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उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
"अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी जाये और यहीं पर पूरा पेंच फंसा हुआ है।
सरोजिनी बिष्ट
02 Jun 2022
up protest
बेसिक शिक्षा निदेशालय के बाहर प्रदर्शन

"बस अब बहुत हो चुका सरकार या तो हमें नौकरी दे या इच्छामृत्यु दे लेकिन अब हम यहाँ से खाली हाथ लौटकर घर वापस नहीं जायेंगे..... " ये एक-एक शब्द आज उन हजारों युवाओं की जुबान पर है जो अपनी नियुक्ति को लेकर लंबे समय से आन्दोलनरत हैं लेकिन अब उनका सब्र जवाब दे रहा है इसलिए अब वे योगी सरकार से एक ही बात कह रहे हैं  "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी जाये और यहीं पर पूरा पेंच फंसा हुआ है।

इन चयनित अभ्यर्थियों का आरोप है कि चूँकि वे आरक्षित वर्ग से हैं (दलित, ओबीसी) इसलिए उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। ये अभ्यर्थी करीब 70 दिनों से लखनऊ के इको गार्डन में आन्दोलनरत हैं। बीते 30 मई को इनका विधानसभा घेराव था, हालांकि इन्हे परिवर्तन चौक पर ही रोक दिया गया और गिरफ्तार कर वापस इको गार्डन भेज दिया गया। लगातार इनका आन्दोलन जारी है, कभी ये बीजेपी कार्यालय पहुँच रहे हैं तो कभी केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के आवास तक गुहार लगा रहे हैं, तो कभी बेसिक शिक्षा निदेशालय के बाहर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इनका कहना है मामला भले ही कोर्ट में हो लेकिन कोर्ट ने नियुक्तियों पर रोक नहीं लगाई है यह बात कोर्ट ने साफ कर दी है। गेंद सरकार के पाले में है, सरकार चाहे तो बहाली कर सकती है।

क्या है पूरा मामला, आईये जानते हैं...

उत्तर प्रदेश सरकार ने 1 दिसंबर 2018 को 69000 सहायक शिक्षक भर्ती के पद का विज्ञापन निकाला था. विज्ञापन के आधार पर चयन प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई. लेकिन इस भर्ती में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने लखनऊ में आंदोलन शुरू कर दिया. अभ्यर्थियों ने दावा किया कि आरक्षण लागू करने में धांधली की गई है। इस भर्ती के लिए अनारक्षित की कटऑफ 67.11 फीसदी और ओबीसी की कटऑफ 66.73 फीसदी थी। अभ्यर्थियों का कहना था कि इस नियमावली में साफ है कि कोई ओबीसी वर्ग का अभ्यर्थी अगर अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से अधिक नंबर पाता है तो उसे ओबीसी कोटे से नहीं बल्कि अनारक्षित श्रेणी में नौकरी मिलेगी. यानी वह आरक्षण के दायरे में नहीं गिना जाएगा. ओबीसी, दलित और दिव्यांग वर्ग के छात्रों द्वारा किये भारी विरोध और पिछड़ा वर्ग आयोग के दखल के बाद अन्ततः सरकार ने माना कि उससे आरक्षण लागू करने में गड़बड़ी हुई है और आचार संहिता लागू होने से पहले 6800 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की सूची जारी कर नियुक्ति करने का आदेश दे दिया। हालांकि आचार संहिता लगने से ठीक पहले आरक्षित वर्ग की सूची जारी करना महज एक चुनावी स्टंट माना गया क्योंकि 5 जनवरी 2021 को सूची जारी होती है और 8 जनवरी को आचार संहिता लग जाती है।

जानकार मानते हैं कुल मिलाकर ओबीसी और दलित वर्ग के वोट को अपनी तरफ खींचने के लिए ये सारी कवायद की गई, जबकि यह सरकार आरक्षण विरोधी चरित्र के तौर पर जानी जाती है, क्योंकि मसला छात्रों का था और भी आरक्षित वर्ग से छल करने का और उस पर चुनाव का समय तो कुछ तो कदम सरकार को उठाना था जबकि सरकार इस बात से भली भाँति वाकिफ़ थी कि मामले में पेंच हैं। 

क्या कहते हैं अभ्यर्थी...

अभ्यर्थियों ने बताया कि इस भर्ती प्रक्रिया में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 एवं आरक्षण नियमावली 1994 का सही तरीके से पालन नहीं किया गया है जिस कारण इस भर्ती प्रक्रिया में 19 हजार के करीब सीटों पर आरक्षण घोटाला हुआ है, लेकिन सरकार कुछ सीटें देकर इस मामले को शांत करना चाहती है। बस्ती के रहने वाली चयनित अभ्यर्थी शुभम कहते हैं दो साल से यह मामला चल रहा था, अगर सरकार की नीयत आरक्षण को लेकर साफ होती तो शुरू से इसे लागू करने में गड़बड़ी नहीं होती। वे कहते हैं हमें तभी समझ आ गया था कि यह मामला लंबा फसेगा जब सरकार ने चयनित अभ्यर्थियों की सूची तो जारी कर दी जिला आवंटित नहीं किया। तो वहीं लगातार आन्दोलन में डटे इलाहाबाद के वीरेन्द्र कुमार कहते हैं आठ-दस महीने लंबे आन्दोलन के बाद तो 23 दिसंबर 2021 को जाकर मुख्यमंत्री हम छात्रों के डेलीगेशन से मिलते है। मिलने पर वे भरोसा दिलाते हैं कि एक सप्ताह के भीतर आरक्षित वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर दी जायेगी लेकिन ऐसा नहीं होता। एक सप्ताह के भीतर नियुक्ति तो छोड़िये 12 दिन के बाद तो सूची ही जारी होती और उसके दो दिन बाद आचार संहिता लग जाती है।

