NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
व्यंग्य
भारत
राजनीति
कटाक्ष: एक निशान, अलग-अलग विधान, फिर भी नया इंडिया महान!
क्या मोदी जी के राज में बग्गाओं की आज़ादी ही आज़ादी है, मेवाणियों की आज़ादी अपराध है? क्या देश में बग्गाओं के लिए अलग का़ानून है और मेवाणियों के लिए अलग क़ानून?
राजेंद्र शर्मा
09 May 2022
jignesh and bagga

मोदी जी गलत शिकायत नहीं करते हैं। उनके जितना विरोध आजादी के पहले सत्तर साल वाले किसी भी पीएम को नहीं झेलना पड़ा होगा। और मोदी जी यह बात भी कोई अंदाजे से नहीं कहते हैं। इसी का सही माप लेने के लिए उन्होंने शुरू से लगाकर सारे प्रधानमंत्रियों को अगल-बगल में एक ही म्यूजियम में बैठाया है और एक-एक के कद का सही नाप कराया है।

आखिरकार, मोदी जी के विरोध का ही नाप सबसे ज्यादा निकला है। और विरोध भी कैसा-कैसा, किस-किस बात के लिए! एकदम ताजा विरोध, बेचारे तेजिंदरपाल सिंह बग्गा को पंजाब पुलिस के कब्जे से छुड़ाने के लिए हो रहा है। कहा जा रहा है कि बग्गा को बचाने के लिए मोदी जी के राज में, दिल्ली और हरियाणा, दो-दो राज्यों की पुलिस, पंजाब पुलिस से भिड़ गयी और उसे छुड़ाकर मानी। क्या सिर्फ इसलिए कि बग्गा, मोदी जी की पार्टी की तरफ से उसके विरोधियों को गाली देता है? वर्ना गुजरात का विधायक होने के बावजूद, ट्वीट करने के लिए जिग्नेश मेवाणी को असम की पुलिस पकड़ कर ले गयी थी, तब तो उन्हें बचाने कोई पुलिस, कोई डिप्टी सोलिसिटर जनरल नहीं आया। उल्टे दो-तीन दिन हिरासत में रहने के बाद, अदालत ने जब उन्हें जमानत भी दे दी तो असम पुलिस ने बैक डेट में एक और केस बनाकर उन्हें हाथ के हाथ दोबारा गिरफ्तार कर लिया। अदालत ने दूसरे केस को सरासर झूठा करार देकर तगड़ी झाड़ लगायी, तब कहीं जाकर मेवाणी की गुजरात वापसी की नौबत आयी।

क्या मोदी जी के राज में बग्गाओं की आजादी ही आजादी है, मेवाणियों की आजादी अपराध है? क्या देश में बग्गाओं के लिए अलग कानून है और मेवाणियों के लिए अलग कानून? क्या देश में दो अलग-अलग कानून चल रहे हैं--मोदी भक्तों के लिए एक कानून और भक्तों के विरोधियों के लिए एक और कानून? ज्यादा नहीं तो कम से कम दो-दो विधान। और वह भी एक विधान के सब्जबाग दिखाकर, एक प्रधान चलाने वालों के राज में।

एक विधान क्या सिर्फ जुम्ला था, दूसरे बहुत सारे जुम्लों की तरह। वर्ना कश्मीरियों को उनकी औकात दिखाने के लिए निशान, प्रधान तो सब कब के बाकायदा एक किए जा चुके हैं। फिर विधान के मामले में ही यह उल्टी यात्रा क्यों?

