NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
व्यंग्य
भारत
राजनीति
बैठे-ठाले : वोट चरती गाय, बेईमान पब्लिक और ख़तरे में रामराज्य!
अब तो वोटों की कुछ फसल गाय चर गयी और बाक़ी पब्लिक यह कहकर उखाड़ ले गयी कि पांच साल गाय के लिए ही सरकार चलाए हो, गायों से ही वोट ले लो!
राजेंद्र शर्मा
19 Feb 2022
up elections
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: NDTV

भई, बहुतै कन्फ्यूजन है। राकेश टिकैत की मानें तो भगवाइयों के वोट कोको ले गयी। पहले बोले, यूपी में भगवाइयों के वोट कोको ले गयी। फिर, उत्तराखंड में सब देख-दाखकर बोले, यहां भी भगवाइयों के वोट कोको ले गयी। पर दक्कन हैरल्ड अखबार की रिपोर्ट में सुनाई पड़ रही यूपी के ही किसान मर्दों और औरतों की आवाज की मानें तो, भगवाइयों के वोट कोई कोको-वोको नहीं ले गयी है। कोको तो वोट तब ले जाती, जब वोट की फसल खलिहान तक आती। यहां तो बेचारों के वोटों की फसल खेत में ही गाय चर गयी। वैसे इस पर अलग-अलग किसानों के अंदाजे में थोड़ा फर्क है कि आवारा गायों के चरने तक, भगवाइयों के वोटों की फसल कितनी बढ़ गयी थी। कुछ कहते हैं कि बेचारों की घुटने-घुटने तक की फसल, आवारा पशु चर गए, तो कुछ और कहते हैं कि फसल तो इस बार भी कमर-कमर तक हो गयी थी, पर आवारा मवेशी चर गए!

बेचारे भगवाइयों के वोट अगर कोको ले गयी है, तब तो फिर भी गनीमत है। किसान मानें न मानें, कम से कम भगवा पार्टी यह मानने से इंकार नहीं कर सकती है कि पशु-पक्षियों का नुकसान भी प्राकृतिक आपदा में आता है। और यह प्राकृतिक आपदा तो प्रधानमंत्री फसल बीमा में भी कवर नहीं होती है। यानी कोई कुछ नहीं कर सकता है, माथा पीटने के सिवा। पर अगर उनके वोट गाय चर गयी है, तब तो बेचारों की डबल मुसीबत है। गाय के चरने को, प्राकृतिक आपदा के खाते में तो नहीं डाल सकते हैं। फिर यह नुकसान किस के खाते में जाएगा? गंजे सिर का ख्याल कर के, इस नुकसान का ठीकरा योगी जी के सिर भले ही नहीं फोड़ा जाए, फिर भी उनकी सरकार और सरकार की नीति के सिर पर तो ठीकरा फूटेगा ही फूटेगा। किसानों के खेत आवारा गायों के चरने के लिए रिजर्व करने पर थोड़ा कम खर्चा करते और प्रति-गाय खर्च को, प्रति-इंसान खर्च से कम रखाते, तो हो सकता है कि वोट की फसल कुछ बेहतर होती और नुकसान कम। अब तो वोटों की कुछ फसल गाय चर गयी और बाकी पब्लिक यह कहकर उखाड़ ले गयी कि पांच साल गाय के लिए ही सरकार चलाए हो, गायों से ही वोट ले लो!

वैसे हमें तो लगता है कि गाय के वोट चर जाने की बात, कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर कही जा रही है। अगर योगी जी की डबल इंजन सरकार के गाय पर ही ज्यादा ध्यान देने से पब्लिक के कुढ़ने की ही बात होती, तो कम से कम इटावा सदर वाली सरिता भदौरिया को इसकी शिकायत नहीं करनी पड़ती कि वोट मांगने जाती हैं, तो औरतें बात ही नहीं कर रही हैं। वोट देना तो छोड़ो, नमस्ते लेने के तक को तैयार नहीं हैं। और ये वही पब्लिक है जिसने उनका गल्ला लिया, नमक लिया, तेल लिया, आवास लिया, दूसरी सुविधाएं भी ले लीं। तब तो नहीं कहा कि हम आपका राशन नहीं लेंगे, आपका आवास नहीं लेंगे। तब तो सब ले-लेकर खा गए और अब बात भी करने को तैयार नहीं हैं। पब्लिक की ऐसी नाइंसाफी! ऐसी धोखाधड़ी! अब पब्लिक भले यह कहकर अपना नाशुक्रापन छुपाए कि हमने जो खाया, सो तुमने क्या अपनी गांठ से दिलाया? हमने अपने हिस्से का खाया बल्कि अब भी हमारा पूरा हिस्सा नहीं आया, वगैरह। पर इतना तो तय है कि पब्लिक को कुछ न कुछ तो मिला है। यानी गाय चर भी गयी है, तो उसने पूरा बजट नहीं चरा है। गाय से कम ही सही, पर कुछ न कुछ पब्लिक को भी चरने को मिला है। फिर पब्लिक की बेवफाई को भूलकर, सारा दोष गोमाता के सिर मंढऩे की कोशिश क्यों की जा रही है?

