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कटाक्ष: नये साल के लक्षण अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं...
नहीं-नहीं, हम ओमिक्रॉन की बात नहीं कर रहे हैं। ओमिक्रॉन हमारे नये साल का सगुन नहीं बिगाड़ सकता। हम बात कर रहे हैं...
राजेंद्र शर्मा
02 Jan 2022
New year
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: अमर उजाला

नये साल के लक्षण अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। शुरूआत ही गलत हुई है। नहीं-नहीं, हम ओमिक्रॉन की बात नहीं कर रहे हैं। और कुछ करे न करे, पट्ठे  ने नये साल के जश्नों पर तो ठंडा पानी डाल ही दिया। बेचारे बजरंगदलियों को हैप्पी न्यू ईयर कहने वालों पर लाठी चलाना तो दूर, दौड़ाने या धक्का-मुक्की करने तक का मौका नहीं मिला। कोविड के डर ने न्यू ईयर को खुशी का मौका मानने वालों को घर पर ही बैठा दिया। बची-खुची कसर, सरकारी रोक-टोक और पुलिसिया डंडों ने पूरी कर दी। फिर भी ओमिक्रॉन हमारे नये साल का सगुन नहीं बिगाड़ सकता।

ओमिक्रॉन कितना ही जोर लगा ले, 2021 में डेल्टा वेरिएंट ने ऐसे रिकार्ड बनाए हैं, ऐसे रिकार्ड बनाए हैं कि ओमिक्रॉन उनके आस-पास भी नहीं पहुंच सकता है। हां कोई सरकारी आंकड़ों को ही पकडक़र बैठा रहे तो बात दूसरी है। सरकारी आंकड़ों में तो न तो आक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई थी और न कभी गंगा, मोक्ष-दायिनी से शव-वाहिनी बनी थी। ओमिक्रॉन चाहे डेल्टा के सरकारी आंकड़ों से ही होड़ कर के खुद को विजयी घोषित भी कर ले, उसे देश की जनता से तो चैम्पियन का सम्मान मिलने से रहा। आखिर, ये पब्लिक है, सब जानती है। यूपी की चुनावी रैलियां गवाह हैं कि छप्पन इंची छाती वालों के राज में, हमें कोई वाइरस-फाइरस डरा नहीं सकता है।

\अब आप पूछेंगे कि ओमिक्रॉन नहीं तो और क्या है जो नए साल की शुरूआत में असगुन कर रहा है? वैष्णो देवी में भगदड़, जिसमें साल के पहले ही दिन एक दर्जन से ज्यादा भक्त मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। बेशक, वैष्णो देवी में जो हुआ दु:खद है। भक्तों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। साल के पहले दिन ऐसा होना तो और भी दु:खद है। पर इसके लिए मोदी जी की डबल इंजन सरकार से कोई सवाल नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी डबल इंजन सरकार तो इतनी मंदिर प्रेमी है कि वह तो ऐसा लगता है कि इस बार यूपी और उत्तराखंड में तो पूरा चुनाव ही अयोध्या से लेकर काशी से होकर केदारनाथ तक, मंदिर विकास की ऊंची दर की अपनी पुरानी पुश्तैनी तलवार भांजकर ही लडऩे जा रही है। वह माता भक्तों की सरकार है और माता भक्त उसके हैं, फिर उसकी किसी कोताही की बात तो कोई सोच भी कैसे सकता है। ऐसी घटनाएं क्या पहले वालों के राज में नहीं होती थीं? सचाई यह है कि ऐसी घटनाएं हमेशा से होती आयी हैं। क्या किया जाए, हमारे यहां भक्त हैं ही बहुत। भक्ति और भीड़ का चोली-दामन का संबंध है। और भीड़ जहां, दुर्घटना वहां। दो-दो मंत्रियों ने बता दिया है कि इसके लिए सिर्फ और सिर्फ पब्लिक जिम्मेदार है। लोग हैं कि मानते ही नहीं हैं! वैसे भी यह तो सीधे भक्त और उसके भगवान के बीच का मामला है, उसमें मोदी जी की या कोई भी सरकार आती ही कहां है! भगवान की मर्जी में किसी का क्या दखल? जिसकी आयी हो, उसे कोई बचा भी कैसे सकता था? खैर! हर चार-छह महीने पर होने वाली ऐसी घटनाओं से, नये इंडिया में नए साल के सगुन नहीं बिगड़ा करते।