वीरेन्द्र कहते है- हालांकि अगर सरकार चाहती तो चुनाव के समय भी अभ्यर्थियों की बहाली हो सकती थी क्योंकि सूची तो चुनाव से पहले ही जारी हो गई थी। वे आक्रोश भरे स्वर में कहते हैं- सरकार के अधिकारी केवल एक ही बात कहते हैं कि आपका मामला कोर्ट में है इंतज़ार कीजिये, तो हम पूछते हैं यूपी में ऐसा कौन सा मामला नहीं है जो कोर्ट में न हो या न रहा हो लेकिन मामला कोर्ट में होता है, नौकरियां दे दी जाती हैं बस एक कोड लिख दिया जाता है कि आपकी नौकरियां इस कोर्ट के फैसले पर अधीन होंगी, ऐसा करके सरकार उन्हें भी नौकरी दे सकती थी यदि ऐसा होता तो आज जो हजारों युवा महीनों से सड़कों पर हैँ वे बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे होते।

वीरेन्द्र कहते हैं जब 6800 अभ्यर्थियों की सरकार ने सूची जारी की थी तब मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि बेसिक शिक्षा विभाग इन्हे नियुक्ति दे दे ताकि भविष्य में ये बच्चे अब सड़कों पर नजर न आयें, लेकिन विडंबना देखिये आज भी हजारों युवा सड़कों पर ही हैं और उनका दर्द समझने वाला कोई नहीं इसलिए अब यह नारा मजबूरी में देना पड़ा कि सरकार अब हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे।

अभ्यर्थियों का आरोप है कि सरकार उनकी मांग को अनसुना करने में लगी है, 5 जनवरी को चयनित सूची में शामिल किए जाने के बावजूद अभी तक नियुक्ति पत्र के लिए भटक रहे हैं, बता दें कि अभ्यर्थी करीब 70 दिनों से लखनऊ में धरना दे रहे थे. इनका आरोप है कि सरकार उनके साथ धोखा कर रही है, भर्ती प्रक्रिया पर कोर्ट की तरफ से किसी तरह की कोई रोक नहीं लगाई गई है, गेंद सरकार के पाले में है, उन्हें इसके संबंध में फैसला लेना है. बावजूद सरकार चुप्पी साधे बैठी है।

हाई कोर्ट पहुँचा मामला...

सरकार द्वारा जारी की गई 6800 की लिस्ट पर लखनऊ हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने 26 जनवरी को पूरी तरह से रोक लगा दी है। जब यह मामला कोर्ट चला गया तो, इस भर्ती मामले में एक नया मोड़ आ गया। हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 69000 शिक्षक भर्ती मामले में 6800 आरक्षित व्यक्तियों की अतिरिक्त सूची जारी करने और चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी, हाईकोर्ट ने साफ कहा है विज्ञापित 69000 रिक्तियों के अलावा एक भी अतिरिक्त नियुक्ति नहीं की जा सकती है, दरअसल, राज्य सरकार ने बीती 5 जनवरी को 6800 अभ्यर्थियों की एक अतिरिक्त चयन सूची जारी हुई, जिसको लेकर मामला कोर्ट पहुंच गया है।

इस मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस राजन रॉय ने साफ शब्दों में कहा कि वर्ष 2018 में विज्ञापित 69 हजार रिक्तियों के अतिरिक्त बगैर विज्ञापन के एक भी नियुक्ति नहीं की जा सकती है, कोर्ट ने कहा कि 1 दिसंबर 2018 को विज्ञापित पद से अधिक नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए, कोर्ट ने नियुक्ति पर अंतरिम रोक लगाते हुए साफ कहा कि यह स्थिति सरकार ने पैदा की है लिहाजा अब सरकार तय करें कि 6800 अभ्यर्थियों के बारे में क्या करना है।

कोर्ट ने ये भी कहा कि जितने पद थे जब वे सारे भर लिए गए हैं तो फिर यह चयनित अभ्यर्थियों की यह अतिरिक्त सूची किस आधार पर जारी की गई। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकार यह बताये कि वह एक पद पर दो लोगों को कैसे वेतन दे सकती है, इस पूरी अस्थिरता पैदा करने की जिम्मेवार कोर्ट ने प्रदेश सरकार को माना। अब इस मामले की अगली तारीख 18 जलाई  तय की गई है जिसमें सरकार को अपना पक्ष रखना है।

बहरहाल इन चयनित अभ्यर्थियों ने अब खाली हाथ घर वापस न जाने का की बात कही है। सचमुच बेहद कठिन दौर है, जिनको अभी देश की भावी पीढ़ी का भविष्य संवारना था, उन्हें सड़कों पर उतर कर खुद के भविष्य के लिए लड़ना पड़ रहा है। जिनके कंधों पर पढ़ाने की जिम्मेवारी होनी चाहिए थी वे आज इस हालत में हैं कि रोजगार के अभाव में अपना परिवार पालने की भी जिम्मेवारी उठाने की स्थिति में नहीं। हालात यहाँ तक पहुँच गए कि अब ये युवा सरकार से इच्छामृत्यु की माँग करने लगे हैं।

(लेखिका स्वतन्त्र पत्रकार हैं)

ये भी पढ़ें:-सरकारी नौकरियों का हिसाब किताब बताता है कि सरकार नौकरी ही देना नहीं चाहती

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