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सीवर कर्मचारियों के जीवन में सुधार के लिए ज़रूरी है ठेकेदारी प्रथा का ख़ात्मा
सीवर, संघर्ष और आजीविक सीवर कर्मचारियों के मुद्दे पर कन्वेन्शन के इस नाम से एक कार्यक्रम 21 मई 2022 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया मे हुआ।
राज वाल्मीकि
23 May 2022
sewer worker

सीवर, संघर्ष और आजीविक सीवर कर्मचारियों के मुद्दे पर कन्वेन्शन के इस नाम से एक कार्यक्रम 21 मई 2022 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया मे हुआ।

इसका आयोजन दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम) की ओर से किया गया। इस कार्यक्रम मे अन्य 18 संगठनों ने भी सहभागिता की।

फरीदाबाद से आई पैंतीस वर्षीया मीना देवी कहती हैं कि “पिछले साल मेरे पति बलबीर की प्राइवेट सेप्टिक टैंक साफ़ करते समय जहरीली गैस से मौत हो गई। हमारे तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। किराये पर रहती हूँ। समय पर मकान मालिक का किराया नहीं दे पाती हूँ। मकान मालिक घर खाली करने की धमकी देता है।  किसी तरह कोठियों में काम करके गुजारा करती हूँ। बहुत परेशानी है।” वह हाथ जोड़कर कहती हैं, “मुझे सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली है। आप बड़े लोग हैं। सरकार से कह कर हमारी मदद करवाइए। मुआवजा और सरकारी सफाई की नौकरी दिलवाइये। आप लोगन की बड़ी महरबानी होगी।“ यह कहते-कहते वह भावुक हो जाती हैं।

मीना देवी

चालीस वर्षीया अंजू सभी को जयभीम और लाल सलाम कहती हुई अपना परिचय देती हैं, “मैं जेएनयू में सफाई का काम करती हूँ। मैं ठेका प्रथा से बहुत दुखी हूँ। जेएनयू में  हमें सफाई के लिए ठेके पर रखा गया है। ठेकेदार हमारा शोषण करता है। तीन-तीन महीने तनख्वाह नहीं देता है। मेरे पति देशराज भी ठेके पर सफाई का काम करता था। जब उसने ठेकेदार पर तनख्वाह के लिए दबाब डाला तो उसे तनख्वाह तो मिल गयी लेकिन उसे काम से हटा दिया। हम सभी सफाई कर्मचारियों को एक साथ मिलकर ठेकाप्रथा का विरोध करना चाहिए। जब तक ठेकाप्रथा रहेगी हमारा शोषण होता रहेगा। इस मुहिम में सभागार में उपस्थित बड़े अधिकारियों को हमारा साथ देना चाहिए।"

सोनी देवी

भाग्यविहार से आए पैतालीस वर्षीय सीवर वर्कर  शेरसिंह कहते हैं कि, “हम अपनी रोटी के लिए हाथ और शरीर को शौचालयों और सीवरों में डालने को मजबूर हैं। एक सीवर के अन्दर सफाई के दौरान मैं घायल हो गया था। मेरे अन्य दो साथियों की मौत हो गई थी। मेरा काफी दिनों तक इलाज चलता रहा। पर मुझे सरकार से कोई सहायता नहीं मिली। हालाँकि तब केजरीवाल ने घायलों को ढाई लाख रुपये आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी। पर मुझे कोई सहायता नहीं मिली। अब मुझ से सीवर का काम नहीं होता। मेरे तीन बच्चे हैं। मैं और मेरी पत्नी सोनी मिलकर  मेहनत-मजदूरी करते हैं तब किसी तरह घर का गुजारा चलता है। किराये पर रहता हूँ। हम गरीब लोग कैसे अपने बच्चों का पालन-पोषण करें। कैसे उन्हें पढ़ायें-लिखाएं। मैं कहना चाहता हूं कि सीवर सफाई में जो सफाई कर्मचारी घायल हो जाते हैं सरकार उन के लिए सहायता का प्रावधान करे।“

शेरसिंह

इस तरह कई सीवर वर्करों ने मंच पर आकर अपनी बात रखी। उनका कहना था कि उन्होंने कोरोना काल में अपनी जान-जोखिम में डाल कर साफ़-सफाई की। पर हमें सैनीटाईजर और साबुन तक नहीं दिया गया। हमारी तनख्वाह भी कई-कई महीने बाद मिलती है। ठेकेदारी प्रथा ने जीना हराम कर रखा है। एक तो ठेकेदार तनख्वाह कम देता है। ऊपर से कोई सुविधा नहीं देता। कोई छुट्टी कर लें तो दिहाड़ी काट लेता है। रोब जमाता है वह अलग से। ठेका प्रथा तुरंत बंद होनी चाहिए। इस प्रथा ने हमारा जीवन बरबाद कर रखा है।