हमारा नये साल का सगुन बिगाड़ा है चीनियों ने। हमारी डबल इंजन सरकार ने कितने शोध और प्रयोगों के बाद और दर्शन के गहन योग के बल पर, रामबाण फार्मूला ईजाद किया था--जिस चीज को न बदला जाए, उसका नाम बदल दो; कम से कम भक्त तो उसे नया कहने ही लगेंगे। पर चीनी हमारा फार्मूला चुरा ले गए। और फार्मूला चुराया तो चुराया, अब दीदादिलेरी से हमारे फार्मूले का हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल भी कर रहे हैं। और वह भी थोक में।

बेइमानों ने साल बदलते-बदलते हमारे अरुणाचल प्रदेश में एक-दो नहीं, पूरी पंद्रह जगहों के नाम बदल डाले, वह भी एक ही झटके में। चोरी भी नहीं, यह तो सरासर डकैती है। बदले हैं, हमारे डबल इंजन वालों ने भी बेशक नाम बदले हैं, चालू योजनाओं के, काम कर रही संस्थाओं के, पहले से चलती सडक़ों के, आबाद बस्तियों के और सैकड़ों साल के इतिहास वाले शहरों-कस्बों के नाम, बदले हैं। पर हम कभी किसी दूसरे देश में नाम बदलने के लिए नहीं गए। चीनी भी बदल लेते अपने शहरों-वहरों के नाम, हम कौन से उनसे अपने फार्मूले के उपयोग की रायल्टी मांगने जा रहे थे।

यह पहली बार थोड़े ही है जब दूसरे देश वालों ने हमारे ज्ञान की चोरी की है। सारी दुनिया ने हमसे ज्ञान चुराया है और हमने बिना किसी रपट या मुकद्दमे के उदारता से चुराने दिया है। इसीलिए तो हम विश्व गुरु हैं। सभी जानते हैं कि हमारे वेदों से फार्मूले चुरा-चुराकर ही यूरोप वालों ने सुई से लेकर रॉकेट तक सब कुछ बना लिया, जबकि फार्मूलों की चोरी की वजह से हम पीछे रह गए। पर इन चीनियों ने तो हद्द कर दी। हमारा फार्मूला चुराकर अपनी सीमाओं से बाहर उसको आजमा रहे हैं। और अगर उनके अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानने की बात मान भी लें, तब भी उन्होंने जो एक ही झटके में पंद्रह जगहों के नाम बदल डाले; वह तो साफ तौर पर हमारे फार्मूले को आजमा कर, हमें ही पीछे छोडऩे की कोशिश है? पहले न सही, पहली बार सही, डबल इंजन वालों को नाम बदलने के फार्मूले पर पेटेंट हासिल करना चाहिए और डब्ल्यूटीओ में चीन के खिलाफ दावा करना चाहिए। वर्ना चीनी कल को और न जाने कितने नाम बदलवाएंगे और लोग यह भूल ही जाएंगे कि नाम बदलकर, चीजों को बदलने का फार्मूला, रॉकेट वगैरह की तरह दुनिया को भारत की ही देन है।

खैर, चीनी अगर सोचते हैं कि नाम बदलकर चीजों को बदलने के हमारे फार्मूले की चोरी कर, वे हमारा विश्व गुरु का तमगा भी चुरा सकते हैं, तो वे भारी गलतफहमी में हैं। एक ही झटके में हमसे ज्यादा जगहों के नाम बदल लेने से क्या हो जाएगा? क्या वे हमारी तरह बदतर दिनों का नाम बदलकर, अच्छे दिन कर पाएंगे? हम विश्व गुरु होने का दावा यूं ही थोड़े ही करते हैं!  

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

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