NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मॉनीटाइजेशन का नाम बदनाम ना करो!
कटाक्ष: मोदी जी कुछ भी करें, इन्हें विरोध ही करना है। पहली पारी में मोदी जी ने डीमोनिटाइजेशन किया, तो इन्होंने उसका विरोध। अब मोदी जी मॉनीटाइजेशन कर रहे हैं, सो उसका भी विरोध कर रहे हैं।
राजेंद्र शर्मा
04 Sep 2021
मॉनीटाइजेशन का नाम बदनाम ना करो!
तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार

निर्मला जी गा रही हैं। गडकरी जी गा रहे हैं। प्रधान जी गा रहे हैं। गोयल जी गा रहे हैं। अनुराग जी गा रहे हैं। पुरी जी, वैष्णवी जी, जयशंकर जी, लेखी जी गा रहे हैं। नड्डा जी गा रहे हैं। यानी छोटे-बड़े, सब ‘जी’ लोग गा रहे हैं। सुर में गा रहे हैं, बेसुरे गा रहे हैं। गला फाडक़र गा रहे हैं। देश भर में घूम-घूमकर अकेले-अकेले गा रहे हैं, समवेत स्वर में गा रहे हैं और इस चक्कर में एक और विश्व रिकार्ड बना रहे हैं। एक बार नहीं बार-बार गा रहे हैं--देखो ऐ एंटीनेशनलो तुम ये काम ना करो, मॉनीटाइजेशन का नाम बदनाम ना करो, बदनाम ना करो! मगर मजाल है जो मोदी जी के विरोधियों के कान पर जूं तक रेंगी हो। मोदी जी की सेना जितना समझाती है, ये सारी दुनिया को सुनाने के लिए उतने ही जोरों से बेच दिया, सब बेच दिया, चिल्लाते हैं। वैसे इससे मोदी जी का और उनके दोस्तों का भी कुछ बिगडऩे वाला नहीं है। सारी दुनिया को न्यू इंडिया की सेल का पता चल भी गया तो क्या? बाहर से चार ग्राहक फालतू आएंगे। बिक्री में सरकार को दो पैसे ज्यादा मिल जाएंगे।

आत्मनिर्भरता का मतलब घर की जमा-पूंजी बेचकर खाना पर दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाना है, सही है। लेकिन, इसका मतलब खरीददार के मामले में भी आत्मनिर्भरता थोड़े ही है। पुराने इंडिया का काठ-कबाड़ बाहर वालों के हाथों बिकेगा, तभी तो नया इंडिया सारी दुनिया की नजरों में उठेगा। यानी वैसे तो विपक्ष वाले भी शोर मचाकर न्यू इंडिया की सेल की मुफ्त पब्लिसिटी ही करा रहे हैं।

फिर भी, ‘इंडिया बिकता है क्या-क्या खरीदोगे’ कम से कम सुनने में तो बुरा लगता ही है, खासकर एनआरआई अंकिलों को। बेचना हो तो बेचो, पर बेचने का ढोल क्यों पीटना और वह भी बाहर! यह दुनिया भर में देश को बदनाम करना है। यह सरासर इंटीनेशनलता है। घर की बात घर में रखो। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सत्य सामने लाने को जनतंत्र के लिए नागरिकों का जरूरी अधिकार और कर्तव्य दोनों बताया जरूर है। लेकिन यह हमारा सत्य होना चाहिए, सिर्फ हमारा! हमारे सत्य से बाहर वालों को मतलब! डैमोक्रेसी जरूरी है, तो राष्ट्रवाद यानी घर की बात घर में रखना उससे भी जरूरी है। राष्ट्रवाद नहीं रहेगा तो, डैमोक्रेसी को कैसे बचाएंगे? घर की बात बाहर गयी नहीं कि बाहर वाले घुस आएंगे और अफगानिस्तान की तरह बाहरी तालिबान को छोड़ जाएंगे। फिर बैठे रहना सत्य और डैमोक्रेसी को पकड़ कर।

प्लीज, प्लीज, इसमें अमरीका की तरफ इशारा मत ढूंढने लग जाइएगा। वह तो हमारा मित्र है। लंगोटिया यार न सही, पर दांत काटी रोटी के लेवल की यारी जरूर है। सच पूछिए तो सेल-सेल के शोर में यही असली प्राब्लम है। लंबे ब्रेक के बाद, मोदी जी अमरीका का दौरा करने जा रहे हैं। जो बाइडेन से राष्ट्रपति बनने के बाद पहली झप्पी के लिए। तगड़ा सा गिफ्ट तो बनता है। पर गिफ्ट में सरप्राइज भी तो होना चाहिए। मुलाकात की तारीख तय भी नहीं हुई और गिफ्ट का हल्ला पहले हो गया, यह अच्छा नहीं हुआ। कम से कम दोस्त के लिए सार्वजनिक सेल शुरू होने से पहले, खास सेल का यानी सबसे पहले चुनाव का न्यौता तो बनता ही था। पर विरोधियों के शोर ने सब बर्बाद कर दिया। अब मोदी जी दोस्त के लिए कोई और गिफ्ट खोजना पड़ेगा!