कई सीवर सफाई कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें काम करते हुए 15 साल हो गए। हमारा कोई ESI कार्ड है न हमारा PF कटता है। न हमारा इजाल फ्री में होता है। जब हमें सीवर में उतारा जाता है तब हमारे पास सुरक्षा उपकरण नहीं होते हैं जिन्हें पहनकर हमारी जान की सुरक्षा हो सके। ठेकेदार हमें सीवर में घुसने पर मजबूर करता है। मना करो तो काम से निकालने की धमकी देता है। इस गंदगी के काम के कारण हमें कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। इलाज कराने को हमारे पास पैसे नहीं होते।

सामाजिक कार्यकर्ता और सीवर वर्करों पर काम कर रही राजस्थान की हेमलता कंसोटिया ने बताया कि जयपुर में हमने एक सफाई कर्मचारी लड़के को इस काम से निकाल कर एक होटल में खाना बनाने के काम पर लगवाया। पर होटल मालिक को जब उसकी जाति पता चली तो उसे काम से निकाल दिया। उन्होंने बताया राजस्थान में कि सीवर सफाई का काम मैन्युअल ही कराया जाता है। पर कहीं मशीन भी इस्तेमाल की जाती हैं  तो सफाई के काम के लिए पूरी तरह अनुकूल नहीं होती। मशीन होते हुए भी सफाई कर्मचारी को सीवर में उतरना पड़ता है।  

जेएनयू की प्रोफ़ेसर संघमित्रा आचार्य कहती हैं कि इस देश में दो तरह के भारत हैं। एक ऐसा भारत जिसमे सबकुछ ठीक हो रहा है। देश प्रगति कर रहा है। दूसरा जमीन से जुड़ा भारत है जो ‘सब कुछ ठीक है’ इस पर सवाल पूछता है। वह कई वर्ष पहले का गुजरात के ऊना के उदाहरण देते हुए कहती हैं कि नगर निगम का एक सरकारी अधिकारी वहां फ़ैली गन्दगी के बारे में पूछने पर अपनी जातिवादी मानसिकता दर्शाते हुए कहता है कि यहां सफाई कर्मचारियों ने हड़ताल कर रखी है। अब आप जानती ही हैं कि दूसरी जाति (कथित उच्च जाति) के लोग तो ये काम करेंगे नहीं।

दिल्ली जल बोर्ड सीवर विभाग मजदूर संगठन के अध्यक्ष वेद  प्रकाश कहते हैं जब तक ठेकेदारी प्रथा रहेगी सीवर सफाई कर्मचारी का शोषण रुक नहीं सकता। जिस सीवर सफाई कर्मचारी को सरकार 14,000 रुपये देती है ठेकेदार उसे 7,000 से 9000 रुपये तक देता है। बाकी पैसा कहां जाता है? ये सब सरकारी अधिकारियों और ठेकेदार की मिलीभगत से हो रहा है। मेडिकल और बीमा में भी घपला होता है। इसलिए सफाई का निजीकरण बंद किया जाए। सरकार सीधे-सीधे सीवर सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति करें। तभी इन्हें सुविधाएं मिल सकेंगी।

म्युनिसिपल वर्कर्स लाल झंडा यूनियन के वीरेन्द्र गौर ने कहा, "ठेकेदारी प्रथा के ख़िलाफ़ आंदोलन करने की जरूरत है।  सरकार नहीं बल्कि नीतियां बदलना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। साथ ही मजदूरों को अपने अन्दर असुरक्षा (काम से हटा देने ) का जो डर है उसे अपने अन्दर से इस डर को निकालना होगा। ठेकेदारी प्रथा से पीड़ित सभी संगठनो को एक मंच पर आना होगा। जब हम संगठित होंगे तभी सरकार पर दबाव बनाकार ठेका प्रथा का उन्मूलन कर सकेंगे।

रोहिणी में सफाई का काम करने वाले गौरव ने कहा कि ठेकेदारी प्रथा को जल्द से जल्द खत्म होना चाहिए। ठेकेदार हमें अस्थायी रूप से काम पर रखता है। हमारा समय समाप्त होने पर निकाल देता है। ऐसे में हम कहां जाएं। घर खर्च कैसे चलाएं। इसलिए बहुत जरूरी है कि हमारा काम नियमित किया जाए।

ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हनन मुल्ला कहते हैं, "सफाई का काम स्थायी  है तो फिर सफाई करने वाले अस्थायी क्यों? उन्होंने कहा कि ट्रेड यूनियने इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। पर उनकी नजर ऊपर वालों पर नहीं नीचे वालों पर होनी चाहिए। ठेकेदारी प्रथा के मुद्दे पर सभी जनवादी संगठनो को एक साथ आना चाहिए। मिलकर आवाज उठानी चाहिए। एकता से व्यवस्था बदलेगी। व्यवस्था बदलने से आपकी समस्याओं का समाधान होगा। ये लड़ाई हमें रोज  लड़नी है और बड़े स्तर पर लड़नी है।"