हमें तो लगता है कि न कोको और न गाय का चर जाना, भगवा पार्टी की असली समस्या है, इस देश की पब्लिक में पॉजिटिविटी की कमी। पहले प्रधानमंत्री के पद पर रहकर नेहरूजी ने और मोदी जी का नंबर आने तक आये दूसरे सभी प्रधानमंत्रियों ने भी, अधिकार ले लो, अधिकार ले लो, कर के इस देश की पब्लिक में और-और मांगने की तथा कम मिलने की शिकायत करने की आदत की नेगेटिविटी इतनी कूट-कूटकर भर दी है कि, मोदी जी-भागवत जी सात साल की अपनी सारी कोशिशों के बाद भी, ज्यादा पॉजिटिविटी पैदा नहीं कर पाए हैं। और बिन पॉजिटिविटी पब्लिक, डबल इंजन सरकार को खींचने में छड़ों की जोड़ी की जबर्दस्त कुर्बानी की कद्र कैसे कर पाएगी?

एक मिसाल से समझें। जिस दिन से विधानसभा चुनावों के इस चक्र का चुनाव प्रचार शुरू हुआ है, तेल की कीमत एक बार भी बढ़ी हो तो कोई बता दे? अब तक नहीं बढ़ी है तो नहीं बढ़ी है, आगे भी 7 मार्च की शाम तक बढ़ जाए, तो हम टांगों के नीचे से निकल जाएंगे। कच्चे तेल के दाम कहां से कहां पहुंच गए, पर मजाल है जो डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस के दाम में चवन्नी भी बढ़ी हो। वैसे चवन्नी तो अब शायद चलन से भी बाहर हो चुकी है। पर दो महीने से ज्यादा सस्ता तेल भकोसने के बाद भी, मजाल है जो पब्लिक जरा सी भी पाजिटिविटी दिखा रही हो और ईमानदारी से थैंक यू मोदी जी के दस-बीस लाख वोट भी डलवा रही हो। उल्टे लोग कह रहे हैं कि पहले जब कच्चे तेल के दाम इससे कम थे, तब हमसे तेल का दाम इतना ज्यादा क्यों लिया? थैंक यू वोट आने की जगह, आक थू वोट जा रहे हैं--कम में दिया जा सकता था, फिर पहले हमसे तेल का इतना ज्यादा दाम क्यों लिया?

ऐसी धोखेबाज पब्लिक के भरोसे तो चल चुकी डैमोक्रेसी, न यूपी में और न देश में। पब्लिक ने राम राज्य लाने के लिए सरकार का भरोसा खो दिया है। क्यों न छड़ों की जोड़ी, इस पब्लिक को ही भंग कर दे और अपने भरोसे की पब्लिक चुन ले। फिर न गाय वोट चर सकेगी और न कोको उनके वोट लेकर उड़ सकेगी। उसके बिना तो राम राज्य खतरे में ही रहेगा।

(यह एक व्यंग्य आलेख है। इसके लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

sarcasm
UP Assembly Elections 2022
Yogi Adityanath
cow politics
BJP
Satire
Political satire

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

तिरछी नज़र: 2047 की बात है

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

ताजमहल किसे चाहिए— ऐ नफ़रत तू ज़िंदाबाद!

तिरछी नज़र: ...ओह माई गॉड!

कटाक्ष: एक निशान, अलग-अलग विधान, फिर भी नया इंडिया महान!

तिरछी नज़र: हम सहनशील तो हैं, पर इतने भी नहीं


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License