट्स इश्यू के लिए नोटिस देने के संबंध में 11 मई को जो घोषणा हुई, उसके पहले कौन सी कंपनियों या औद्योगिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने उद्योग मंत्रालय के सामने अपनी बात रखी थी?

ऐसा आरोप लगाया जा रहा है कि मंत्रालय ने जो स्पष्टीकरण दिया, उससे केवल एक ही कंपनी (रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड) को ही फायदा हुआ है। इस पर आपकी क्या टिप्पणी है?

भारतीय कंपनियों को सीधे विदेशों में अपनी प्रतिभूतियों को सूचिबद्ध कराने की अनुमति देने के पहले उद्योग मंत्रालय और वित्तमंत्रालय ने किस तरह की सुझावकारी प्रक्रिया अपनाई थी।

क्या भारत सरकार के फ़ैसले से इसका भारत के स्टॉक एक्सचेंज में कम विश्वास समझ नहीं आता है?

एक ऐसे वक़्त में जब भारत सरकार देश में रुपये पर आधारित प्रतिभूतियों को भारतीय बाज़ारों में ज़्यादा तरलता के साथ बेचने के लिए माहौल बना रही है, तब भारतीय कंपनियों को विदेशी स्टॉक बाज़ारों में सूचीबद्ध करने की अनुमति देना इस नीति को कमज़ोर नहीं करता?

क्या भारतीय कंपनियों को अपने इक्विटी शेयर्स को सूचीबद्ध करने में इस तरह की बड़ी सहूलियत ''कैपिटल अकाउंट कर्नवर्टिबिलटी'' की तरफ बढ़ता कदम नहीं है?

उसी दिन एक प्रश्नावली SEBI के चेयरमैन अजय त्यागी को भेजी गई, जिसकी एक कॉपी बोर्ड के कम्यूनिकेशन डिवीज़न के अध्यक्ष को भी पहुंचाई गई। प्रश्नावली में यह लिखा गया था:

''6 मई, 2020 को SEBI ने प्राथमिकता वाले शेयर हस्तांतरण में कीमतों के दिशानिर्देशों में ढील दी। साथ में उन वित्त निवेशकों को छूट दी गई, जो तनाव झेल रही कंपनियों में खुले अधिग्रहण का प्रस्ताव दे रहे हैं। 22 अप्रैल को इसी विषय पर जारी किए गए एक विमर्श पेपर में SEBI ने बताया कि ''संस्था के पास आए कई प्रतिनिधित्व में कहा गया कि प्रिफरेंशियल एलॉटमेंट शेयर्स में वित्तीय निवेशकों को मौजूदा दिशानिर्देशों के चलते कष्ट झेलना पड़ता है।''

इस संबंध में मुझे अपने लेख में इस्तेमाल होने वाले सवालों पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार है।

6 मई 2020 को IPO (इनीशियल पबल्कि ऑफरिंग) और राइट्स इश्यू द्वारा प्राथमिक निवेश इकट्ठा करने में दी गई छूटों के पहले कौन सी कंपनियों या औद्योगिक संस्थाओं का प्रतिनिधित्व SEBI के सामने आया था?

6 मई को दी गई ढील के बाद से अब तक कितनी कंपनियों ने IPO और राइट्स इश्यू के ज़रिए निवेश इकट्ठा करने का कार्यक्रम शुरू किया है?

ऐसा दावा है कि सिर्फ़ एक कंपनी (रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड) को ही SEBI द्वारा दी गई छूटों से फायदा मिला है। क्या यह सही है? अगर हां, तो आपकी टिप्पणी जरूरी है।

क्या SEBI को लगता है कि उसके पास अमेरिका की सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज (SEC) की तरह के दंडाधिकार हैं, जिनसे प्रतिभूतियों के लेन-देन में हुए फर्जीवाड़ों से कड़ाई से निपटा जा सकता है? क्या इस पृष्ठभूमि में SEBI ने सरकार को अपनी अर्द्ध-न्यायिक शक्तियों को बढ़ाने के लिए लिखा है? 

RIL का ''ड्रॉफ्ट लेटर ऑफ ऑफर'' SEBI की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। क्या RIL को हाल में संपन्न हुई कंपनी शेयर्स के राइट्स इश्यू का "ड्रॉफ्ट लेटर ऑफ ऑफर" SEBI में भरने से छूट दी गई थी।

अपनी वेबसाइट में SEBI उन कंपनियों द्वारा भरी गई जानकारी पहले उपलब्ध करवाता है, जिन्हें बाद में शेयर राइट्श इश्यू करने हैं। यह जरूरी तौर पर दो स्तर की प्रक्रिया है: पहले SEBI में एक ड्रॉफ्ट लेटर जमा करना होता है, जिसके बाद ऑफर का एक अंतिम लेटर स्टॉक एक्सचेंज में जमा करना होता है। उदाहरण के लिए अरविंद फैशन लिमिटेड ने SEBI में 19 दिसंबर, 2019 को ड्रॉफ्ट लेटर जमा किया और 11 मई को स्टॉक एक्सचेंज में अंतिम लेटर ऑफ ऑफर भरा।

क्या SEBI, RIL जैसी बड़ी कंपनियों को शेयर राइट्स इश्यू करने के वक़्त SEBI में होने वाली लिखा-पढ़ी से छूट देता है और उन्हें सीधे आखिरी लेटर ऑफ ऑफर स्टॉक एक्सचेंज में जमा करने की अनुमति देता है?