इस कार्यक्रम में आंबेडकर नगर और त्रिलोकपुरी के विधायक भी शरीक हुए। आंबेडकर नगर से आम आदमी पार्टी के विधायक अजय दत्त ने पहले तो अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और अरविन्द केजरीवाल की जमकर तारीफ़ की। पर जब देखा कि सभा में उपस्थित लोगों को ये रास नहीं आ रही है तो बोले सीवरों की जो समस्याएं उठाई गयी हैं उन्हें मैं विधानसभा सत्र में रखूंगा।

त्रिलोकपुरी के विधायक रोहित कुमार मेहरोलिया ने कहा कि मैं खुद वाल्मीकि जाति से हूँ इसलिए मैंने सीवर में मौतों को काफी नजदीक से देखा है। इस समस्या का समाधान सिर्फ क़ानून से नहीं होगा। पीड़ितों को सिर्फ सहानुभूति कीनहीं बल्कि सहारे की भी जरूरत होती है। हमारा संविधान हमें गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है।

सीवर कर्मचारियों को गरिमा से जीने के लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए हमें लम्बी लड़ाई लड़नी है। अपने स्तर पर मैं सरकार के सामने इस मुद्दे को रखूंगा और समस्या का समाधान निकाला जाएगा।

दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग के चेयरपर्सन संजय गहलोत ने कहा कि सीवर वर्करों की समस्या के लिए हमें सबसे पहले ठेकेदारी प्रथा को जड़मूल से समाप्त करना होगा। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए हमें एकजुट होना होगा। इसके लिए हमें बहुत संघर्ष करना होगा। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने होंगे। सड़कों पर उतरकर बड़े स्तर पर अपनी आवाज उठानी होगी।  

अधिवक्ता कमलेश कुमार ने कहा कानून बनाने वाले और क़ानून का पालन करवाने वाले साथ ही आप जिनसे न्याय की उम्मीद करते हैं यानी न्यायाधीश। सब इस समाज से ही आते हैं। शोषणकर्ता इन्हीं का फायदा उठाते हैं। वे शोषितों को धर्म में बांटते हैं। हमें हिन्दू और मुस्लिम में बांटते हैं। मीडिया और कार्पोरेट उनके साथ होता है। भले ही संविधान आपको शोषण के खिलाफ लड़ने का अधिकार देता है। पर इस अधिकार का फायदा  कहां  मिलता है। आप को शायद हैरानी हो पर देश के सर्वोच्च न्यायलय में भी भेदभाव होता है। इसलिए इन्साफ मिलना  इतना आसान नहीं होता। पर फिर भी निराश नहीं होना है। अगर हम मजबूती से लड़ेंगे तो जीतेंगे अवश्य।

सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च की आर्कजा ने कहा कि सेफ्टी स्टैण्डर्ड पूरी तरह से सरकार की जिम्मेदारी है इसलिए सरकार सीवर सफाई का मशीनीकरण तो करे ही साथ ही कानून का कितना पालन हो रहा है इसके लिए हमें लीगल ऑडिट की मांग करनी चाहिए।

एडवोकेट कवलप्रीत कौर ने कहा कि कानून पूरी तरह समस्या का समाधान नहीं है। ठेकेदारी पर यह काम दिया ही क्यों जाता है? सामाजिक व्यवस्था इस में बड़ी भूमिका निभाती है। कानून सबके लिए बराबर होता है। पर क्या समाज का क़ानून बराबर है? कोई ब्राहमण अपने लोगों को सीवर सफाई के लिए क्यों नहीं भेजता? कानूनी प्रक्रिया में डेटा महत्वपूर्ण होता है। क्या हम ये काम करने वालों का डेटा इकठ्ठा कर सकते हैं?

पूरा कार्यक्रम चार सत्रों में हुआ। इसमें दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के अलावा 18 से 20 अन्य संगठनों ने अपनी सहभागिता की।

कार्यक्रम के अंत में निष्कर्ष रूप में निम्न मांगे रखी गईं:

1. सरकार कर्मचारियों की सीधी भर्ती करे और सीवर/सेप्टिक टैंक और खुले नालों के कार्यों को नियमित करे। सभी कर्मचारियों को सरकार के संबंधित विभागों द्वारा जबसे काम कर रहे हैं उन तिथियों से पेरोल/मस्टर रोल पर उल्लेखित करें।

2. निजी ठेकेदारों से सीवर/सेप्टिक टैंक/खुली नालियों की सफाई कार्य की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।

3. सीवर कर्मी के घायल होने की स्थिति में पूर्ण रूप से स्वस्थ्य होने तक कर्मचारी राज्य बीमा कोष के तहत उनका उपचार किया जाना सुनिश्चित किया जाए।

4. किसी भी दुर्घटना के मामले में काम कराने वाली अथॉरिटी या व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और कानून के तहत दोषी ठहराया जाना चाहिए। उसे समुचित सजा दी जानी चाहिए।

5. सीवर/सेप्टिक टैंक/ओपन ड्रेन कर्मचारियों का पुनर्वास और उनके बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा और रोजगार की गारंटी दी जानी चाहिए।

लेखक सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।

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