लेकिन, हम तो यही कहेंगे कि मोदी जी के विरोधियों का यह इल्जाम भी सरासर बेबुनियाद है। वर्ना मोदी जी पर एक विधान से उल्टे रास्ते पर जाने का इल्जाम कोई कैसे लगा सकता है? एक प्रधान की बात तो ठीक है, पर मोदी जी ने खुद अपने मुंह से कभी एक विधान की बात कही होगी, हम यह नहीं मान सकते। कश्मीर के मामले में एक विधान की बात अलग है, वर्ना देश तो छोड़िए गुजरात तक के लिए मोदी जी ने न कभी एक विधान की बात कही थी और न एक विधान लागू करने के चक्कर में पड़े थे।

मोदी जी ने 2002 से तो बिल्कुल साफ ही कर दिया था कि उनसे एक विधान की उम्मीद कोई भूल कर भी नहीं करे। बेचारे वाजपेयी जी भी राजधर्म के बहाने एक विधान की दुहाई देने के बाद, मोदी जी का जवाब सुनने के बाद अपना सा मुंह लेकर रह गए थे। मोदी जी ने तभी बता दिया था कि उनके राज में और कुछ नहीं तो कम से कम दो विधान तो जरूर ही रहेंगे--एक संस्कारी हिंदुओं के लिए और दूसरा बाकी तमाम ऐरे-गैरों के लिए। ऐरों-गैरों के लिए अलग विधान में मोदी जी ने कभी फर्क नहीं आने दिया, हां सारे संस्कारी हिंदुओं के लिए भी एक ही विधान होने में दो रायें हो सकती हैं। अब अडानी जी, अंबानी जी वगैरह के लिए और बाकी सब संस्कारी हिदुओं के लिए भी विधान एक तो नहीं ही हो सकता है। फिर बग्गाजी पर ही ऐरों-गैरों का वाला ही कानून लागू किए जाने की मांग क्यों की जा रही है।

यह बेशक सच है कि भले ही मोदी जी ने एक विधान की बात नहीं की हो, पर उनके पहले वालों ने जोर-शोर से एक विधान की बात की थी। पर यह पूरा सच नहीं है। पूरा सच यह है कि गोलवालकर वगैरह संघ परिवार के बुजुर्ग जब एक विधान की बात करते थे, तब वे कश्मीर के लिए ही  एक  यानी बाकी भारत वाले विधान की बात करते थे। पर नेहरू जी ने वो वाला एक विधान चलने ही नहीं दिया। फिर, एक विधान की भगवाइयों की मांग तो हमेशा से असल में मनुस्मृति के विधान की ही मांग थी और मनुस्मृति के विधान को तो डॉ. आम्बेडकर ने एक मौका भी नहीं मिलने दिया था। माना कि भगवाइयों ने भी मनुस्मृति के विधान को चलाने का पीछा नहीं छोड़ा, पर आम्बेडकर के विधान ने भी तो अब तक पीछा नहीं छोड़ा है। यानी कहने को कोई कुछ भी कहे, इस देश में एक विधान पहले भी नहीं था। दो की छोड़ो, यहां तो जाति-जाति के लिए अलग-अलग विधान रहे हैं। फिर मोदी राज पर ही अपने तेजिंदर बग्गाओं के लिए, सबसे अलग ही विधान चलाने के इल्जाम क्यों लगाए जा रहे हैं! सच्ची बात तो यह है कि एक विधान की धारणा ही विदेशी है। अंगरेजी राज से लड़ते-लड़ते नेहरू-पटेल-आंबेडकर टाइप के इस देश के नेता उनके जैसे ही हो गए और सेकुलरिज्म से लेकर डैमोक्रेसी तक, पश्चिम वालों का बराबरी का झूठा मॉडल इस देश पर लाद गए। मोदी जी का राज ही है जो सत्तर साल की इस दिमागी गुलामी से  भारत को आजादी  दिला रहा है और भारतीय परंपरा के जीर्णोद्धार के लिए सनातनी हिंदू को जगा रहा है। और सनातनी हिंदू दिन-रात मेहनत कर के देश और दुनिया को याद दिला रहा है कि हमारी संस्कृति में कभी झूठी बराबरी को महत्व नहीं दिया गया। और क्यों? क्योंकि यही  वैज्ञानिक है। बराबरी कृत्रिम है जबकि ऊंच-नीच ही प्राकृतिक है। जब एक हाथ या पांव की पांच उंगलियां कम से कम पांच साइज की होती हैं, तो पूरे देश के लिए विधान ही एक कैसे? पांच न सही कम से कम दो-तीन विधान तो होने ही चाहिए। नया इंडिया अडानी जी की दौलत दुनिया भर में सबसे तेजी से बढ़ाकर, सारी दुनिया को अलग-अलग विधानों का रास्ता दिखा रहा है।