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के मैनेजिंग डॉयरेक्टर और चीफ एक़्जीक्यूटिव ऑफ़िसर विक्रम लिमये, एक्सचेंज के कम्यूनिकेश डिपार्टमेंट और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सीईओ आशीष चौहान को दो प्रश्नावलियां भेजी गईं। इनमें यह तीन सवाल पूछे गए:

भारत सरकार ने हाल में औद्योगिक घरानों को इक्विटी और उधार के उपकरण डिजिटल तरीके से बेचने की अनुमति दी? साथ में सरकार ने भारतीय कंपनियों को अपनी प्रतिभूतियां विदेशी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराने की भी छूट दी। आपकी इस फ़ैसले पर क्या राय है?

क्या सरकार के फ़ैसले से भारत के स्टॉक एक्सचेंज में कम विश्वास नहीं झलकता है?

एक ऐसे वक़्त में जब भारत सरकार देश के भीतर भारतीय रुपये वाली प्रतिभूतियों की स्थानीय बाज़ार में ज़्यादा तरलता से लेन-देन के लिए माहौल बना रही हो, तब भारतीय कंपनियों के विदेशों मे सूचीबद्ध होने से इस नीति पर उलटा प्रभाव नहीं पड़ेगा?

इस लेख को लिखते वक़्त लेखकों को इन लोगों में से किसी से प्रश्नावलियों पर प्रतिक्रिया नहीं मिली है। जैसे ही इनकी प्रतिक्रिया आती है, हम लेख में शामिल कर लेंगे।

अब क्यों बदले गए क़ानून?

SEBI की प्राथमिक बाज़ार सलाहकारी समिति के एक पूर्व सदस्य ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर न्यूज़क्लिक से बात की। उन्होंने मौजूदा वक़्त में ही राइट्स इश्यू को डिजिटली करने की अनुमति देने की जरूरत पर सवाल उठाए। जबकि देश आज एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट से गुजर रहा है, जिसने वंचित लोगों की जिंदगी और आजीविका तबाह कर दी है।

उन्होंने कहा, ''उद्यमों को अपने इक्विटी और कर्ज़ उपकरणों को डिजिटल तरीके से बेचने देने का मुद्दा पिछले कई सालों से चल रहा है। बल्कि SEBI ने इस पर रिपोर्ट देने के लिए दिसंबर, 2018 में एक पैनल का गठन भी किया था। अलग-अलग लॉबी समूह इस मुद्दे पर कई सालों से बात कर रहे हैं। सवाल इस फ़ैसले के अच्छे या बुरे होने का नहीं है। बड़ा सवाल है कि यह फ़ैसला इसी वक़्त में क्यों लिया गया।''

''क्या सरकार और वित्तमंत्री को फिलहाल ग़रीबों की मदद करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। क्या बड़े औद्योगिक घरानों की मदद करने के बजाए ग़रीबों की मदद करना मौजूदा दौर की प्राथमिकता नहीं है?''

नाम ना छापने की ही शर्त पर बात करते हुए एक बाज़ार विश्लेषक ने कहा, ''एक ऐसे वक़्त में जब भारत सरकार देश के भीतर भारतीय रुपये वाली प्रतिभूतियों की स्थानीय बाज़ार में ज़्यादा तरलता से लेन-देन के लिए माहौल बना रही हो, तब भारतीय कंपनियों के विदेशों मे सूचीबद्ध होने से इस नीति पर उलटा प्रभाव नहीं पड़ेगा? क्या इससे भारतीय स्टॉक बाज़ारों में कम विश्वास नहीं झलकता?''

''प्राइवेट इंवेस्टमेंट इन पब्लिक इक्विटी (बाजारू भाषा में PIPE)'' समझौतों के उलट, रिलायंस जियो में अब तक जो निवेश हुआ है, वह गैर-सूचीबद्ध कंपनियों में है। विश्लेषक ने कहा, ''सिर्फ़ इस बार ही नहीं, कई बार गैर-सूचीबद्ध अधीनस्थ कंपनियों में निवेश की घोषणा तब की जाती है, जब वो हो जाते हैं। मतलब जब निवेशक पैसे दे चुका हो और कंपनी ने शेयर इश्यू कर दिए हों। ''

उन्होंने आगे कहा, ''RIL में सभी स्थितियों का ''नेट फ्री कैश फ्लो- कुल मुक्त पूंजी प्रवाह'' नकारात्मक है, ऊपर से ब्याज़ का भी भार है, सब मिलाकर यह साल का 15,000 करोड़ रुपये बैठता है। रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी में बड़े रिफाइनिंग हाशिये को देखते हुए, कहा जा सकता है कि यह आगे काफ़ी बड़ा नज़र आएगा। इस रिफाइनरी की प्रबंधन जटिलता काफ़ी ज्यादा है, जिसमें पिछले एक साल, ख़ासकर हाल की तिमाही में बड़ी गिरावट आई है।'' 

फिर भी भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी अपने शेयरधारकों और विदेशी निवेशकों को सिकुड़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौर में भी चिंतित न रहने के लिए मना चुकी है। अमेरिका स्थित निवेशकों का मानना है कि उनका निवेश ना केवल वापस आएगा, बल्कि नॉस्डेक में रिलायंस जियो के शेयर्स सूचीबद्ध होने के बाद उन्हें बड़ा मुनाफ़ा मिलेगा।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Did the Government Help Reliance Industries Raise Rs 53,000 crore?

Reliance Jio
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