और बेच दिया, बेच डाला कहकर, मॉनीटाइजेशन को बदनाम करने वाले हैं कौन? ये लोग दुनिया में नये इंडिया की बदनामी करने वाले एंटीनेशनल तो खैर हैं ही, इसके आलावा भारतीय संस्कृति और राम मंदिर के विरोधी भी हैं। नहीं, यह राहुल-वाहुल की बात नहीं है। वे बेच दिया, बेच दिया का शोर मचाएं तो, उनका मुंह यह कहकर बंद किया जा सकता है कि बेचना वह था, जो आपके राज में होता था। आपकी देखा-देखी अब तक हमने भी किया, आगे भी करेंगे, पर यह तो मॉनीटाइजेशन है, हमारा ऑरीजिनल। अब करते रहें कि चीं-चीं कि हमने तो ऐसे उद्योगों को बेचा था, वैसे को नहीं बेचा था! खुद जिसने बेचा हो, कहे कि फलां-फलां क्यों बेच दिया, तो उससे और कुछ भी हो कम से कम बदनामी नहीं होती है। असली प्रॉब्लम उनकी है, जो पहले वालों के बेचने का विरोध करते थे और अब भी मॉनीटाइजेशन का यही कहकर विरोध कर रहे हैं कि यह तो घर का जेवर-गहना बेचना है। उनके हिसाब से सरकार वही, जो अपनी मिल्कियत को बढ़ाए। बेचे तो, अपना हिस्सा कम करे तो, किराए पर दे तो, मॉनीटाइज करे तो, सब घर का जेवर-गहना बेचना है; सब बदनामी की बात है। पर क्यों? क्योंकि उससे अडानियों-अंबानियों को फायदा है। पर जो समाजवाद-समाजवाद करने वाले, सत्तर साल में टाटा-बिड़ला का बढऩा नहीं रोक पाए, मोदी जी के राज में अडानियों-अंबानियों का क्या उखाड़ लेंगे!

वैसे भी मॉनीटाइजेशन के इस विरोध को पब्लिक पूछने वाली नहीं है। यह भारतीय परंपरा के एकदम खिलाफ जो है। मॉनीटाइजेशन तो हमारे यहां घर-घर तक पहुंचा हुआ है। अभी-अभी खबर आयी है कि कोरोना की दूसरी लहर में, 85 फीसद लोगों ने सोना गिरवी रखकर, कर्ज उठाया है। यही तो मॉनीटाइजेशन है। सोना रखे-रखे क्या अंडे देगा। उसे काम पर लगा और उसकी कमाई खा! जब और कोई काम न आए, तो भी सोना कमाकर खिलाए। और अच्छे दिन किसे कहेंगे, भाई! और हमारे यहां तो मॉनीटाइजेशन की इतनी पुरानी परंपरा है कि पूछो ही मत। जमींदार हों या किसान, जमीन भाड़े पर देकर न जाने कब से मॉनीटाइजेशन करते आ रहे हैं। और महाजन न जाने कब से हल-बैल, झोंपड़ी, जमीन, रेहन रखकर, गरीब से गरीब किसानों-मजदूरों तक मॉनीटाइजेशन का लाभ पहुंचाते आए हैं। अब बैंक आ गए हैं, फिर भी महाजनों का काम रुका नहीं है। सच पूछिए तो हमारी मॉनीटाइजेशन की परंपरा तो रामायण-महाभारत काल तक जाती है। द्रौपदी को जुए में दांव पर लगाना, मॉनीटाइजेशन का सर्वोच्च विकास नहीं तो और क्या था!

लेकिन, विरोधी समझने वाले नहीं हैं। मोदी जी कुछ भी करें, इन्हें विरोध ही करना है। पहली पारी में मोदी जी ने डीमोनिटाइजेशन किया, तो इन्होंने उसका विरोध। अब मोदी जी मॉनीटाइजेशन कर रहे हैं, सो उसका भी विरोध कर रहे हैं। और हर बार एक ही बहाना कि पब्लिक पिस रही है। इतना भी नहीं समझते कि मोदी जी ने पब्लिक को मॉनीटाइज कर दिया है। जितनी अंबानियों-अडानियों की सिल पर पिसेगी, उतनी ही उनके हाथों पर मेंहदी चढ़ेगी और विश्व अरबपतियों में इंडिया की रेंकिंग बढ़ेगी। 

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

sarcasm
Narendra modi
Nirmala Sitharaman
Monetization
Satire
Political satire

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • aaj ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    धर्म के नाम पर काशी-मथुरा का शुद्ध सियासी-प्रपंच और कानून का कोण
    19 May 2022
    ज्ञानवापी विवाद के बाद मथुरा को भी गरमाने की कोशिश शुरू हो गयी है. क्या यह धर्म भावना है? क्या यह धार्मिक मांग है या शुद्ध राजनीतिक अभियान है? सन् 1991 के धर्मस्थल विशेष प्रोविजन कानून के रहते क्या…
  • hemant soren
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार
    18 May 2022
    एक ओर, राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर मुहर नहीं लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार ने पिछली भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश…
  • सोनिया यादव
    असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?
    18 May 2022
    असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आम जन को ख़ासी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?
    18 May 2022
    मुंडका, अनाज मंडी, करोल बाग़ और दिल्ली के तमाम इलाकों में बनी ग़ैरकानूनी फ़ैक्टरियों में काम कर रहे मज़दूर एक दिन अचानक लगी आग का शिकार हो जाते हैं और उनकी जान चली जाती है। न्यूज़क्लिक के इस वीडियो में…
  • inflation
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?
    18 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार शर्मा सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार के पास महंगाई रोकने का कोई ज़रिया नहीं है जो देश को धार्मिक बटवारे की तरफ धकेला जा रहा है?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License