वैसे ईमानदारी की बात तो यह है कि एक निशान भी अब तक कहां हो पाया है। मोदी राज के आठ साल में भी भारत मुश्किल से दो निशान तक ही पहुंच पाया है। अमृतकाल की शुरूआत तक ही तिरंगे के बगल में भगवा लहरा पाया है। बेशक, ब्रांडेनबर्ग गेट से शुरूआत हो गयी है, तिरंगे की जगह, भगवा के लहराने की। पर वह तो सात समंदर पार जर्मनी की बात है--भगवाइयों के पितृ देश की। इसका चलन इस देश तक आने में तो अभी टैम लगेगा। और, जब अब तक एक प्रधान के सिवा कुछ भी एक नहीं हो पाया है, निशान भी नहीं, फिर मोदी जी से बेचारे बग्गाओं के लिए ही एक विधान की ही मांग क्यों की जा रही है। खैर! मोदी जी पर ऐसी मांगों का कोई असर पडऩे वाला नहीं है। कुत्ते भौंकते रहते हैं, हाथी चलता रहता है। फिर भी हम इतना जरूर कहेंगे कि--देश भर के बग्गाओ एक हो; तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, मोदी राज की सरपरस्ती के सिवा।

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

sarcasm
Satire
Political satire
Tejindrapal Singh Bagga
Jignesh Mevani
Narendra modi

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

तिरछी नज़र: 2047 की बात है

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

ताजमहल किसे चाहिए— ऐ नफ़रत तू ज़िंदाबाद!

तिरछी नज़र: ...ओह माई गॉड!

तिरछी नज़र: हम सहनशील तो हैं, पर इतने भी नहीं

कटाक्ष : बुलडोज़र के डंके में बज रहा है भारत का डंका


बाकी खबरें

  • maliyana
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल
    23 May 2022
    ग्राउंड रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह न्यूज़क्लिक की टीम के साथ पहुंची उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के मलियाना इलाके में, जहां 35 साल पहले 72 से अधिक मुसलमानों को पीएसी और दंगाइयों ने मार डाला…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    बनारस : गंगा में नाव पलटने से छह लोग डूबे, दो लापता, दो लोगों को बचाया गया
    23 May 2022
    अचानक नाव में छेद हो गया और उसमें पानी भरने लगा। इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते नाव अनियंत्रित होकर गंगा में पलट गई। नाविक ने किसी सैलानी को लाइफ जैकेट नहीं पहनाया था।
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी अपडेटः जिला जज ने सुनवाई के बाद सुरक्षित रखा अपना फैसला, हिन्दू पक्ष देखना चाहता है वीडियो फुटेज
    23 May 2022
    सोमवार को अपराह्न दो बजे जनपद न्यायाधीश अजय विश्वेसा की कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली। हिंदू और मुस्लिम पक्ष की चार याचिकाओं पर जिला जज ने दलीलें सुनी और फैसला सुरक्षित रख लिया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    क्यों अराजकता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है कश्मीर?
    23 May 2022
    2019 के बाद से जो प्रक्रियाएं अपनाई जा रही हैं, उनसे ना तो कश्मीरियों को फ़ायदा हो रहा है ना ही पंडित समुदाय को, इससे सिर्फ़ बीजेपी को लाभ मिल रहा है। बल्कि अब तो पंडित समुदाय भी बेहद कठोर ढंग से…
  • राज वाल्मीकि
    सीवर कर्मचारियों के जीवन में सुधार के लिए ज़रूरी है ठेकेदारी प्रथा का ख़ात्मा
    23 May 2022
    सीवर, संघर्ष और आजीविक सीवर कर्मचारियों के मुद्दे पर कन्वेन्शन के इस नाम से एक कार्यक्रम 21 मई 2022 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया मे हुआ।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License